निजीकरण के नाम पर, दुल्हन सजकर तैयार है बस बारात आने एवं विदाई पर नजराना देने की है देर

मित्रों नमस्कार! बुरा न मानो होली है! एक बार फिर आप सभी को रंगों के पवित्र त्योहार होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें!

मित्रों ऊर्जा निगमों में प्रबन्धन की कार्य कुशलता के ऐसे उदाहरण बिरले ही होंगे। जहां पहले शासन द्वारा कम्पनी एक्ट-1956़ में पंजीकृत वितरण निगमों के उचित संचालन हेतु जारी MoA को दरकिनार कर, प्रबन्धन के पदों पर सीधे प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति की गई। तदुपरान्त नियुक्त प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा अपने “PPP” model अर्थात Policy, Procedure & Power में से निर्धारित Policy एवं Procedure को ही लुप्त कर, अपने आपको सर्वशक्तिमान घोषित कर, समूचे निदेशक मण्डल को ही अपनी मुठठी में बन्द कर, उसकी महत्ता को मात्र औपचारिक बना दिया। कार्मिक संगठनों के पदाधिकारियों की कारगुजारियों की फाईलें बनाकर, उन्हें अपना पिछलग्गू बना डाला। यही कारण है कि आज ऊर्जा निगमों में स्थिति यह है कि कहीं दूर-दूर तक कोई तार भी, इनकी मर्जी से हिल नहीं सकता।

यही कारण है कि आज “PPP” model के Public-Private Partnership के रुप में बदलते स्वरुप में, वितरण कम्पनियों के प्रस्तावित निजीकरण की औपचारिकतायें पूर्ण करने के लिये प्रबन्धन निर्बाध आगे बढ़ रहा है। विरोध की औपचारिकतायें निभाने के लिये, वर्षों पूर्व सेवानिवृत्त कुछ कार्मिक, कुछ संविदा कर्मियों एवं कुछ बाहरी लोगों के साथ मुख्यालय के द्वार पर, भोजनावकाश के समय निजीकरण का विरोध करने की औपचारिकता पूर्ण करने हेतु फोटोसेशन करा रहे हैं तथा नियमित कार्मिकों का थोड़ा बहुत मनोरंजन कराकर वापस चले जाते हैं। इसी को कहते हैं बड़ी ही चतुराई से मैच फिक्स करना, जोकि प्रबंधन लगभग कर चुका है। सरकार भी खुश और कार्मिक भी खुश। पिछले 3 माह से भी अधिक समय से, भोजनावकाश के लिये निर्धारित 1 घण्टे के समय में यह खेल बेहद शान्तिपूर्ण एवं खुशनुमा माहौल में चल रहा है।

आज 15 मार्च 2025 को पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण हेतु ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की टेक्निकल बिड खोली जानी प्रस्तावित है। जिसके विरोध के लिये लखनऊ के समस्त कार्यालयों के कर्मचारी और अभियंताओं से शक्ति भवन पहुंचकर प्रदर्शन करने तथा समस्त जनपदों और परियोजनाओं पर भोजन अवकाश के दौरान विरोध प्रदर्शन की औपचारिकता पूर्ण करने का आहवाहन, कतिपय कार्मिक पदाधिकारियों के द्वारा किया गया है। प्रतिष्ठित UPPCL Media द्वारा भी आज अपनी पोस्ट में यह लिखा गया है कि “आखिर कब तक कराती रहेगी पावर कारपोरेशन अपनी बेइज्जती…एक बार फिर से कर रही है टेक्निकल बिड खोलने की कोशिश”…. निविदा कुछ औपचारिक नियमों से बंधी हुई एक प्रक्रिया है, जिसमें निविदा के प्रथम भाग अर्थात टेक्निकल बिड खोलने हेतु कम से कम तीन प्रतिभागियों का होना आवश्यक है। परन्तु सरकार के द्वारा बिड खोलने हेतु हरी झण्डी दिये जाने के बाद, प्रबन्धन की मुट्ठी में कैद निदेशक मण्डल से अनुमोदन प्राप्त कर, कुल प्रतिभागियों की संख्या तीन से कम होने पर भी बिड खोली जा सकती है। टेक्निकल बिड में भी कम से कम तीन प्रतिभागियों के द्वारा निविदा हेतु निर्धारित न्यूनतम अहर्ता पूर्ण करने अथवा निदेशक मण्डल द्वारा अहर्ता में दी गई शिथिलता के अनुसार टेक्निकल बिग में सफल प्रतिभागियों की संख्या के आधार पर ही प्राइस बिड खोली जाती है।

परन्तु यहां पर तो सच्चाई बिल्कुल अलग है जिसे जानते सब हैं परन्तु नमक के कर्ज में दबे होने के कारण बोलता कोई भी नहीं। सच्चाई यह है ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की नियुक्ति तो मात्र संवैधानिक औपचारिकता है, अन्यथा सबकुछ ऊर्जा प्रबन्धन द्वारा पूंजीपतियों एवं उधोगपतियों के साथ जुड़े राजनीतिक हितों के अनुरूप पूर्व नियोजित एवं निर्धारित किया जा चुका है। जिस पर कंसल्टैंट द्वारा अपनी सहमति का मत दिये जाने की औपचारिकता मात्र शेष है। यही कारण है कि भोजनावकाश के दौरान, सांकेतिक विरोध प्रदर्शन, पूर्णतः ऊर्जा प्रबन्धन द्वारा प्रायोजित प्रदर्शन के समान है। जिसके कारण पहली बार ऊर्जा मुख्यालयों पर औद्योगिक वातावरण दूषित होने के स्थान पर खुशनुमा हो गया है। जिसके प्रभाव से मुख्यालयों पर नियुक्त अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कार्य कुशलता एवं दक्षता में जबरदस्त सुधार महसूस किया जा रहा है। जिसके लिये सरकार द्वारा स्वयं अपनी पीठ थपथपाई जा सकती है, क्योंकि उसके द्वारा MoA को दरकिनार कर, जिन प्रशासनिक अधिकारियों को सीधे अध्यक्ष एवं प्रबन्ध निदेशकों के पद पर नियुक्त किया गया था। वे उनके उद्देश्यों की पूर्ति हेतु लिये गये निर्णय पर खरे उतरे हैं। बस यही सफल खेल है राजनीतिज्ञों की कूटनीति का, जहां कार्मिक भी खुश, प्रबन्धन भी खुश और जनता भी खुश। भले ही यह दिखावटी खुशी हो।

बेबाक द्वारा बार-बार अपने इस कथन को दोहराया गया है कि वितरण कम्पनियों के निजीकरण का खेल सम्भवतः फिक्स हो चुका है। जिसकी नित्य नियमित रुप से भोजनावकाश के दौरान एक मनोरंजन के रुप में औपचारिकता निभाई जा रही है। जिसके लिये ऊर्जा प्रबन्धन एवं कतिपय कार्मिक संगठनों के पदाधिकारियों के अटूट गठबन्धन एवं आपसी विश्वास की प्रशंसा की जा सकती है। जिसके माध्यम से दोनों ने मिलकर निजीकरण जैसे अति संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण मसले को, भोजनावकाश की एक मनोरंजक प्रस्तुति के रुप में बदल दिया है। बेबाक को पूर्ण विश्वास है कि जब कभी भी तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 एवं तदुपरान्त गठित ऊर्जा निगमों का इतिहास लिखा जायेगा, तो जिस प्रकार से रोमन सम्राट नीरो के बारे में प्रसिद्ध है कि “जब रोम जल रहा था, तब नीरो बांसुरी बजा रहा था”। ठीक उसी प्रकार से वर्ष 1959 में जनसेवा के लिए स्थापित विधुत परिषद एवं वर्ष 2001 में पंजीकृत वितरण कम्पनियों के वर्ष 2025 में प्रस्तावित निजीकरण पर कार्मिक पदाधिकारीगण जहां एक ओर भोजनावकाश के समय अपनी अपनी डफ़ली पीट रहे हैं, वहीं नियमित कार्मिक तालियां पीट रहे हैं। मित्रों दुल्हन सजकर तैयार है बस बारात आने एवं नजराना तय होने की देर है। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!

-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.

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