
खपत 10-20 यूनिट, बिल 7706 यूनिट – मुंशीपुलिया डिवीजन का ‘डेटा ब्लाइंड’ खेल बेनकाब
यह है बिजली विभाग का असली चेहरा और उसका मशहूर नारा – “उपभोक्ता देवो भवः”।
दरअसल, उपभोक्ता देवता नहीं, विभागीय गलियारों में बलि का बकरा है।
सावधान! अगर आपका मकान भी बंद रहता है, कभी-कभार ही आप उसमें निवास करते हैं, तो बिजली विभाग का “इतिहास” खुद कहता है – किसी भी दिन आपके नाम पर फर्जी हजारों यूनिट का बिल बन सकता है। देखिए हाल – एक साधारण उपभोक्ता दो पावर हाउसों की खींचतान में महीनों से पिस रहा है। जिनके घर अक्सर बंद रहते हैं, जिनकी खपत गिनी-चुनी यूनिट होती है, उन्हें भी विभाग कभी भी सैकड़ों का बिल हजारों में बदलकर थमा देता है।
👉 सवाल यही है – उपभोक्ता देवो भवः, या फिर उपभोक्ता ठगने का भावः?
बिजली विभाग का नारा है – “उपभोक्ता देवो भवः”। लेकिन हकीकत यह है कि उपभोक्ता आज विभागीय बाबुओं के लिए बस प्रयोगशाला का खरगोश बन गया है। मुंशीपुलिया डिवीजन का ताजा मामला इसका जीता-जागता उदाहरण है। एक ऐसा उपभोक्ता जिसकी मासिक खपत कभी 10, 20, 50 यूनिट से आगे नहीं बढ़ी, अचानक उसके बिल में 7706 यूनिट डाल दिए गए। सवाल सीधा है – क्या विभागीय सिस्टम इतना अंधा हो चुका है कि अपनी ही बिलिंग हिस्ट्री देखने की जहमत तक नहीं उठाता?
अधिशासी अभियंता महोदय से पूछना लाज़मी है – जब सारा डेटा आपके कंप्यूटर में मौजूद है, तो आपने उपभोक्ता हित में फाइल क्यों नहीं खोली? क्यों यह नहीं जांचा कि इतिहास में दर्ज दर्जनों महीनों की मामूली खपत के बाद अचानक हजारों यूनिट की रीडिंग असंभव है?
लखनऊ। “उपभोक्ता देवो भवः” का नारा देने वाला बिजली विभाग उपभोक्ताओं को ही महीनों से दफ्तरों के चक्कर लगवा रहा है। अमराई गांव निवासी उपभोक्ता राधेश्याम सिंह इसका ताजा उदाहरण हैं। लगभग छह महीने से बिल संशोधन के लिए मुंशीपुलिया डिवीजन के चक्कर लगाने के बावजूद समाधान नहीं हो सका।
तथ्य साफ हैं –
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मीटर की वास्तविक रीडिंग 359 यूनिट, लेकिन विभाग ने थोप दिया 7706 यूनिट का बिल।
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चिनहट एई (मीटर) ने रिपोर्ट में लिखा – मीटर डिफेक्टिव, एमआरआई संभव नहीं।
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इसके बावजूद मुंशीपुलिया डिवीजन के बाबू संदीप कनौजिया उपभोक्ता पर फर्जी बिल जमा करने का दबाव डाल रहे हैं और कनेक्शन काटने की धमकी तक दे रहे हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात – उपभोक्ता का बेटा आईएएस अधिकारी है, फिर भी बाबुओं का तानाशाही रवैया कायम है।
कैसे शुरू हुई परेशानी
राधेश्याम सिंह ने 14 जून 2023 को शिवपुरी पावर हाउस से कनेक्शन लिया था, जो अब हमराही पावर हाउस क्षेत्र में है। फरवरी 2025 में अचानक उपभोक्ता के बिल में 7706 यूनिट डाल दी गईं, जबकि उनकी वास्तविक खपत हमेशा 10, 20, 25 या अधिकतम 50 यूनिट के आसपास रही।
24 मार्च को सिर्फ 1 यूनिट दिखाकर नया बिल बनाया गया और देखते ही देखते उपभोक्ता पर ₹50,320 का बकाया चढ़ गया।
यहां एक अहम तथ्य छिपा नहीं रहना चाहिए—जब उपखंड अधिकारी, चिनहट ने बिल संशोधित किया था, उस समय उपभोक्ता के मकान में ताला लगा हुआ था। मीटर रीडिंग नहीं मिल सकी और विभाग ने लिस्ट से बिल संशोधित कर दिया।
यही नहीं, इस बात को स्वयं उपभोक्ता ने भी स्वीकार किया है।
लेकिन सवाल यह है कि जब वास्तविक रीडिंग उपलब्ध नहीं थी, तो क्या विभाग को मनमाने ढंग से हजारों यूनिट जोड़ने का अधिकार मिल जाता है?
👉 अगर हर बार “ताला” मिलने पर लिस्ट से बिल बनता रहा, तो उपभोक्ता का भविष्य क्या होगा—सचाई या सिर्फ विभाग की मनमानी?
मीटर रिपोर्ट और विभागीय खेल
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तत्कालीन सहायक अभियंता (मीटर), विद्युत प्रशिक्षण शाला, चिनहट ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा – मीटर डिफेक्टिव है, एमआरआई संभव नहीं।
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इसके बावजूद मुंशीपुलिया डिवीजन एमआरआई कराने पर जोर दे रहा है। सवाल यह उठता है कि जब आधिकारिक रिपोर्ट में ही मीटर को दोषपूर्ण बताया जा चुका, तो अब एमआरआई क्यों?
बाबू का दबाव
डिवीजन कार्यालय में कार्यरत कार्यालय सहायक संदीप कनौजिया पर आरोप है कि वह उपभोक्ता से बार-बार कनेक्शन काटने की धमकी देकर फर्जी बिल जमा करने का दबाव बना रहा है। यही नहीं, उसने विद्युत प्रशिक्षण शाला, चिनहट की रिपोर्ट को मानने से साफ इनकार कर दिया।
उपभोक्ता की दिक्कत
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मकान हमेशा बंद रहता है, खपत नगण्य है।
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बिल उपभोक्ता नियमित रूप से जमा करता रहा है।
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पुराने मीटर से 359 यूनिट ही निकलीं, फिर भी विभाग ने 7706 यूनिट का भारी-भरकम बिल थोप दिया।
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सोलर पैनल लगने से नया नेट मीटर भी लगाया जा चुका है।
🔥 सीधा सवाल अधिशासी अभियंता से
जब उपभोक्ता का कनेक्शन आपके ही डिवीजन से चल रहा है, तो उसकी पूरी बिलिंग हिस्ट्री आपके कंप्यूटर पर मौजूद है। क्या आपने कभी उपभोक्ता हित में उस हिस्ट्री को देखकर मामला सुलझाने की कोशिश की?
जिस उपभोक्ता की खपत 10, 20, 25 या 75 यूनिट के आसपास रही, उसकी रीडिंग अचानक 7000 यूनिट कैसे मान ली गई? आपका अनुभव और समझदारी इस समय कहां खो गई?
हम मानते हैं कि निजी दुख आपके कामकाज को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन जब आप अधिशासी अभियंता जैसी अहम कुर्सी पर बैठे हैं, तो आपका पहला कर्तव्य है – उपभोक्ता का हित। अफसोस, आपकी प्राथमिकता उपभोक्ता नहीं, बल्कि पत्रकारों को फंसाने की जुगत और बाबुओं की मनमानी बन गई है।
👉 सवाल यही है – क्या विभाग उपभोक्ता की सेवा करेगा या बाबुओं की धौंस का मंच बनकर रह जाएगा?
अगर उपभोक्ता देवो भवः का नारा सिर्फ पोस्टर तक सीमित रह गया है, तो यह नारा विभाग के लिए नहीं, बल्कि उपभोक्ताओं के लिए एक कड़वा मजाक बन चुका है।
उपभोक्ता राधेश्याम सिंह का संयोजन दिनांक 14 जून 2023 को हुआ था, तब से अभी तक का माहवार रिपोर्ट आप सभी खुद देख सकते है, किस – किस माह में कितना यूनिट खपट हो रही है, ताकि किसी भी तरह के संदेह की गुंजाइश न रहे।
गोमतीनगर/चिनहट खंड के उपभोक्ता की मुसीबत यहीं से शुरू हुई –
पिछली रीडिंग मात्र 156 यूनिट थी लेकिन विभाग ने वर्तमान रीडिंग 7706 यूनिट दर्ज कर दी।
📊 माहवार खपत गलत रीडिंग दर्ज होने तक रिपोर्ट (14 जून 2023 से मार्च 2025 तक)
क्रमांक | बिल माह / अवधि | पिछली रीडिंग | वर्तमान रीडिंग | यूनिट खपत (Diff) | अवधि (महीने) |
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1️⃣ | 14-जून-2023 से 05-जुलाई-2023 | 0 | 15 | 15 | आंशिक (≈ 20 दिन) |
2️⃣ | 05-जुलाई-2023 से 20-जुलाई-2024 | 15 | 87 | 72 | 12 महीने (वार्षिक) |
3️⃣ | 20-जुलाई-2024 से 04-अगस्त-2024 | 87 | 89 | 2 | 15 दिन |
4️⃣ | 04-अगस्त-2024 से 17-सितंबर-2024 | 89 | 107 | 18 | 1 महीना |
5️⃣ | 17-सितंबर-2024 से 16-अक्टूबर-2024 | 107 | 109 | 2 | 1 महीना |
6️⃣ | 15-नवंबर-2024 से 14-दिसंबर-2024 | 121 | 136 | 15 | 1 महीना |
7️⃣ | 14-दिसंबर-2024 से 03-जनवरी-2025 | 136 | 156 | 20 | ≈ 20 दिन |
8️⃣ | 03-जनवरी-2025 से 22-फरवरी-2025 | 156 | 7706 | 7550 | 2 महीने |
9️⃣ | 22-फरवरी-2025 से 24-मार्च-2025 | 7706 | 7707 | 1 | 1 महीना |
🔟 | 24-मार्च-2025 से 16-अप्रैल-2025 | 7707 | 7707 | 0 | 1 महीना |
✅ मुख्य अवलोकन:
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जुलाई 2023 से जनवरी 2025 तक खपत बहुत कम (2–20 यूनिट प्रति माह) रही।
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जनवरी–फरवरी 2025 में अचानक 7550 यूनिट की खपत दिखाई दे रही है, जो असामान्य है और जांच का विषय होना चाहिए।
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उसके बाद फिर से खपत सामान्य (1 या 0 यूनिट) हो गई।
📌 इसका अर्थ है कि मीटर रीडिंग या बिलिंग में गलती (Spike) संभव है। इस प्रकार की रिपोर्ट उपभोक्ता के हित में है और बिलिंग विभाग को सत्यापन हेतु दी जा सकती है।