
जानकीपुरम जोन ट्विटर हैंडल से विजिलेंस छापा को लेकर 2 मई को कुछ फोटोग्राफ पोस्ट किए गए थे.. जिसमें फर्जी विजिलेंस इंस्पेक्टर चंद्रकांत यादव, जो पैशे से ड्राइवर है, ड्राइवर के साथ-साथ विजिलेंस के लिए चलने वाली गाड़ी का मालिक भी है…
लेसा के अधिकारियों ने यह वादा किया था कि भविष्य में वह ड्राइवर छापामारी के दौरान गाड़ी में ही बैठेगा.. इस वादे के कारण इस फर्जी इंस्पेक्टर सहित विजिलेंस टीम का ड्राइवर के विषय में फॉलो करना बंद कर दिया था.. जिसको लेकर हमें खुद पर नाराजगी हो रही है…
भ्रष्ट लेसा के अधिकारियों द्वारा लगातार लगभग 20 सालों से एक ही व्यक्ति अलग-अलग फार्मो के माध्यम से को फर्जी दस्तावेजों के सहारे गलत तरीके से टेंडर के माध्यम से अनुबंध कर रहा है…
मध्यांचल डिस्कॉम में कार्यरत विजिलेंस टीम के प्रभारी सारी सच्चाई जानते हुए (यूपीपीसीएल मीडिया द्वारा व्यक्तिगत रूप से ई मेल आईडी/ फोन पर) उपलब्ध भी कराया गया है… उसके बाद भी विजिलेंस टीम उसी फर्जी गाड़ी से जाती है, उसी ड्राइवर के साथ जाती है और उसे फर्जी गाड़ी का भुगतान भी करती है…. इससे साफ जाहिर होता है कि प्रभारी सहित पूरी टीम इस भ्रष्टाचार में संयुक्त रूप से शामिल है… क्योंकि कानून की नजर में देखें, तो अपराधी का साथ देने वाला भी अपराधी होता है…
गोमती नगर सार्किल द्वारा यह जानते हुए कि फर्जी तरीके से टेंडर प्राप्त कर अनुबंध किया गया है… हम मान लेते हैं नवागत अधीक्षण अभियंता गोमती नगर को इस बात की जानकारी नहीं थी क्योंकि वह दूसरे जिले से आए थे… लेकिन पूरे मामले की खुलासा होने के बाद यह टेंडर क्यों नहीं कैंसिल किया? जबकि इसी प्रकार का मामला हमारे द्वारा जनपद मेरठ में खुलासा किया गया तो तत्काल रूप से कार्रवाई करते हुए उसे टेंडर को रद्द किया गया था… जब विभाग एक है, अपराध एक है तो कार्रवाई का नजरिया अलग-अलग क्यों क्यों नहीं अभी तक टेंडर रद्द किया गया…
इसके अतिरिक्त फर्जी विजिलेंस इंस्पेक्टर कम ड्राइवर चंद्रकांत यादव 2/11 एच ए एल, विभागीय कॉलोनी इंदिरा नगर लखनऊ में निवास करता है…. जो कि सरकारी कॉलोनी है… मकान उनके भाई के नाम पर आवंटन है, जो की बिजली विभाग में कार्यरत है… क्या विभाग में ऐसा कोई नियम है कि किसी के नाम पर आवंटन कोई जिसका विभाग से कोई लेना-देना नहीं है… उस मकान में रहे, फर्जी तरीके से निशुल्क बिजली का उपयोग करें, हां यदि उसका भाई साथ में रहता तब कोई दिक्कत नहीं थी…
सबसे हैरानी की बात यह है कि जब कोई विजिलेंस टीम के छापामारी में कोई व्यक्ति भले ही वह उपभोक्ता हो, बिजली चोरी करते हुए रंगे हाथ पकड़ा जाता है… उसके उपरांत श्रीराम टावर के पार्किंग में स्थापित अस्थाई कार्यालय में फर्जी इंस्पेक्टर कम ड्राइवर चंद्रकांत यादव डील करते हैं…. तो उसके उपरांत विजिलेंस टीम के अवर अभियंता उसके गुनाहों को माफ कर देते हैं… यह कैसे संभव है?… इससे साफ प्रतीत होता है कि विजिलेंस टीम प्राइवेट कर्मचारियों को आगे कर उनसे वसूली करती है… मामला पकड़ भी आवे तो सब कुछ प्राइवेट व्यक्ति के ऊपर डाल दिया जाए… जैसे कि डिस्ट्रीब्यूशन में खेल किया जाता है…
हमारे द्वारा लगातार 22 दिन फॉलोअप किया जाने के उपरांत फर्जी इंस्पेक्टर कम ड्राइवर चंद्रकांत यादव ने सभी प्रकार से कोशिश की… कि यह फॉलोअप ना हो सके… जैसे की धमकी देना.. खरीदने की कोशिश करना… यहां तक संबंधित प्रकरण से जुड़े एक इंजीनियर द्वारा भी इस प्रकार से कोशिश की गई (समस्त सबूत उपलब्ध) लेकिन कोशिश बेकार गई… फिर मध्यांचल डिस्कॉम के वाणिज्य निदेशक ने मुख्य अभियंता सिविल/ मुख्य अभियंता गोमती नगर जोन को संपूर्ण मामले में संज्ञान लेते हुए बिंदुवार दिए गए तथ्यों का जवाब पत्र लिखकर मांगा… जिसको मुख्य अभियंता गोमती नगर जोन सुशील गर्ग ने अपमान करते हुए रद्दी की टोकरी में फेंक दिया…
एक महीना के बाद जब यूपीपीसीएल मीडिया ने इस बात को उठाया तो आनन फानन में उस पत्र को खोज कर दिखावे के लिए एक जांच कमेटी बनाकर उसकी जांच अधीक्षण अभियंता इंदिरा नगर सर्किल को दे दिया… बिजली निगम के इतिहास में पहली बार होगा कि एक अधीक्षण अभियंता की जांच… एक अधीक्षण अभियंता करें… और इस कमेटी गठन हुए भी एक महीने के ऊपर हो गए… लेकिन जांच रिपोर्ट नहीं आ पाई… आगामी 20 में को वाणिज्य निदेशक रिटायर हो जाएंगे… उसके बाद तो चांदी ही चांदी सारा मामला टाय टाय… फिश… क्योंकि मुख्य अभियंता सुशील गर्ग के नजर में हम हैं यहां के राजा… हमारी मर्जी…. हम भ्रष्टाचारियों को रखें अथवा हटाए… रखेंगे तो दो पैसा मिलता रहेगा… पैसा रहेगा तो जीवन जीने में आसानी रहेगी…
अंत में संक्षेप में इतना ही कहेंगे कि उक्त फोटोग्राफ से यह सब जाहिर होता है कि इस विभाग में खास खास तौर पर लेसा में जब तक ऐसे भ्रष्ट्र अधिकारी रहेंगे… इस प्रकार की भ्रष्टाचार होता रहेगा…