
मित्रों नमस्कार! आप सभी को 78 वें स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक बधाई! राजधानी लखनऊ से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र अमर उजाला में वरिष्ठ पत्रकार नरेश शर्मा द्वारा लखनऊ क्षेत्र से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित प्रकाशित खबरः “अंडरग्राउण्ड केबिल 102 दिन में 900 फाल्ट।” निश्चित ही विस्मित करने वाली है। जोकि ऊर्जा निगमों द्वारा क्रय की जा रही विद्युत सामग्री, कार्य करने की कार्यशैली एवं नित्य की जा रही मैराथन वीडिओ कान्फ्रेन्सिंग के परिणाम का जीता जागता उदाहरण है।
वो कहावत है कि ”बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से आये।“ जब हर जगह भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार का बोलबाला है तो परिणाम भी कहीं न कहीं परिलक्षित होंगे ही। आज प्रबन्धन एवं अभियन्ताओं का मूल कार्य, अधिक से अधिक कार्य उत्पन्न करना एवं कार्य हेतु सामग्री क्रय करने के आदेश करना तथा आदेशों के बाद, कार्यदायी संस्थाओं के हित में, छिपे अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति हेतु, कार्य के समापन हेतु वीडिओ कान्फ्रेन्सिंग द्वारा क्षेत्रीय अधिकारियों पर कार्य समापन की रिपोर्ट जल्द से जल्द प्रेषित करने का दबाव बनाना है। जो स्वतः पूरी की पूरी कार्य योजना को स्पष्ट करता है कि कथित कार्य योजनाओं का महत्व, जनहित में कितना है और कतिपय अधिकारियों के हित में कितना है। यहां प्रबन्धन एवं अभियन्ता अधिकारी एक बात पर, एकमत हैं और सभी का एक ही प्रयास रहता है, कि कोई भी विभागीय कार्य, विभागीय कार्मिक न करें, बल्कि बाहरी कार्यदायी संस्थाओं के माध्यम से हों, जिससे कि उन पर कोई आक्षेप भी न आये और भरपूर कमीशन प्राप्त हो सके।
यही कारण है कि विद्युत सुधार के नाम पर हजारों करोड़ की योजनायें, भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। यही कारण है कि उर्जा निगम अपने कार्य कौशल पर पर्दा डालने के उद्देश्य से, अपने विद्युत पोलों पर प्लास्टिक की पन्नियां बंधवाता नजर आता है। अंडरग्राउण्ड केबिल 102 दिन में 900 फाल्ट, अर्थात प्रतिदिन लगभग 9 फाल्ट, जो यह स्पष्ट करने के लिये पर्याप्त है कि सामग्री एवं कार्य की गुणवत्ता का स्तर क्या है। वैसे उर्जा निगम वर्ष 2030 तक मानवरहित Automatic Sub & Station की बात कर रहे हैं। बेबाक बार-बार इस बात को उठाता रहा है कि उर्जा निगमों में सामग्री एवं कार्य में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। क्योंकि अधिकांश विभागीय अधिकारी सामग्री निर्माता/आपूर्तिकर्ताओं एवं कार्यदायी संस्थाओं के मार्केटिंग एजेन्ट के रुप में ही कार्यरत् हैं, जिसके ही कारण ”गुणवत्ताहीन सामग्री एवं कार्य“, उर्जा निगमों में खपाये जा रहे हैं।
अंडरग्राउण्ड केबिल का क्रय किये जाने से पूर्व, केबिल निर्माता के यहां, मात्र औपचारिकता पूर्ण करने के लिये सामग्री की गुणवत्ता का निरीक्षण किया जाता है। क्षेत्र में केबिल प्रयोग करने हेतु आवश्यक Cable अनिवार्य रूप से Cable Drum Stand के माध्यम से Unroll की जानी चाहिए। परन्तु प्रायः Cable Drum Stand का प्रयोग नहीं किया जाता है तथा सीधे Drum से केबिल उतारकर, जमीन पर Multiple Twist के साथ खींचा जाता है। फलस्वरूप Cable में Multiple Twist आने के कारण, केबिल का Insulation कमजोर हो जाता है। परिणाम स्वरुप Break down पर Break down होते रहते हैं। जमीन खोदकर मानकों की अनदेखी कर, एक के ऊपर दूसरी केबिल डाले जाने के कारण, एक केबिल में फाल्ट आने के साथ-साथ अतिरिक्त केबिल में भी फाल्ट हो जाता है। चूंकि अब विभाग के पास Cable Jointer नहीं हैं, अतः वाह्य कार्यदायी संस्थाओं के माध्यम से पहले Fault Locator द्वारा Fault Locate किया जाता है, तत्पश्चात Cable Jointing Kit (Straight Through) लगवाने का कार्य कराया जाता है। यदि केबिल का बाजार भाव एवं विभाग द्वारा लगवाई गई केबिल एवं उसका रख-रखाव का विश्लेषण करें, तो ज्ञात होगा, कि आये दिन केबिल फाल्ट की वजह से आम जनजीवन को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और विभाग को अनावश्यक रुप से अतिरिक्त वित्तीय हानि वहन करनी पड़ती है। 11 के0वी0 एवं 33 के0वी0 भूमिगत लाईन बिछाने में क्रमशः Rs. 42 लाख एवं Rs. 60 लाख लगभग का खर्च आता है। जबकि केबिल फाल्ट होने पर Fault Locator के माध्यम से प्रत्येक Fault Locate करने एवं केबिल खोदने में लगभग Rs. 6000 से 10000 तक का खर्चा आता है तथा 11 & 33 KV Cable Jointing Kit (Straight Through) की औसत कीमत Rs.17355 है तथा प्रतिCable Jointing Kit एवं उसको लगाने हेतु औसत लागत Rs. 23355 है। 102 दिन में लखनऊ क्षेत्र में हुये 900 फाल्ट पर मध्यांचल डिस्काम द्वारा Rs. 2.1 करोड़ का व्यय किया गया है। उपरोक्तानुसार 365 दिन में एक ही जनपद में केबिल फाल्ट दूर करने में Rs. 7.52 करोड़ का व्यय सम्भावित है।
पूरे प्रदेश में केबिल फाल्ट Attend करने में Rs. 564 करोड़ लगभग का व्यय सम्भावित है। उपरोत फाल्ट को ।Attend करने में कार्मिकों के साथ हुई दुर्घटना का कोई आंकड़ा सम्मिलित नहीं है। उपरोक्त के साथ एक और विस्मित करने वाला तथ्य है जिस पर प्रबन्धन एवं अभियन्ताओं द्वारा अपने होंठ सिले हुये है। जिसके अनुसार प्रदेश के लगभग सभी जनपदों में विभिन्न विद्युतीकरण योजनाओं के तहत क्रय की गई गुणवत्ताहीन HT AB Cable लगाते ही, बार-बार आपस में ही ैवतज हो जाने के कारण, क्षेत्रीय अभियंता अधिकारियों के द्वारा उक्त केबिल का प्रयोग बहुत पहले ही बंद किया जा चुका है और गुणवत्ताहीन केबिल, आज भी जहां-तहां पड़ी हुई है। जिस पर कोई भी चर्चा तक करने के लिये तैयार नहीं है। LT AB Cable की भी लगभग स्थिति यही है और आये दिन जगह-जगह गर्म होकर, आपस में Short Circuit होकर टपकती एवं खराब होती रहती है। चूंकि सभी सामग्री निरीक्षण के कार्य प्रबन्ध निदेशक कार्यालय द्वारा कराये जाते हैं, जहां निरीक्षण हेतु अधिकारियों को उचित टिप के आधार पर निरीक्षण कार्य आबंटिंत किया जाता है और निरीक्षण के उपरान्त सामग्री निर्माता द्वारा दी गई मिलाई का बंटवारा प्रबन्ध निदेशक कार्यालय में बड़ी ईमानदारी के साथ होता है। ऐसे अधिकारियों को निरीक्षण कार्य नहीं दिया जाता, जिनकी निष्ठा विभाग के प्रति हो और जो प्राप्त मिलाई का आधा हिस्सा प्रबन्ध निदेशक कार्यालय में नहीं देता हो, उसे भविष्य में निरीक्षण कार्य नहीं दिया जाता।
आये दिन भ्रष्टाचार के नाम पर मात्र 8 से 10 हजार मासिक वेतन प्राप्त करने वाले संविदाकर्मी को बर्खास्त करने की प्रेस विज्ञप्ति जारी करके भ्रष्टाचार समाप्त करने का दावा करने वाले अधिकारी, उस संविदाकर्मी के मासिक वेतन से ज्यादा एक दिन का वेतन लेते हैं। वास्तविकता यह है कि भ्रष्टाचार का वृक्ष तो वातानुकूलित कक्ष में सुरक्षित फलफूल रहा है जिसकी टहनियों के रुप में संविदाकर्मी कार्य करते हैं। किसी भी कार्मिक को भ्रष्ट कहने से पहले इस पर विचार करना होगा कि यदि किसी कार्मिक को उच्चाधिकारी यह निर्देश दे कि वह फलां कार्य के लिये इतनी टिप फलां व्यक्ति से ले, तो वह गरीब कार्मिक इन्कार करने का साहस कैसे कर सकता है। क्योंकि यदि वह संविदाकर्मी है तो बर्खास्त कर दिया जायेगा, विभागीय कार्मिक है तो अगले दिन उसका स्थानान्तरण कहीं दूर-दराज क्षेत्र में हो जायेगा और उसी के विरुद्ध कोई फर्जी अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रारम्भ कर दी जायेगी। सभी को अच्छी तरह से यह ज्ञात है, कि भ्रष्टाचार के रुप में आम इन्सान का चूसा गया खून अन्दर ही अन्दर कहां तक जाता है। उपरोक्त से यह स्प्ष्ट है कि विभाग में कार्य के पीछे लूटपाट का स्तर क्या है। यह कहना कदापि अनुचित न होगा, कि नित्य होने वाले Breakdowns उर्जा निगमों के लिये ईश्वर के वरदान के समान हैं, क्योंकि Breakdown की आड़ में ही उर्जा निगमों के लिए, बिजली की मांग को पूरा कर पाना, सम्भव हो पाता है। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.