
यूपी पावर कॉर्पोरेशन: सवालों और आरोपों के घेरे में शीर्ष प्रबंधन
आखिर कब मिलेगी मुक्ति… ऐसे अध्यक्ष पावर कॉरपोरेशन से
# आखिर कब मिलेगा आईएएस राज से मुक्ति?
# कब तक एक एफिडेविट के सहारे अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक जैसे शीर्ष पदों पर अवैध रूप से पोस्टिंग
उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां सवाल सिर्फ बिजली व्यवस्था का नहीं बल्कि पूरे विभाग की ईमानदारी, पारदर्शिता और भविष्य का है। सवाल यह है कि आखिर कब तक विभाग ऐसे अवैध तरीके से कुर्सी पर बैठे अधिकारियों के कब्ज़े में रहेगा? उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन (यूपीपीसीएल) लंबे समय से गंभीर विवादों और आरोपों के घेरे में है। विभाग के शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारियों की नियुक्तियों से लेकर संपत्ति बेचने की तैयारी, ट्रांसफर–पोस्टिंग में कथित धांधली, ट्रांसफार्मर फुकने पर निलंबन का खेल और भ्रष्टाचार के वीडियो तक – सवालों की लंबी फेहरिस्त है। लखनऊ। उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन (UPPCL) इन दिनों सुर्खियों में है। संगठन के शीर्ष अधिकारियों पर शासनादेश की अनदेखी, पद पर निर्धारित समय से अधिक बने रहने, विभागीय संपत्ति को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी, और कर्मचारियों पर मनमानी कार्रवाई जैसे गंभीर आरोप लग रहे हैं। ऊर्जा क्षेत्र की इस नाजुक स्थिति में सवाल उठता है कि आखिर जिम्मेदार कौन है?
अवैध कब्ज़ा : चार साल से ज़्यादा समय से आर्टिकल ऑफ मेमोरेंडम की धज्जियां उड़ाते हुए पदों पर बैठे अधिकारी।
संपत्ति बेचने की तैयारी : 42 जिलों की लगभग 1 लाख करोड़ की संपत्ति मात्र 6500 करोड़ में बेचने का खेल।
ईआरपी और ट्रांसफर :टिकट सिस्टम : मनपसंद पोस्टिंग सिर्फ “प्रीमियम टिकट” वालों को, बाकी बर्बाद।
निलंबन का खेल : ट्रांसफार्मर फुकने पर फौरन कार्रवाई, लेकिन रिश्वत लेने वालों पर मेहरबानी।
भ्रष्टाचार का नेटवर्क : अधीक्षण अभियंता का वीडियो, हर अधीनस्थ से महीने की फिक्स वसूली।
वर्चुअल कॉन्फ्रेंसिंग = पब्लिक इंसल्टिंग : अधिकारियों को परिवार के सामने बेइज्ज़त करने का नया तरीका।
उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां सवाल सिर्फ बिजली व्यवस्था का नहीं बल्कि पूरे विभाग की ईमानदारी, पारदर्शिता और भविष्य का है। सवाल यह है कि आखिर कब तक विभाग ऐसे अवैध तरीके से कुर्सी पर बैठे अधिकारियों के कब्ज़े में रहेगा?
अवैध नियुक्ति और आर्टिकल ऑफ मेमोरेंडम की अनदेखी
शर्म आती है ऐसे अवैध अधिकारियों पर… कहने को पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष महोदय, भले ही आर्टिकल ऑफ मेमोरेंडम की धज्जियां उड़ाते हुए अवैध तरीके से अपने पद पर बैठे हो… लेकिन कार्य इतना उम्दा… कि जितनी तारीफ की जाए कम होगी…
- अवैध कब्ज़ा और आर्टिकल ऑफ मेमोरेंडम की धज्जियां
- कहने को पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक महोदय शीर्ष पदों पर बैठे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि इनकी तैनाती ही सवालों के घेरे में है।
- आर्टिकल ऑफ मेमोरेंडम की शर्तें खुलेआम तोड़ी जा रही हैं।
कार्यकाल से अधिक समय तक पद पर बने रहने के आरोप
सूत्रों के अनुसार, कॉर्पोरेशन के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी शासनादेश और आर्टिकल ऑफ मेमोरेंडम की धज्जियां उड़ाते हुए वर्षों से एक ही पद पर जमे हुए हैं। शासनादेश में स्पष्ट प्रावधान है कि किसी भी अधिकारी का कार्यकाल एक सीमा से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन वास्तविकता इससे अलग दिखाई देती है।
- आरोप है कि प्रबंध निदेशक स्तर के एक अधिकारी लगभग साढ़े चार वर्ष से पद पर जमे हुए हैं।
- शासनादेश की अनदेखी कर फेविकोल की तरह कुर्सी से चिपके रहने की यह प्रवृत्ति गंभीर सवाल खड़े करती है।
घाटे की आड़ में विभागीय संपत्ति बेचने की तैयारी
विभाग का तर्क है कि बिजली कंपनियां घाटे में चल रही हैं। लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस घाटे का बहाना बनाकर पश्चिमांचल व पूर्वांचल डिस्कॉम की 42 जिलों में फैली करीब एक लाख करोड़ की संपत्ति को मात्र 6500 करोड़ रुपये में बेचने की तैयारी है।
सवाल यह है कि—
- क्या यह संपत्ति वाकई घाटे की भरपाई के नाम पर बेची जा रही है?
- या फिर इसे निजी कंपनियों को औने-पौने दाम पर सौंपने का खेल खेला जा रहा है?
पावर परचेसिंग: पहले से तय अनुबंध, फिर भी भुगतान
पावर कॉर्पोरेशन बिजली उत्पादक कंपनियों और राज्य की बिजली कंपनियों के बीच केवल एक नोडल एजेंसी (एजेंट) की भूमिका निभाता है।
- यह पहले से तय होता है कि किस माह कितनी बिजली किस दर पर और किससे खरीदी जाएगी।
- खास बात यह कि बिजली न खरीदने पर भी भुगतान करना पड़ता है।
इस व्यवस्था ने कई विशेषज्ञों को सवाल उठाने पर मजबूर किया है कि क्या यह मॉडल जनता और उपभोक्ताओं के हित में है?
ईआरपी और टिकट सिस्टम : भ्रष्टाचार का नया चेहरा
आजकल विभाग में हर काम ईआरपी (ERP) के माध्यम से होता है—फिर चाहे वह भुगतान हो, छुट्टी लेना हो या ट्रांसफर-पोस्टिंग। आजकल कॉरपोरेशन का नया हथियार है ईआरपी –
- छुट्टी लेनी है? ईआरपी से।
- भुगतान लेना है? ईआरपी से।
- ट्रांसफर-पोस्टिंग? वही ईआरपी से।
- लेकिन हकीकत? ईआरपी = प्रीमियम टिकट सिस्टम।
- जिसने टिकट खरीदा, उसे मनचाही पोस्टिंग।
- जिसने टिकट नहीं खरीदा, उसे ऐसी जगह फेंक दिया जाता है जहां से परिवार और जीवन दोनों छूट जाएं।
- कर्मचारियों का आरोप है कि ट्रांसफर-पोस्टिंग एक “प्रीमियम टिकट” सिस्टम बन गया है।
- जो अधिकारी भुगतान करता है, उसे मनचाही जगह तैनाती मिल जाती है, जबकि बाकी को परिवार और बच्चों की पढ़ाई छोड़कर दूर-दराज़ के जिलों में भेज दिया जाता है।
ट्रांसफार्मर फुकना बना सबसे बड़ा गुनाह
कर्मचारियों के अनुसार विभाग में ट्रांसफार्मर फुकना सबसे बड़ा अपराध माना जाता है। गुनाह ट्रांसफार्मर फूकना है.. यह नहीं देखा जाएगा कि किस कारण फुका… बस निलंबन कर दो… निलंबन उपरांत दो-तीन महीने तक चार्जशीट के नाम पर घुमाओ… इन दो-तीन महीने में यदि कोई निलंबित इंजीनियर आपका चढ़ावा चढ़ा दिया.. तो तत्काल चार्जशीट दे दिया जाता है… नहीं तो कई चक्कर लगवाने के बाद…. इसके बाद जबाब हाजिर…. जब जबाब संतोषजनक रहा तो, कुछ समय में बहाली आदेश जारी हो जाता है… नहीं तो पड़े रहो एक किनारे… कौन पूछने जा रहा है कि क्या है क्या नहीं? यदि बहाली हुई भी… तो दूर दराज किसी दूसरे डिस्कॉम में… अब वह बेचारा अपना परिवार छोड़कर, वह इसलिए कि उसके बच्चे की पढ़ाई चल रही होगी… अकेले विभाग के प्रति जिम्मेदारियां को निर्वहन करने के लिए चल देता है…. वह भी सोचता है कि हमें ऐसी सजा ऐसे व्यक्ति के द्वारा मिली… जो फर्जी तरीके से विभाग को कब्जा किए हुए हैं, फर्जी तरीके से विभाग को बेच रहा है… लेकिन बेचारा वह कर ही क्या सकता है…
बिना जांच-पड़ताल कई बार सीधे निलंबन कर दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर, उपभोक्ताओं से अवैध वसूली या रिश्वत लेने जैसी शिकायतों पर अक्सर विभाग आंखें मूंद लेता है।—
- चाहे खराबी तकनीकी वजह से हो या प्राकृतिक आपदा से—जिम्मेदार अधिकारी को तुरंत निलंबित कर दिया जाता है।
- निलंबन के बाद महीनों तक चार्जशीट जारी नहीं होती।
- सूत्रों का कहना है कि यदि निलंबित अधिकारी “चढ़ावा” दे देता है, तो चार्जशीट तेजी से जारी हो जाती है और बहाली भी जल्दी मिल जाती है।
- यदि ऐसा न हो, तो मामला लंबा खिंचता है और अधिकारी को परिवार छोड़कर दूर पोस्टिंग पर जाना पड़ता है।
भ्रष्टाचार का वीडियो: हर महीने “फिक्स वसूली”
यूपीपीसीएल मीडिया को मिले एक वीडियो में भ्रष्टाचार का बड़ा खुलासा हुआ है। यह वीडियो विभागीय कर्मचारियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
- एक अधीक्षण अभियंता (SE) पर आरोप है कि वे हर महीने अपने अधीनस्थों से तय रकम वसूलते थे।
- आरोप है कि अधिशासी अभियंता से ₹10,000, उपखंड अधिकारी से ₹10,000 और जूनियर इंजीनियर से ₹15,000 उनकी टीम के माध्यम से लिया जाता था।यह राशि उनके सीए बाबू के माध्यम से हर महीने की 10 तारीख को ली जाती थी।
- इसके बदले अधीनस्थ अधिकारियों को पूरी छूट दी जाती थी कि वे उपभोक्ताओं से मनमानी वसूली करें।
मुख्य अभियंता की भाषा गली के लफंगों जैसी
लेसा में तैनात एक मुख्य अभियंता पर भी गंभीर आरोप लगे हैं कि वे अधीनस्थ कर्मचारियों से अपमानजनक भाषा में बातचीत करते हैं। कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि “उनकी भाषा किसी उच्च पदाधिकारी की नहीं बल्कि गली-मोहल्ले के दबंगों जैसी है।” सूत्रों ने आरोप लगाया कि लखनऊ विद्युत आपूर्ति क्षेत्र (लेसा) के एक वरिष्ठ अभियंता अधीनस्थ कर्मचारियों से बातचीत के दौरान अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करते हैं। कर्मचारी कहते हैं कि यह आचरण किसी मुख्य अभियंता के बजाय किसी गली-मोहल्ले के व्यक्ति जैसा प्रतीत होता है।
वर्चुअल कॉन्फ्रेंसिंग: अपमान का नया तरीका
- कोविड के बाद से विभाग में वर्चुअल कॉन्फ्रेंसिंग का चलन बढ़ा है। आरोप है कि इन बैठकों में अधीनस्थ अधिकारियों को खुलेआम अपमानित किया जाता है।
- कई बार भाषा और लहजा ऐसा होता है कि अधिकारी मानसिक दबाव में आ जाते हैं।
- लेकिन नौकरी के डर से वे विरोध नहीं कर पाते।पावर कॉरपोरेशन आज जिन परिस्थितियों से गुजर रहा है, वह केवल बिजली व्यवस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है।
- कर्मचारियों का आरोप है कि इन बैठकों में कई बार अधीनस्थ अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाता है।
- डर और नौकरी खोने के भय के कारण कर्मचारी विरोध नहीं कर पाते और “खून का घूंट पीकर” रह जाते हैं।
सवाल साफ है –
- क्या शीर्ष पदों पर बैठकर नियमों की अनदेखी करने वालों पर कभी कार्रवाई होगी?
- क्या घाटे की आड़ में विभागीय संपत्ति की नीलामी रोकी जाएगी?
- और क्या ईमानदार इंजीनियरों और कर्मचारियों को डर और असुरक्षा से मुक्त वातावरण मिल पाएगा?
**”भड़ास निकलना अभी बाकी है… शेष भड़ास अगले अंक में प्रस्तुत करेंगे।
नोट: हमें भली-भांति ज्ञात है कि हमारी भाषा-शैली और सच्चाई की तल्ख़ी कुछ अधिकारियों और उनके चहेतों को नागवार गुजर सकती है। हो सकता है कि इस कारण हमारे खिलाफ कार्रवाई या अभियोग भी दर्ज हो जाए। लेकिन हमें किसी मुकदमे का भय नहीं है, क्योंकि सच अक्सर कड़वा होता है और हम पहले भी ऐसे अनुभवों से गुज़र चुके हैं।
हमारे एडवोकेट महोदय श्री सुनील कुमार मिश्रा जी का सहयोग और मार्गदर्शन हमें हमेशा प्रेरित करता है कि हम अपनी कलम की लड़ाई जारी रखें। इसलिए यदि किसी अधिकारी को इस रिपोर्ट से आपत्ति है और वे कानूनी कार्रवाई करना चाहें—तो हम उसका स्वागत करेंगे।”**
“सच कड़वा है और हमें इसका स्वाद पहले भी मिला है। मुक़दमे दर्ज होंगे, हमें कोई डर नहीं। हमारी कलम चलती रहेगी…”
✍️ संजीव श्रीवास्तव
संपादक – यूपीपीसीएल मीडिया