
मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता…. निजीकरण के विरुद्ध राजनीतिक प्रबन्धन द्वारा एक प्रायोजित कार्यक्रम के तहत, कथित मोर्चा के तत्वावधान में, कतिपय बुजुर्ग सेवानिवृत्त पदाधिकारियों के द्वारा चलाये जा रहे, तालियां पीटने के कार्यक्रम के बीच एक स्मार्ट खेला हो गया। जिसमें सेवानिवृत्त एवं नियमित कार्मिकों के बीच विभागीय संयोजनों पर स्मार्ट मीटर लगाने को लेकर, घमासान छिड़ गया है और एक ओर खड़ा राजनीतिक प्रबन्धन मुस्करा रहा है। क्योंकि निजीकरण रोकने के लिये आर-पार की लड़ाई लड़ने का आहवाहन करने वाले विभागीय संयोजनधारी प्रबन्धन द्वारा खेले गये एक स्मार्ट खेल में ऐसे उलझ गये हैं। कि अब आपस में ही भिड़ गये है।
मीटर न लगने देने के लिये अभियन्ताओं का घेराव कर रहे हैं। निश्चित ही यह एक अविस्मरणीय दृश्य है, जिसे इससे पूर्व कभी देखा नहीं गया। जिसमें जगह-जगह वरिष्ठ एवं युवा बुड्ढे, जोकि कभी जिस कार्यरय में बैठकर, आसानी से किसी पीड़ित की सुना नहीं करते थे, आज उसी कार्यालय में, काख में एक फाईल दबाये, पीड़ित बने घूम रहे हैं। रोचक तथ्य यह है कि जिसका घेराव कर रहे हैं, वह भी अपने यहां स्मार्ट मीटर लगने की व्यथा से पीड़ित एक ”दीन“ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्या यह एक विडम्बना है अथवा भ्रष्टाचार की परकाष्ठा है? कि पढ़े-लिखे लोग भी सत्य जानते हुये, असत्य की ओर भाग रहे हैं। पानी के बहाव को रोकने के लिये, पानी के प्रवेश स्थान को रोकने की जगह, जगह-जगह से रिसते पानी के मुंह को बन्द करने का व्यर्थ प्रयास करते नजर आ रहे हैं।
स्मरण रहे कि कुछ इसी प्रकार का प्रयास निजीकरण रोकने के लिये भी किया जा रहा है। क्योंकि स्मार्ट मीटर लगाने का निर्णय किसी अभियन्ता अधिकारी का न होकर कथित राजनीतिक प्रबन्धन द्वारा अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये निजीकरण के विरुद्ध एकत्र हो रही भीड़ को तितर-बितर करने के लिये लिया गया एक ”स्मार्ट कूटनीतिक निर्णय“ है। जिसने निजीकरण के दिखावटी एवं औपचारिक आन्दोलन की कलई खोलकर रख दी है। क्योंकि जिनके पैर कुछ तिनकों की वजह से वापस मुड़ जायें, अर्थात जिनके लिये स्वार्थ अधिक महत्वपूर्ण हो, उनको तितर-बितर करना कठिन नहीं है। स्मरण रहे कि जब ऊर्जा निगम निजी हाथों में चले जायेंगे तब क्या होगा? क्योंकि LMV-10 से शून्य पहले ही हट चुका है। एक जिम्मेदार महोदय LMV-1 के 50% की मांग कर LMV-1 को स्वीकार कर चुके है। यदि हम किसी निजी कम्पनी से यह कहें कि वह अपने यहां, हमारी कम्पनी के माध्यम से रु0 36045.91 करोड़ के कार्य करा ले, तो हम उसे रु0 13754.34 करोड़ की छूट देंगे। तो निश्चित ही वह हमें धक्के मारकर कम्पनी से बाहर कर देगा। क्योंकि बैठे बैठाये कोई रु0 13754.34 करोड़ के लालच में, अपने ऊपर रु0 22291.57 करोड़ की अतिरिक्त देनदारी कभी भी नहीं लादेगा। बस यही खेल है विगत् वर्षों एवं वर्तमान में सरकार द्वारा घोषित सुधार योजनाओं का। आज कथित RDSS योजना के तहत उ0प्र0 के डिस्कामों को रु0 36045.91 करोड़ दिये जाने है। जहां 18,956.29 करोड़ स्मार्ट मीटरिंग के लिये तथा रु0 17,089.62 लाइन लॉस कम करने के लिये दिये जाने हैं। जिसके विरुद्ध कुल अनुदान राशि रु0 13754.34 दी जानी प्रस्तावित है। जिससे यह स्पष्ट है कि निजी कम्पनियों को व्यापार देने के लिये उत्तर प्रदेश के डिस्कामों पर रु0 22291.57 करोड़ का अतिरिक्त बोझ डाला जाना है। जिसमें जिस प्रकार से स्मार्ट मीटरिंग को महत्व दिया गया है। वह स्वतः सब कुछ स्पष्ट कर देता है क्योंकि स्मार्ट मीटरिंग में मीटर क्रय किया जाना ही मूल घटक है। जोकि ”मेरा क्या“ के सिद्धान्त पर निजी कम्पनियों को रोजगार देने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। जबकि वर्तमान में विद्युत प्रणाली को सुदृढ़ करते हुये, घर-घर पूर्व में स्थापित डिजिटल मीटरों के माध्यम से ही ऊर्जा निगमों की वित्तीय स्थिति को सुधारा जा सकता है। जो स्वतः यह स्पष्ट करता है, कि उपरोक्त अनुदान डिस्कामों का घाटा कम करने के लिये नहीं है, बल्कि पहले से बीमार चल रहे डिस्कामों की कमर तोड़कर, उन्हें बेचने के लिये ही दिया गया है।
विगत 25 वर्षों में चीनी सामग्री से निर्मित हजारों करोड़ रुपये के मीटर समय-समय पर बदले एवं लगाये गये। जिसके पीछे कोई विशेष प्रौधिगिकी न होकर, बल्कि निहित स्वार्थ में, मीटर निर्माताओं से ”दाम लेकर“, ”काम देने“ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। जिसके कारण बिलिंग व्यवस्था चौपट हुई और वितरण कम्पनियों को अतिरिक्त वित्तीय भार वहन करना पड़ा। क्या प्रबन्धन अथवा कोई भी व्यापारी यह बता सकता है कि जो उद्योग पहले से ही बीमार चल रहे हैं, उनके लिये स्मार्ट मीटरिंग की क्या आवश्यकता है। जिसमें विभागीय कार्मिकों के यहां Energy Accounting के नाम पर, महंगे स्मार्टमीटर, प्राथमिकता के आधार पर लगाने का निर्णय, स्वतः इस बात को प्रमाण है कि स्मार्ट मीटर लगाने के पीछे एक बीमार उद्योग को घाटे से बाहर लाना तो कदापि नहीं है। क्योंकि उपरोक्त कार्य सामान्य मीटर के द्वारा भी किया जा सकता है तथा उपलब्ध महंगे स्मार्टमीटर सार्वजनिक एवं चोरी के सम्भावित स्थानों पर प्राथमिकता के आधार पर लगाये जाने चाहिये। उपरोक्त कार्य अर्थात सभी श्रेणियों के सभी उपभोक्ताओं के यहां मीटर स्थापित होने के बाद, शेष मीटर विभागीय संयोजनों पर लगाये जा सकते हैं। यह कहना अनुचित न होगा कि जिनसे प्रति माह, बिना किसी प्रयास के, सीधे वेतन से एकमुश्त बिल प्राप्त हो रहा है। वे ही आज कथित राजनीतिक प्रबन्धन के निशाने पर हैं। जिसके मूल कारण पर चर्चा करना व्यर्थ है।
विदित हो कि ऊर्जा निगमों में राजनीतिक प्रबन्धन है और राजनीति में वादों और नैतिकता की स्थिति, स्वर्गीय मनोज कुमार जी इस गाने में छिपी हुई हैः- ”कसमें वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या, कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं नातों का क्या!“ ईश्वर सबकी मदद करे! राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द! बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.