
मित्रों नमस्कार! अधिकांश लोगों को यह ज्ञात नहीं है कि सरकारी विभागों में सेवा संघों की मान्यता किस प्रकार से दी जाती है और उनके उत्तरदायित्व क्या-क्या हैं। आज मैं युवा पीढ़ी का उत्तर प्रदेश (सेवा संघों को मान्यता) नियमावली-1979 के कुछ मुख्य बिन्दुओं से परिचय कराना चाहता हॅूं।
इस सम्बन्ध में बेबाक अंक सं० 52/07.12.2022 द्वारा पहले भी सभी साथियों को संज्ञानित कराने का प्रयास किया गया था। मित्रों उपरोक्त नियमावली के तहत ही सेवा संघों का गठन एवं पंजीकरण होता है। जहां तक ट्रेड यूनियनों की बात है, तो वे सिर्फ मजदूरी के कार्य करने वालों के लिये हैं। शेष सभी सेवा संघों के रुप में पंजीकृत हैं। उपरोक्त नियमावली-1979 के बिन्दु-2 (ख) के अनुसार सरकारी सेवक से तात्पर्य यह है कि जिस पर ‘‘उ0प्र0 सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956’’ के सभी या कोई उपबन्ध लागू होते हैं। बिन्दु-4 (क) के अनुसार सेवा संघ अपने सदस्यों के सामान्य हित् से सम्बन्धित किसी मामले के सिवाय किसी अन्य मामले के सम्बन्ध में कोई भी अभ्यावेदन या शिष्ट मण्डल नहीं भेजेगा। बिन्दु-4 (ख) के अनुसार सेवा संघ किसी सेवा सम्बन्धी मामले में अलग-अलग सरकारी सेवक (स्मरण रहे) का पक्ष नहीं लेगा या समर्थन नहीं करेगा। बिन्दु-4 (ड) सेवा संघ कोई ऐसा कार्य न करेगा और न कोई ऐसा करने में सहायता देगा, जिसको यदि किसी सेवक द्वारा किया जाये तो ‘‘उ0प्र0 सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956’’ के किसी उपबन्ध का उल्लंघन हो। बिन्दु-4 (ढ) सेवा संघ सामान्य और सुचारु रुप से सरकारी कार्य-संचालन में बाधा डालने या अवरोध उत्पन्न करने की दृष्टि से अपने सदस्यों को हड़ताल करने या धीरे काम करने या कोई अन्य तरीका अपनाने के लिये न प्रेरित करेगा, न उकसायेगा, न भड़कायेगा, न उत्तेजित करेगा, न सहायता और न सहयोग देगा। बिन्दु-4 (ण) सेवा संघ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से किसी ऐसे कार्य में भाग नहीं लेगा जिससे कि किसी सरकारी सेवक को कार्यालय आने या अपने पदीय कर्तव्य का पालन करने मे अभित्रास या अवरोध या रुकावट हो। बिन्दु-5 (ग) संघ की सदस्यता कार्यरत् सरकारी कर्मचारियों के एक सुभिन्न प्रवर्ग तक सीमित हो (एक ही संवर्ग) और इसमें उस प्रवर्ग की कुल सदस्य संख्या के 50 प्रतिशत से अधिक का प्रतिनिधित्व हो। बिन्दु-5 (घ) संघ किसी धर्म, मूलवंश, जाति या सम्प्रदाय से या ऐसे धर्म, मूलवंश, जाति या सम्प्रदाय के भीतर किसी वर्ग या पंथ के आधार पर न बनाया गया हो। बिन्दु-5 (ङ) कोई ऐसा व्यक्ति जो कार्यरत् सेवक न हो, संघ के कार्यकलापों से सम्बद्ध न हो। बिन्दु-5 (च) पदाधिकारी जिसके अन्तर्गत संघ की कार्य समिति के सदस्य भी हैं, केवल सदस्यों में से हों (सेवा निवृत्त कर्मचारियों को छोड़ते हुये) नियुक्त किये जायेंगे।
उपरोक्त के सापेक्ष उ0प्र0 शासन के शासनादेश के बिन्दु-2 के अनुसार जिन मान्यता प्राप्त संगठनों में सेवानिवृत्त सरकारी सेवकों को पदाधिकारी बनाया गया है, के ज्ञापनों पर विचार न किया जाये और न ही उन्हें वार्ता हेतु आमन्त्रित किया जाये। उपरोक्त नियमावली से स्पष्ट है कि सेवा संगठनों के नाम पर ‘‘उ0प्र0 सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956’’ एवं सेवा संघों को मान्यता प्रदान करने की ‘‘नियमावली-1979’’ की घोर अवहेलना करते हुये, कतिपय बाहरी तत्वों के द्वारा कार्मिक संगठनों के नियमित पदाधिकारियों के साथ कथित अवैध गठबन्धन करके, एक सोची समझी साजिश के तहत, सभी को ट्रेड यूनियन के सदस्यों के रुप में आचरण एवं आन्दोलन करने के लिये उकसाकर, उर्जा निगमों के औद्योगिक वातावरण को दूषित करते हुये, अनिवार्य सेवाओं को बार-बार बाधित कर, सरकार एवं प्रबन्धन को ब्लैकमेल करने का प्रयास किया जाता है। परन्तु इसी के साथ यह कहना भी अनुचित न होगा कि जिस प्रकार से कार्मिक संगठन, सेवा संघों को मान्यता प्रदान करने की ‘‘नियमावली-1979’’ की घोर अवहेलना और राजनीतिक दलों के समान गतिविधियां चलाते हुये आचरण कर रहे हैं। जिसे ऊर्जा निगमों का प्रबन्धन लगातार नजरंदाज करते हुये, लगातार निगमों का औद्योगिक वातावरण दूषित करने की अनुमति दे रहा है।
उससे यह प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं, प्रबन्धन की भी इसमें मजबूरी एवं रजामंदी है। जिसमें यह दर्शाना है कि ऊर्जा निगमों का प्रस्तावित निजीकरण एक तरफा न होकर, लोकतान्त्रिक रुप से कार्मिक के विरोध एवं उनके हितों की रक्षा करने के वादों के साथ कराया जा रहा है। वर्ष 2022 में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा ऊर्जा निगमों में कथित कार्य बहिष्कार के कारण उत्पन्न आराजकता का स्वतः संज्ञान लिये जाने एवं यह टिप्पणी “The aforesaid minutes of the meeting gives us an impression that the employees of power department are arm-twisting the department having little regard that disruption of essential services is a very serious issue and is not to be tolerated. The situation therefore needs to be dealt with in a firm manner.” किये जाने के बाद, चहुं ओर एक अन्जान सी दहशत भरी खामोशी, तब से अब तक छाई हुई है।
अतः ऐसा प्रतीत होता है कि उपरोक्त आदेशों का हवाला देते हुये, कतिपय बाहरी एवं सेवानिवृत्त पदाधिकारियों के साथ प्रबन्धन की मिलीभगत एवं सहमति से निगमों के मुख्यालयों पर भोजनावकाश के समय एवं सांय छुट्टी के बाद शान्तिपूर्ण आंदोलन करने की औपचारिकता का निर्वाह किया जा रहा है। अर्थात यह कहना कदापि अनचित न होगा, कि कहीं न कहीं यह आन्दोलन प्रबन्धन द्वारा प्रायोजित है। जिसका मूल उद्देश्य ही शान्तिपूर्ण तरीके से, क्रेता की ही शर्तों एवं उसकी आवश्यकतानुसार विद्युत वितरण कम्पनियों का, निजीकरण कराना है। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द! बी0के0शर्मा महासचिव। PPEWA. M.No. 9868851027.