
बलिया। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में नौकरशाही और कर्मचारियों की गरिमा को कलंकित करने वाली घटना बलिया में सामने आई है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का स्थानीय नेता मुन्ना बहादुर सिंह सिविल लाइन स्थित बिजली विभाग के दफ्तर में घुसा और अधीक्षण अभियंता लाल सिंह (दलित अधिकारी) को कुर्सी पर बिठाकर जूते से ताबड़तोड़ पीट डाला।
पूरा घटनाक्रम कैमरे में कैद हो गया और घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि पावर कारपोरेशन के शीर्ष अधिकारी और सरकार अब तक मौन साधे बैठे हैं।
🔴 वीडियो में दिखी हैवानियत
वीडियो में साफ दिखाई देता है कि घटना सिविल लाइन स्थित बिजली विभाग के कार्यालय की है। अधीक्षण अभियंता लाल सिंह अपने कार्यालय में काम कर रहे थे, तभी बीजेपी नेता मुन्ना बहादुर सिंह अपने साथियों के साथ पहुंचे। बिजली आपूर्ति की समस्या को लेकर बहस शुरू हुई और कुछ ही मिनटों में विवाद हाथापाई में बदल गया।
वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि बीजेपी नेता लाल सिंह को जबरन कुर्सी पर बिठाता है और फिर अपना सफेद जूता निकालकर उनके सिर पर बार-बार हमला करता है। साथ आए लोग बीच-बचाव करते रहे, लेकिन मुन्ना बहादुर बार-बार जूता चलाते रहे।
सरकारी दफ्तर के भीतर इस तरह की गुंडागर्दी और अपमानजनक हरकत ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
🔴 FIR दर्ज, मगर खामोशी बरकरार… सत्ता संरक्षण पर सवाल :
इस घटना के बाद पुलिस ने बीजेपी नेता के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है। लेकिन, पावर कारपोरेशन के उच्च प्रबंधन की चुप्पी सबसे बड़ा सवाल खड़ा करती है।
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अध्यक्ष आशीष गोयल,
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प्रबंध निदेशक पंकज कुमार,
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डिस्कॉम के प्रबंध निदेशक —
किसी ने भी अब तक इस शर्मनाक घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। सभी अब तक चुप हैं। क्या यह चुप्पी सत्ता की दबंगई का डर है या फिर कर्मचारियों की सुरक्षा से खिलवाड़?
🔴 दलित अफसर पर हमला — दोहरी चुप्पी!
यह सिर्फ कानून व्यवस्था का मामला नहीं है, बल्कि दलित अधिकारी की गरिमा पर सीधा हमला है। सवाल यह है कि जिस प्रदेश में अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण कानून लागू है, वहां सत्ता से जुड़े लोग खुलेआम दफ्तर में हमला करें और विभागीय अफसर चुप रहें — क्या यह संविधान का मखौल नहीं है?
🔴 कर्मचारियों का गुस्सा
विभागीय कर्मचारियों में गहरा आक्रोश है। कर्मचारियों का कहना है —
“अगर एक अधीक्षण अभियंता तक को जूतों से पीटा जा सकता है, तो बाकी कर्मचारियों की औकात क्या रह जाती है? हम असुरक्षित हैं और शीर्ष अधिकारी मौन रहकर सत्ता की कठपुतली साबित हो रहे हैं।”
📝 UPPCL मीडिया का संपादकीय सवाल :
यदि एक अधीक्षण अभियंता तक को सरकारी दफ्तर में कुर्सी पर बिठाकर जूतों से पीटा जा सकता है, तो फिर निचले स्तर के कर्मचारियों की स्थिति का अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है। क्या पावर कारपोरेशन का शीर्ष प्रबंधन इस अपमानजनक घटना पर भी चुप्पी साधे रहेगा? क्या उच्च प्रबन्धन सिर्फ कारवाई करने के लिए ही विराजमान है?
👉 क्या कर्मचारी सिर्फ बिजली ढोने और अपमान सहने के लिए हैं?
👉 क्या पावर कारपोरेशन का प्रबंधन सत्ता के आगे झुक चुका है?
👉 क्या दलित अफसर पर हमले की चुप्पी शीर्ष प्रबंधन की सहमति नहीं दर्शाती?
तीखे सवाल :
👉 क्या यह दलित अफसर की हैसियत को कुचलने की कोशिश थी?
👉 क्या एक जनप्रतिनिधि को सरकारी दफ्तर में इस तरह की गुंडागर्दी करने का लाइसेंस है?
👉 पावर कारपोरेशन के शीर्ष अधिकारी मौन क्यों हैं?
👉 कर्मचारी-अधिकारियों की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?
कर्मचारियों में आक्रोश : इस बर्बर हमले के बाद विभागीय कर्मचारियों में गहरा रोष है। कर्मचारियों का कहना है कि यदि उच्च अधिकारी चुप रहे तो यह संदेश जाएगा कि सत्ता के दबाव में कर्मचारियों की सुरक्षा और गरिमा गिरवी रख दी गई है।
📌 स्पष्ट है — यह सिर्फ एक अफसर पर हमला नहीं, बल्कि पूरे बिजली विभाग और उसकी कार्यसंस्कृति पर हमला है।
अगर शीर्ष अधिकारी अब भी चुप रहे तो यह समझा जाएगा कि कर्मचारियों की इज्जत और सुरक्षा सत्ता के जूतों तले कुचल दी गई है।