
मित्रों नमस्कार! पिछले अंक 18.07.2024 (Part-1) के अनुक्रम मेंः कभी विभाग ने मीटर के माध्यम से बिजली चोरी रोकने के लिये औद्यागिक संयोजनों पर लगे पुराने मीटरों को बदलने हेतु, करोड़ों रुपये के Secure Make, 3-phase, 4-wire Digital Meters क्रय कर विद्युत चोरी के सम्भावित स्थानों पर उनका प्रयोग किया था। परन्तु परिणाम, मात्र 50 रुपये के खर्च पर, विद्युत माफिया द्वारा, बिना मीटर को छुये ही, मीटर को बन्द कर, बड़े स्तर पर बिजली चोरी कराई थी। स्पष्ट है कि Meter के Basic Design में ही बहुत बड़ी कमी थी, जिसे कम्पनी वालों ने तो देखा नहीं और विभाग के अभियन्ताओं, ने यह देखने की समझ कभी उत्पन्न ही नहीं की। उपरोक्त खुलासे के बाद, मीटर निर्माता कम्पनी Secure द्वारा, मीटर का नया डिजाईन तैयार कर मीटर के Neutral को निष्क्रिय करते हुये Magnetic Shield का प्रयोग आरम्भ किया था।
विभाग द्वारा उपभोक्ताओं की सुविधा के लिये, उनकी बिलिंग सम्बन्धी परेशानियों को कम करने के लिये, उनके यहां स्मार्ट मीटर लगवाने के कार्य का आरम्भ किया है। जिसमें Prepaid और Post-Paid दोनों तरह के स्मार्ट मीटर उपभोक्ताओं के यहां लगाने से पूर्व, उनकी कार्यशीलता एवं रखरखाव के बारे में, क्षेत्र के अधिकारियों एवं कर्मचारियों तक को कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया। परिणाम, जानकारी के अभाव में, आज स्मार्ट मीटर, क्षेत्रीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों के गले का जंजाल बने हुये हैं।
प्रायः मोबाईल सिम की तरह Prepaid Smart Meter के रीचार्ज करने पर भी, उपभोक्ता को बिजली नहीं मिल पाती है। दैनिक समाचार पत्र ”हिन्दुस्तान“ के दि0 10.07.24 के अंक में प्रकाशित खबर ”वाराणसी में बिजली कड़कने से सैकड़ों स्मार्ट मीटर क्षतिग्रस्त हुये“, क्योंकि विभाग के पास इतनी मात्रा में क्षतिग्रस्त मीटरों को बदलने के लिये मीटर उपलब्ध नहीं थे। जिसके कारण उपभोक्ताओं को अंधेरे में रातें गुजारने के लिये विवश होना पड़ा था। इसी प्रकार से गत् वर्ष भी बिजली कड़कने से 367 मीटर खराब हुये थे। जो इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि न तो विभाग को अपनी आवश्यकताओं की कोई जानकारी है और न ही उसके तथाकथित इन्जीनियरों को। वैसे भी इन इन्जीनियरों की कोई गलती नहीं है, क्योंकि इन्होंने तो अपने नाम के पहले ई0 लिख रखा है, जिसका अभिप्राय सिर्फ इतना है कि उनके ”ई“ के बाद ”शून्य“ है अर्थात वह विभाग की सेवाओं में आते ही इन्जीनियर से ”(ई0)“ ई-शून्य हो चुके हैं।
प्रश्न उठता है कि जब गत् वर्ष भी बिजली कड़कने के साथ, स्मार्ट मीटर खराब हुये थे और इस वर्ष भी पुनः बिजली कड़कने के ही कारण स्मार्ट मीटर खराब हो गये, तो विभाग ने एक वर्ष तक क्या किया? बिजली कड़कना अर्थात बादलों के आपस में टकराने के कारण High Amplitude की Radio Frequency की घ्वनि (जोकि किसी भी Frequency Band Width, को तोड़ते हुये, उपकरण के Data Base को क्षति पहुंचाने की क्षमता रखती हो) के साथ High Voltage, का उत्पन्न होना है। जिसको सीधे-सीधे Zero Resistance युक्त Earth Path न मिलने के कारण गम्भीर क्षति होना सम्भावित है। बिजली गिरने के कारण होने वाली क्षति से बचाव के लिये ही, जगह-जगह Lightening Arrester का प्रयोग किया जाता है।
प्रायः Lightening Arrester के उचित रुप से Earth न होने के कारण, L.A. पूर्णतः महत्वहीन हो जाता है तथा यही कारण है कि बहुमूल्य विद्युत उपकरण, आये दिन क्षतिग्रस्त होते रहते हैं। मैंने स्वयं सहारनपुर क्षेत्र में एक विद्युत उपकेन्द्र पर स्थापित 5 MVA के परिवर्तक को, बिजली गिरने के कारण, फूल की तरह खिलकर, क्षत्-विक्षत् होते हुये देखा है। अतः वाराणसी में बिजली कड़कने से गत् वर्ष एवं इस वर्ष भी सैकड़ों स्मार्ट मीटरों के क्षतिग्रस्त होने की घटना, इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिये पर्याप्त हैं कि विभागीय इन्जीनियर पूर्णतः सामग्री निर्माता/आपूर्तिकर्ताओं के मार्केटिंग ऐजेन्ट के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं। जिन्हें कहीं न कहीं प्रबन्धन का भी संरक्षण प्राप्त है। Performance Test of Electronic Meter को तीन भागों में विभक्त कर, किये जाने का प्रावधान हैः Circuiting, Electrical & Climate Conditions. जिसमें स्मार्ट मीटरों की गुणवत्ता की जांच एवं Acceptance के लिये IS 16444 (Part1) के अनुसार Surge Immunity Test अति महत्वपूर्ण है। जिसमें Surge caused by overvoltage from switching and lightning transients की उचित जांच किये जाने का प्रावधान है। जिसके अभाव में ही, वाराणसी में Lightening के कारण, बड़ी संख्या में Smart Meter क्षतिग्रस्त हुये हैं। क्योंकि मीटरों में Lightening से बचाव हेतु, उचित सुरक्षा उपलब्ध नहीं थी।
प्रायः यह देखा गया है कि विद्युत लाईन हेतु स्थापित विद्युत खम्भों एवं परिवर्तकों की उचित अर्थिंग नहीं होती। अतः Lightening की वजह से उत्पन्न विभव तत्काल निष्क्रिय नहीं हो पाता। जिसके कारण भी अति संवेदनशील Smart Meter का क्षतिग्रस्त होना सम्भावित है। दुखद है कि गत् वर्ष भी इसी प्रकार की घटना घटित हुई थी परन्तु निर्माता का पक्ष लेते हुये न तो कोई कार्यवाही हुई और न ही मीटरों की गुणवत्ता में कोई सुधार हुआ है। जिसका परिणाम सामने है। उर्जा निगमों में कार्यशील क्वालिटी सेल का मूल कार्य ही, विभाग के प्रयोगार्थ क्रय की जाने वाली सभी प्रकार की विद्युत सामग्रियों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना होता है। परन्तु सर्वविदित है कि क्वालिटी सेल, विभागीय हितों की अपेक्षा सामग्री निर्माता/आपूर्तीकर्ताओं की मार्केटिंग एजेन्ट के रुप में कार्य करते हुये नजर आते हैं। जहां गिन्नियों के आधार पर सामग्री उपयुक्त अथवा अनुपयुक्त घोषित कराने का कार्य बड़ी सुगमता से किया जाता है। जहां योग्य अभियन्ताओं को सामग्री निरीक्षण के लिये भेजने के स्थान पर, रबर स्टाम्प की तरह कार्य करने वाले अभियन्ताओं को सामग्री निरीक्षण के लिये भेजा जाता है। इनकी योग्यता का आप इसी बात से आकलन कर सकते हैं कि यदि इनके कार्य क्षेत्र का निरीक्षण कर लिया जाये तो इन्हें अपने यहां प्रयुक्त होने वाली विद्युत सामग्री एवं कार्यों तक के मानकों का कोई ज्ञान नहीं होता। इनका ज्ञान सिर्फ हस्ताक्षर के बदले मुद्रा प्राप्त करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता। यही कारण है कि सामग्री निर्माताओं के यहां, सामग्री की वास्तविक गुणवत्ता की जांच करने वाले अभियन्ताओं को, प्रायः पुनः निरीक्षण का कार्य न के बराबर ही दिया जाता है।
क्वालिटी सेल का सुधार तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि उच्चाधिकारियों की संलिप्तता पर नियन्त्रण नहीं किया जाता। यही कारण है कि विभाग सामग्री निरीक्षण हेतु उचित दिशा-निर्देश जारी नहीं करता। समाचार पत्र एवं सोशल-मीडिया पर कथित पत्रकार एवं अपने आपको समाज सुधारक कहने वाले लोग किसी कार्मिक द्वारा कुछ हजार की रिश्वत का इस तरह से प्रचार प्रसार करते हैं, कि जैसे उन्होंने न जाने कितना बड़ा भ्रष्टाचार पकड़ने की जानकारी दी हो। जबकि क्वालिटी सेल द्वारा प्रतिदिन सामग्री निर्माता/आपूर्तिकर्ताओं एवं निरीक्षणकर्ताओं से प्राप्त किया जाने वाला नजराना उससे कई सौ गुना तक होता है। यदि यह कहा जाये कि विभाग के Quality Cell, प्रबन्धन के Collection Agents हैं। जिनके लक्ष्य निर्धारित हैं तथा Collection Efficiency कम होने के कारण उन्हें पद तक से हटना पड़ता है। बेबाक द्वारा समय-समय पर प्रचलित एवं विद्यमान व्यवस्था को जनहित में इस उद्देश्य से उजागर किया जाता है, जिससे कि प्रबन्धन, कार्मिक एवं जनता को तथ्यों की जानकारी हो सके तथा राष्ट्रहित में भ्रष्टाचार पर शासन द्वारा घोषित जीरो टालरेंस की नीति का पालन होने में सहायक सिद्ध हो। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
–बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.