⚡ दो पहलू : वर्टिकल व्यवस्था के फायदे और खतरे
उपभोक्ता सेवा सुधार का दावा या नई उलझन की शुरुआत?
वर्टिकल व्यवस्था को पूरी तकनीकी और प्रशासनिक तत्परता के साथ लागू किया गया, तो उपभोक्ताओं के हित में यह कदम प्रदेश की बिजली व्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। वर्टिकल व्यवस्था उपभोक्ता सेवा सुधार की दिशा में ‘करंट से करेक्शन’ की शुरुआत साबित हो सकती है, लेकिन यदि समन्वय और निगरानी तंत्र मजबूत नहीं हुआ, तो यह व्यवस्था उपभोक्ता और विभाग — दोनों के लिए नई समस्या का कारण भी बन सकती है।
लखनऊ। ऊर्जा विभाग द्वारा प्रदेश में शुरू की गई वर्टिकल व्यवस्था को लेकर अब सवालों का दौर शुरू हो गया है। जहाँ विभाग इसे उपभोक्ता सेवा सुधार की दिशा में बड़ा कदम बता रहा है, वहीं कई जिलों में उपभोक्ता और कर्मचारी दोनों ही इस नई प्रणाली से असंतुष्ट नज़र आ रहे हैं।
🔷 पहला पहलू : सुधार और पारदर्शिता की दिशा में कदम
उत्तर प्रदेश की बिजली व्यवस्था में शुरू की गई वर्टिकल व्यवस्था को लेकर इस समय विभागीय गलियारों से लेकर उपभोक्ता मंचों तक चर्चाएँ तेज हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि वर्टिकल व्यवस्था से बिजली आपूर्ति और शिकायत निस्तारण की प्रणाली ज्यादा संगठित और जिम्मेदार बनेगी। अब वितरण कार्य अलग-अलग शाखाओं में बाँटा गया है — जैसे कंज्यूमर सर्विस, मीटरिंग, मेंटेनेंस और रेवेन्यू रिकवरी — ताकि हर स्तर पर जिम्मेदारी स्पष्ट रहे। एक ओर ऊर्जा विभाग इसे उपभोक्ता हित में बड़ा सुधार बता रहा है, वहीं दूसरी ओर कर्मचारी संगठन और उपभोक्ता वर्ग इसे “जवाबदेही का भ्रम” मान रहे हैं।

मध्यांचल डिस्कॉम के प्रबन्ध निदेशिका रिया केजरीवाल ने बताया कि “वर्टिकल व्यवस्था से हर अधिकारी अपने क्षेत्र के उपभोक्ताओं के प्रति सीधे जवाबदेह होगा। शिकायत समाधान की गति बढ़ेगी, सेवा पारदर्शी होगी और तकनीकी जवाबदेही तय होगी और बिजली आपूर्ति में पारदर्शिता बढ़ेगी।”
विभाग का दावा है कि जहाँ यह व्यवस्था लागू हुई है, वहाँ
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ट्रिपिंग में 25–30% कमी,
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फॉल्ट रिपेयर समय में सुधार,
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और उपभोक्ता संतुष्टि रेटिंग में वृद्धि दर्ज की गई है। स्मार्ट मीटरिंग और ऑनलाइन मॉनिटरिंग के ज़रिए ‘रियल टाइम सर्विस ट्रैकिंग’ को भी इस व्यवस्था से जोड़ा गया है।
उन्होंने दावा किया कि इस व्यवस्था के लागू होने के बाद राजधानी लखनऊ समेत कई क्षेत्रों में ट्रिपिंग की शिकायतों में कमी आई है और मीटरिंग व बिलिंग प्रक्रियाओं में तेजी दर्ज की गई है।
हालांकि, UPPCL मीडिया की पड़ताल में सामने आया कि जहाँ यह प्रणाली पहले से लागू है, वहाँ हालात उतने सकारात्मक नहीं हैं। कई जिलों के उपभोक्ताओं ने बताया कि फॉल्ट रिपेयर और शिकायत समाधान में अब देरी बढ़ गई है, क्योंकि कार्य का विभाजन तो हुआ है लेकिन संचालन के स्तर पर तालमेल की भारी कमी बनी हुई है।
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि “वर्टिकल सिस्टम से विभागीय जिम्मेदारियों में भ्रम पैदा हो गया है।” अब यह तय करना कठिन है कि किसी तकनीकी खराबी या बिलिंग विवाद की जिम्मेदारी किस अधिकारी या इकाई की है।
सूत्रों के अनुसार, कुछ ज़िलों में यह भी पाया गया है कि मानव संसाधन और उपकरणों की कमी के कारण वर्टिकल व्यवस्था का सुचारु संचालन नहीं हो पा रहा। फीडर स्तर पर कर्मचारियों की संख्या कम होने से फॉल्ट सुधारने में देरी और उपभोक्ताओं में असंतोष बढ़ा है।
मध्यांचल डिस्कॉम के वाणिज्य निदेशक योगेश कुमार ने कहा कि “नई व्यवस्था अभी ट्रायल चरण में है। शुरुआती चुनौतियाँ सामने आ रही हैं, पर लंबी अवधि में इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को तेज, जवाबदेह और पारदर्शी सेवा देना है।”
🔶 दूसरा पहलू : व्यवस्था पर उठते सवाल
हालाँकि ज़मीनी स्तर पर तस्वीर पूरी तरह उजली नहीं है। जिन जिलों में वर्टिकल व्यवस्था पहले से लागू है, वहाँ शिकायतों का निस्तारण समय बढ़ा, स्टाफ की कमी, और अधिकारियों के बीच तालमेल का अभाव गंभीर समस्या बन चुका है।
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि “यह व्यवस्था पारदर्शिता नहीं, बल्कि भ्रम की स्थिति पैदा कर रही है।”
अब उपभोक्ता यह तक नहीं समझ पाता कि उसकी समस्या के लिए जिम्मेदार अधिकारी कौन है — एसडीओ, जूनियर इंजीनियर या निजी एजेंसी का कर्मचारी।
⚖️ निष्कर्ष : दिशा सही, पर क्रियान्वयन में ईमानदारी जरूरी
वर्टिकल व्यवस्था का विचार आधुनिक और प्रबंधन दृष्टि से उपयोगी है।
यह बिजली व्यवस्था को कर्मचारी-आधारित से सिस्टम-आधारित बनाता है — जो सिद्धांत रूप में उपभोक्ता हित में है।
लेकिन यदि इसे केवल “संरचनात्मक बदलाव” तक सीमित रखा गया, तो यह एक और कागज़ी सुधार योजना बनकर रह जाएगी।
UPPCL मीडिया का मत:
“व्यवस्था का ढाँचा नहीं, उसका क्रियान्वयन उपभोक्ता के हित तय करेगा।”
विभागीय बदलावों की दिशा सही है — बशर्ते इसे केवल “कागज़ी सुधार” न रहने दिया जाए। यदि वर्टिकल व्यवस्था अपने तय उद्देश्यों के अनुसार चलती रही
वर्टिकल व्यवस्था को पूरी तकनीकी और प्रशासनिक तत्परता के साथ लागू किया गया, तो उपभोक्ताओं के हित में यह कदम प्रदेश की बिजली व्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। वर्टिकल व्यवस्था उपभोक्ता सेवा सुधार की दिशा में ‘करंट से करेक्शन’ की शुरुआत साबित हो सकती है, लेकिन यदि समन्वय और निगरानी तंत्र मजबूत नहीं हुआ, तो यह व्यवस्था उपभोक्ता और विभाग — दोनों के लिए नई समस्या का कारण भी बन सकती है।
📰 UPPCL मीडिया संवाददाता | लखनऊ








