ऊर्जा निगम कभी भी घाटे में नहीं रहेंगे…. यदि वास्तव में ऊर्जा निगमों को लाभ में लाना है, तो राजनीतिक Welfare पर लगाम एवं विद्युत अधिकारियों की तरह, नियुक्त बाहरी प्रबन्धन (प्रशासनिक अधिकारियों) के उत्तरदायित्व निर्धारित करने ही होंगे…

सेवानिवृत्त आई.ए.एस अधिकारी परिमल रायके बिजली विभाग में सुधार के लिए निजीकरण को ही एकमात्र रास्ता बताने पर, श्री बी0के0शर्मा महासचिव PPEWA की चुनौती कि ऊर्जा निगमों से जुड़े राजनीतिक Welfare पर लगाम लगाई जाये एवं नियुक्त आई.ए.एस. प्रबन्धन के उत्तरदायित्व निर्धारित कर दिये जाये, तो वितरण कम्पनियां रातो-रात घाटे से बाहर आ जायेंगी।

मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता। चंडीगढ़ बिजली विभाग के निजीकरण को लेकर चल रही चर्चा के बीच सेवानिवृत्त आई.ए.एस अधिकारी परिमल राय जी ने वर्ष 2015 से 2018 तक चंडीगढ़ के प्रशासक के सलाहकार के रूप में बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण, नागरिक सुधारों और जनसेवा के क्षेत्र में कई प्रमुख पहल की थी। कहां जाता है कि इससे पहले, एन.डी.एम.सी निजी विद्युत वितरण कम्पनी दिल्ली के अध्यक्ष के रूप में वर्ष 2007 से 2011 तक उन्होंने नई दिल्ली के विद्युत ट्रांसमिशन और वितरण नेटवर्क के 20 वर्षीय आधुनिकीकरण का नेतृत्व किया। विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में उनके नेतृत्व ने शहरी विकास, बिजली बुनियादी ढांचे और शासन सुधारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनका यह कहना कि चंडीगढ़ बिजली विभाग की कार्यक्षमता में सुधार के लिए निजीकरण ही एकमात्र रास्ता है… पूर्णतः एकतरफा, भ्रामक एवं निजी कम्पनियों के हित में निहित स्वार्थ से प्रभावित है। बिना तथ्यों का विश्लेषण किये, भारत सरकार द्वारा प्रदत्त असीम शक्तियों को धता बताते हुये, निहित स्वार्थ में निजी कम्पनी का गुणगान करने के समान है…. जिसका प्रमाण है उनका यह कथित बयान कि आरपी-संजीव गोयनका ग्रुप की कंपनियों के साथ हुए, किसी भी निजीकरण में कर्मचारियों को हमेशा बेहतर लाभ मिला है।

ऐसे मामलों में कभी कोई नकारात्मक बात सामने नहीं आई, जो इस प्रक्रिया को रोकने का कारण बन सके। उनके अनुसार वर्तमान में, कई मुद्दों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, जैसे फॉल्ट डिटेक्शन, लोड बढ़ाना (जिसे तेजी से लागू करने की जरूरत है) और सुरक्षा संबंधी चिंताएं। बिजली प्रतिष्ठानों की सुरक्षा और बिजली स्टेशनों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। इन समस्याओं का समाधान निजीकरण के माध्यम से प्रभावी ढंग से किया जा सकता है, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ मिलेगा। उन्होंने आगे कहा कि निजीकरण बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण और पुनर्निर्माण, प्रौद्योगिकी के समावेश, सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं के कार्यान्वयन, मानव संसाधन के कौशल विकास और ग्राहक केंद्रित दृष्टिकोण के विकास के लिए निवेश सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण है। परिमल साहब का उपरोक्त विचार तथ्यों पर आधारित नहीं है। क्योंकि आये दिन, सरकार उपरोक्त कार्यों के लिये ही विभिन्न योजनओं के तहत हजारों करोड़ों का अनुदान देती है, जिसको लागू कराने का उत्तरदायित्व भी IAS प्रबन्धन का ही होता है। परन्तु शायद उन योजनाओं के हश्र को परिमल साहब अच्छी तरह से जानते हैं, इसीलिये उन पर मौन रहते हुये सीधे निजीकरण की उपयोगिता की ही वकालत कर रहे हैं। उनका अनुभव ऐसे क्षेत्र का रहा है जो स्वतः ही विशेष दर्जा प्राप्त (केन्द्र शासित प्रदेश) रहे हैं। यदि इनकी तुलना देश के अन्य राज्यों, विशेष तौर पर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से ही की जाये, तो आंखें खुली की खुली रह जायेंगी। जिसका छोटा सा प्रमाण है आये दिन RDSS योजना के तहत बदले जाने वाले LT AB Cable, Overhead HT Line के Conductor एवं विद्युत उपकरण, जिनकी औसत आयु 30 वर्ष होती है। यदि इस बात की जांच की जाये कि आज RDSS योजना के तहत बदले जाने वाली जर्जर सामग्री, कब स्थापित हुई थी और किस कारण से क्षतिग्रस्त हुई थी, तो सारी की सारी कहानी, एक बार में ही समझ में आ जायेगी।

जहां तक बात है एन.डी.एम.सी निजी विद्युत वितरण कम्पनी दिल्ली की तो उस कम्पनी ने ट्रांसमिशन और वितरण नेटवर्क के 20 वर्षीय आधुनिकीकरण का कार्य अगले 20 वर्षों तक लाभ कमाने के लिये ही किया था। जबकि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में चाहे DDUGJY-10, 11, 12 New, Saubhagya, ADB अब RDSS के नाम से लाखों करोड़ की योजनाओं के तहत, जनहित के नाम पर, विद्युतीकरण एवं सुदृढ़िकरण के कार्य राजनीतिक Welfare के रुप में कराये गये हैं। जिनमें सभी ने (चाहे प्रबन्धन हो या कार्मिक) कड़ीबद्ध होकर, अपने-अपने हित साधने में कहीं कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। जिसका जीता जागता प्रमाण है HT AB Cable का लगते ही खराब हो जाना। जोकि अब जगह-जगह Scrap रुप में पड़ी हुई है। विद्युत चोरी से बचाव के लिये प्रयुक्त LT AB Cable एवं उसकी Accessories की गुणवत्ता कुछ इस प्रकार की है, कि वो लगते ही खराब हो जाती है। परिवर्तकों की कहानी भी ऐसी ही है कि 10 MVA की Body में 8 MVA के परिवर्तक, गुणवत्ता की जांच में सफल होने के बाद, 10 MVA की क्षमता में क्रय किये जाते हैं। वितरण निगमों के तराजू अर्थात विद्युत मीटर की स्थिति यह है कि आये दिन कभी किसी कम्पनी के, तो कभी किसी कम्पनी के मीटर लगाये जाने का निर्णय लिया जाता है। अर्थात ऊर्जा प्रबन्धन वितरण निगमों से ज्यादा, विद्युत मीटर उद्योगों के भविष्य के प्रति चिन्तित है। जांच समितियों का मूल कार्य ही भ्रष्टाचारियों को बचाना एवं मार्ग में आने वाले ईमानदार एवं निष्ठावान लोगों को आरोपी बनाना है। यदि निजीकरण से पूर्व सिर्फ सुधार के नाम पर किये गये कार्यों की उपयोगिता, मात्रा, गुणवत्ता एवं उन पर किये गये व्यय का, उनके बाजार भाव से तुलनात्मक परीक्षण किसी विश्वसनीय संस्था से करा लिया जाये, तो आज धूप में मसाज कराकर, आराम फर्माते हुये निजीकरण के समर्थन एवं विरोध में बयान और अन्दोलन की बात करने वाले, भूमिगत् होने के स्थान पर, सीधे पलायन करने का रास्ता खोजते नजर आयेंगे।

सर्वविदित है कि चाहे गुणवत्ता का परीक्षण हो या आडिट सबकुछ हिस्सेदारी के अनुसार ही होता है। विदित हो कि जो विभाग प्रतिवर्ष लगभग रु० 6000 करोड़ के घाटे से डूब रहा हो, प्रबन्धन में बैठे अधिकारियों की गोपनीय आख्यायें उत्कृष्ठ लिखी जाती हों, उनकी समय पर पदोन्नत्तियां होती हों, तो कुछ भी कहने के लिये शेष नहीं रह जाता। सब कुछ स्वतः स्पष्ट हो जाता है। यदि बार-बार नित्य नये-नये प्रयोग करने के नाम पर जनता के धन को बर्बाद करने वाले प्रबन्धन के उत्तरदायित्व तय करने के आदेश हो जायें, तो रातों-रात घाटे से बेहाल, यही ऊर्जा निगम, रातों-रात लाभ के मार्ग पर चल निकलेंगे। आये दिन कार्मिकों की कमी के बावजूद, बात-बात पर निलम्बित करके घर बैठाकर वेतन देकर विभाग पर वित्तीय भार बढ़ाने के स्थान पर, उनकी उचित उपयोगिता पर बल दिया जाने लगेगा। यदि निजीकरण रोकना है तो राजनीतिक Welfare की आड़ में चल रहे गोरखधन्धे को रोकना ही होगा।

राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द! बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA.

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    "यूपीपीसीएल मीडिया" ऊर्जा से संबंधित एक समाचार मंच है, जो विद्युत तंत्र और बिजली आपूर्ति से जुड़ी खबरों, शिकायतों और मुद्दों को खबरों का रूप देकर बिजली अधिकारीयों तक तक पहुंचाने का काम करता है। यह मंच मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में बिजली निगमों की गतिविधियों, नीतियों, और उपभोक्ताओं की समस्याओं पर केंद्रित है।यह आवाज प्लस द्वारा संचालित एक स्वतंत्र मंच है और यूपीपीसीएल का आधिकारिक हिस्सा नहीं है।

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