सार्वजनिक उद्योगों को घाटे के नाम पर, बेचने के लिए, खरीददार की शर्तों के अनुसार सुदृढ़ कर, दुल्हन की तरह सजाने में लगा विभाग…

मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता… एक तरफ वितरण निगमों के घाटे के कारण प्रथम चरण में पूर्वान्चल एवं दक्षिणांचल वितरण निगमों के निजीकरण की प्रक्रिया चल रही है, तो वहीं दूसरी ओर इनके सुदृढ़िकरण की प्रक्रिया भी जोरों से चल रही है। जिसमें RDSS के तहत हजारों करोड़ रुपये के कार्य रात-दिन कराये जा रहे हैं।

सामान्यतः किसी भी संस्थान को बेचा तब जाता है जब उसके खर्चे अनेक हों, पर खर्च करने के लिये पैसा शेष न हो। परन्तु यहां पर एक ओर लगातार बढ़ते घाटे को वहन कर पाने में असमर्थता के कारण निजीकरण की प्रक्रिया आरम्भ की जा रही है, तो वहीं दूसरी ओर उसी संस्थान के (Strengthening) सुदृढ़िकरण के कार्य पूरे जोर-शोर से कराये जा रहे हैं एवं उसमें शिथिलता बरतने वाले अधिकारियों के उत्तरदायित्व निर्धारित किए जा रहे हैं।

नवीनतम स्थिति यह है कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के मुख्यालय समेत 21 जिलो में नियमित एवं संविदा कर्मियों की उपस्थिति के लिए उपकेन्द्रों औऱ कार्यालय पर बायोमैट्रिक्स उपस्थिति में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित मोबाइल संचालित, फेशियल रिकॉग्निशन अटेंडेंस सिस्टम लगाये जाने की तैयारी चल रही है। अधिकारियों औऱ कर्मचारियों को अपने ड्यूटी के समय कार्यस्थल पर उपस्थित होकर बायोमैट्रिक्स हाजिरी लगानी होगी। जिसके लिये चयनित कम्पनी को कार्य आरम्भ करने के लिये आशय पत्र जारी कर दिये गये हैं।

कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि सम्भावित खरीददार, प्रबंधन के लिए इतना विशेष एवं प्रिय है, कि उसके लिये पहले RDSS योजना के तहत वितरण निगम की विद्युत प्रणाली सुदृढ़ करने के साथ-साथ, बायोमैट्रिक्स उपस्थिति हेतु उन्नत तकनीक युक्त, अटेंडेंस सिस्टम लगाकर, हस्तान्तरित करने हेतु दुल्हन की तरह से सजाया जा रहा है। जनता का धन तो हम सभी की बपौती है चाहे जहां और जैसे इस्तेमाल करें, कोई भी बोलने वाला नहीं है।

ऐसा प्रतीत होता है कि सम्भावित खरीददार के प्रतिनिधि लगातार वितरण निगमों पर बारीकी से नजर बनाये हुये हैं कि कहीं एक कील की भी गुंजाईस हो, तो उसे सरकारी खर्चें पर लगवाने के लिये कृत संकल्प हैं। जबकि घाटे में चल रहे उद्योग का स्थानान्तरण यथा स्थिति में होता है। जहां तक कि कार्मिकों की हाजिरी की बात है तो शायद ही कुछ कार्मिक हों जोकि निर्धारित 8 घण्टे से कम कार्य करते हों। अन्यथा चाहे अधिकारी हों या कर्मचारी सभी के सभी 10 से 20 घण्टे तक लगातार कार्य करते हैं और प्रोत्साहन/प्रेरणा पाने के नाम पर उच्चाधिकारियों से लगातार डांट खाकर अपमानित होते रहते हैं।

यक्ष प्रश्न उठता है कि जब वितरण निगमों के अधिकारी एवं कर्मचारी रात-दिन 10 से 20 घण्टे तक कार्य करते हैं तो उपरोक्त उच्च स्तर की नवीन तकनीक युक्त अटेंडेंस सिस्टम की उपयोगिता क्या है? क्या इसके बाद VC में प्रबन्धन एवं उनके वरदहस्त अधिकारियों के द्वारा शेष समय का हिसाब मांगा जायेगा कि कार्य के अतिरिक्त शेष अवधि में कब और क्या किया? हो सकता है कि इसके पीछे प्रबन्धन की यह दूरदृष्टि हो कि इतने दबाव में भी, इश्कबाजी फर्मा रहे लोगों पर बारीक नजर रखी जा सके। अथवा खुद के पास खाने के लिये दाने नहीं, मगर दूसरों को कारोबार देने में हम किसी से भी कम नहीं, दर्शाना एवं उसमें हिस्सेदारी पाना है।

राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!

-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.

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