
मित्रों नमस्कार! ऊर्जा निगम निर्बाध आपूर्ती के नाम पर, रात-दिन अपनी मूलभूत आवश्यकताओं पर चर्चा करने के स्थान पर, बाहरी कम्पनियों के द्वारा सुझाये गये उपकरण आदि की खरीद-फरोख्त करने के निर्णय, Dummy निदेशक मण्डल के कन्धों पर रखकर लेते रहते हैं। जिसमें विभागीय इन्जीनियरों की दखलंदाजी लेश मात्र भी नहीं होती। जिससे एक बात तो पूर्णतः स्पष्ट हो जाती है कि में लाइन एवं उपकरणों में होने वाले ब्रेक डाउन को दूर करने के लिये निगम स्वतः गम्भीर नहीं हैं। ये ब्रेकडाउन उनके लिये वरदान के समान हैं जोकि स्वतः बिजली की मांग को नियन्त्रित रखते है। क्योंकि यदि ये ब्रेकडाउन नहीं होंगे तो मांग के अनुरुप विद्युत आपूर्ति कर पाना सम्भव नहीं होगा और ”बिजली कटौती“ की चर्चा आरम्भ हो जायेगी, जो कोई सुनना नहीं चाहता।
गत् सप्ताह जनपद वाराणसी के दैनिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान में एक खबर प्रकाशित हुई थी कि पूर्वांचल वितरण निगम बिजली आपूर्ति बेहतर बनाने के लिये Hot Spot Detection अत्याधुनिक Thermovision Camera खरीदने जा रहा है। जिसके माध्यम से दिन के उजाले में भी गर्म लाइनें चिन्हित हो जायेंगी।यह सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि ऊर्जा निगम Advance Technology adopt कर रहे हैं। परन्तु पर्दे के पीछे की कड़वी सच्चाई कुछ और ही है। क्योंकि दिन हो या रात, जगह-जगह तार एवं केबिलों के ढीले जोड़, नंगी आंखो से स्वतः दिखलाई देते रहते हैं, तार टूटते रहते हैं और सूचना मिलने के बावजूद, सामग्री एवं कार्य करने वाले कर्मियों की अनुपलब्धता के कारण Fault Attend नहीं हो पाते।
यदि हम अपने ही विद्युत उपकेन्द्रों पर ही एक नजर भर डाल लें, तो वहां पर लगे, PG Clamps एवं Isolators के जोड़ों पर, दिन के उजाले में ही चिन्गारियां चमकती हुई ही नहीं, बल्कि उनकी स्पष्ट आवाज तक सुनाई दे जायेगी। बिजली घर से थोड़ा सा ही बाहर निकलेंगे तो परिवर्तकों की LT Rods पर बेतरतीब तरीके से एक के ऊपर एक तार/कबिल, बिना किसी Lug के बंधे हुये एवं मौके पर ही चिन्गारी फेंकते हुये नजर आ जायेंगे। जोकि प्रणाली में आये दिन होने वाले ब्रेकडाउन का मूल कारण है। जिनको Attend करने तक के लिये वितरण खण्डों के पास न तो कोई कार्य योजना है और न ही सामान। यदि थोड़ा बहुत सामान मिलता भी है तो, अधिकारियों एवं कर्मचारियों के द्वारा Supervision Charges के आधार पर निहित स्वार्थ में लिये गये ठेकों को पूर्ण करने के लिये भी अपर्याप्त रहता है। स्पष्ट है कि जब सामान्यतः दिखलाई देने वाले Faults को हम समय पर Attend नहीं कर पाते तो थर्मोविजन कैमरे की आवश्यकता क्या है। उपरोक्त कैमरे की कीमत, उसके Resolution के आधार पर रु0 19000 से लेकर, लाखों रुपये है।
ऊर्जा निगमों की यह कड़वी सच्चाई है कि ऊर्जा निगमों की मूलभूत आवश्यकताओं की चिन्ता न तो प्रबन्धन को है और न ही कार्मिकों को। यदि कुछ है तो वह चिन्ताओं का मात्र दिखावा है। जिनके नाम पर लगातार सिर्फ मैराथन बैठकें ही होती रहती हैं। बेबाक सिर्फ इतना कहना चाहता है कि जब तक हम, जो कार्य First Aid से ठीक हो सकते हैं उनको नासुर बनने से पूर्व, दूर करने की क्षमता उत्पन्न नहीं कर लेते, अन्य उपकरण सिर्फ सफेद हाथी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
–बी0के0 शर्मा, महासचिव- PPEWA.