गुरु कृपा के लिये सरकारी कैमरे के समक्ष नोटों की गड्डियों की लेन-देन का खेल!

सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडिओ के अनुसार एक अधिशासी अभियन्ता को अपने कार्यालय की मेज की दराज खोलकर, बड़ी शान्ति से नोटों की दो गड्डियां को दान में लेते हुये देखा जा रहा है। वीडियो वायरल होने के बाद नोटों की गड्डियां देने वाले ने यह स्वीकार किया है कि उसने वह गड्डियां उधार में दी थी। जोकि उसे वापस मिल गई हैं। यह तो वह अधिशासी अभियन्ता एवं ठेकेदार ही बता सकते हैं, कि किस प्रयोजन अथवा किसी एवज में उनके द्वारा अपने ठेकेदार से नोटों की गड्डियां प्राप्त की गई थी और कैसे सोशल मीडिया पर वीडिओ वायरल होते ही, वह प्रयोजन पूर्ण होकर, रकम कहां से और कैसे वापस हो गई? क्या उक्त रकम का कुछ ऐसे प्रयोजन के लिये प्रयोग किया गया था कि निवेश करते ही वह रकम मय सूद के वापस आ गई?

प्रश्न उठता है कि अधिशासी अभियन्ता जोकि कुछ अधीनस्थ पदों के नियोक्ता अधिकारी भी हैं, क्या उन्हें यह नहीं मालूम कि नियमानुसार वे सामान्य परिस्थिति में अपने अधीनस्थ की सरकारी गाड़ी तक का प्रयोग नही कर सकते, किसी बाहरी की एक कप चाय तक नहीं पी सकते, वे अपने ही कार्य क्षेत्र के ठेकेदार से किसी भी प्रकार का लेन-दिन किसी भी परिस्थिति में नहीं कर सकते। चूंकि उन्हीं के कैमरे एवं कार्यालय में यह लेन-देन हुआ है, तो दाल में कितना काला है, यह एक बड़ी चर्चा का विषय है।

चर्चा है कि किसी उच्चाधिकारी के गुरु जी को दान में उक्त रकम पहुंचाने के लिये, किसी उच्चाधिकारी के निर्देश पर, उक्त अधिकारी द्वारा अपने ही कार्यालय में, अपने ही कैमरे के सामने, अपनी ही दराज स्वयं खोलकर दान के लिये उक्त रकम प्राप्त की। परन्तु यह उसका दुर्भाग्य था कि गुरु जी की कृपा मिलने के स्थान पर, उनके ही कार्यालय से, उनकी यह वीडियो वायरल हो गई। जानकारी में यह आया है कि हटाये गये संविदा पर नियुक्त एक कम्प्यूटर आपरेटर द्वारा, पुनः कार्य पर आने के प्रयास की लालच में एक लोकल पत्रकार को यह वीडियो दी गई थी। जिनके द्वारा सौदा तय न हो पाने के कारण, मामले को उजागर करते हुए वीडियो वायरल कर दिया गया।

वैसे तो यह स्पष्ट है कि यह रिश्वत नहीं, सप्रेम भेंट थी। अर्थात दो व्यक्तियों के बीच आपसी सहमति से किया गया मुद्रा का आदान प्रदान। अन्यथा कानूनन रंगे हाथ पकड़े जाने की व्यवस्था है। वो अलग बात है कि सरकारी नियमानुसार उतनी बड़ी रकम का कैश में आदान प्रदान नहीं हो सकता। परन्तु दान लेने के लिये इस सीमा में छूट प्रदान है।

चूंकि प्रायः इस प्रकार के दान के लेन-देन का कार्य, विभागीय नियमों के समानान्तर एक आन्तरिक लाइसेंस प्रक्रिया के अधीन, आपसी सहमति ही नहीं, उच्चाधिकारियों के निर्देशों के अनुसार भी होता है। अतः इस प्रकार के मामलों में सीबीआई एवं ईडी तक का हस्तक्षेप नहीं होता है। आये दिन सरकारी कर्मचारियों एवं अधिकारियों के रंगे हाथ पकड़े जाने की सूचनायें प्रकाशित होती रहती हैं। जिसके कारण, चयनित सरकार एवं सार्वजनिक उपक्रमों/उद्योगों के कार्मिकों की छवि धूमिल होती रहती है।

जबकि यह निर्विवाद सत्य है कि अकेले रिश्वत पचा पाने की दुनिया में कोई दवाई ही नहीं बनी है। रिश्वत एक चरणबद्ध प्रक्रिया है। रिश्वत का वितरण आपसी सहमति एवं विश्वास के साथ, बहुत ही सौहार्दपूर्ण वातावरण में होता है। अर्थात सबकी हिस्सेदारी ससम्मान पूर्वक सबके पास पहुंच जाती है। जिसमें चालाकी करने का ही परिणाम रंगे हाथों पकड़ा जाना माना जाता है। अतः ऊर्जा प्रबन्धन को बेबाक की एक सलाह थी, कि तमाम प्रशिक्षणों की औपचारिकतायें पूर्ण कराने के साथ-साथ, रिश्वत लेने जैसे अति महत्वपूर्ण एवं प्रमुख कार्य के लिये, उच्च प्राथमिकता के आधार पर अपने कार्मिकों को विशेष उचित प्रशिक्षण दिलवाया जाना चाहिये। जिससे कि सभी के हित एवं छवि सुरक्षित रहें और वे उच्चाधिकारियों के निर्देशानुसार, सुगमता से दान प्राप्त कर, परम सत्यनिष्ठा के साथ उसका वितरण कर सकें। विदित हो कि पिछले अध्यक्ष महोदय द्वारा जितने भी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को दण्डित अथवा स्थान्तरित किया गया था, आज सभी निर्धारित दान दे-देकर, उचित लाइसेंस प्राप्त कर, अपने-अपने इच्छित स्थान पर, अपनी ही शर्तों पर कार्य कर रहे हैं। जो पदोन्नत नहीं हो सकते थे, वे भी उच्च पदों का अतिरिक्त कार्यभार प्राप्त कर, ईमानदारी को चिढ़ा रहे हैं।

दुखद यह है कि लोग जिन्हें गुरु का दर्जा देते हैं, उन्हें अपनी मेहनत की कमाई का कोई अंश भी दान में नहीं दे सकते। उसके लिए भी लेन-देन का मार्ग अपना कर, दूसरों के सेवाकाल में कांटे बिछाने के कार्य में कोई संकोच नहीं करते हैं। यह देखना रोचक रहेगा कि आज जब सरकार आये दिन लोगों के उधार माफ कर रही है, तो एक ठेकेदार से उक्त कथित उधार किस कृपा प्रदान करने के एवज में लिया गया था और उसे कौन सी कृपा प्रदान की गई? क्या प्राप्त की गई धनराशि उसी कार्यालय में उसी कैमरे के समक्ष लौटाई गई? या कोई अन्य कैमरा प्रयुक्त किया गया? वे गुरु जी कौन हैं जिनके लिये दान लिया गया? यह दान किसके निर्देश पर लिया गया? अन्ततः गुरु कृपा किस-किस पर बरसी और श्रापित कौन हुआ? राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द! बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.

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