
गरीब का बल्ब से चोरी तो … अपराध, अमीर का ए.सी. से चोरी तो … खामोशी!
फर्रुखाबाद। गरीब उपभोक्ता यदि मीटर बाईपास करके एक बल्ब भी जला ले तो बिजली विभाग तुरंत चोरी का मुकदमा लिखकर हजारों-लाखों की वसूली करता है। लेकिन उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने वाली जिला उपभोक्ता फोरम ही खुलेआम बिजली चोरी करती पकड़ी जाए और विभाग मौन साधे रहे, यह भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है? यह कोई आम चोरी नहीं, बल्कि न्याय के मंदिर में बैठे अधिकारियों की कारस्तानी है। जिला उपभोक्ता फोरम, जो उपभोक्ता के हक़ में फैसले सुनाता है, वहीं के मीटर को बाईपास करके ए.सी., कंप्यूटर और दफ्तर की पूरी बिजली सप्लाई चोरी की जा रही है।
जिला उपभोक्ता फोरम, जहाँ अध्यक्ष ब्रजभूषण पांडे और सदस्य निकि यह कोई आम चोरी नहीं, बल्कि न्याय के मंदिर में बैठे अधिकारियों की कारस्तानी है। जिला उपभोक्ता फोरम, जो उपभोक्ता के हक़ में फैसले सुनाता है, वहीं के मीटर को बाईपास करके ए.सी., कंप्यूटर और दफ्तर की पूरी बिजली सप्लाई चोरी की जा रही है।जिला उपभोक्ता फोरम, जहाँ अध्यक्ष ब्रजभूषण पांडे और सदस्य निकिता दास बैठते हैं, उसी कार्यालय में मीटर बाईपास कर ए.सी., कंप्यूटर और बिजली की अन्य मशीनें चलाई जा रही हैं। वही मंच खुद बिजली की चोरी का उदाहरण बने बैठा है।
अध्यक्ष ब्रजभूषण पांडे और सदस्य निकिता दास की मौजूदगी में उपभोक्ता फोरम का यह हाल है कि यहाँ बैठकर अधिकारी उपदेश तो “न्याय” का देते हैं लेकिन काम करते हैं “अन्याय” का। यह वही अदालत है जहाँ गरीब उपभोक्ता के खिलाफ बिजली चोरी का मुकदमा दायर होता है, लेकिन खुद पर लगे दाग़ मिटाने की न तो शर्म है, न डर। सूत्रों की मानें तो फोरम कार्यालय में लगे बिजली मीटर को बाईपास कर ए.सी., कंप्यूटर और अन्य उपकरण चलाए जा रहे हैं। यानी जो मंच उपभोक्ता को न्याय सिखाए, वही मंच खुद बिजली की चोरी का उदाहरण बने बैठा है।
अब सवाल यह है कि—
- क्या फोरम के अधिकारियों पर बिजली चोरी अधिनियम लागू नहीं होता?
- क्या विभाग के जिम्मेदार अधिकारी सिर्फ गरीब और आम उपभोक्ताओं पर ही सख्ती दिखाते हैं?
- आखिर कब होगी इस दोहरे मापदंड पर कार्रवाई?
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर यही अपराध किसी छोटे उपभोक्ता ने किया होता तो उसका कनेक्शन काट दिया जाता, मुकदमा दर्ज कर दिया जाता और जेब खाली करा दी जाती। लेकिन यहाँ “बड़े लोग” होने के कारण विभागीय अधिकारी आँखें मूँदकर बैठे हैं।
अंदर की हकीकत
🔹 उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष ब्रजभूषण पांडे और सदस्य निकिता दास के कार्यकाल में यह खेल खुलेआम चल रहा है।
🔹 कार्यालय परिसर में बिजली का आधिकारिक कनेक्शन तो है, लेकिन मीटर से सप्लाई नहीं ली जा रही।
🔹 तकनीकी कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि “मीटर से गुजरने वाली लाइन सीधे काटकर बाईपास की गई है, जिससे खपत का कोई रिकॉर्ड नहीं बन रहा।”
दोहरा न्याय!
- अगर यही अपराध कोई गरीब उपभोक्ता करता तो तुरंत बिजली चोरी का मुकदमा दर्ज कर लाखों की वसूली हो जाती।
- लेकिन यहाँ तो खुद न्याय देने वाले ही अपराधी बने बैठे हैं और विभागीय अधिकारी खामोश हैं।
- बिजली विभाग के सूत्र मानते हैं कि “ऊपर से दबाव होने के कारण अधिकारी कार्रवाई नहीं कर पा रहे।”
सवालों के घेरे में विभाग
- क्या बिजली विभाग की जाँच टीमें सिर्फ़ आम उपभोक्ताओं के लिए ही हैं?
- उपभोक्ता फोरम जैसी संवेदनशील संस्था पर कार्यवाही करने से विभाग क्यों डर रहा है?
- क्या इस पूरे खेल में विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत है?
जनता का गुस्सा
स्थानीय उपभोक्ताओं का कहना है कि—
👉 “गरीब का बल्ब चोरी तो जेल, अमीर का ए.सी. चोरी तो मेल!”
👉 “जब न्याय देने वाली अदालत ही चोरी कर रही है तो आम आदमी कहाँ जाएगा?”
माँग
जनता और सामाजिक संगठनों ने मुख्यमंत्री और ऊर्जा मंत्री से माँग की है कि:
- इस प्रकरण की स्वतंत्र जाँच कराई जाए।
- दोषियों पर बिजली चोरी अधिनियम के तहत FIR दर्ज हो।
- विभागीय मिलीभगत उजागर कर जिम्मेदार अफसरों पर सख्त कार्रवाई हो।
बिजली विभाग का रवैया भी सवालों के घेरे में है—
- आखिर क्यों विभागीय अधिकारी इस खुलेआम चोरी पर आँख मूँदकर बैठे हैं?
- क्या कानून सिर्फ कमजोर के लिए है और कुर्सी पर बैठे ताकतवर लोग इससे ऊपर हैं?
- जनता से करोड़ों की वसूली करने वाला विभाग अपने ही “कोर्ट” में चोरी पर क्यों चुप है?
यह घटना साफ़ बताती है कि बिजली विभाग और उपभोक्ता फोरम की सांठगांठ के बिना यह चोरी संभव ही नहीं। अगर यही काम कोई गरीब उपभोक्ता करता तो न सिर्फ़ मुकदमा दर्ज होता बल्कि घर-गहना तक नीलाम करवा लिया जाता।
अब जनता पूछ रही है— जब न्याय देने वाला ही चोरी करेगा तो न्याय मिलेगा कहाँ से?
