विभागीय धांधली का 17 साल बाद खुला काला सच
चित्रकूट। चित्रकूट में बिजली विभाग की कार्यशैली पर करारी चोट करते हुए विशेष न्यायाधीश बिजली अधिनियम, अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिसने विभागीय लापरवाही और फर्जीवाड़े की परतें खोलकर रख दीं। बिजली विभाग की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा करते हुए विशेष न्यायाधीश बिजली अधिनियम, एडीजे रवि कुमार दिवाकर ने दो भाइयों पर दर्ज किए गए बिजली चोरी और हमला के केस को पूरी तरह झूठा करार दिया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि केस गढ़ा गया था और जांच भी निष्पक्ष नहीं हुई।
17 साल बाद सामने आया सच
17 साल तक फाइलों में दबा सच आखिर सामने आ गया—और इसमें सबसे ज्यादा कटघरे में खड़े हैं तत्कालीन जेई, लाइनमैन और जांच अधिकारी। इसके साथ ही कोर्ट ने तत्कालीन जेई समेत सभी संबंधित कर्मचारियों पर विभागीय कार्रवाई के आदेश जारी कर दिए हैं। 5 अप्रैल 2008 को तत्कालीन जेई कृष्णलाल ने कोतवाली कर्वी में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि शिवरामपुर निवासी प्रमोद जायसवाल और विनोद जायसवाल ने वसूली टीम पर हमला किया और बिजली चोरी की।
कैसे गढ़ा गया झूठा केस
5 अप्रैल 2008 को तत्कालीन जेई कृष्णलाल ने दो भाइयों—प्रमोद जायसवाल और विनोद जायसवाल—पर आरोप लगाया कि वसूली के दौरान टीम पर हमला हुआ और बिजली चोरी की गई। लेकिन अदालत ने पाया कि:
- बयान मनगढ़ंत थे
- वसूली टीम का आरोप फर्जी था
- बिजली चोरी की कहानी गढ़ी गई थी
- जांच अधिकारी भी निष्पक्ष नहीं थे
जिन पर सच्चाई सामने लाने की जिम्मेदारी थी, उन्होंने ही सच्चाई को दफन किया।
इन कर्मचारियों पर उठी उंगली
कोर्ट ने जिनकी भूमिका को संदिग्ध पाया:
- तत्कालीन जेई कृष्णलाल
- लाइनमैन मोहन लाल
- कर्मचारी शंकर राम
- विवेचक चंद्रकांत उपाध्याय
- विवेचक प्रमोद कुमार पांडेय
सभी को मामले में झूठा और भ्रामक बयान और जांच इतने संदिग्ध पाए गए कि अदालत ने सीधे विभागीय कार्रवाई के आदेश दे दिए।
इन सभी ने अपनी भूमिका में ईमानदारी नहीं दिखाई।
विभाग की स्थिति—पुराना मामला कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश
अधीक्षण अभियंता आर.के. यादव ने कहा कि:
“निर्णय अभी नहीं मिला है। मामला पुराना है। कौन कहां तैनात है, बताना मुश्किल है।”
यह बयान अपने आप में यह दर्शाता है कि विभाग के पास पुराने मामलों का कोई पारदर्शी रिकॉर्ड और जवाबदेही व्यवस्था नहीं है।
निचोड़: फर्जी केस का पर्दाफाश, विभाग की जांच प्रणाली पर गहरा प्रश्नचिह्न
कोर्ट के आदेश ने साफ कर दिया है कि मामला सिर्फ एक झूठी FIR भर नहीं था, बल्कि विभागीय ढांचे में मौजूद मनमानी, फर्जीवाड़ा और लापरवाही का सीधा उदाहरण था।
अब निगाहें इस बात पर हैं कि—
क्या दोषी कर्मचारियों पर वास्तविक कार्रवाई होगी या फिर आदेश भी पुरानी फाइलों में धूल खाता रह जाएगा?







