मित्रों नमस्कार! यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य है कि ऊर्जा निगमों के पास अपना क्या है? सभी वितरण कम्पनियां बिजली का व्यापार करती हैं तथा आवश्यकता एवं उपलब्धता के अनुसार, बाजार भाव से बिजली खरीदकर बेचती हैं। सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि बेची जाने वाली बिजली की शतप्रतिशत बिलिंग कभी भी नहीं हो पाती हैं। अतः शतप्रतिशत बिल वसूलने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। कहीं राजनीतिक हस्तक्षेप तो कहीं सरकारी विभागों द्वारा भुगतान न किया जाना, ऊपर से बिजली चोरी और सीनाजोरी। ये सामान्य सी बातें लगातार सुनने को मिलती हैं। प्रत्येक जिले में बिजली चोरी के मामलों में त्वरित कार्यवाही करने के लिये वितरण कम्पनियों के खर्चे पर पुलिस थाने स्थापित कर दिये गये हैं। नंगे तारों के स्थान पर AB Cable और Armored Cable का प्रयोग करने के बावजूद, बिजली चोरी पर कोई नियन्त्रण नहीं हो पाया है।
सबसे दुखद पहलू यह है कि जिस चीज का हम व्यापार करते हैं, उसके लिये हम आज तक अपने तराजू (मीटर) के मानक तक तय नहीं कर पाये। हमने कभी भी अपनी आवश्यकताओं के लिये विभागीय विशेषज्ञ तैयार ही नहीं किये। जो हमारी आवश्यकताओं के अनुसार, Technical Specification बनाकर, उच्च गुणवत्ता के मीटरों का उत्पादन करा सकें अथवा कर सकें। निहित स्वार्थ में आये दिन मीटर निर्माताओं की अदला-बदली होती रहती है। आज तक हम यह तय नहीं कर पाये कि हमारी आवश्यकता क्या है। निर्माता आकर, वातानुकूलित कक्ष में बैठे सामग्री निर्माताओं की मार्केटिंग करने वाले अधिकारियों के समक्ष औपचारिक Presentation देता है और खरीद-फरोख्त की प्रचलित पद्धति के अनुसार डील हो जाती है। सामग्री निर्माता द्वारा उपलब्ध कराये गये Technical Specification के अनुसार, निविदा भी बाहरी लोग ही तैयार करते हैं।
प्रचलित व्यवस्था के अनुसार गुणवत्ता की मात्र औपचारिकता पूर्ण करते हुये मीटरों का क्रय किया जाता है। सालभर में कोई दूसरी कम्पनी लुभावने प्रस्ताव लेकर आती है, तो उनसे मीटर क्रय करने का सौदा कर लिया जाता है। सत्यता यह है कि मीटर निर्माता कम्पनी प्रायः चीन से मीटर निर्माण हेतु आवश्यक सामग्री का आयात कर, अपने देश में Energy Meter Assemble कर आपूर्ति करती हैं। जिसमें Assembled PCB का भी आयात किया जाता है। सामग्री निरीक्षण के दौरान मीटरों की गुणवत्ता उचित है अथवा नहीं, यह डिस्काम मुख्यालय तय करते हैं, न कि निरीक्षणकर्ता। इसी क्रम में अब कुछ चुनिंदा मीटर निर्माताओं से Assembled Smart Meters खरीदे जा रहे हैं। इसी प्रकार से विद्युत उपकेन्द्र एवं लाईनों के लिये सामग्री का क्रय किया जाता है। बिजली की खरीद फरोख्त में Late Payment Surcharge (LPS) का बहुत बड़ा खेल खेला जाता है। क्योंकि LPS की अनुबन्धित दरें, किसी भी Saving/Fixed योजना के विरुद्ध लगभग दो गुने तक का ब्याज देती हैं।
अतः बिजली की खरीद फरोख्त के लिये, विद्युत इन्जीनियर के स्थान पर, प्रबन्धन द्वारा अपने विश्वसनीय सिविल इन्जीनियर की लम्बे समय से नियुक्त किया हुआ है। बिजली को उपभोक्ता के यहां तक पहुंचाने के लिये पारेषण एवं वितरण लाईन एवं विद्युत उपकेन्द्रों के परिचालन से लेकर रखरखाव तक का कार्य, बाहरी लोग ही करते हैं। वितरण परिवर्तकों की मरम्मत एवं उनका रखरखाव भी बाहरी लोग ही करते हैं। इन सारी की सारी प्रक्रिया में, ऊर्जा निगमों के अधिकांश नियमित कर्मचारी एवं अधिकारी, सिर्फ बिचौलिये के रुप में ही कार्य करते हैं। केन्द्र एवं राज्य सरकार के द्वारा पोषित किसी भी विद्युतीकरण योजना में, बढ़ा चढ़ाकर BOQ प्रेषित कर, सामग्री एवं कार्य की आड़ में, नीचे से ऊपर तक अपनी-अपनी हिस्सेदारी का खेल ही खेल होता है। जनता के सामने ईमानदारी और पारदर्शिता के नाम पर आये दिन कुछ संविदाकर्मियों को बर्खास्त करने का दिखावा मात्र किया जाता है।
विगत 22 वर्षों से लम्बी चौड़ी प्रशासनिक अधिकारियों एवं अभियन्ता निदेशकों की फौज घाटे को कम करने के नाम पर 75 करोड़ के घाटे को, आज लगभग 1 लाख करोड़ तक ले आयी है। जो स्वतः इस बात का जीता जागता प्रमाण है कि ऊर्जा निगमों के प्रति कौन कितना निष्ठावान है। बेबाक का एक प्रश्न है कि क्या कभी उर्जा निगम इस बात पर श्वेत पत्र जारी करेंगे कि आखिर निदशकों की लम्बी चौड़ी फौज एवं नित्य की जाने वाली मैराथन वीडिओ कान्फ्रेन्सिंग की क्या उपयोगिता है और विगत 22 वर्षों में किस क्षेत्र में ऊर्जा निगम आत्म निर्भर बने है। क्रमशः
राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.