
मित्रों नमस्कार! सोशल मीडिया पर प्रकाशित होने वाले The Coverage पर श्री सौरभ मौर्या के लेख, “बिजली विभाग में ठेकेदारी कर रहे रिटायर्ड जेई के निजीकरण पर रुख से जेई संगठन में घमासान।” प्रबंधन के साथ रहना चाहते हैं ठेकेदारी कर रहे पुराने जेई। निजीकरण के मुद्दे पर जेई संगठन में दो मत। इस लेख को पढ़ने के बाद बेबाक के द्वारा बार-बार उठाये जा रहे, कार्मिक संगठनों की मान्यता हेतु नियमावली-1979 का निहित स्वार्थ में अतिक्रमण किये जाने की स्वतः पुष्टि हो जाती है। उपरोक्त नियमावली के तीन बिन्दु, प्रमुख रुप से यहां पर उल्लेखनीय हैंः 1. कि कोई भी ऐसा व्यक्ति, जिस पर सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली-1956 लागू नहीं होती अर्थात सेवा निवृत्त अथवा बाहरी व्यक्ति, किसी सरकारी/अर्ध सरकारी संस्थान के किसी भी कार्मिक संगठन का पदाधिकारी नहीं हो सकता। 2. एक संवर्गीय संगठन, सिर्फ एक ही संवर्ग से सम्बन्धित विषयों पर प्रबन्धन के साथ वार्ता करने के लिये अधिकृत है। अर्थात खिचड़ी संवर्ग को मान्यता नहीं दी गई है। 3. किसी धर्म, जाति, पन्थ के आधार पर कोई भी संगठन कार्य नहीं कर सकता। उपरोक्त नियमावली के आलोक में, यदि आज हम ऊर्जा निगमों में कार्यरत् कार्मिक संगठनों का अवलोकन करें, तो आईने की तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि कार्मिक संगठनों का अस्तित्व एवं उनके उद्देश्य क्या हैं।
परन्तु यह दुर्भाग्य है प्रदेश की जनता का, ऊर्जा निगमों का एवं उनके कार्मिकों का, कि उत्तरदायी लोग निहित स्वार्थ में अपनी-अपनी आंखें बन्द किये हुये हैं। The Coverage पर प्रकाशित उक्त लेख से, यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार से निहित स्वार्थ में अयोग्य लोग, अपने-अपने निहित स्वार्थ को लेकर आपस में गुत्थम-गुत्था हो रहे हैं। नियमानुसार कथित उ0प्र0रा0वि0प0 जू0ई0 संगठन, श्रेणी-ग के जूनियर इन्जीनियरों का एक संवर्गीय संगठन है। जिसका एक गरिमामयी इतिहास रहा है। परन्तु आज उसके सभी प्रमुख पदों पर, गैर संवर्गीय एवं बाहरी जैसे अधिकारी संवर्ग के श्रेणी-”क“ एवं ”ख“ के अधिकारी एवं सेवानिवृत्त अधिकारी, जिनमें से कुछ, किसी अन्य संस्थान के कर्मचारी हैं, काबिज हैं। अतः एक श्रेणी-”ग“ के संवर्गीय संगठन पर श्रेणी-”क“ एवं ”ख“ के अधिकारियों के साथ-साथ, वहां पर बाहरी लोगों की उपस्थिति, स्वतः संगठन के मूल उद्देश्य एवं उसकी भावना से कहीं दूर भटक चुकी है। अवर अभियन्ता से पदोन्नत्त होकर बने, इस प्रकार के अधिकांश श्रेणी-”ख” एवं “क” के अधिकारियों की विभाग में उपयोगिता पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देती है। क्योंकि विभागीय हित में श्रेणी-”ग“ के कर्मचारियों से कार्य लेना, श्रेणी-”क“ एवं ”ख“ के अधिकारियों का मूल उत्तरदायित्व है। जोकि निष्पक्ष न रह पाने के कारण प्रभावित हो रहा है।
यही कारण है कि आज ऊर्जा निगमों की रीढ़ कहा जाने वाला अवर अभियन्ता ईमानदार एवं निष्ठावान नेतृत्व एवं मार्गदर्शन के अभाव में, दिशाहीन हो चुका है। क्योंकि इन तथाकथित अधिकारियों के मन में एक चोर है, कि यदि ये श्रेणी-”ग“ के कर्मचारियों संग जुड़े रहेंगे, तो ये और अच्छी तरह से, हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे के साथ, बड़ी चतुराई से अपने निहित स्वार्थ की प्राप्ति कर सकेंगे, जहां इनके विरुद्ध कोई ऊंगली नहीं उठा पायेगा। प्रबन्धन द्वारा इस सम्बन्ध में अपनी आंखें मून्दे रखना। स्वतः स्पष्ट कर देता है, कि उसके द्वारा किस प्रकार से जानते-बूझते मौन रहकर इन चीजों को भुनाया जा रहा है। चूंकि प्रबन्धन स्वतः बाहरी है, अतः उसे इस बात से कोई मतलब नहीं, कि किसी संवर्ग का हित हो अथवा नहीं, उसे तो बस अपने निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति करनी है। वैसे भी वह एक ईमानदार अध्यक्ष के साथ, इन्हीं कार्मिक पदाधिकारियों के द्वारा किये गये व्यवहार को देख चुका है। इसी के साथ-साथ सोशल मीडिया पर उपभोक्ता की आवाज द्वारा प्रकाशित लेख ”निजीकरण के संघर्ष के बीच अभियंताओ ने शुरू किया कर्मचारियों का उत्पीड़नः अभियंता संघ की विचारधारा के विपरीत अभियंताओं का नया गुट।“ से बहुत कुछ स्थिति साफ हो जाती है।
स्पष्ट है कि अभियंताओ के अन्दर के अहंकार को प्रबन्धन कहीं न कहीं जगाने में कामयाब हो गया है। कि वे कर्मचारी नहीं अधिकारी हैं और प्रबन्धन का हिस्सा है। जिसका मूल कारण है कि कार्मिक संगठनों में व्याप्त तमाम विसंगतियां एवं उनके उद्देश्यों का स्पष्ट न होना। जिसका मूल कारण है, कार्मिक संगठनों पर बाहरी लोगों का वर्चस्व होना। जोकि निजीकरण के विरुद्ध फूंके गये बिगुल के गुब्बारे में हवा ठहरने ही नहीं दे रहा है। क्योंकि नियमित कर्मचारियों एवं अधिकारियों के मन में लगातार बार-बार उठ रहे प्रश्न कि निजीकरण से इन बाहरी एवं सेवानिवृत्त अधिकारियों के हितों पर किस प्रकार से प्रभाव पड़ना है? ये लोग उनके बीच बिन बुलाये क्यों घुसे हुये हैं? क्या वास्तव में ये कतिपय निजी कम्पनियों एवं प्रबन्धन के ऐजेन्ट हैं? क्या वास्तव में इनका एकमात्र उद्देश्य वितरण कम्पनियों को अपने नेत्रत्व में सुगमतापूर्वक निजीकरण की ओर ले जाना है? उन्हें इस पूरे के पूरे आन्दोलन से दूर किये हुए है। स्पष्ट है कि कुछ भी सामान्य नहीं है। यही कारण है कि निजीकरण के विरुद्ध भोजनावकाश के समय तालियां पीटने के कार्यक्रम के लगभग 6 माह से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद, नियमित कार्मिक आन्दोलन से दूरी बनाये हुये हैं।
बेबाक का आज भी स्पष्ट रुप से यह मानना है, कि यह आन्दोलन पूर्णतः प्रायोजित है तथा इन बाहरी आन्दोलनकारियों का मूल उद्देश्य ही यही है कि नियमित कार्मिक आन्दोलन से दूरी बनाये रखें। जिससे कि इनके उद्देश्यों की पूर्ति सुगमतापूर्वक हो सके। बेबाक एक बार फिर से यह याद दिलाना चाहता है, कि जब तक नियमित कार्मिक किसी संकल्प के साथ मैदान में नहीं उतरेंगे, ये पंचायतें निजीकरण की राहें और सुगम बनाती चली जायेंगी। ईश्वर हम सबकी मदद करे! राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द! बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.