
मित्रों नमस्कार! प्रदेश के ऊर्जा निगमों में ज्ञानियों की कमी नहीं है। इसके बावजूद, बाहर से भी ज्ञानी बुलाये जाते हैं। जिसमें एक महोदय नित्य ज्ञान देने के साथ-साथ, कार्मिकों में निस्वार्थ भाव से, आत्मविश्वास जगाने का प्रयत्न करते हुये नजर आते हैं। परन्तु जब ऊर्जा निगमों के महामहिम, Without Prejudice के नाम पर Prejudiced होकर कार्यवाही करते हैं तो अनुशासनात्मक कार्यवाही के नाम पर, प्राप्त सारा का सारा ज्ञान धरा का धरा रह जाता है।
महामहिम यह भी अच्छी तरह से जानते हैं कि सामान्यतः उनके आदेशों को न्यायालय में कोई भी चुनौती नहीं देगा और यदि किसी ने साहस भी किया, तो उसे अधिकांश समय, अदालत के ही चक्कर काटने पड़ेंगे। यही कारण है कि आयातित प्रबन्धन बिना किसी आधार के, जब जी में आया, किसी को भी स्थान्तरित एवं निलम्बित कर देता हैं। एक ही प्रकार के अपराध पर किसी को आरोप मुक्त, तो किसी को वृहद दण्ड प्रदान कर देता हैं। मजेदार बात यह है कि इस प्रकार की नियम विरुद्ध कार्यवाहियों पर, प्रदेश भर के ज्ञानी मौन ही रहते हैं। कार्मिक संगठनों के पदाधिकरियों ने अपने निहित स्वार्थ में, ईमानदारी को हटाने के लिये लोगों से हाथ क्या मिलाया, कि आज उनके कार्मिक संगठन, लुप्त होने के कगार पर पहुंच गये हैं।
विदित हो कि किसी भी परिवार अथवा संस्थान को चलाने के लिये, आपसी विश्वास से परिपूर्ण टीम-भावना एवं आपसी एकता होना अनिवार्य है। जिसके लिये चाहे परिवार का मुखिया हो या किसी भी संस्थान का मुखिया हो। उनके लिये घर अथवा संस्थान की उन्नत्ति के लिये, आपसी टीम-भावना एवं आपसी एकता अनिवार्य है। जिसके लिये मुखिया के पास व्यापक सोच होना आवश्यक है। जिसके तहत घर एवं संस्थान की आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं के आधार पर सदस्यों/कार्मिकों की बड़ी से बड़ी भूल एवं कदाचरण पर गम्भीरता से विचार कर उनको मॉफ करने का साहस भी होना अनिवार्य है। जिससे कि किसी भी सूरत में टीम भावना आहत न हो। कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि दूध के लिये, दुधारु गाय की लात भी सही जाती है।
अतः कई बार संस्थान के हित को सर्वोपरि मानते हुये, बड़ी से बड़ी भूल/त्रुटि या कदाचरण पर चेतावनी देकर, मामले को रफा-दफा करना आवश्यक होता है। परन्तु कल जिस प्रकार से तीन अधीक्षण अभियन्ताओं को बिना कारण बताओ नोटिस दिये अथवा उनसे कोई स्पष्टीकरण मांगे, तुगलकी फरमान जारी कर निलम्बित कराना, क्या तानाशाही नहीं है। जिस प्रकार से गैर जमानती अपराध के विरुद्ध, बड़ी सजा सम्भावित होती है और पुलिस न्यायालय से उसको जेल में ही रखने अथवा रिमाण्ड पर देने का अनुरोध करती है। क्योंकि जांच अधिकारी को यह भय रहता है कि यदि आरोपी स्वतन्त्र रहेगा तो वह अपराध से सम्बन्धित गवाह एवं साक्ष्यों को प्रभावित कर, केस को कमजोर कर देगा। इसी प्रकार से नौकरी में, यदि कार्मिक के विरुद्ध प्रारम्भिक जांच में कोई गम्भीर कदाचरण प्रकाश में आता है, जिसके सत्यापित होने पर कार्मिक को वृहद दण्ड दिया जाना सम्भावित हो, तो निष्पक्ष जांच करने हेतु, आरोपी को कार्यस्थल एवं कार्य से दूर रखने के उद्देश्य से निलम्बित किया जाता और उसे जीवन निर्वाह भत्ता भी दिया जाता है। परन्तु बिना किसी जांच के मात्र दायित्वों का निर्वाह न करने के नाम पर निलम्बन, किसी भी दृष्टिकोण से तार्किक नहीं है।
विदित हो कि विद्युत आपूर्ति एक अनिवार्य सेवा है, जहां पर प्रत्येक अधिकारी एवं कर्मचारी, विषम परिस्थितियों में भी प्रतिदिन 10 से लेकर 18.18 घण्टे तक अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता हैं। अतः उपरोक्त परिस्थितियों के मद्देनजर, अघ्यक्ष महोदय को विभाग में, कार्मिकों के एक संरक्षक की भूमिका निभाते हुये, अपने कार्मिकों से दायित्वों का निर्वाह न करने पर, प्रथम दृष्टया स्पष्टीकरण मांगते हुये, चेतावनी दी जानी चाहिये थी, अर्थात सुधार करने के अवसर दिया जाना चाहिये था, न कि सीधे निलम्बित करने के आदेश दिये जाने चाहिये थे। जिससे यह प्रतीत होता है कि जैसे अघ्यक्ष महोदय द्वारा किन्हीं व्यक्तिगत् कारणों से रुष्ट होकर निलम्बित करने के आदेश दिये हों। क्योंकि निलम्बन से पूर्व न तो कोई जांच प्रस्तावित थी और न ही कोई कारण बताओ नोटिस ही जारी किया गया था।
यहां पर एक और गम्भीर प्रश्न उठता है कि चेयरमैन एवं अधीक्षण अभियन्ता के बीच, प्रबन्ध निदेशक पा0का0लि0, प्रबन्ध निदेशक डिस्काम, निदेशक (वाणिज्य) पा0का0लि0, निदेशक (वाणिज्य) डिस्काम एवं मुख्य अभियन्ता सहित कुल 5 अधिकारी आते हैं। तो क्या इन बीच के 5 अधिकारियों के द्वारा अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों का निर्वाह किया गया? आखिर वो क्या कारण हैं, जिसके कारण अध्यक्ष महोदय को स्वयं उपरोक्त अधिकारियों के निलम्बन के सीधे आदेश देने पड़े। जबकि निलम्बित होने वाले अधिकारियों के कार्यक्षेत्र में चेयरमैन महोदय गये ही नहीं। स्पष्ट है कि चेयरमैन महोदय एवं निलम्बित होने वाले अधिकारियों के बीच के, उक्त पांचों अधिकारी, आरोपी अधिकारियों के कार्य एवं आचरण से रुष्ट नहीं थे। एक बार फिर प्रश्न उठता है कि अचानक ऐसा क्या हुआ, जिसके कारण चेयरमैन महोदय को, कि अचानक तीनों अधीक्षण अभियन्ताओं को निलम्बित करने के आदेश जारी करने पड़े। क्या चेयरमैन महोदय की उपरोक्त अधिकारियों से कोई व्यक्तिगत् नाराजगी थी। जिसके कारण अनुशासनात्मक कार्यवाही के सभी चरणों को दरकिनार करते हुये, सिर्फ और सिर्फ दायित्वों का निर्वहन न करने पर, सीधे निलम्बित करा दिया गया। जिस पर अधिकतम दण्ड निंदा/परनिंदा प्रविष्टि, स्थानान्तरण अथवा एक या दो वेतन वृद्धि रोकी जा सकती है। यदि वास्तव में उपरोक्त आरोपी अधिकारी अपने दायित्वों के प्रति गम्भीर नहीं थे तो क्या तथाकथित 5 उच्चाधिकारियों के भी उत्तरदायित्व निर्धारित नहीं किये जाने चाहिये थे।
एक बार फिर से यक्ष प्रश्न उठता है कि क्या ये निलम्बन सिर्फ कार्मिकों के बीच दहशत फैलाने के लिये तो नहीं किया गया है। यदि बात-बात पर चेयरमैन महोदय को ही निर्णय लेना पड़ता है, तो उक्त 5 अधिकारियों की आवश्यकता क्या है? आखिर उन्हें वेतन किस बात के लिये दिया जाता है? तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 के आज भी प्रभावी आदेशानुसार यदि किसी कार्मिक के विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही होती है, तो उसके उच्चाधिकारियों के भी उत्तरदायित्वों की जांच की जानी चाहिये। अधिकांश अधिकारियों एवं कर्मचारियों को यह नहीं मालूम कि उनके कार्य एवं उत्तरदायित्व क्या-क्या हैं। उन्हें तो बस यह मालूम है कि ऊपर से जो भी आदेश आये, उसका ससमय अक्षरश पालन करना है। चाहे उसके लिये आवश्यक सामग्री एवं श्रमिक हों या न हों। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0 के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.