निजीकरण कहीं हमारी अतृप्त महत्वकांक्षाओं का परिणाम तो नहीं?

मित्रों नमस्कार! हम सभी झूठ के साथ इस कदर जीने के आदी हो चुके हैं, कि सच अब असहनीय हो चुका है। भारतीय वायु सेनाध्यक्ष द्वारा राष्ट्रहित में, जिस प्रकार से एक सच्चे देशभक्त होने के नाते, सत्य बोलने का साहस किया है। वह आज के परिपेक्ष्य में विलक्षण एवं सराहनीय है। परन्तु स्वीकार्य नहीं है। क्योंकि आज सोचने विचारने का नहीं बल्कि Copy & Paste का युग चल रहा है। जिसमें कहीं दूर बैठा, कोई एक व्यक्ति निहित स्वार्थ में Copy & Paste के लिए एक सन्देश तैयार करके आगे बढ़ा देता है और सारा दिन हम सभी उसे Copy & Paste कर करके मूल सन्देश की भावनाओं को ही निर्मूल कर देते हैं। वायु सेनाध्यक्ष महोदय के कथित खुलासे को, सीधे-सीधे बिना विचारे निजीकरण से जोड़ा जाना, अपने उत्तरदायित्वों से भागने के प्रयास के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्योंकि चाहे वह सार्वजनिक संस्थान हो या निजी संस्थान, अपने ही देश में, दोनों ही जगह, हम भारतीय ही कार्य कर रहे हैं। बस बात निष्ठा की है।

उपरोक्त वक्तव्य को प्रदेश के ऊर्जा निगमों के निजीकरण से भी जोड़ा जा रहा है। परन्तु दुखद है कि इसे कोई अपनी नित्य प्रतिदिन प्रबल होती धन की पिपासा एवं वासना से नहीं जोड़ रहा है। जबकि सत्यता यही है कि यह सब हमारे कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों में गहराई तक समा चुके भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है। देश में जिस प्रकार से जनप्रतिनिधियों का आचरण नैतिकता को लांघ चुका है तथा जिस प्रकार से प्रत्येक नागरिक अपने नागरिक कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों से मुंह मोड़कर, दूसरे का मुंह इस आस में ताक रहा है, कि वह आगे आये। यह कदापि सुखद भविष्य के लक्षण नहीं हैं। सबसे दुखद यह है कि या तो वास्तविक अनुभवी लोग हैं ही नहीं और यदि कुछ हैं भी तो उनका सिर्फ एक ही कार्य रह गया है, कि यदि कोई विरोध करने के लिये आगे बढ़ने का साहस भी करता है, तो उसे रोक दिया जाता है। वह भी इसलिये नहीं कि वह आगे बढ़ रहा है, बल्कि इसलिये कि कहीं उसके आगे बढ़ने से, संभावित उबाल के छींटे उन पर न पड़ जायें। आज अपने पूर्वजों के ही त्याग एवं बलिदान के कारण प्राप्त मंच पर बैठकर, नित्य अपने ही इतिहास का पोस्टमार्टम कर, अपने ही पूर्वजों का अपमान कर, अपने आपको ज्ञानी सिद्ध करने में लगे बुजुर्ग, प्रौढ़ एवं युवा इतिहास के कुऐं में इस कदर डूब चुके हैं, कि उन्हें जीवन के मूल्यों का कोई ज्ञान ही नहीं रह गया है। वे वर्तमान से इतना दूर जा चुके हैं, कि उनका वर्तमान में लौटना आसान नहीं है।

कड़वी सच्चाई यही है कि वे वर्तमान में लौटना ही नहीं चाहते। क्योंकि वर्तमान उनके जीवन का रिपोर्ट कार्ड है, जोकि पूर्णतः कोरा है। जहां पर यदि कुछ अंकित किया जाना है तो वह है उनका लोभ एवं वासना में डूबा हुआ चरित्र। जिसका जीवन लोभ एवं वासना से घिरा हुआ हो, अर्थात मनुष्य होकर भी राक्षसी गुणों से परिपूर्ण हो, उससे हम क्या अपेक्षा कर सकते हैं। आज ज्ञानी वो नहीं, जिसके कर्म में ज्ञान हो, बल्कि ज्ञानी वह है जोकि अकारण भी ज्ञानियों का उपहास उड़ा सके। बहुमत का जमाना है, उसमें भी मनुष्य ने बहुत ही चतुराई से इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से कृतिम बहुमत उत्पन्न करने के मार्ग तलाश लिये हैं। जिस चतुराई से माननीय सेनाध्यक्ष महोदय पर निजीकरण का मार्ग प्रशस्त करने का आरोप लगा दिया गया है। क्या सार्वजनिक उद्योगों में कार्य करने वाले एवं निजीकरण का विरोध करने वाले, अपने इष्ट अथवा अपने प्रिय की कसम खाकर यह कह सकते हैं, कि उनके द्वारा अपने नागरिक कर्तव्यों के साथ-साथ अपने निर्धारित कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों का भी कभी पालन किया है। सत्यता यह है कि हम कामचोर एवं लालची हैं तथा सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार करने के लिये सदैव अपनी पैनी नजरें गड़ाये रहते हैं।

स्थानान्तरण के नाम पर सिर्फ सीट का स्थान ही बदला नहीं, कि न जाने किस किसके कदमों पर, इन्सानियत को शर्मशार तक करने वाले समझौते करते हुये, नाक रगड़ते नजर आते हैं। परन्तु दूसरों के कर्तव्य एवं निष्ठा की बात करने एवं पलभर में उसे देशद्रोही तक कहने के निष्कर्ष पर पहुंचने में हमारा कोई सानी नहीं। ऊर्जा निगमों में ही निजीकरण को लेकर चल रहे खेल को देखें और चल रहे चलचित्र के एक अंश को ही, एक बार दिमाग की खिड़कियों तक ही पहुंचनें दें। तो सत्य देखकर स्वतः अपनी ही आंखें बन्द हो जायेंगी। क्योंकि निम्न प्रश्न सारी की सारी कहानी एक ही बार में बयां कर देंगेः 1. ये बाहरी लोग धरना प्रदर्शन में क्या कर रहे हैं? 2. प्रबन्धन बाहरी लोगों के स्थान पर, अपने नियमित कर्मचारियों पर क्यों कार्यवाही कर रहा है? 3. जिस उपभोक्ता हित के नाम पर प्रबन्धन एवं कर्मचारी अपने आपको पूर्णतः समर्पित दिखलाने का प्रयास कर रहे हैं, क्या उनमें से वास्तव में किसी को भी उपभोक्ता की कोई चिन्ता है? 4. निजीकरण के विरोध के पीछे क्या विभाग के प्रति कोई निष्ठा अथवा प्रेम है? सभी चीजों का एक ही उत्तर है। कि सब के सब अपनी-अपनी भ्रष्ट योजनाओं के माध्यम से, अधिक से अधिक लूटने के लिये लालायित हैं। जहां न तो कोई राजनीतिक निष्ठा है, न ही प्रबन्धकीय निष्ठा है और न ही कार्मिक निष्ठा है।

इसी के साथ-साथ मीडिया के साथ जुड़े हुये लोगों की भी निष्ठा सीमित है। वो भी एक समय था, जब लोगों ने हमारे उज्ज्वल भविष्य के लिये, अपने सावन एवं जीवन का त्याग किया और ये भी एक समय है, कि उन्हीं के द्वारा तैयार मंच पर बैठकर, उनको ही कोसते हुये, उनके त्याग एवं परिश्रम के बल पर तैयार छत को हम तोड़ते हुये, अपनी अज्ञानता पर मुस्करा रहे हैं। निजीकरण, पांव से लेकर सिर तक भ्रष्टाचार में हमारी संलिप्तता के परिणाम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। जहां सभी के अपने-अपने तर्क हैं। परन्तु मूल कारक सिर्फ और सिर्फ निहित स्वार्थ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। जहां सभी के साथ-साथ, समय भी भविष्य के लिये एक नई कहानी संचित करने में लगा हुआ है। कि किस प्रकार से सुधार की आड़ में सभी उत्तरदायी लोगों ने अपना सुधार किया। ईश्वर हम सबकी मदद करे! राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!

-बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.

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