
मित्रों नमस्कार! उर्जा निगम, जोकि पूर्णतः तकनीकी विभाग हैं। परन्तु उनका प्रबन्धन अभियन्ताओं के स्थान पर प्रशासनिक अधिकारियों के पास है। उर्जा निगमों के सर्वोच्च प्रबन्धन पद पर, (नियम विरुद्ध) जब-जब सरकार द्वारा बदलाव होता है, तो नवनियुक्त अध्यक्ष अपनी सोच के अनुसार, तीनों निगमों को चलाने के लिये अपनी नीति एवं कार्ययोजना निर्धारित करता हैं, जहां अभियन्ताओं का योगदान सिर्फ हां में हां मिलाने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता है।
पिछले प्रबन्धन ने जिन-जिन मठाधाशों को विभाग हित में कार्य न करने के कारण स्थान्तरित किया था एवं भ्रष्टाचार पर नियन्त्रण पाने के लिये कठोर अनुशासनात्मक कार्यवाही के तहत वृहद दण्ड तक दिये थे। प्रबन्धन के बदलते ही सारी लम्बित अनुशासनात्मक कार्यवाहियां, कहीं न कहीं, ठण्डे बस्ते में डाल दी गई। पिछले प्रबन्धन द्वारा, एक ही स्थान पर, शाम, दाम और दण्ड के माध्यम से जमें हुये जिन मठाधीशों को डिस्कामों से बाहर स्थान्तरित किया था, उन सभी को निजाम बदलते ही वापस उनके डिस्कामों में भेज दिया गया। हो सकता है कि पिछले प्रबन्धन द्वारा इनकी विशेष योग्यताओं का ही लाभ उठाने के लिये, इनको दूसरे डिस्कामों में स्थान्तरित किया हो, जिसे शायद वर्तमान प्रबन्धन द्वारा अपनी कार्ययोजना के अनुसार, और अधिक कार्य प्राप्त करने के उद्देश्य से वापस स्थान्तरित किया हो।
इसी क्रम में लखनऊ मुख्यालय पर नियुक्त अभियन्ताओं को देश के विभिन्न डिस्कामों के कार्य क्षेत्र में भेजकर, उनकी कार्य प्रणाली का सर्वेक्षण कराया गया था। जिससे क्या प्राप्त हुआ और परिणामतः किस प्रकार की सुधार योजनायें बनाई गई। इसके बारे में भी कहीं कोई चर्चायें सुनाई नहीं दी। इसी प्रकार से RDSS एवं Business Plan के अन्तर्गत कराये गये कार्यों का भी सर्वे कराया गया था। परन्तु परिणामतः उन पर क्या कार्यवाही हुई, कहीं कोई चर्चा नहीं हुई। परन्तु इस बात की खूब चर्चा हुई कि सर्वे का मूल उद्देश्य कार्य की गुणवत्ता के परीक्षण के नाम पर, क्षेत्र के अभियन्ताओं के कन्धे पर जिम्मेदारी डालते हुये, कार्यदायी संस्थाओं एवं सामग्री निर्माता/आपूर्तिकर्ताओं का भुगतान कर दिया गया। पारदर्शिता दर्शाने की यह एक अच्छी सोची समझी नीति थी। परन्तु पिछले कुछ समय से जिस प्रकार से बन्द लाईनों में, कार्य करने के दौरान, अचानक पुनः विद्युत प्रवाह होने के कारण, प्रतिदिन कई-कई दुर्भाग्यशाली लाईन कर्मी, अस्वस्थ प्रणाली एवं अनुभवहीन अधिकारियों के कारण, अकस्मात दर्दनाक मौत का शिकार हुये तथा आज भी पूर्ववत् शिकार हो रहे हैं। तो उसी प्रकार से बात-बात पर बिना किसी जांच के निलम्बन की कार्यवाहियां अनवरत् जारी हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि प्रबन्धन के पास ऐसा कोई आइना है, जिसमें बिना किसी जांच के ही, दोषी का चेहरा साफ-साफ दिखाई दे जाता है। यदि विद्युत सामग्रियों की गुणवत्ता की बातें करें, तो प्रतिमाह 25000 से भी अधिक क्षतिग्रस्त परिवर्तक बदले जाते हैं, जिनकी संख्या नित्य बढ़ रही है। जिस पर नियन्त्रण के लिये विभागीय इन्जीनियरों एवं परिवर्तक निर्माताओं के व्यवसायिक विचार एक समान हैं। क्योंकि प्रबन्धन को सलाह देने वाले अधिकांश इन्जीनियर, मूल रुप से सामग्री एवं परिवर्तक निर्माताओं की ही “मार्केटिंग” करते हैं। वास्तविक इन्जीनियरों की स्थिति यह है कि उन्हें प्रबन्धन पसन्द ही नहीं करता। क्योंकि उन्हें यह कदापि मंजूर नहीं कि कोई उन्हें सलाह देने तक का साहस कर उनके ज्ञान को चुनौती दे। विगत् दो दिनों में जिस प्रकार से कार्य हित एवं प्रशासनिक आधार पर 20% से ज्यादा स्थानान्तरण हुये हैं। उनसे विभाग किस प्रकार घाटे से बाहर निकलेगा और उपभोक्ताओं को गुणवत्तापरक सुविधायें प्राप्त होंगी, यह प्रबन्ध ही बता सकता है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार स्थानान्तरण के मुख्य मापदण्ड (Criteria) नियन्त्रक अधिकारी एवं उच्चाधिकारियों की पसन्द-नापसन्द थे, जोकि कहीं न कहीं व्यक्तिगत् भी थे। अर्थात नियन्त्रक अथवा उच्चाधिकारियों के समक्ष बोलने का साहस करने वालों को नेता कहकर, बख्शा ही नहीं गया। परन्तु चापलूसों को कहीं भी छुआ तक नहीं गया अर्थात मृदुभाषी मठाधीशों को, जो जूते समेत पेट में उतरने की कला जानते हैं, परन्तु इनकी असलियत यह है कि ”देखन में छोटन लगें, घाव करें गम्भीर।“ कार्मिकों के मध्य भय उत्पन्न कर, अब खाओ और खाने दो का सिद्धान्त बदल गया है, अब खाओ नहीं, पहले खिलाओ हो चुका है।
मेरठ के ही एक वितरण मण्डल में विगत् कुछ माह में ही, दो अधिशासी निलम्बित हुये, तो 2 दिन पूर्व, 4 सहायक अभियन्ता डिस्काम से बाहर स्थान्तरित करा दिये गये। जबकि स्वयं अधीक्षण अभियन्ता के दुस्साहस एवं निहित स्वार्थ में कार्य करने की बानगी यह है, कि 10 MVA के पॉवर परिवर्तक को अनाधिकृत रुप से, मरम्मत के नाम पर प्लिन्थ से उठवाकर कम्पनी को दे दिया गया था, जिसे नींद खुलने के लगभग 6-माह बाद बदला गया। तो वहीं एक अन्य क्षतिग्रस्त 10 MVA के परिवर्तक को मात्र कुछ घण्टे विलम्ब से बदलने पर वहां के अधि० अभि०, सहा० अभि० एवं अवर अभि० तक को निलम्बित करा दिया गया। जोकि पूर्णतः अधीक्षण अभियन्ता की प्रबन्धकीय एवं अभियान्त्रिक असफलता को स्पष्ट करता है।
परन्तु जैसा कि प्रचलन है, अधीक्षण अभियन्ता सम्मानित और मातहत् दण्डित! सर्व विदित है कि आज निगमों में दूर-दूर तक औद्योगिक वातावरण एवं टीम भावना के स्थान पर ”लूट और भय“ का वातावरण बन चुका है। चहुं ओर सिर्फ तुगलकी फरमान, बात-बात पर मातहतों को अपमानित करना एवं जरा सी शिकायत पर निलम्बन/स्थानान्तरण की कार्यवाही कर, ”उपभोक्ता देवोभव“ की आड़ में अपने उत्तरदायित्वों की इतिश्री किया जाना, आज उर्जा निगमों की नई संस्कृति बन चुका है। कार्मिक संगठन निहित स्वार्थ में प्रबन्धन एवं राजनीतिज्ञों की चाटुकारिता करते-करते, अपने दांत खो चुके हैं। अतः इस विषम परिस्थिति में ”ईमानदार कार्मिक“ चुपचाप किसी तरह से अपना परिवार पाल रहा है। शेष जहां मौका मिल जाये, मुंह मारने से नहीं चूक रहे। यदि प्रबन्धन वास्तव में, निस्वार्थ निगम हित में कार्मिकों का उचित प्रयोग करने हेतु स्थानान्तरण करना चाहता है, तो यह सुखद है।
परन्तु प्रायः यह देखा गया है कि प्रबन्धन की तो छोड़िये, नियन्त्रक अधिकारी तक को, अपने मातहतों की विशेष योग्यताओं का कोई ज्ञान नहीं होता, कारण स्पष्ट है, कि स्वयं नियन्त्रक अधिकारी एवं उच्चाधिकारी तक का लक्ष्य निहित स्वार्थ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता। बेबाक की एक सलाह है कि यदि प्रबन्धन डिस्काम स्तर पर, क्षेत्र स्तर पर एवं कार्यालय स्तर पर स्थानान्तरण एवं नियुक्ति चुनने के लिये, सशर्त निविदाओं के माध्यम से प्रस्ताव आमन्त्रित करे। जिसमें लोग अपनी इच्छानुसार, अपने स्थानान्तरण एवं नियुक्ति हेतु उच्चतम मूल्य प्रस्तावित करें तथा निर्धारित तिथि को निविदा खोलकर, प्रस्तावित अधिकतम मूल्य के आधार पर, उक्त पद पर स्थान्तरण एवं नियुक्ति एक निश्चित अवधि के लिये सशर्त प्रदान कर दी जाये। जिससे विभाग को अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति के साथ-साथ गुणवत्तापरक कार्य की प्राप्ति होगी। तो वहीं स्थानान्तरण एवं नियुक्ति के कार्यों में लिप्त दलाली प्रथा पर विराम लग जायेगा और कार्मिकों का समय और धन बचेगा। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
–बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA.