निजीकरण की भयावह हकीकत: 76,500 बिजली कर्मियों की नौकरी पर संकट

लखनऊ, 21 अगस्त।
उत्तर प्रदेश विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि यदि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किया गया तो लगभग 76,500 कर्मचारियों और संविदा कर्मियों की नौकरी पर संकट आ जाएगा। समिति ने कहा कि निजीकरण कर्मचारियों व उनके परिवारों के लिए “अंधेरे का संदेश” है, जिसे किसी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।

समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि पूर्वांचल निगम में लगभग 17,500 और दक्षिणांचल निगम में 10,500 नियमित कर्मचारी कार्यरत हैं। इसके अलावा दोनों निगमों में करीब 50 हजार संविदा कर्मी सेवाएं दे रहे हैं। निजीकरण की स्थिति में कर्मचारियों को तीन विकल्प दिए जा रहे हैं— निजी कंपनी में नौकरी स्वीकार करना, अन्य निगमों में स्थानांतरण या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति। समिति ने कहा कि ये विकल्प कर्मचारियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हैं।

संघर्ष समिति ने दिल्ली और चंडीगढ़ के उदाहरण देते हुए कहा कि निजीकरण के बाद वहां भारी संख्या में कर्मचारियों ने समय से पहले सेवानिवृत्ति ले ली। दिल्ली में वर्ष 2002 में निजीकरण के एक साल के भीतर 45% कर्मचारी नौकरी छोड़ने पर मजबूर हुए। इसी तरह चंडीगढ़ में फरवरी 2025 में निजीकरण के पहले ही दिन 40% कर्मचारी रिटायरमेंट ले चुके हैं।

समिति ने स्पष्ट किया कि यदि यूपी में भी यही प्रयोग किया गया तो हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी छिन जाएगी। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों का नारा है— “सेवा करेंगे और हक भी लेंगे।”

आंदोलन के 267वें दिन प्रदेशभर में कर्मचारियों ने व्यापक प्रदर्शन कर निर्णायक संघर्ष का संकल्प लिया। समिति ने कहा कि यह लड़ाई केवल कर्मचारियों की नहीं बल्कि उपभोक्ताओं के अधिकार और राज्य के ऊर्जा भविष्य की भी लड़ाई है।

सेवा करेंगे और हक भी लेंगे – संघर्ष समिति

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