बेबाक: विद्युत प्रशिक्षण संस्थान में मात्र औपचारिकता हेतु प्रशिक्षण, परिणाम मिल बांटकर खाने की प्रथा की उत्पत्ति (पार्ट 2)

मित्रों नमस्कार! पिछले अंक के अनुक्रम में भाग-2 उर्जा निगमों में प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना का निम्नवत मूल उद्देश्य होना चाहिये कि नियुक्त होने वाले एवं कार्यरत् सभी कार्मिक…..

  • (1) उर्जा निगमों की कार्य प्रणाली से पूर्णतः भिज्ञ हों।
  • (2) उर्जा निगमों में स्थापित सभी प्रकार के उपकरणों एवं उनके रख-रखाव से सम्बन्धित तकनीकी कार्य में दक्ष हों।
  • (3) प्रणाली को चलाने के लिये व्यवसायिक दृष्टिकोण हों।
  • (4) कार्मिकों को अनुशासित रखने हेतु, अनुशासनात्मक कार्यवाही की पूर्ण जानकारी हो।

उपरोक्त उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम आवश्यक है कि प्रशिक्षण संस्थान में समय की मर्यादा और अनुशासन का कड़ाई से पालन हो। प्रशिक्षक और प्रशिक्षु दोनों के लिये समय-पालन की सख्त पाबन्दी हो। ऐसे प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण देने के लिये आमन्त्रित किया जाये, जोकि अपने विषय के विशेषज्ञ होने के साथ-साथ प्रेरक भी हों, जिससे कि कक्षा में उर्जा का संचार हो, न कि नीरसता उत्पन्न हो।

नवनियुक्त कार्मिकों के बहुमुखी विकास एवं विभागीय हितों के रक्षार्थ, प्रशिक्षुओं को बहुपयोगी प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये। जिस प्रकार से एक बालक की प्राथमिक, स्कूल एवं कालेज की शिक्षा के साथ-साथ, अन्त में व्यवसायिक कार्य के लिए व्यवसायिक (तकनीकी) शिक्षा महत्वपूर्ण है। ठीक उसी प्रकार से मां-बाप का घर छोड़कर, अपनी आजीविका के आरम्भ करने के लिये, कार्य स्थल पर अपनी स्कूली एवं तकनीकी शिक्षा का सदुपयोग करने हेतु, विभागीय प्रशिक्षण अति महत्वपूर्ण है। क्योंकि जिस प्रकार से जीवन में स्तरीय स्कूल, कालेज एवं तकनीकी कालेज का महत्वपूर्ण योगदान होता है, ठीक उसी प्रकार से कार्य स्थल पर कार्य करने के लिये स्तरीय प्रशिक्षण भी बहुत ही महत्वपूर्ण है।

क्योंकि यही वह प्रशिक्षण है, जोकि भविष्य में प्रशिक्षु को विशेषज्ञ बनाकर, जीवन के सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाता है। प्रशिक्षण का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है, प्रशिक्षु में आत्मविश्वास जाग्रत करना। जिसके लिये प्रशिक्षण संस्थान के साथ-साथ प्रशिक्षक की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जोकि प्रशिक्षु की मानसिक स्थिति का आकलन कर, उसको प्रेरित कर, उसमें आत्म विश्वास जाग्रत कर सके। इसी प्रकार से पदोन्नत्ति प्राप्त कार्मिक को भी नई उर्जा प्रदान करने के लिये उचित प्रशिक्षण अनिवार्य है। क्योंकि प्रशिक्षण ही वह बूटी है जोकि आत्मविश्वास को दृढ़ बनाती है और मजबूत आत्मविश्वास वाला कार्मिक, विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी, कभी अपने मार्ग से विचलित न होते हुये, संयम के साथ सफलता को प्राप्त करने का हर सम्भव प्रयास करता है।

नवनियुक्त कार्मिकों के उचित प्रशिक्षण के लिये महत्वपूर्ण है कि उनकी योगदान आख्या प्राप्त करने के बाद उन्हें सर्व-प्रथम प्रशिक्षण संस्थान में ही प्रशिक्षण दिया जाये, न कि उन्हें On job training के नाम पर क्षेत्र में नियुक्त किया जाये। On job training का मतलब उन्हें कार्य का व्यवहारिक प्रशिक्षण नहीं, अपितु उनके अन्दर बिना कार्य किये, अतिरिक्त धन उपार्जित करने के लालच अर्थात भ्रष्टाचार के दलदल में धकेलना है। यदि नवनियुक्त कार्मिक ज्यादा संख्या में हैं तो उन्हें प्रशिक्षण संस्थान में क्षमतानुसार बैच के आधार पर Join कराकर प्रारम्भिक Class Room प्रशिक्षण प्रदान करके ही, क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु भेजा जाना चाहिये। प्रशिक्षण के पहले दिन निर्धारित समय पर ही Class Room Training आरम्भ करते वक्त, दो-दो लडडू से मुंह मीठा कराते हुये, शिशु कार्मिकों को आजीविका के नये संसार में, (जोकि 30 से लेकर 39 वर्ष तक का कार्यकाल हो सकता है, जहां युवा अवस्था में प्रवेश कर, सेवाकाल पूर्ण करते-करते, अधेड़ अवस्था में ही सेवा से बाहर निकलना सम्भव होता है।) गर्मजोशी से स्वागत् किया जाना चाहिये। तत्पश्चात उत्सव जैसे हल्के माहौल में प्रशिक्षुओं से उनके परिचय के साथ-साथ, शिक्षा एवं तकनीकी ज्ञान का परिचय प्राप्त करते हुये, उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली-1956 से उनके प्रशिक्षण का आगाज किया जाना चाहिये। द्वितीय कक्षा में पदानुरुप कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों के बारे में विस्तार से बताया जाना चाहिये। तत्पश्चात विभागीय कार्यों को तीन भागों में विभक्त करते हुये, तकनीकी, वाणिज्य एवं प्रशासनिक विषयों पर चरणबद्ध प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये। जिसमें पदानुरुप कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों के अनुसार ही प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। उपकेन्द्र, लाईन एवं परिवर्तकों के रख-रखाव के साथ-साथ सुरक्षा उपकरणों एवं सुरक्षा के उपायों से अवगत कराया जाना चाहिये। सभी तकनीकी कक्षायें विद्युत नियमावली-1956 के परिपेक्ष्य में होनी चाहिये। वाणिज्य एवं तकनीकी विषयों पर Electricity Act-2003 को विस्तार से समझाया जाना चाहिये।

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उपरोक्त के अतिरिक्त, क्षेत्र में जनता के साथ व्यवहार, जनता द्वारा घेराव, बिजली घरों पर तोड़-फोड़ एवं कार्मिकों के साथ मारपीट, आदि जैसी विषम परिस्थितियों में भी निगम हित में अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों के निर्वाह के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिक एवं कूटनीतिक तरीके से प्रशिक्षित किया जाना चाहिये। प्रशिक्षण में मानवता पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये, कि किसी भी परिस्थिति में मानवता के साथ खिलवाड़ की स्थिति न बने। अर्थात अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों का पालन करते समय, किसी के भी साथ विद्युत दुर्घटना अथवा किसी गरीब का शोषण न हो। प्रत्येक कार्य के पीछे, विभाग की छवि को सुधारने का प्रयास होना चाहिये।

इसी प्रकार से पदोन्नति प्राप्त कार्मिकों को भी, उनके कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों से आरम्भ कर पदानुरुप तकनीकी, वाणिज्य एवं प्रशासनिक विषयों पर चरणबद्ध प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये। उपरोक्त के साथ-साथ विद्युत प्रशिक्षण संस्थान में इस बात पर भी अनुसंधान किया जाना चाहिये कि जब Man, Material & Money का घोर अभाव हो, निर्बाध आपूर्ति का दबाव हो, उपलब्ध विद्युत सामग्री निम्न गुणवत्ता की हो, कार्य गुणवत्ताहीन हो, उच्चाधिकारी सच्चाई सुनने को तैयार न हो, चहु ओर भ्रष्टाचार का बोल-बाला हो और उच्चाधिकारी के पास बात-बात पर निलम्बन का डण्डा हो, तो कार्मिक अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों का निर्वाह किस प्रकार से करे? आदर्श परिस्थितियों में ही प्रशिक्षण संस्थान एवं प्रशिक्षकों के कन्धों पर प्रशिक्षुओं का भविष्य निर्भर करता था। परन्तु जिस प्रकार से बात-बात पर राजनीतिक हस्तक्षेप एवं उच्चाधिकारियों का बिना वस्तुस्थिति जाने, अनावश्यक हस्तक्षेप एवं दबाव बनाने का प्रचलन बढ़ा है, तो प्रशिक्षु वही बनते हैं, जो वे बनना चाहते हैं।

यही कारण है कि प्रशिक्षुओं का प्रशिक्षण समाप्त हो जाता है, परन्तु प्रशिक्षुओं को अपने पद के मूल कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों तक का ज्ञान नहीं होता। बात यहीं समाप्त नहीं होती क्योंकि कुछ मामलों में तो यह देखा गया है कि कुछ महानुभाव पदोन्नति पर पदोन्नति प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु उन्हें अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों का कोई ज्ञान नहीं होता। उन्हें ज्ञान होता है तो बस अपने हस्ताक्षर की कीमत का। ऐसे लोग सदैव जोड़-तोड़ की राजनीति में लिप्त रहते हैं और उनका मुख्य कार्य ही चापलूसी एवं दिन भर अपने हस्ताक्षर गिनना होता है।

यही कारण है कि आज उर्जा निगमों में दक्ष एवं विभाग के प्रति समर्पित स्वाभिमानी कार्मिको का घोर अभाव है तथा चापलूसों के ही कारण अनियमितताओं का साम्राज्य स्थापित हो चुका है। जिसका परिणाम उर्जा निगम व्यवसायिक स्तर पर, लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। शक्ति भवन लखनऊ मुख्यालय में जनशक्ति अनुभाग द्वारा प्रदेश से बाहर प्रशिक्षण हेतु प्रशिक्षुओं को भेजा जाता है। जिसका विभाग को कोई व्यवसायिक लाभ प्राप्त नहीं होता। क्योंकि प्रशिक्षण के लिये भेजे जाने वाले लोग विभाग की उपयोगिता के लिये नहीं अपित सिफारिस के आधार पर प्रशिक्षण के नाम पर, मुख्यालय की कैद से बाहर निकलकर घूमने के लिये जाते हैं। बेबाक का मानना है कि यदि वास्तव में प्रशिक्षुओं को तरास कर हीरा बनाना है तो प्रशिक्षण संस्थान, देहरादून उत्तराखण्ड स्थित तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 के स्टाफ कालेज जैसा होना चाहिये, जहां दूरदृष्टि युक्त प्रबन्धन के साथ-साथ प्रशिक्षक भी शीशा नहीं हीरा होने चाहिये।
राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!

बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.

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