
सोशल मीडिया पर UPPCL द्वारा आंधी-बारिश में बिजली से सावधान रहने के लिये 4 बिन्दुओं की अपील की गई है। जबकि आम आदमी अपने होशो-हवास में यह सब अच्छी तरह से जानता है कि 1. बिजली के तार एवं खंभों से दूर रहना चाहिये। 2. गिरे हुये खंभे और खराब ट्रान्सफार्मर से दूर रहना चाहिये। 3. बिजली के तारों के नीचे वाहन खड़ा नहीं करना चाहिये। 4. बिजली के खंभे से जानवर नहीं बांधने चाहिये। क्योंकि ये विश्वसनीय नहीं हैं तथा इनमें कभी भी अचानक विद्युत प्रवाह हो सकता है। विदित हो कि उपरोक्त 4 बिन्दुओं की अपील, विगत् लगभग 25 वर्षों में, सुधार के नाम पर कम्पनी एक्ट में पंजीकृत वितरण कम्पनियों के एक रिपोर्ट कार्ड के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। प्रश्न उठता है कि क्या विद्युत खम्भे एवं खराब ट्रान्सफार्मर की सतह पर विद्युत प्रवाह रोकना तथा किसी पर बिजली के तार को गिरने से रोकना सम्भव नहीं है? उत्तर स्पष्ट है कि यदि अनिवार्य “भारतीय विद्युत नियमावली-1956” के पालन करने का विभाग वचन दे, तो उपरोक्त अपील की आवश्यकता नहीं रहेगी।
परन्तु धरातल पर सच्चाई यह है कि विधुत के सबसे महत्वपूर्ण अंग “अर्थिंग” के साथ खेल ही, विधुत दुर्घटनाओं के साथ-साथ, विधुत उपकरणों के क्षतिग्रस्त होने का मूल कारण है। धरातल पर अधिकांश विद्युत खंभे की अर्थिंग है ही नहीं, यदि कहीं अर्थिंग है भी, तो मानक विहीन होने के कारण महत्वहीन है। इसी प्रकार से परिवर्तक की अंर्थिंग भी मात्र औपचारिक है। गार्डिंग कागजों में ज्यादा, वास्तविकता में बहुत कम है। प्रायः विद्युत उपकेन्द्र एवं लाईन निर्माण में काफी कार्य कागजों पर ही पूर्ण कर दिये जाते हैं। वितरण कम्पनियों में विगत् 25 वर्षों में तमाम विद्युत सुधार एवं सुदृढ़ीकरण की योजनाओं पर लाखों करोड़ व्यय करने के बावजूद, विद्युत दुर्घटनाओं पर नियन्त्रण पाने की औपचारिकता ही निभा रहा है। विद्युत प्रणाली में प्रयुक्त होने वाली सभी विद्युत सामग्री जैसे, तार, खंभे, इन्सूलेटर, परिवर्तक, आदि के मानक, विधुत सुरक्षा की दृष्टि से भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा तय किये जाते हैं। जिसके आधार पर ही, आवश्यकतानुसार विद्युत सामग्री की तकनीकी विशिष्टता निर्धारित की जाती है। इन्हीं तकनीकी विशिष्टता के आधार पर तैयार गारंटीकृत तकनीकी विवरण (GTP) के अनुसार ही विभागीय अधिकारियों के द्वारा सामग्री का निर्माता/आपूर्तीकर्ता के यहां पर निरीक्षण करा कर, मानकों के अनुरुप पाये जाने पर ही सामग्री क्रय की जाती है। तदुपरान्त विद्युत सुरक्षा निदेशालय द्वारा श्रेणी “क” के प्रमाणित ठेकेदारों के माध्यम से विद्युत कार्य कराये जाते है। विद्युत सुरक्षा निदेशालय उ0प्र0 सरकार द्वारा अपने अभियन्ता अधिकारियों के माध्यम से विद्युत सुरक्षा के नियमों का कड़ाई से पालन करने हेतु, स्वतन्त्र रुप से निर्माण की जांच कराकर अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी किया जाता है।
परन्तु विगत् 25 वर्षों में, जिस तरह से इन अनिवार्य चरणों को भ्रष्टाचार की घुन ने चाटा है, उसका जीता जागता प्रमाण है, कि आज वितरण कम्पनियां आम नागरिक की छोड़िये, अपने ही कार्मिकों को आये दिन घटने वाली घातक विद्युत दुर्घटनाओं से बचाने में असफल हैं। जिसका मूल कारण है, वितरण कम्पनियों में नीचे से ऊपर तक कार्य करने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों का लक्ष्य जनसेवा न होकर, अधिक से अधिक धन अर्जित करना रह गया है। स्थिति यह है कि बिना चढ़ावे के न तो सामग्री की तकनीकी विशिष्टता और न ही गारंटीकृत तकनीकी विवरण (GTP) स्वीकृत होते हैं। गांधी जी की तस्वीर को सामने रखने पर, TS & GTP की छोड़िये, बिना सामग्री के ही, सामग्री के उच्च गुणवत्तापरक होने का प्रमाण पत्र जारी हो जाता है। अतः यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि विद्युत प्रणाली के लिये “भारतीय विद्युत नियमावली-1956” के अनुसार निर्धारित “अनिवार्य विद्युत सुरक्षा नियमों” को गांधी जी के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है। यदि गलती से प्रणाली में कोई सुधार करना भी चाहे, तो कतिपय कार्मिक पदाधिकारियों एवं राजनीतिज्ञों की नजर में वह कार्मिकों का उत्पीड़न होता है।
अतः UPPCL के साथ-साथ बेबाक भी यह अपील करता है, कि यदि आपको अपने बच्चों से, पड़ोसी से, जिससे भी तनिक सा भी प्यार है, तो किसी भी सूरत में उक्त अपील को नजरंदाज न करें। क्योंकि यही एक बिना मिलावट का कड़वा सच है। अभी दो दिन पूर्व ही प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सड़क किनारे मात्र 6 इंच की ट्रेंच खोदकर HT Cable डाले जाने का कुछ पत्रकार बन्धुओं के द्वारा वीडिया, सोशल मीडिया पर वायरल किया गया था। जोकि विभागीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों के साथ-साथ सम्बन्धित ठेकेदार की योग्यता ही नहीं, अपितु प्रणाली से जुड़े अधिकारियों एवं ठेकेदारों के मन-मस्तिष्क से विलुप्त हो चुकी इन्सानियत तक का जीता जागता प्रमाण है। इस प्रकार के न जाने कितने उदाहरण मौजूद हैं। परन्तु गांधी जी के कारण कोई बोलता नहीं है। यदि विद्युत खम्भों के लिये अनिवार्य अर्थिंग की बात करें, तो कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है, प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित ऊर्जा निगमों के मुख्यालय के चारों ओर स्थापित विद्युत खम्भे, बिना अर्थिंग के लगे हुये हैं। अभी कुछ ही दिनों में कांवड़ यात्रा मार्ग पर कावंड़ियों को सम्भावित स्पर्शघात से बचाने के लिये बिजली के खम्भों पर लाल पन्नी लपेटी जायेगी। जोकि विद्युत सुरक्षा के नाम पर हर साल खेला जाने वाला एक बड़ा खेल है।
यक्ष प्रश्न उठता है कि विद्युत सुरक्षा नियमों के साथ समझौता कर, आम जनमानस के जीवन से खिलवाड़ करने की यह छूट वितरण कम्पनियों को किसने प्रदान की? क्या अधिकारियों का बस इतना ही दायित्व है, कि अनुबन्ध, मापन, मापन सत्यापन एवं भुगतान के समय, व्यवहार की दर को किस प्रकार से ऊंचा उठाया जा सके। स्पष्ट है कि विगत् लगभग 25 वर्षों में वितरण कम्पनियों की यही सबसे बड़ी उपलब्धि रही है कि उसके कार्मिक यह बखूबी जान चुके हैं कि किस कुर्सी पर गांधी जी का आशीर्वाद ज्यादा बरसता है। चूंकि यह कुर्सी का खेल प्रबन्धन के संरक्षण में होता है। अतः विद्युत दुर्घटनायें रोकने का दिखावा करना ज्यादा सुगम है। ईश्वर सबकी मदद करे! राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.