विद्युत सुधार के नाम पर सांठ-गांठ कर मौज उड़ाती निजी कम्पनियां और दंश झेलते आम नागरिक

 मित्रों नमस्कार! वर्ष 2001 में विद्युत सुधार के नाम पर गठित वितरण कम्पनियों में जिस प्रकार से विगत 25 वर्षों में लाखों करोड़ रुपयों का बन्दरबांट हुआ है। यदि उनकी आवश्यकताओं एवं खर्चों पर सिर्फ एक सरसरी नजर भर डालें, तो आंखें फटी की फटी रह जायेंगी। समय-समय पर सरकारें आती जाती रही और जनसेवा की आड़ में, विद्युत सुधार योजनाओं के नाम से जारी लाखों करोड़ रुपयों का प्रयोग अपनी-अपनी हिस्सेदारी के हिसाब से, कतिपय पूंजीपतियों एवं उद्योगपतियों के विकास के लिये होता रहा है।

पहले इन्हीं पूंजीपतियों ने कमीशन बांट-बांटकर, गुणवत्ताहीन सामग्री एवं कार्यों से निगमों को कचरा का डब्बा बनाकर रख दिया और अब औने-पौने दामों पर खरीदने की जुगत में लगी हुई हैं। विद्युत सुधार योजनाओं के नाम पर ज्यादा पीछे न जाकर, वर्तमान में जारी सुधार-आधारित एवं परिणाम-संबद्ध, संशोधित वितरण क्षेत्र योजना (Revamped Distribution Sector Scheme (RDSS)) पर यदि एक सरसरी नजर डालें, तो भारत सरकार ने पूर्व-योग्यता मानदंडों को पूरा करने और बुनियादी न्यूनतम बेंचमार्क प्राप्त करने के आधार पर, आपूर्ति के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए डिस्काम्स को परिणाम से जुड़ी वित्तीय सहायता प्रदान करके, उनकी परिचालन क्षमता और वित्तीय स्थिरता में सुधार करने में मदद करने के लिए, उपरोक्त योजना को जुलाई, 2021 में मंजूरी दी थी।

इस योजना का 5 वर्षों यानी वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2025-26 में 3,03,758 करोड़ रुपये का परिव्यय है। परिव्यय में 97,631 करोड़ रुपये की अनुमानित सरकारी बजटीय सहायता (GBS) शामिल है। जो स्वतः इस बात का प्रमाण है कि निजी कम्पनियों को रु0 3,03,758 करोड़ का व्यापार देने के लिये, सरकार द्वारा पूर्णतः एकतरफा निर्णय के तहत, निजी कम्पनियों को रोजगार देने के लिए, डिस्कामों पर रु0 (3,03,758-97,631=2,06,127) का अतिरिक्त बोझ (घाटा) डाला जाना सुनिश्चित कर दिया। जिसमें उ0प्र0 के डिस्कामों को रु0 36045.91 करोड़ दिये जाने है। जहां 18,956.29 करोड़ स्मार्ट मीटरिंग के लिये तथा रु0 17,089.62 लाइन लॉस कम करने के लिये दिये जाने हैं। जिसके विरुद्ध कुल अनुदान राशि रु0 13754.34 दी जानी प्रस्तावित है। जिससे यह स्पष्ट है कि निजी कम्पनियों को व्यापार देने के लिये उत्तर प्रदेश के डिस्कामों पर रु0 22291.57 करोड़ का अतिरिक्त बोझ डाला जाना है। जो स्वतः यह स्पष्ट करता है, कि उपरोक्त अनुदान डिस्कामों का घाटा कम करने के लिये नहीं है, बल्कि पहले से बीमार चल रहे डिस्कामों की कमर तोड़कर, उन्हें बेचने के लिये ही दिया गया है।

उपरोक्त योजना का एक घटक हैः प्रीपेड स्मार्ट मीटरिंग और सिस्टम मीटरिंग। जिसमें PPP के माध्यम से TOTEX “Total Expenditure” मोड पर लागू करना है। प्रीपेड स्मार्ट मीटरिंग के लिए, ”विशेष श्रेणी के अलावा“ राज्यों के लिए 900 रुपये या प्रति उपभोक्ता मीटर लागत का 15% (जो भी कम हो) का अनुदान उपलब्ध होगा। ”विशेष श्रेणी“ राज्यों के लिए, प्रति उपभोक्ता लागत का 1350 रुपये या 22.5% (जो भी कम हो) का अनुदान उपलब्ध होगा। उपरोक्त के अतिरिक्त प्रीपेड स्मार्ट मीटरों की स्थापना में तेजी लाने के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को प्रोत्साहित करने के लिए, प्रति उपभोक्ता मीटर की लागत का 7.5% या रुपये 450 (जो भी कम हो) का अतिरिक्त प्रोत्साहन उपलब्ध होगा। ”विशेष श्रेणी“ राज्यों के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन 11.25% या रु0 675 प्रति उपभोक्ता मीटर (जो भी कम हो)। वितरण कम्पनियों के लाभ कमाने के लिये स्थापित तराजू अर्थात मीटर की बात करें, तो पायेंगे कि विगत 25 वर्षों में चीनी सामग्री से निर्मित हजारों करोड़ रुपये के मीटर समय-समय पर बदले एवं लगाये गये। जिसके पीछे कोई विशेष प्रौधिगिकी न होकर, बल्कि निहित स्वार्थ में, मीटर निर्माताओं को “काम देने एवं दाम लेने” के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। जिसके कारण बिलिंग व्यवस्था चौपट हुई और वितरण कम्पनियों को अतिरिक्त वित्तीय भार वहन करना पड़ा।

क्या प्रबन्धन अथवा कोई भी व्यापारी यह बता सकता है कि जो उद्योग पहले से ही बीमार चल रहे हैं, उनके लिये स्मार्ट मीटरिंग की क्या आवश्यकता है। जिसमें विभागीय कार्मिकों के यहां स्मार्ट मीटर लगाने की बात स्वतः इस बात को प्रमाणित कर देती है कि स्मार्ट मीटर लगाने के पीछे एक बीमार उद्योग को घाटे से बाहर लाना कदापि नहीं है। बल्कि मीटर निर्माता को किसी भी तरह से अधिक से अधिक से लाभ कमवाना है। जबकि जहां-जहां निजी वितरण कम्पनियां कार्यरत् हैं, वहां पर स्मार्ट मीटर बदलने की ऐसी कोई भी योजना नहीं है। क्योंकि निजी कम्पनी के लिये सुविधा के साथ-साथ लाभ कमाना अनिवार्य है। व्यापार के लिये अपने ही संसाधनों पर आत्म निर्भर होना अनिवार्य है, न कि उधार के पैसों पर निर्भर होना। क्योंकि उपरोक्त RDSS योजना के तहत 36045.91 करोड़ खर्च करके, खर्च के विरुद्ध लाभ कमाने एवं जनता को सुविधा उपलब्ध कराने के स्थान पर निजीकरण करने का एकतरफा निर्णय, स्वतः इस बात का प्रमाण है कि उपरोक्त योजना का जनहित एवं पूंजीपतियों के हित से क्या लेना देना है। जिसके लिये समीक्षा के नाम पर की जाने वाली कार्यवाहियों से सीधा-सीधा तात्पर्य है, दहशत फैलाकर, तथाकथित उद्देश्यों की पूर्ति की राह के रोड़ों को दूर करना मात्र है।

यक्ष प्रश्न उठता है कि RDSS योजना के तहत उ0प्र0 के डिस्कामों को रु0 13754.34 की अनुदान राशि के नाम पर रु0 36045.91 करोड़ का सशर्त उधार देकर, रु0 22291.57 करोड़ का अतिरिक्त बोझ डाला जाना, क्या यह स्पष्ट करने के लिये पर्याप्त नहीं है कि यह खेल सिर्फ और सिर्फ निजी कम्पनियों को व्यापार देने एवं सार्वजनिक उद्योगों को कर्ज में डुबोकर, उनको दुल्हन की तरह सजाकर, औने-पौने दामों में बेचने की एक सोची समझी नीति है। स्पष्ट है कि किसी उधोग के पास अपने कार्मिकों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं। उसे जबरदस्ती 1000 का उधार देकर यह कहा जाये कि अपने यहां 1000 का कार्य फलां कम्पनी से करवा लो, तो कर्ज में रु० 380 की छूट मिलेगी, अर्थात बैठे बैठाये रु० 620 के अतिरिक्त कर्ज का बोझ बढ़ा देना। क्या यह उक्त उधोग को जानबूझकर समाप्त करने की कार्यवाही के समान नहीं है। विभागीय कार्मिकों के यहां मीटर लगाने की कार्यवाही सिर्फ और सिर्फ निजीकरण के मुद्दे से घ्यान हटाना और निजी कम्पनियों को काम देने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द! बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.

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