विद्युत वितरण कम्पनियों के निजीकरण को सुगम बनाने के लिये, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर भागते अधिकारी

मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता…उ0प्र0 विधानसभा में माननीय ऊर्जामन्त्री जी का यह बयान कि वितरण निगमों का निजीकरण होगा। वह पूर्णतः अलोकतान्त्रिक एवं हठधर्मिता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्योंकि जब सरकार ही जनहित में इस बात की समीक्षा तक करने के लिये तैयार नहीं है, कि जिस सार्वजनिक उद्योग का उसने मात्र 77 करोड़ रुपये के घाटे के नाम एवं भविष्य में उच्च गुणवत्ता स्तर की सेवायें देने के वचन के साथ विभक्तिकरण करते हुये, कम्पनी एक्ट-1956 के तहत पंजीकरण कराकर, विभिन्न विद्युत कम्पनियां बनाकर, उन्हें स्वतन्त्र निदेशक मण्डल के स्थान पर, अपने ही प्रशासनिक अधिकारियों के हवाले कर दिया था। वे कम्पनियां आज लगभग एक लाख करोड़ रुपये से भी अधिक के घाटे में पहुंच चुकी हैं।

यह कहना कदापि अनुचित न होगा, कि वितरण कम्पनियां घाटे में पहुंची नहीं, बल्कि सुनियोजित रुप से घाटे में पहुंचाई गई हैं। जिसके लिये ऊर्जा निगमों के कार्मिक सिर्फ इतना उत्तरदायी हैं, कि चाहे दहशत कहें या लालच, उन्होंने वहीं किया जो शासन द्वारा नियुक्त प्रबन्धन द्वारा उन्हें कहा गया। जहां तक कि मुझे याद है कि कम्पनी के प्रबन्धन एवं निदेशक मण्डल में नियुक्ति हेतु शासन द्वारा जारी “MoA” का पालन कभी भी नहीं हुआ। जहां पर योग्यता की आवश्यकता एवं उसकी उपयोगिता के महत्व के स्थान पर, अहंकार से उत्पन्न हठधर्मिता ही महत्वपूर्ण रही है। जिसके पीछे कहीं दूर-दूर तक जनहित एवं राष्ट्रहित नजर नहीं आता है। जिसके ही कारण विद्युत परिषद को तोड़कर बनाई गई कम्पनियां, आज मात्र राजनीतिक उद्योग बनकर रह गई हैं। जिसमें निगमों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने अपनी चापलूसी एवं राजनीतिक सम्पर्कों के माध्यम से मलाईदार पदों पर नियुक्ति प्राप्त कर, प्रबन्धन के रहमोकरम पर फेंके गये कुछ टुकड़ों के बदले, निगमों को भ्रष्टाचार के दलदल में कुछ इस कदर डुबो दिया है, कि इन वितरण कम्पनियों को कोई महामानव ही इस दलदल से बाहर ला सकता है।

यह एक कड़वी सच्चाई है कि जिस प्रकार से किसी डब्बे में हिला-हिलाकर अथवा ठोंक-ठोंककर सामग्री भरी जाती है, ठीक उसी प्रकार से प्रबन्धन एवं कतिपय कार्मिक संगठनों के पदाधिकारियों के अटूट गठबन्धन द्वारा ऊर्जा निगमों की जड़ों तक गहराई में भ्रष्टाचार को पहुंचाने हेतु आये दिन निगमों को हिला-हिला कर, कतिपय कार्मिकों का निलम्बन कर, निगमों की जड़ों तक भ्रष्टाचारियों को पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। डिब्बा हिलाने से भ्रष्टाचार के मामले में हल्के होकर डिब्बे की सतह पर आये अर्थात कतिपय उच्चाधिकारियों एवं राजनीतिज्ञों के साथ समन्वय स्थापित न करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों का निलंबन कर, भ्रष्टाचार उन्मूलन की अलख जलाये रखने का दिखावा मात्र किया जाता रहा है। जिसके विश्लेषण से एक ही बात स्पष्ट होती है कि चापलूसी एवं राजनीतिक दबाव में किसी अयोग्य अधिकारी को उक्त स्थान पर नियुक्त करना। यह सर्व विदित है कि जिस प्रकार से तत्कालीन राज्य विद्युत परिषद से कम्पनियों के गठन के उपरान्त गठित कम्पनियों के संचालन हेतु जारी “MoA” का पालन नहीं किया गया, ठीक उसी प्रकार से माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा याचिका सं0 79/1997 में दिये गये निर्देशों का पालन नहीं किया गया।

समय का उपभोक्ता साप्ताहिक समाचार पत्र के सम्पादक द्वारा अपने लेख में भी बेबाक के इस कथन की पुष्टि की है कि ऊर्जा निगमों के कार्मिक संगठनों ने “MoA” के क्रियान्वयन की बात तो दूर, उसके बारे में अपने सदस्यों के बीच कभी कहीं कोई जिक्र तक नहीं किया गया। जो स्वतः इस बात को प्रमाणित करता है कि कार्मिक संगठनों के अयोग्य पदाधिकारियों न किस प्रकार से ऊर्जा प्रबन्धन के हितों एवं अपने निहित स्वार्थों के प्रति किस कदर प्रतिबद्ध हैं। जिन्होंने प्रबन्धन के साथ मिलकर, वितरण कम्पनियों को घाटे के दलदल में पूर्णतः डुबो दिया है। आज पूरा प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश देख रहा है कि एक तरफ कुछ सेवा निर्वत्त अधिकारी-कर्मचारी, निगम मुख्यालयों के गेट पर, अपने हाथों में “We want justice” की तख्तियां लेकर फोटो खिंचवा रहे हैं, परन्तु वहीं दूसरी ओर ऊर्जा निगमों के नियमित अधिकारी, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले-लेकर मैदान छोड़कर भाग रहे हैं। यह कोई नहीं बता रहा, कि अपने सेवाकाल में निगमों को घाटे में धकेलने में कोई कोर-कसर न छोड़ने वाले एवं सुगमता से पेंशन लेने ने वाले इन कार्मिकों को किस बात का Justice चाहिये?

यक्ष प्रश्न उठता है कि क्या निगम मुख्यालयों के द्वारों पर, इन सेवानिर्वत्त एवं बाहरी लोगों के द्वारा नित्य विरोध प्रदर्शन के नाम पर आयोजित किये जाने वाला फोटोसेशन, ऊर्जा प्रबन्धन द्वारा लोकतान्त्रिक रुप से निजीकरण की औपचारिकता पूर्ण करने हेतु एक प्रायोजित प्रदर्शन मात्र है? जिसका वास्तविक उद्देश्य ही निजीकरण को सुगम बनाना मात्र है। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द! बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.

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