⚡ हाईकोर्ट ने कहा — बिना ठोस कारण JE को निलंबित करना गलत!
लखनऊ। यूपी पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) में कार्यरत जूनियर इंजीनियर अरविंद कुमार भारती के निलंबन पर हाईकोर्ट ने करारा तमाचा जड़ा है! हाईकोर्ट ने 16 अक्टूबर 2025 के निलंबन आदेश को स्थगित कर दिया है, यह कहते हुए कि “केवल प्रशासनिक कमियों के नाम पर कर्मचारी को निलंबित नहीं किया जा सकता।”
न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की एकल पीठ ने कहा कोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी की कि मामले में केवल ‘supervisory lethargy’ (पर्यवेक्षण में सुस्ती) का आरोप है, जो किसी major punishment का आधार नहीं बनता।
न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने स्पष्ट कहा कि विभाग ने न तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया और न ही ठोस कारण पेश किए —
“सिर्फ पर्यवेक्षण में कथित सुस्ती (Supervisory Lethargy) को आधार बनाकर निलंबन करना न्यायसंगत नहीं है। ऐसे आदेश न केवल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ हैं, बल्कि प्रशासनिक मनमानी का उदाहरण हैं।”


याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि JE को विभागीय पत्रों के माध्यम से हर दिन बिजली बकायेदारों से वसूली की रिपोर्ट देने का निर्देश मिला था, और उन्होंने लगातार लक्ष्य प्राप्त किया। इसके बावजूद विभाग ने “केवल औपचारिक कारणों” से निलंबन थोप दिया।
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याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट में बताया कि
JE को प्रतिदिन बिजली बकायेदारों से वसूली रिपोर्ट देने के आदेश मिले थे और उन्होंने हर लक्ष्य पूरा किया। इसके बावजूद विभाग ने उन्हें अचानक निलंबित कर दिया — वह भी बिना किसी ठोस आरोप और बिना चार्जशीट के!
🧾 कोर्ट का निर्देश:
- निलंबन आदेश तात्कालिक प्रभाव से स्थगित।
- विभाग तीन सप्ताह में काउंटर एफिडेविट दाखिल करे।
- जांच अधिकारी को निर्देश — तय समय में जांच पूरी करें।
- याचिकाकर्ता को जांच में सहयोग करना होगा।
कोर्ट ने कहा:
“प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि लगाए गए आरोप इतने गंभीर नहीं हैं कि उससे प्रमुख दंड (Major Punishment) दिया जा सके।”
अदालत ने निलंबन आदेश को stay कर दिया और निर्देश दिया कि जांच अधिकारी तय समयसीमा में जांच पूरी करें। साथ ही याचिकाकर्ता को जांच में सहयोग करने को कहा गया है।

जानकारी के अनुसार, अभियंता अरविंद भारती के लाइनमैन द्वारा राजस्व वसूली के तहत ₹17,000 से अधिक बकाया बिल पर विद्युत विच्छेदन की कार्रवाई की गई थी। यही नियमित प्रक्रिया उनके लिए सजा बन गई — प्रबंध निदेशिका ने इसे आधार बनाकर निलंबन का आदेश जारी कर दिया।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के Ajay Kumar Choudhary vs Union of India (2015) केस का हवाला देते हुए कहा कि “किसी कर्मचारी को बिना चार्जशीट तीन महीने से अधिक समय तक निलंबित रखना अनुचित है। यदि चार्जशीट नहीं दी गई तो निलंबन अपने आप समाप्त समझा जाएगा।”
अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी।
कानूनी टिप्पणी:
इस आदेश से स्पष्ट संदेश गया है कि विभाग मनमाने ढंग से निलंबन नहीं थोप सकता। बिना चार्जशीट और ठोस आरोपों के किसी JE या अधिकारी को “बलि का बकरा” बनाना अब आसानी से नहीं चलेगा।








