
मित्रों नमस्कार! आखिर वो कौन से कारण हैं कि एक तकनीकी विभाग में इन्जीनियरों पर गैर अभियन्ता प्रबन्धन भारी है? आखिर इन्जीनियरों की कौन सी दुखती रग, प्रबन्धन के पास है, कि सत्य को सत्य कहने के नाम पर, इन्जीनियरों की जुबान लड़खड़ा कर, हलक में ही अटक जाती है। आईये आज उस दुखती रग पर चर्चा करें।
बेबाक के अनुसार इसके पीछे सिर्फ एक ही कारण है, अधिकांश इन्जीनियरों में अपनी महत्वकांक्षाओं के पेड़़ को अपनी मेहनत एवं ईमानदारी के स्थान पर, भ्रष्टाचार के फर्टिलाइजर के माध्यम से रातों-रात खड़ा करने के लिये बेताब होना। ऐसा नहीं है कि प्रशासनिक अधिकारियों की रगों में महत्वकांक्षाओं के बीज नहीं होते। वे जानते हैं कि जंगल में यदि कोई शेर शिकार करे, तो वह उसका अधिकार है। परन्तु यदि कोई इन्सान एक नरभक्षी जीव को भी मार दे, तो वह कृत्य एक अपराध है। अतः वे बड़े सब्र के साथ, एक सुनियोजित नीति के तहत, कार्य करते हुये, रातों-रात अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए, ऊँची उड़ान भरने वाले दबंगों के आगे, स्थानान्तरण एवं नियुक्ति के टुकड़े फेंककर, उन्हें अपना पालतू बनाकर, बेहद सुगमता से उनका शिकार करते हैं। जिनमें से कुछ पालतू बन जाते हैं जिनकी पूंछ की क्रिया ही, अन्य के लिये एक सन्देश होती है। आवश्यक शिक्षा ग्रहण करने के बाद, आने वाले रंग-रुटों को कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों का बोध कराने के स्थान पर, कथित दबंग, उन्हें निर्बाध सफलता की सीढ़ी चढ़ने के लिये, पूंछ हिलाने की अनिवार्यता भलिभांति समझा देते हैं। जिसका प्रमाण है बहुत सारे अभियन्ताओं को उच्च पदों का अतिरिक्त कार्यभार दिया जाना एवं उनके मनचाहे स्थान पर नियुक्त किया जाना। जिसमें न तो न्यूनतम अनुभव की आवश्यकता पड़ती है और न ही अनुशासनात्मक कार्यवाही शून्य होने की। बस अभ्यर्थियों को पूंछ हिलाने का तरीका ज्ञात होना चाहिये।
गत् दिनों न्यूनतम अनुभव की सीमा पूर्ण न करने के आधार पर कुछ लोगों की पदोन्नत्ति निरस्त हुई और चयन समिति के विरुद्ध कार्यवाही के नाम एक निर्दोष अधिकारी को बलि का बकरा बना दिया गया। जबकि नियमानुसार चयन समिति में संयुक्त सचिव द्वारा चयन हेतु पत्रावली प्रस्तुत की जाती है न कि उपसचिव द्वारा। कुछ समय पूर्व भी, ऐसी कई पदोन्नत्तियां हुई, जो आज भी न्यूनतम अर्हता पूर्ण नहीं करती, परन्तु उनकी पदोन्नत्ति आज तक निरस्त नहीं हुई। कुछ इसी प्रकार से स्थानान्तरण एवं नियुक्ति में भी खेल जारी है। जिसके लिये पूंछ हिलाते हुये, आशीर्वाद प्राप्त करना अनिवार्य है। यही कारण है कि आज ऊर्जा निगमों में इन्जीनियर, इन्जीनियरिंग के कार्य छोड़कर, बात-बात पर ”जी सर“ एवं पूंछ हिलाने वाले, बाबू बनकर रह गये हैं। स्पष्ट है कि जिस संस्थान में प्रबन्धन को अपना बोया कभी न काटना हो, कार्मिक अति महत्वकांक्षी हों, अयोग्यता ही योग्यता हो तथा उपयोगिता का आधार सिर्फ निहित स्वार्थ हो। तो स्वतः ही यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रबन्धन, इन्जीनियरों पर क्यों भारी है।
बेबाक ऊर्जा निगमों के कार्मिकों से सिर्फ इतना सा अनुरोध करना चाहता है कि यदि वे वास्तव में स्वाभिमान के साथ, सेवा एवं जीवन यापन करना चाहते हैं तो उन्हें स्थानान्तरण एवं नियुक्ति के भय को त्यागकर अपना बिस्तर बांधकर कहीं भी जाने के लिये तैयार रहने के साथ-साथ कमजोर/स्वार्थी नेत्रत्व से सावधान रहना होगा। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA