
मित्रों नमस्कार! उपभोक्ता की आवाज के नाम से सोशल मीडिया पर प्रकाशित रिपोर्ट ”3.माह में जले हजारों ट्रान्सफार्मरः अधीक्षण अभियन्ता, अवर अभियन्ताओं समेत 73 को चार्जशीट“। प्रबन्धन की उपरोक्त कार्यवाही पूर्णतः एकतरफा एवं दहशत बनाकर निहित स्वार्थ की पूर्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्योंकि आज भी क्षेत्र में स्थिति यह है कि अधिकांश परिवर्तक बिना मानकों के स्थापित हैं। जिसकी पूरी की पूरी सूचना प्रबन्धन के पास है।
परन्तु आश्चर्यजनक नहीं बल्कि बेहद दुखद है कि सबकुछ जानते हुये भी परिवर्तकों की सुरक्षा के लिये सिर्फ खानापूर्ती एवं कागजों पर कार्यवाही करके, मनपसन्द कार्यदायी संस्थाओं के फर्जी भुगतान के लिये वीडिओ कानफ्रेंस के माध्यम से अधिकारियों को तत्काल, उनके बिलों के भुगतान हेतु ERP portal पर Upload करने के लिये धमकाते हुये निर्देश दिये जाते हैं। क्षेत्र में कार्यरत कार्मिकों के लिये एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ खाई की स्थिति होती है। क्योंकि करें तो मरे और न करें तो मरें। क्योंकि कार्यदायी संस्थायें धरातल पर कोई कार्य करने में विश्वास रखने के स्थान पर, उच्च स्तर पर जोड़-तोड़ करके, भुगतान प्राप्त करने में विश्वास रखती हैं। प्रबन्धन भी ऐसे किसी भी अधिकारी को बर्दाश्त करना नहीं चाहता, जो उनके आदेशों के बाद भी, अभियान्त्रिक योग्यता प्रदर्शित करने का लेशमात्र भी प्रयास करे। प्रबन्धन को इन्जीनियर और ईमानदारी का सिर्फ ”ई0“ ही चाहिये, शेष ”न्जीनियर“ और ”मानदार“ से उसे सख्त नफरत है। अर्थात प्रबन्धन को ऐसे लोग ही, पसंद हैं, जोकि बिना मीन-मेख निकाले उनके आदेशों का अक्षरश पालन करने के लिये तत्पर हों। ईस्ट इण्डिया कम्पनी में भ्रष्टाचार कितने प्रतिशत था इसका तो पता नहीं, परन्तु उर्जा निगमों के प्रबन्धन द्वारा उनकी कार्यशैली पूर्णतः अख्तियार की हुई है। दहशत फैलाओ और राज करो।
अभियान्त्रिक एवं प्रशासनिक कार्य दोनों ही पूर्णतः अलग-अलग हैं। अभियान्त्रिक कार्य के लिये Tool-Kit, Material & Manpower की आवश्यकता होती है। जबकि प्रशासनिक कार्य, जनहित एवं निगम हित में जनता को सुरक्षित बेहतर सुविधा प्रदान करने हेतु समुचित व्यवस्था करना होता है। जिसके तहत उर्जा निगमों के कार्यों में निर्बाध बहाव हेतु गुणवत्ता परक Tool-Kit, Material & Manpower उपलब्घ कराने हेतु ससमय उचित कार्यवाही करनी होती है, जिससे कि परिणाम प्रभावित न हों। परन्तु प्रायः यह देखा गया है कि समय पर संविदाकर्मियों तक के लिये निविदायें आमन्त्रित कर अनुबन्ध नहीं किये जाते। भण्डार केन्द्रों में पूर्ण जमा योजना के अन्तर्गत कराये जाने वाले कार्यों के लिये सामग्री उपलब्ध नहीं होती। दुखद एवं घोर आश्चर्यतनक तथ्य यह है कि निर्बाध आपूर्ति के नाम पर आये दिन घातक दुर्घटनाओं में अपने ही परिवार के सदस्य, असमय दर्दनाक मौत का शिकार होते रहते हैं। परन्तु उनकी सुरक्षा हेतु कोई कदम नहीं उठाये जाते।
धरातल पर उर्जा निगमों में सामग्री एवं कार्य की गुणवत्ता पर कोई नियन्त्रण नहीं है। Annual M&R & Norms के अन्तर्गत कराये जाने वाले कार्यों तक के लिये विद्युत सामग्री नहीं है। अधीक्षण अभियन्ता एवं मुख्य अभियन्ता द्वारा बिजनेस-प्लान के अन्तर्गत अनुरक्षण के कार्यों हेतु निविदायें आमन्त्रित कर अनुबन्ध किये जाते हैं। जिनमें से कितनों पर कार्य होते हैं और कितनों पर मात्र कार्य की खानापूर्ति की जाती है, बताने की आवश्यकता नहीं है। यदि उन कार्यों की जांच करा ली जाये तो पलकें भी झपकना भूल जायेंगी। सबके अपने-अपने अतिरिक्त आमदनी के Heads हैं। उद्देश्य सिर्फ इतना है कि कार्य के नाम पर धन के बहाव में कोई रुकावट नहीं होनी चाहिये। पिछले दिनों उर्जा निगमों के अध्यक्ष बदले जाने पर, उन सभी महारथियों को अग्रिम पंक्ति में स्थान मिला, जिनके लिये पिछले अध्यक्ष के कार्यकाल में अपनी नौकरी बचाना दुष्कर हो रहा था। क्योंकि इन्हें कार्य के नाम पर, धन के बहाव को गति देने में विशेष योग्यता प्राप्त थी। बाहरी संस्थाओं के मार्केटिंग एजेन्ट होने के नाते, योजनाओं को अपनी टीम के माध्यम से कागजों पर ही पूर्ण कराकर, योजना की लागत का अधिकांश हिस्सा, इधर से उधर करने में ये महारथी थे और आज भी हैं।
अतः प्रबन्धन द्वारा इनके अनुभवों का लाभ उठाने हेतु, इन्हें अपने मोहरों के रुप में जगह-जगह सेट करने का कार्य किया गया। जिन क्षतिग्रस्त परिवर्तकों के नाम पर, आये दिन अधिकारियों को टांगा जाता है, क्या उर्जा निगम यह बता सकते हैं, कि उन परिवर्तकों को सुरक्षित रखने के नाम पर वास्तविक रुप से धरातल पर क्या-क्या कार्य कराये गये थे। जिनके सापेक्ष, यह स्पष्ट किया जा सके कि वास्तविक रुप से परिवर्तकों को क्षतिग्रस्त होने से बचाने हेतु, सम्बन्धित अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि जिन तीन माह में परिवर्तकों की क्षतिग्रस्तता के नाम पर पूर्वांचल में अधिकारियों को आरोप पत्र निर्गत किये गये हैं। उन माहों में गत् वर्ष की तुलना में कुल क्षतिग्रस्तता कम हुई है। जबकि अन्य डिस्कामों में क्षतिग्रस्तता लगातार बढ़ रही है। जिसमें मध्यांचल में क्षतिग्रस्तता, सीमा से बाहर है। जो सिर्फ यह प्रदर्शित करता है कि किसी न किसी तरह से औद्योगिक वातावरण में दहशत का छिड़काव कर, अपने इच्छित कार्यों की पूर्ति कराई अथवा की जा सके। जिसके गर्भ में स्थानान्तरण, नियुक्ति एवं निलम्बन-बहाली का बहुत बड़ा खेल खेला जाता है। भ्रष्टाचार के विशेषज्ञ आरोपी, अनुशासनात्मक कार्यवाही अनुभाग के मुखिया है, अर्थात चोर को ही कोतवाल बनाकर, चोरी पर न्याय करने की जिम्मेदारी दे दी गई है।
यक्ष प्रश्न उठता है कि क्या वास्तव में उर्जा निगमों में भ्रष्टाचार पर कोई प्रभावी कार्यवाही होती है अथवा सिर्फ भ्रष्टाचार का विरोध करने वालों के विरुद्ध ही कार्यवाही की जाती है। माना कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थानान्तरण एवं निलम्बन को दण्डात्मक कार्यवाही नहीं माना है, परन्तु अधिकांश स्थानान्तरण एवं निलम्बन सिर्फ और सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की आड़ में किये जाने वाली दण्डात्मक कार्यवाहियों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं। ऐसा कहीं भी, कोई उदाहरण अथवा प्रयास दिखाई नहीं देता, जिसमें ईमानदारी को स्थापित करने के लिये कोई प्रयास किया गया हो अथवा हो रहा हो। यदि उर्जा निगम निजि कम्पनियां होते तो सारी कमियों का सबको ज्ञान होता। परन्तु सरकारी होने के कारण, कमिंयों पर टिप्पणी करने का अधिकार किसी के पास भी नहीं है।
उर्जा निगम पूर्णतः तकनीकी विभाग हैं। यदि कोई परिवर्तक क्षतिग्रस्त होता है तो उसकी जांच की जाती है, भले ही वो खानापूर्ति हेतु, कागजी कार्यवाही होती हो। विभाग द्वारा परिवर्तकों की स्थापना में कमी का सर्वे अपने अभियन्ताओं के साथ-साथ अन्य कार्य दायी संस्थाओं के माध्यम से भी कराया जाता है। जैसे 1912 Mobile App पर परिवर्तकों की कमिंयों को विभागीय कर्मचारियों के द्वारा नित्य Update किया जाता है, तो वहीं दूसरी ओर, एक बार फिर भारत सरकार के संस्थान NPTI द्वारा संविदा पर रखे गये अभियन्ताओं के माध्यम से परिवर्तकों का निरीक्षण कार्य कराया जा रहा है। इससे पूर्व भी इसी संस्थान द्वारा बिना कोई कार्य कराये भुगतान के लिये अपने लम्बे चौड़े फर्जी बिल प्रेषित किये थे, परन्तु कार्य न किये जाने के कारण सत्यापित नहीं हुये थे, बाद में क्या हुआ, किसी को भी पता नहीं। आज विद्युत सामग्री निरीक्षण का कार्य भी इसी संस्थान के माध्यम से कराया जा रहा है। जिसके लिये उसके पास आवश्यक विशेषज्ञ तक उपलब्ध नहीं हैं। NPTI एक प्रशिक्षण संस्थान है न कि Quality Assurance के लिये कोई परीक्षण संस्थान।
अतः उपरोक्त संस्थान संविदा पर रखे गये निरीक्षणकर्ताओं (जिनकी कोई विश्वसनीयता नहीं है) के माध्यम से अति महत्वपूर्ण एवं अति संवेदनशील विधुत सामग्री के निरीक्षण की खानापूर्ति कर रहा है। जिसके कारण गुणवत्ताहीन सामग्री के क्रय होने एवं जान-माल के नुकसान की प्रबल सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। संज्ञान में यह आया है कि परिवर्तकों के निरीक्षण हेतु, उपरोक्त सस्थान को भुगतान करने का दबाव बनाया जा रहा है। जबकि पहले से ही 1912 Mobile App पर नित्य आवश्यक सूचना Update हो रही है। जिन पर धनाभाव के कारण, धरातल कोई कार्य नहीं कराया जा रहा है।
यक्ष प्रश्न उठता है कि किसी योग्य संस्था के माध्यम से कार्य कराये जाने के नाम पर कागजों पर योग्य लोगों से कार्य कराये जाने का क्या तात्पर्य है। कारण स्पष्ट है कि प्रबन्धन कदापि यह नहीं चाहता, कि कोई भी संस्थान आकर उर्जा निगमों के कार्य एवं सामग्री की गुणवत्ता पर ऐसी कोई टिप्पणी कर दे, कि उठा बवंडर सम्भाले न सम्भल पाये। अर्थात जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहे। बेबाक का स्पष्ट रुप से यह मानना है कि यदि घर का काम घर वालों को ही मिल जुल कर करने के लिये प्रेरित किया जाये, तो परिणाम निश्चित ही आश्चर्यजनक एवं उत्साहवर्धक होंगे। क्योंकि उर्जा निगमों में कहां क्या कमी है और उसे कैसे दूर किया जा सकता है उसकी जानकारी सिंवदा कर्मियों से लेकर अभियन्ताओं तक को है। परन्तु वे कार्य के साथ-साथ धन के प्रवाह की गति को बढ़ा नहीं सकते। बाहरी संस्थानों की नियुक्ति सिर्फ कार्य की दिखावटी औपचारिकता पूर्ण कर, योजनाओं के लिये आबंटित धन का बंदरबाट करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
फिरोजाबाद के समाचार पत्र में छपी खबर कि ”ओवरलोडेड ट्रांसफार्मर होंगे चिन्हित“ बेहद हास्यापद है, साधारण सा प्रश्न उठता है कि आज से पहले ओवरलोडेड ट्रान्सफार्मर चिन्हित क्यों नहीं हुये? नित्य ओवरलोडिंग के कारण, नित्य क्षतिग्रस्त होने वाले परिवर्तकों के लिये कौन उत्तरदायी है। इससे पहले उर्जा निगमों के अध्यक्ष महोदय द्वारा भी यह कहा गया था कि भण्डार केन्द्रों में स्थापित पॉवर एनालाईजरों के खराब होने के कारण परिवर्तकों की गुणवत्ता की जांच नहीं हो पा रही थी। जबकि परिवर्तक भण्डार केन्द्रों में जाते ही नहीं हैं। शायद पॉवर एनालाईजर अभी तक सही नहीं हुये हैं जिसके कारण परिवर्तक क्षतिग्रस्तता दर लगातार बढ़ रही है। सच्चाई यह है कि उर्जा निगमों के पास सभी आंकड़े हैं कि पूरे प्रदेश में 50 हजार से भी ज्यादा परिवर्तक अतिभारित हैं और इससे भी कई गुना ज्यादा गुणवत्ताहीन परिवर्तक स्थापित हैं। परन्तु विभागीय इच्छाशक्ति के अभाव में उन पर प्रभावी कार्य नहीं हो पा रहा है और अपनी विफलता पर पर्दा डालने के उद्देश्य से ही आरोप पत्र देने एवं निलम्बन की कार्यवाही अनवरत् जारी है।
बेबाक एक बार फिर सिर्फ यही कहना चाहता है कि उर्जा निगमों में योग्यता की कोई कमी नहीं है बस उसको सम्मान देने एवं उस पर विश्वास करने की आवश्यकता है। उर्जा निगमों का भला अपनों का अपमान करने तथा वाह्य सलाहकारों एवं संस्थानों पर विश्वास करने से सम्भव नहीं है। अपनों से कदापि यह तात्पर्य नहीं है, जो विभाग के वेतन पर बाहरी संस्थाओं की, विभाग में मार्केटिंग करते हैं। परन्तु पुनः एक ही प्रश्न गूंजता है, कि वास्तविकता में उर्जा निगमों का भला चाहता कौन है? उदाहरण उमस भरी गर्मी में कार्य के नाम पर लम्बे-लम्बे शट-डाउन….. राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
बी0के0 शर्मा, महासचिव -PPEWA