बेबाक: बिजली कड़कते ही स्मार्ट मीटर और उनकी गुणवत्ता के लिये बनाये गये क्वालिटी सेल की खुली पोल!

स्मार्ट मीटर और बिजली कड़कने के कारण उनके खराब होने का समाचार, बुधवार दि0 10.07.24 को वाराणसी के दैनिक समाचार पत्र ”हिन्दुस्तान“ में प्रकाशित हुआ था। जिसके अनुसार बिजली कड़कने से वाराणसी में ही सैकड़ों स्मार्ट मीटर क्षतिग्रस्त हुये थे, जिसके कारण उपभोक्ताओं को रातें अंधेरे में ही गुजारने के लिये विवश होना पड़ा था। क्योंकि विभाग के पास इतनी मात्रा में क्षतिग्रस्त मीटरों को बदलने के लिये मीटर तक उपलब्ध नहीं थे।

इसी प्रकार से गत् वर्ष भी बिजली कड़कने से 367 मीटर खराब हुये थे। यह इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि विभाग के पास अपना न तो कोई Vision है और न ही कोई कार्ययोजना। उर्जा निगम सीधे-सीधे बाहर से थोपी गई योजनाओं पर ही कार्य करता है और नुकसान का ठीकरा अपने ही कार्मिकों पर फोड़ता है। सबसे दुखद एवं आश्चर्यजनक सत्य यह है कि उर्जा निगमों को यह तक ज्ञात नहीं है कि उनकी वास्तविक एवं मूलभूत आवश्यकतायें क्या हैं। आजतक इस प्रकार का कोई सर्वेक्षण कराया ही नहीं गया कि धरातल पर प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिये क्या-क्या आवश्यक है। उर्जा निगमों के पास न तो प्रदेश में अपने कार्यक्षेत्र का, न तो भौगोलिक और न ही जलवायु का कोई सर्वेक्षण है। जिसके आधार पर कार्य की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये, कोई ठोस कार्ययोजना बनाकर, उस पर कार्य कराकर, प्रणाली को सुद्ढ़ किया जा सके।

वास्तविकता यह है कि उर्जा निगमों की जरुरतों को गिन्नियों के आधार पर उर्जा निगम के इन्जीनियर नहीं बल्कि कहीं दूर बैठे, विद्युत सामग्री निर्माता/आपूर्तिकर्ता, कार्यदायी संस्थायें, राजनीतिज्ञ एवं प्रशासनिक अधिकारी मिल कर बताते एवं तय करते हैं। जिनमें एक पुछल्ला लगा दिया जाता है कि यदि उक्त योजना निर्धारित अवधि में पूरी नहीं की गई तो उर्जा निगमों को योजना की लागत में मिलने वाली छूट समाप्त हो जायेगी। जिसका भुगतान उर्जा निगमों को करना होगा। अतः प्रस्तावित योजना को पूर्ण करने के लिये प्रबन्धन अपनी मशीनरी को इस आशय के साथ उसमें झोंक देते हैं कि समय पर कार्य पूर्ण हो जाये। जबकि कड़वी सच्चाई यह है कि ये सारी की सारी योजनायें जनता के धन की बन्दरबांट करने का एक बहाना मात्र है। जिसमें बहुत ही सुनियोजित तरीके से नीचे से ऊपर तक लूट तन्त्र कार्य करता है। जिसमें सामग्री निर्माता एवं आपूर्तिकर्ता को विभागीय लचर एवं लालची तन्त्र का भरपूर सहयोग मिलता है और गुणवत्ता विहीन सामग्री की आपूर्ति की जाती है।

कार्यदायी संस्थायें आधे-अधूरे, गुणवत्ताहीन कार्य कराती हैं, एक तरफ प्रबन्धन जानबूझकर अपने अधिकारियों को समय से पूर्व कार्य सम्पन्न कराने का जबरदस्त दबाव बनाता है, तो वहीं कार्यदायी संस्थायें कार्य को उलझाने में लगी रहती हैं तथा अन्ततः दबाव में कार्य समापन की झूठी-सच्ची रिपोर्ट प्रेषित कर दी जाती है। कार्य कराने के दबाव का सिर्फ एक ही उद्देश्य होता है कि यदि कहीं कोई ईमानदारी का अंकुर किसी अधिकारी के मन में अंकुरित होने का प्रयास कर रहा हो तो वह दबाव में अंकुरित न हो पाये। यही कारण है कि योजनायें आती-जाती रहती हैं, परन्तु परन्तु न तो उपभोक्ता को कोई विशेष लाभ मिलता है और न ही विभागीय कार्मिकों को। विद्युत दुर्घटनायें, जिस प्रकार से पहले घटित होती थी आज भी उसी प्रकार से हो रही हैं।

वास्तविकता यह है कि उर्जा निगमों में स्थानान्तरण, नियुक्ति एवं अनुशासनात्मक कार्यवाहियों का प्रणाली सुधार से कोई भी लेना देना नहीं है। क्योंकि किसी भी स्थानान्तरण का उद्देश्य योग्यता का जनसेवा एवं विभागीय हितों के लिये उचित उपयोग न होकर, सिर्फ और सिर्फ लूट-तन्त्र के रास्ते के अवरोधों को हटाना है। पहले कार्मिक संगठन सिर्फ स्थानान्तरण एवं नियुक्ति के मामलों में ही दखल देते थे, परन्तु जब उन्होंने सुनियोजित लूट के व्यवसाय में अपनी हिस्सेदारी मांगनी शुरु की तथा कुछ व्यवसाईयों पर ऊंगली उठाने का दुस्साहस किया, तो आज, वे सभी घर बैठे व्हाट्सअप- व्हाट्सअप खेल रहे हैं। क्योंकि उन बेचारों को यह मालूम नहीं था, कि उनके बीच में ही लूट-तन्त्र के ऐजेन्ट पूर्ण रुप से सक्रिय हैं, जो पल-पल की खबर इधर से उधर करने में माहिर होते हैं।

सबसे दुखद पहलू यह है, कि विभाग में तकनीकी क्षमता की पहचान सिर्फ इतनी है, कि वह गिन्नियों के अनुसार ही कार्य करती है। यही कारण है कि इनकी तकनीकी विश्वसनियता पर, कोई भी विश्वास करने के लिये तैयार नहीं है। विभाग का 60 वर्ष के एक वरिष्ठ अभियन्ता की इतनी भी हिम्मत नहीं कि वह PMA के 25 साल के एक युवा बालक इन्जीनियर की बातों को काटने का साहस भी कर सके। क्योंकि प्रबन्धन को उस बालक इन्जीनियर की योग्यता पर तो विश्वास है परन्तु अपने वरिष्ठ अभियन्ता की योग्यता पर कोई विश्वास नहीं है। स्पष्ट है कि उक्त बालक अपनी किस योग्यता के आधार पर प्रबन्धन का प्रिय है।

उर्जा निगम बिजली पैदा करने, खरीदने एवं बेचने का व्यापार करते हैं। जिसके लिये उनके पास अपने सामान की कीमत आंकने से पूर्व उसकी नाप-तौल के लिये उर्जा मीटरों की आवश्यकता होती है। परन्तु कटु सच्चाई यह है कि उर्जा मीटरों की गुणवत्ता विभाग नहीं, बल्कि निर्माता एवं आपूर्तिकर्ता तय करते हैं। मीटरों की गुणवत्ता का आधार Technical Specifications न होकर निर्माता/आपूर्तिकर्ता की अपनी राजनीतिक पहुंच एवं गिन्नियों का वजन होता है। चूंकि विभाग को अपनी आवश्यकताओं का कोई ज्ञान नहीं है। प्रबन्धन आयातित है और अभियन्ता विद्युत निर्माता/आपूर्तिकर्ताओं एवं कार्यदायी संस्थाओं के मार्केटिंग एजेन्ट हैं।

तो आईने की तरह स्पष्ट है कि विभाग में किसका कितना हित सुरक्षित है। यदि पिछले 10-20 वर्षों में झांकने का प्रयास करें, तो पायेंगे कि विभाग द्वारा कभी Capital, Zenus, Modern, Elite, Bentec, HPL, Secure, L&T, Linkwell, आदि मीटर निर्माता कम्पनियों के द्वारा निर्मित मीटरों का प्रयोग किया जाता रहा है। जिसमें समय-समय पर कभी किसी तो कभी किसी मीटर को खराब घोषित कर, उसको उतरवाकर, दूसरे मीटर लगाने की निविदायें आमन्त्रित की जाती रही हैं। जिसके कारण उपभोक्ताओं को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा है। क्योंकि मीटर बदले जाने की सूचना उसके बिल में दर्ज न होने के कारण उसका बिल कभी RDF तो IDF आने के कारण, उसको बिजली कार्यालयों के कई-कई चक्कर लगाने पड़ते हैं और कुछ लोग आज भी चक्कर काट रहे हैं। अब चूंकि शहरी क्षेत्र में स्मार्ट मीटर लगाने की योजना के तहत, सामान्य मीटरों को प्रतिस्थापित कर स्मार्ट मीटर लगाये जा रहे हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्र में आज भी सामान्य मीटर ही लगाये जा रहे हैं।

विभाग ने स्मार्ट मीटर लगाना तो आरम्भ कर दिया, परन्तु न तो उसके पास कोई प्रशिक्षण है और न ही स्मार्ट मीटर का कोई ज्ञान। इसी प्रकार से स्मार्ट मीटर क्रय करने से पूर्व, उसकी गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिये भेजे जाने वाले अभियन्ताओं को भी स्मार्ट मीटर का कोई ज्ञान नहीं है। वैसे तो मीटर निर्माता कम्पनियां मीटर निर्माण हेतु प्रयोग की जाने वाली Printed Circuit Board में लगाये जाने वाले Components के Make तक की अनुमति विभाग से लेती हैं, परन्तु हास्यापद तथ्य यह है कि जिस Components के Make की अनुमति ली जाती है, उसकी पहचान न तो अनुमति देने वाले को होती है और न ही निरीक्षणकर्ता को। अब मीटर की गुणवत्ता कैसे निर्धारित होती है बताने की आवश्यकता नहीं है। शेष अगले अंक में….राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!

बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.

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