बेबाक : सेवानिवृत्त कार्मिक नेताओं की महत्वाकांक्षा, हठधर्मिता की नीति के कारण 16 माह पूर्व निलम्बित अधिकारियों में भरे अवसाद के कारण अभियंता द्वारा आत्महत्या का प्रयास — (पार्ट 02)

मित्रों नमस्कार! बेबाक के पिछले अंक में कि उक्त कार्मिक हड़ताल की विशेषता यह थी कि संयुक्त मोर्चा में शामिल अधिकांश कार्मिक संगठनों के पदाधिकारी सेवानिवृत्त थे। जिनके कोई कार्मिक हित् ही नहीं थे। स्पष्ट है कि वह हड़ताल ”कहीं पे निगाहें और कहीं पे निशाना“ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं थी? जिसका दुष्परिणाम आज भी कार्मिक भुगत रहे हैं।

यह गम्भीर रुप से विचारणीय है कि कार्मिकों की हड़ताल में, सेवानिवृत्त कार्मिकों का बड़ी संख्या में सम्मिलित होने से क्या तात्पर्य था। जब कि सरकारी सेवक वह कहलाता है जिस पर उ0प्र0 सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956 लागू होती है तथा उत्तर प्रदेश (सेवा संघों को मान्यता प्रदान करने हेतु) नियमावली-1979 के अनुसार सरकारी सेवक ही कार्मिक संगठन का पदाधिकारी बन सकता है अर्थात कोई सेवानिवृत्त अथवा कोई बाहरी व्यक्ति किसी भी कार्मिक संगठन का पदाधिकारी नहीं बन सकता है। परन्तु दुखद है कि प्रबन्धन द्वारा अपने निहित स्वार्थों की सिद्धी के लिये, कार्मिक संगठनों का भरपूर प्रयोग करने के उद्देश्य से ही, इस प्रकार की घोर अनियमितताओं को आज तक बढ़ने दिया गया।

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यही मूल कारण है कि सेवानिवृत्त कार्मिक नेताओं की महत्वकांक्षायें बढ़ी और उन्होंने उर्जा निगमों में अपनी पकड़ को और मजबूत करने के उद्देश्य से प्रबन्धन में एक आन्तरिक संगठन तैयार कर, संयुक्त मोर्चा का गठन कर, सिर्फ कागजों पर चल रहे अधिकांश कार्मिक संगठनों को जोड़कर, एक संयुक्त मोर्चा का गठन किया गया। जिसकी बागडोर सेवानिव्त्त अभियन्ता ने ही अपने पास रखी। जिसका मूल उद्देश्य ही स्थानान्तरण एवं नियुक्ति उद्योग में सहभागिता करने के साथ-साथ निजीकरण के प्रयासों के विरोध के नाम पर, अपनी कीमत निर्धारित कराना था। उत्तर प्रदेश (सेवा संघों को मान्यता प्रदान करने हेतु) नियमावली-1979 के अनुसार गठित कार्मिक संगठनों का मूल कार्य नियोक्ता एवं कार्मिकों के मध्य एक पुल के रुप में कार्य करना होता है। जोकि अब औपचारिकता से भी दूर चला गया है। क्योंकि कार्मिक संगठनों में बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश के कारण, कार्मिक संगठन अपने मूल उद्देश्य से हटकर अन्य स्वार्थी गतिविधियों में लिप्त हो चुके हैं। जिसके कारण प्रबन्धन पूर्णतः उनके पदाधिकारियों पर इस कदर हॉवी हो चुका है कि गत् 16 माह से कई कार्मिक संगठनों के शीर्ष पदाधिकारी तक, लगातार निलम्बित चल रहे हैं और वे उन्हें ही बहाल कराने में नाकाम साबित हो रहे हैं। अपनी हताशा मिटाने के लिये बार-बार मन्त्री जी के द्वारा दिये गये आश्वासन का हवाला दे रहे हैं। यहां तक कि दो संगठन अपने निलम्बित पदाधिकारियों के साथ वार्षिक सम्मेलन कर चुके हैं, परन्तु सम्मेलन में भी निलम्बन पर आश्वासन के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। आईये एक बार फिर हड़ताल के कारणों पर चर्चा करें।

हकीकत में स्थिति यह है कि वर्ष 2002 में तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 के विघटन के उपरान्त गठित वितरण कम्पनियों के पूर्णतः निजी कम्पनियों के हाथों में जाने की अफवाहों के चलते, जिसके जो हाथ आया, दिल खोलकर खूब लूट की गई। जिसका हिसाब वर्ष 2020 में उर्जा निगमों के अध्यक्ष पद का कार्यभार सम्भालने वाले एक ईमानदार अध्यक्ष द्वारा मांगना क्या शुरु किया गया, कि बड़े-बड़े मगरमच्छ तक जाल में फंसते चले गये। परिणामतः उर्जा निगमों में हड़कम्प मच गया। चूंकि उर्जा निगमों में लगातार आयातित प्रबन्धन के कारण, अधिकांश अधिकारी भ्रष्ट आचरण में लिप्त हो चुके थे। अतः उन सभी को नौकरी जाने का भय सताने लगा था।

अतः लोग भ्रष्टाचार के आरोपों से बचने के लिये राजनेताओं और कार्मिक संगठनों की चरण वन्दना करने लगे थे, तो कुछ चतुर लोग VRS मांगने लग गये थे। कार्मिक संगठन, प्रबन्धन पर दबाव बनाने के लिये, आये दिन सांकेतिक हड़ताल, तो कभी कार्य बहिष्कार, तो कभी नियमानुसार कार्य करने के आन्दोलन करने लगे। इस बात की चर्चा है कि इस प्रकार के आन्दोलनों के पीछे राजनीतिक एवं प्रशासनिक संरक्षण तक प्राप्त था। क्योंकि विभागीय कार्य एवं कार्यवाहियों में राजनीतिक हस्तक्षेप लगभग शून्य हो जाने के कारण स्थानान्तरण, नियुक्ति, पदोन्नत्ति एवं अनुशासनात्मक कार्यवाहियां समाप्त कराने का उद्योग लगभग शून्य हो चुका था। चूंकि इससे पहले कार्मिक संगठन ब्लैकमेल की राजनीति करते हुये उपरोक्त कथित उद्योग को सफलतापूर्वक चला रहे थे तथा इस प्रकार के उद्योग को चलाने में सेवानिर्वत्त कार्मिक पदाधिकारियों की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी थी। इन्हीं के पास उच्चाधिकारियों की जन्म कुण्डलियां थी, क्योंकि वक्त जरुरत पड़ने पर आज के उच्चाधिकारियों के स्थानान्तरण, नियुक्ति एवं पदोन्नत्ति हेतु DP समाप्त कराने में इन्होंने ही उनकी मदद की थी। परन्तु एक ईमानदार अधिकारी से आमना-सामना करने की न तो इनके पास कोई कूटनीति थी और न ही कोई अनुभव। अतः अपने अस्तित्व तक को भी बचाना दुष्कर हो गया था।

अतः कतिपय राजनीतिक सहयोग से एक ईमानदार अध्यक्ष को हटाने की बागडोर, संयुक्त मोर्चा के एक भीष्म पितामाह द्वारा सम्भालकर, बिना परिणामों का उचित आकलन किये, लोगों को ईमानदारी की तलवार से बचाने के नाम पर, हड़ताल की घोषणा कर दी गई। जिसकी मूल मांग ही एक ईमानदार अध्यक्ष से मुक्ति थी। जिसके लिये एक गौरवमयी इतिहास के पदाधिकारी जिसकी खुद की दोहरी पहचान है तथा जिसके ही नेत्रत्व में ही उसके संगठन के सदस्यों का भविष्य, कथित भीष्म पितामाह के कूटनीतिक चालों में दबकर रह गया। उसके द्वारा उर्जामन्त्री जी के सामने अपने ही सर्वोच्च अधिकारी के विरुद्ध निकृष्टतम शब्दों का प्रयोग किया गया। जोकि स्वतः हड़ताल के पीछे राजनीतिक एवं प्रशासनिक सहयोग की ही पुष्टि नहीं करता, बल्कि उनकी निहित स्वार्थ युक्त महत्वकांक्षा को इस रुप में बयां करता है कि उनके लिये उसके सदस्यों के भविष्य का क्या महत्व है।

हड़ताल की व्यूह रचना इस प्रकार की थी, कि जिसमें रोज गढ्ढा खोदकर पानी पीने वाले संविदा कर्मियों को बहला-फुसलाकर हड़ताल में इस नीति के साथ सम्मिलित किया गया था कि जब बिजली आपूर्ति बाधित होगी, तो जनता त्राहिमाम करने लगेगी और सरकार उनकी मांगों को मानने के लिये बाध्य होगी। जिसके पीछे उन सभी राजनीतिज्ञों एवं प्रशासनिक अधिकारियों का अदृश्य समर्थन था, जिनकी दुकानें ईमानदारी के कारण बन्द थी। चूंकि जीवनभर उच्चाधिकारियों के साथ मिल बैठकर अथवा ब्लैकमेल करके अपने आपको कार्मिक नेताओं कहलाने वालों के पास एक ईमानदार से लड़ने का कोई अनुभव नहीं था। अतः हड़ताल के कारण विद्युत आपूर्ति बाधित होने पर, जनता के जबरदस्त विरोध पर, माहौल बदलते ही तथाकथित राजनीतिक एवं प्रशासनिक सहयोगियों ने अपने भविष्य की खातिर, हड़तालियों से मुंह मोड़ लिया। परिणाम, मात्र 2 दिन में हड़ताल, इस आश्वासन के साथ समाप्त हो गई कि हड़ताल के कारण जिन कार्मिकों के विरुद्ध कार्यवाहियां हुई हैं, उनके विरुद्ध कार्यवाहियां समाप्त हो जायेंगी। परन्तु हड़ताल समाप्त होने के बाद भी, हड़ताल के दुष्परिणाम स्वरुप, हड़तालियों के विरुद्ध निलम्बन एवं स्थानान्तरण की कार्यवाहियां हुई। जिसका विरोध लगभग शून्य था। चूंकि इस हड़ताल का मूल उद्देश्य ही ईमानदारी को मार्ग से हटाकर, एक बार फिर भ्रष्टाचार का परचम फहराना था।

अतः एक-एक कार्यरत् कार्मिक नेता, तथाकथित पिंजड़ों में बन्द होते चले गये, जिसमें उनकी सारी की सारी महत्वकांक्षायें एवं उद्देश्य शून्य होकर, एकमात्र उद्देश्य ”अपनी आजादी अर्थात बहाली“ के रुप में परिवर्तित हो गये। जिसकी उन्होंने कभी भी कल्पना तक नहीं की थी एवं तथाकथित भीष्म पितामाह, जिन्होंने सिर्फ अपने निहित स्वार्थ के रक्षार्थ आन्दोलन का झण्डा उठाया था, अपने अस्तित्व के रक्षार्थ, अपने एक-एक प्यादे को पिंजरे में कैद होते बस देखते रहे। शेष अगले अंक में…….राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!

बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.

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