पावर कार्पोरेशन साल दर साल घाटे की ओर से बढ़ रहा है। स्थिति यह है कि वर्ष 2024-25 में घाटा बढ़कर करीब 1.18 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। पिछले चार साल में यह घाटा 29 हजार करोड़ रुपये बढ़ गया है। इस घाटे से उबरने के लिए सोमवार को उच्च स्तरीय बैठक होने की उम्मीद है। इस बैठक में घाटे को लेकर नई रणनीति बनाई जा सकती है।
सूत्रों का कहना है कि पावर कार्पोरेशन और सभी डिस्काम के घाटे को लेकर सोमवार को ऊर्जा विभाग के आला अफसरों की उच्च स्तरीय बैठक में सभी विद्युत निगमों के प्रबंध निदेशक और निदेशक भी हिस्सा लेंगे। इस बैठक में बरेली, प्रयागराज, मेरठ, अलीगढ़ और कानपुर को लेकर विशेष रणनीति बनाई जा सकती है। सूत्र यह भी बताते हैं कि इस बैठक में अब तक आगरा और नोएडा में कार्यरत निजी कंपनियों की स्थिति पर भी चर्चा होगी। क्योंकि जिस वक्त आगरा के लिए टोरेंटो पावर को फ्रेंचाइजी दी गई थी, उस वक्त विद्युत नियामक आयोग ने एक निर्देश दिया था, जिसके तहत कंपनियों को नफा- नुकसान का विवरण भी देना होगा।
पावर कार्पोरेशन की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020-21 में कार्पोरेशन के सभी डिस्कॉम को मिलाकर करीब 89179.66 करोड़ रुपया घाटा था, यह साल दर साल बढ़ते हुए वर्ष 2024-25 में बढ़कर 118915.74 करोड़ तक पहुंच गया है। राजस्व वसूली के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है, लेकिन घाटा कम नहीं हो रहा है। हालांकि राज्य सरकार की ओर से निरंतर वित्तीय सहायता दी जा रही है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में प्रदेश सरकार द्वारा विभिन्न मदों में 40 हजार करोड़ से अधिक की वित्तीय सहायता बढ़ाई गई है। यह स्थिति तब है जब उत्तर प्रदेश में केंद्र सरकार द्वारा पोषित रिवैम्पड योजना चल रही है। इसके तहत रिवैम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (आरडीएसएस) योजना चल रही है। पिछले साल इसके तहत करीब 200 करोड़ रुपये के कार्य स्वीकृत हुए थे और इतने का ही इस वर्ष भी चल रहा है। इस योजना में बिजली के तारों का दुरुस्तीकरण सहित आधारभूत सुविधाएं बढाई जा रही है।
आडिट एकांउट रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कार्पोरेशन और डिस्कॉम को अपना कैश फ्लो बनाए रखने के लिए समय-समय पर ऋण लेने पड़ते हैं। ये आकड़ा करीब 70 हजार करोड़ पहुंच गया है, जिसका करीब सात हजार करोड़ ब्याज के रूप में चुकाना पड़ता है। ऐसे में जो पैसा उपभोक्ता से डिस्कॉम इकट्ठा कर पाते हैं। उसको देखते हुए अतिरिक्त उधार भी लेना पड़ेगा।
कार्पोरेशन और डिस्काम की वित्तीय स्थिति को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि कोई भी प्रदेश सरकार इतने बड़े वित्तीय घाटे को असीमित समय तक वहन करने में न तो समर्थ है और न ही करना चाहिए। क्योंकि इतनी बडी धनराशि को किसी एक सेक्टर में आंवटित करने के कारण प्रदेश की कई अन्य योजनाओं में या तो विलम्ब हो रहा है या वह पीछे छूट जा रही हैं। इन तथ्यों के आधार पर कार्पोरेशन को लेकर तरह- तरह की चर्चाएं भी शुरू हो गई है। ऊर्जा सेक्टर से जुड़े कुछ संगठनों को आशंका है कि कही कार्पोरेशन निजीकरण की ओर तो नहीं बढ़ने जा रहा है। फिलहाल इस मुद्दे पर अधिकृत तौर पर कोई भी उच्चाधिकारी बोलने को तैयार नहीं है।