विद्युत प्रशिक्षण संस्थान में मात्र औपचारिकता हेतु प्रशिक्षण, परिणाम मिल बांटकर खाने की प्रथा की उत्पत्ति

मित्रों नमस्कार!  उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड  लखनऊ के अधीन कार्मिकों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था विद्युत प्रशिक्षण संस्थान सरोजिनी नगर लखनऊ में है। जहां पर सभी श्रेणी के नव नियुक्त एवं पदोन्नत कार्मिकों को प्रशिक्षित करने के साथ-साथ अन्य बाहरी संस्थानों के कार्मिकों को भी प्रशिक्षण देने की सुविधा उपलब्ध है। प्रशिक्षण संस्थान के पास प्रशिक्षण हेतु सुविधा सम्पन्न अच्छा भवन एवं प्रशिक्षुओं के लिये सभी सुविधा युक्त हास्टल है।

परन्तु प्रायः जैसा देखा गया है कि सरकारी विभागों में सबकुछ उन्नत होने के बावजूद, कार्यशैली लचरपूर्ण होने के साथ-साथ, परिणाम मात्र औपचारिकता पूर्ण करने के लिये होते हैं। ठीक उसी प्रकार से, उर्जा निगमों में नवनियुक्त रंगरुटों एवं पदोन्नत कार्मिकों के लिये, प्रशिक्षण मात्र औपचारिकता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। धनाभव अथवा उचित रख-रखाव के अभाव में अच्छा खासा भवन एवं हास्टल जर्जर हालत में पहुंच चुका है। क्योंकि प्रायः यह देखा गया है कि जिन पदों पर, अतिरिक्त धन उपार्जन के कम से कम मौके और साधन होते हैं, वहां पर अधिकांश लोगों की कार्य में कोई रुचि नहीं होती है। जबकि प्रशिक्षण संस्थान की जिम्मेदारी बहुत ही महत्वपूर्ण है।

यह भी देखा गया है कि किसी भी संस्थान में नियुक्त अधिकारियों का अपने उच्चाधिकारियों के प्रति सिर्फ Yes-Man होना ही, उनकी नैसर्गिक योग्यता को अयोग्यता में बदल देता है। जिसके कारण अधीनस्थ योग्य टीम में भी, धीरे-धीरे कुछ नया करने के विचार ही पनपने बन्द हो जाते हैं। परिणाम स्वरुप जीवन में ही नहीं, अपितु उस स्थान को भी, धीरे-धीरे नीरसता घेर लेती है और अधीनस्थ भी न चाहते हुये, नीरसता के शिकार हो जाते हैं। अतः किसी भी संस्थान के प्रबन्धन का ”विचार, कर्म, चाल-ढाल से प्रेरक होना“ अति आवश्यक है। जोकि अपने अधीनस्थ ही नहीं, अपितु संस्थान में आने वाले लोगों में भी उर्जा का संचार कर, उन्हें प्रेरित कर सके। कार्मिक के लिये आवश्यक है जोश, विचार एवं कार्य के प्रति समर्पणभाव, ये तीनों ही मिलकर व्यक्ति को उर्जावान बनाते हैं।

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प्रशिक्षण संस्थान, जिसका दायित्व है कि वह नये रंगरुटों को विभाग की बागडोर सफलता से सम्भालने के लिये, उर्जित करते हुये तैयार करे तथा पदोन्नत कार्मिकों में भी नयी उर्जा का संचार करे। जिसके लिये आवश्यक है कि प्रशिक्षण संस्थान में नीरसता का कोई स्थान न हो। एक और चीज है जोकि प्रमुखता के साथ उर्जा निगमों में जुड़ी हुई है, वह है कुछ नया करने की चाहत हेतु विचार प्रकट करना। जोकि कहीं न कहीं उच्चाधिकारियों के लिये उनके ज्ञान को चुनौती देने के समान होती है। जिसका परिणाम दूर-दराज स्थानान्तरण से लेकर, निलम्बन तक हो सकता है। बस यही परिचय है प्रशिक्षण संस्थान एवं वहां कार्यरत् कार्मिकों का। जहां पर योग्यता की कमी नहीं है। परन्तु उचित प्रेरक का घोर अभाव है। यही कारण है कि एक अच्छा प्रशिक्षण संस्थान, प्रचलित सरकारी ढर्रे पर चलते हुये, प्रशिक्षण की मात्र औपचारिकतायें निभा रहा है।प्रशिक्षण देने वाले Faculties की स्थिति ठीक ऐसी है, जैसे निदेशकों के चयन की, जहां कार्य की कोई विशेष योग्यता के स्थान पर, आशीर्वाद प्राप्त करने की योग्यता महत्वपूर्ण है। अर्थात अपने कार्यकाल में लीक से हटकर, बिना कोई विशेष उपलब्धिपूर्ण कार्य किये उच्च पद की प्राप्ति। जोकि अन्य के लिये निराशा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। स्पष्ट है कि यदि कोई निदेशक या प्रबन्ध निदेशक बनता है, तो उसे फूल-मालाओं एवं गुलदस्तों से, इस लिये सम्मनित नहीं किया जाता, कि उसने कोई विशेष कार्य किया है, बल्कि उक्त पद से जुड़े अपने हितों एवं स्वार्थ के मद्देनजर, नवननियुक्त अधिकारी से अपने सम्बन्ध प्रगाढ़ करने की चेष्टा हेतु, चापलूसों के द्वारा बढ़ाया गया पहला कदम होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रशिक्षण देने हेतु बुलाये जाने वाले अधिकांश Faculties प्रशिक्षण संस्थान में नियुक्त अधिकारियों के द्वारा कुल निर्धारित कक्षाओं में, प्रशिक्षण की औपचारिकता पूर्ण करने हेतु, अपने निजी सम्बन्धों के आधार पर बुलाये जाते हैं, न कि प्रशिक्षुओं को उचित ज्ञान एवं उनके मार्गदर्शन के लिये। Faculties के स्तर का आकलन आप उनको देय, मानदेय के आधार पर कर सकते हैं। जहां पर विषय नहीं, अपितु प्रशिक्षक के पदानुसार (चाहे वह वर्तमान पद हो या सेवानिवृत्ति के समय अन्तिम पद) मानदेय दिया जाता है। अर्थात उसकी योग्यता विषय नहीं, अपितु पद है, पद छोटा तो मानदेय भी छोटा। यही कारण है कि अधिकांश उच्चाधिकारी सेवानिवृत्त होने के बाद, एक बार फिर अपने आपको साहब कहलाने की दबी हुई, तीव्र इच्छा की पूर्ति हेतु, प्रशिक्षण संस्थान में, प्रशिक्षण देने के लिये जाते हैं।

स्पष्ट है कि इस प्रकार के प्रशिक्षण से, विषयगत् प्रशिक्षण मात्र औपचारिकता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं रह जाता। यही कारण है कि प्रशिक्षण से पूर्व एवं बाद में भी प्रशिक्षु के ज्ञान के स्तर में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं होता, और विभाग को प्रशिक्षण का कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। प्रशिक्षण संस्थान में सबसे ज्यादा पढा़या जाने वाला एवं पसंदीदा विषय है अनुशासनात्मक कार्यवाही। क्योंकि क्षेत्र में सभी प्रकार के कार्य तो संविदाकर्मी और ठेकेदार मिलकर कर ही लेते हैं। परन्तु पद पर रहते हुये खाया-पिया, सुगमता से पचाने हेतु अनुशासनात्मक कार्यवाही के दांव-पेंच की जानकारी अनिवार्य है। जानकारी के अभाव में खाने की मात्रा एवं पचाने के ज्ञान के अभाव में, अचानक ”खाना“ पूर्णतः बन्द होना सम्भावित रहता है। परन्तु यह कोई नहीं बताता कि प्रणाली में खाने-पीने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है, ”मिल बांटकर खाना“, जिसमें थोड़ा सा भी असुन्तलन होने पर, सारी की सारी अनुशासनात्मक कार्यवाही का ज्ञान धरा का धरा रह जाता है और आपका दाना पानी बन्द अर्थात निलम्बन/स्थानान्तरण तक की कार्यवाही हो जाती है। अनुशासनात्मक कार्यवाही के विशेषज्ञ, अपने दिये गये नियमों एवं ज्ञान से यह कहकर पीछा छुड़ा लेते हैं, कि क्या करें बॉस ने जैसा कहा, हमने वैसा कर दिया। क्योंकि प्रबन्धन की मर्जी के आगे, सभी नियम-कायदे बौने हैं। तत्पश्चात कोर्ट जाने की सलाह दी जाती है, फिर इसलिये उत्पीड़न किया जाता है कि कोर्ट जाने की हिम्मत कैसे हुई, देखते हैं कैसे नौकरी करते हो। अतः सरल तरीका, शीश झुकाईये, जगह-जगह खुली दुकानों पर सुविधा शुल्क अदा कीजिये और मलाईदार पोस्टिंग पाईये।

कहने का तात्पर्य यह है कि प्रशिक्षण में जो कुछ भी बताया अथवा पढ़ाया जाता है, वह धरातल पर लगभग महत्वहीन है। क्योंकि प्रायः नियम सिर्फ डराने और कमाने के लिये ही प्रयोग किये जाते हैं। मुख्यालयों द्वारा बहुत सारे ऐसे निर्णय लिये जाते हैं, जो न निगले जाते हैं और न ही उगले। गत् दिनों स्थानान्तरण का बवंडर आया और ऐसे सभी लोगों को उड़ा ले गया, जो मिल-बांटकर खाने में सन्तुलन बनाये रखने में असफल रहे या जिन्होंने नियम-कायदों का जिक्र करने का दुस्साहस किया। स्थानान्तरण होने के बाद जिन्होंने शीश झुका दिये और प्रणाली का अक्षरश पालन करने का संकल्प लिया, वे आज भी कार्यमुक्त नहीं किये गये। कहने का तात्पर्य, कथनी और करनी अर्थात प्रशिक्षण एवं धरातल पर ठीक उसी प्रकार से जमीन आसमान का अन्तर है जैसे कॉलेज की पढ़ाई और कार्य स्थल पर कार्य में। चतुर एवं जानकार लोग, प्रशिक्षण के दौरान कक्षायें छोड़कर अपने-अपने जुगाड़ को कार्यान्वित कर भ्रष्टाचार का लाइसेंस प्राप्त करने हेतु, जगह-जगह, मत्था टेकते हुये नजर आते हैं। (क्रमशः) शेष प्रशिक्षण के लिये आवश्यक चीजें, अगले अंक में……राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!

बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.

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