
मित्रों नमस्कार! बुरा न मानो होली है! आप सभी को रंगों के पवित्र त्योहार होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें! “PPP” model के दो रुप हैं। जिसमें वर्तमान में लागू Policy, Procedure & Power है। जिसके तहत चूर्ण ऊपर से नीचे तक बंटने के साथ-साथ रिश्वत, अनियमितताओं एवं छल के बदले अतिरिक्त चूर्ण एकत्र करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है अर्थात जहां अपने-अपने स्तर पर दाम और काम एवं काम और दाम का खेल बखूबी खेलने की खुली छूट है। जबकि प्रस्तावित “PPP” model अर्थात Public-Private Partnership के अनुसार चूर्ण प्रशासनिक एवं राजनीतिक स्तर पर ही बंटता है, नीचे वालों के हिस्से सिर्फ दण्ड ही आता है।
वर्तमान में प्रचलित “PPP” model अर्थात Policy, Procedure & Power के अनुसार, वर्ष 2001 में तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 के विघटन के उपरान्त, कम्पनी एक्ट-1956़ में पंजीकृत समस्त वितरण निगमों के उचित संचालन हेतु सरकार द्वारा जारी MoA को दरकिनार कर, सीधे नियुक्त बाहरी प्रबन्धन एवं कार्मिक संगठनों के निहित स्वार्थ युक्त गठबन्धन ने, Policy, Procedure & Power के खेल में, नीतिगत् भ्रष्टाचार (Policy Corruption) के तहत, नियमानुसार Procedure को दरकिनार कर, एक सोची समझी नीति के तहत ऊर्जा निगमों का निजीकरण कराने हेतु, निगमों की डाल-डाल पर नियुक्त अधिकारियोंं के माध्यम से एक ऐसा खेल खेला गया, जिसमें अधिकारियों द्वारा, अपने पद की शक्ति (Power) के अहंकार में चूर होकर, निगमों के स्वस्थ औद्योगिक वातावरण को, निहित स्वार्थ सिद्धि अर्थात कतिपय पूंजीपतियों एवं उद्योगपतियों के हितों के लिये, दहशत फैलाकर, कुछ इस प्रकार से दूषित किया गया, कि ऊर्जा निगम अनावश्यक गुणवत्ताहीन सामग्री, गुणवत्ताहीन कार्य के मात्र भण्डार बनकर रह गये।
उपरोक्त भ्रष्ट नीति के मार्ग में आने वालों को स्थानान्तरित एवं निलम्बित कर, मार्ग से हटाकर अन्य के लिये उदाहरण प्रस्तुत किया गया। पद की शक्ति (Power) के अहंकार को तीव्र करने के लिये प्रबन्धन द्वारा दाम के बदले, ऐसे लोगों को उच्च पदों का अतिरिक्त कार्यभार दिलवाया गया। जोकि उक्त पद की न्यूनतम अहर्ता को ही पूर्ण नहीं करते थे। जिसका परिणाम ये रहा, कि ये जापानी उच्चाधिकारी अपेक्षाओं से भी कहीं ज्यादा अहंकार से परिपूर्ण अधिकारी सिद्ध हुये। जिन्होंने कथित राजनीतिक एवं प्रबन्धन के आशीर्वाद की बदौलत अपने अधीनस्थों के दिलो दिमाग में ही नहीं अपितु, अपने उच्चाधिकारियों तक के मन मस्तिष्क में दहशत का माहौल बना डाला। जिसमें दुखद पहलू यह रहा कि निगमों के नियमित कार्मिक एवं कार्मिक पदाधिकारियों को भ्रष्टाचार की अफीम के नशे में यह पता ही नहीं चला, कि कब उनके पसंदीदा “PPP” model की परिभाषा Policy, Procedure & Power के स्थान पर Public-Private Partnership हो गई। जिसके लिये ही MoA को दरकिनार कर नियुक्त प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा बड़ी ही चतुराई से Policy और Procedure को दरकिनार कर अर्जित अतिरिक्त शक्ति (Power) के माध्यम से, दहशत फैलाकर, Public-Private Partnership के नाम पर निजीकरण का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
यहां पर यह कहना गलत होगा कि Public-Private Partnership के नाम पर निजीकरण की योजना निगम प्रबन्धन की है। क्योंकि योजनायें कहीं दूर बैठे पूंजीपतियों एवं उद्योगपतियों के यहां पर बनती हैं, जिन्हें कार्यान्वित कराने की जिम्मेदारी भारतीय संविधान के अनुसार 5 वर्ष के लिये चुनी जाने वाली सरकारों की होती है। जो इन्हें देश के नौकरशाहों के माध्यम से लागू करवाती हैं। “PPP” model के इन तीन शब्दों Public-Private Partnership का यदि विश्लेषण करें तो ज्ञात होता है कि Public की जेबों से Private Partnership की मदद से किस प्रकार धन निकालना है और Public के पैसे को किस प्रकार ठिकाने लगाना है। बस यही Public-Private Partnership है। जिसमें मूल रुप से राजनीतिज्ञ एवं पूंजीपतियों/उद्योगपतियों के बीच ही हिस्सेदारी का खेल होना है। जिसके अनुसार जनहित के नाम पर सम्भवतः सरकार से कई गुना सुविधायें प्राप्त करना और उसका कुछ अंश चुनावी चंदे के रुप में देना ही Public-Private Partnership का मूल ध्येय होगा। कल्पना कीजिये कि भविष्य में कुम्भ जैसे आयोजनों के लिये ये निजी कम्पनियां किस दर पर सरकार के साथ अनुबन्ध करेंगी? वह निष्चित ही विस्मयकारी होगा। क्योंकि सभी को लाभ चाहिये। जोकि जनता की ही जेब से प्राप्त होता है।
आज “PPP” model के नाम पर वितरण कम्पनियों के निजीकरण को लेकर, बेहद ही खुशनुमा एवं दोस्ताना वातावरण में पिछले 3 माह से भी अधिक समय से भोजनावकाश के समय, कहीं न कहीं प्रबन्धन के ईशारे पर, निगम मुख्यालयों पर कतिपय सेवानिर्वत्त एवं संविदाकर्मियों को लेकर सांकेतिक फोटो सेशन चल रहा है। जो स्वतः ही बहुत कुछ बयां करता है। विचार आता है कि काश यह दोस्ताना खुशनुमा नजरिया का अहसास मात्र, ऊर्जा निगमों के औद्योगिक वातावरण में हो जाता तो आज ऊर्जा निगमों के अस्तित्व से खेलने का साहस कोई भी नहीं कर पाता। ऐसा कोई कारण नहीं है कि वर्ष 2001 में तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 के विघटन के उपरान्त लाभ कमाने के उद्देश्य से, कम्पनी एक्ट-1956़ में पंजीकृत विद्युत वितरण कम्पनियां, लगातार निर्बाध घाटे में डूबती चली जाती। आज उन्हीं वितरण कम्पनियों के निजीकरण हेतु हजारों करोड़ की विभिन्न विद्युत सुधार योजनाओं, जैसे RDSS के माध्यम से दुल्हन की तरह तैयार किया जा रहा है। चूंकि निजी कम्पनियों की बारात कभी भी निगमों के द्वार पर आ सकती है। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि बाहरी एवं सेवानिवृत्त पेंशनधारी, दुल्हन के बदले नजराना लेने की आश लगाये, द्वार पर खड़े हुये हैं। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.