
हापुड़-गढ़ में विद्युतीकरण के काम अटके — टेंडर प्रक्रिया पर फिर उठे सवाल!
ऊर्जा निगम की टेंडरबाज़ी ने एक बार फिर जनहित के कामों पर ब्रेक लगा दिया है। अप्रैल और जुलाई में खुले टेंडर आज तक कार्यादेश तक नहीं पहुंचे। लाखों रुपये के ये टेंडर कागज़ों की राजनीति और फाइलों की धूल में उलझे पड़े हैं। पिछले साल टेंडर घोटाले में एसई से लेकर एक्सईएन, एसडीओ तक निलंबित हुए थे, फिर भी हालात जस के तस हैं। ठेकेदार आरोप लगा रहे हैं कि बिडिंग प्रक्रिया ही संदिग्ध है, जबकि निगम के अफसर सब “नियमों के मुताबिक” बताकर बचाव में जुटे हैं।
🔹 16 अप्रैल के टेंडर — अब तक “एग्रीमेंट लटका”
हापुड़ और गढ़ डिवीजन में जर्जर खंभों को बदलने के लिए 16 अप्रैल को करीब पाँच-पाँच लाख रुपये के टेंडर खोले गए।
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ठेकेदारों का दावा: सभी कागज़ पूरे, ऊपर से अप्रूवल भी मिल चुका।
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अधिकारियों का जवाब: कागज़ उपलब्ध नहीं!
👉 सवाल है — कागज़ पूरे हैं या नहीं? या फिर ये बहाना किसी “खास ठेकेदार” के लिए समय खींचने का खेल है?
🔹 30 जुलाई का टेंडर — ट्रांसफार्मर रखरखाव भी अधर में
गढ़ डिवीजन में ट्रांसफार्मर मरम्मत और रखरखाव का टेंडर 30 जुलाई को खोला गया।
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काम आज तक शुरू नहीं।
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जबकि हापुड़ में ट्रांसफार्मर फुंकने पर इंजीनियर तक निलंबित हो चुके हैं।
👉 जब बार-बार ट्रांसफार्मर फुंक रहे हैं तो रखरखाव का काम किसके इशारे पर रोका गया है?
🔹 70 लाख के टेंडर पर गड़बड़ी के आरोप
गढ़ और पिलखुवा डिवीजन में हाल ही में खुले 70 लाख के डिपोजिट कार्यों के टेंडर में कई गड़बड़ियाँ सामने आईं।
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पिलखुवा टेंडर 22 जुलाई को खुलना था, लेकिन 19 दिन बाद 11 अगस्त को खोला गया।
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चार बिड में से दो खारिज, बाकी दो में से कम रेट वाली फर्म को ठेका।
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नियम के मुताबिक, जब सिर्फ दो बिड बचीं तो तिथि बढ़ाई जानी चाहिए थी — लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
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गढ़ और पिलखुवा — दोनों टेंडर एक ही फर्म को, लेकिन रेटों में भारी अंतर।
👉 क्या ये “कॉइंसिडेंस” है या फिर “मैनेजमेंट का मैजिक”?
🔹 पुराना इतिहास, नए सवाल
याद दिला दें कि पिछले साल हापुड़ ऊर्जा निगम की छवि पर टेंडर घोटाले ने बड़ा दाग लगाया था।
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एसई से लेकर एक्सईएन, एसडीओ, अवर अभियंता तक निलंबित हुए थे।
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टेंडर की फाइलें एमडी कार्यालय तक तलब हुई थीं।
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संविदा कर्मचारी और सीए तक पर कार्रवाई हुई थी।
👉 सवाल यही उठता है — इतने घोटालों के बाद भी टेंडर प्रक्रिया साफ क्यों नहीं हो पा रही?
🔹 निगम का बचाव
“आवश्यक दस्तावेज पूरे न होने के कारण कार्यादेश जारी नहीं हो पाए हैं। निगम के स्तर से कोई प्रक्रिया अधूरी नहीं है। गढ़ और पिलखुवा डिवीजन में डिपोजिट कार्यों के टेंडर पूरी तरह नियमानुसार हुए हैं।”
— एस.के. अग्रवाल, अधीक्षण अभियंता
⚡ तीखा सवाल
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क्या निगम “नियमों की आड़” में खास फर्मों को फायदा पहुंचा रहा है?
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क्या जनता का पैसा फिर से टेंडरबाज़ी के खेल में बर्बाद हो रहा है?
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विद्युतीकरण के काम पूरे होंगे भी या फिर कागज़ों पर ही “रोशनी” दिखेगी?
👉 जनता जवाब चाहती है — काम कब होगा, बिजली कब आएगी, और टेंडरों की राजनीति कब रुकेगी?
👉 सवाल यही है—विद्युतीकरण के काम कब होंगे पूरे? या टेंडरों की फाइलें फिर किसी “खास” के दराज़ में धूल खाएंगी?
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