एक जन प्रतिनिधि के यहां विद्युत चोरी पकड़े जाने के बाद क्या प्रदेश में राजनेताओं एवं उनके कार्यकर्ताओं के यहां बिजली चोरी हो गई समाप्त

सम्भल में जिस प्रकार से प्रशासन एवं पुलिस बल के साथ बिजली चोरी का मामला पकड़ा गया। क्या उसके बाद अन्य जन प्रतिनिधियों एवं उनके कार्यकर्ताओं के यहां बिजली चोरी की जांच की जायेगी? अथवा यह मान लिया गया है कि अब राजनेताओं के यहां पर बिजली चोरी समाप्त हो गई है और अब बिजली चोरी के वायरस सिर्फ आम जनता के बीच ही रह गये हैं। जिसके लिये देर रात एवं दिन निकलने से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में बिजली वाले गली-गली घूम रहे हैं।

बेबाक का स्पष्ट रूप से यह मानना है कि यदि प्रदेश में कथित माननीयों एवं उनके कार्यकर्ताओं के यहां सामान्य उपभोक्ता के रूप में विधुत अनियमितताओं की जांच की जाये, तो आम उपभोक्ताओं के यहां बिजली चोरी की जांच हेतु कड़कती ठंड में मध्य रात्रि एवं अलसुबह जांच करने का जोखिम उठाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। High Loss Feeder स्वत: सामान्य हो जायेंगे।

मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता। पिछले दिनों एक सांसद महोदय के निवास पर बिजली चोरी हेतु जिला प्रशासन भारी भरकम पुलिस बल के साथ चोरी पकड़ने गया था, जिसका राष्ट्रीय न्यूज चैनलों तक पर खूब प्रचार-प्रसार हुआ और आज भी हो रहा है। परन्तु किसी ने भी यह प्रश्न नहीं उठाया कि क्या इससे पहले कभी किसी राजनीतिज्ञ अथवा बाहुबलि के यहां, बिजली चोरी पकड़ी गई थी और यदि पकड़ी गई, तो अन्ततः उससे कितने राजस्व की वसूली की गई थी?

प्रश्न उठता है कि क्या उपरोक्त एक राजनीतिज्ञ के यहां विद्युत चोरी पकड़ने से अन्य विपक्ष अथवा सत्ता-पक्ष के राजनीतिज्ञों के यहां विद्युत चोरी समाप्त हो गई है? अथवा सीधे-सीधे यह मान लिया गया है कि अब किसी भी राजनीतिज्ञ/बाहुबलि नेता जी के यहां विद्युत चोरी नहीं है। यहां पर यह गम्भीर रुप से विचारणीय है, कि जब बिजली वाले किसी भी आम उपभोक्ता के यहां एयर कंडीशनर देखते ही आ धमकते हैं, तो उन्हें उन राजनेताओं एवं उनके कार्यकर्ताओं के यहां पर कोई एयर कंडीशनर एवं मीटर क्यों नहीं दिखलाई देता, जिनके यहां पर वो अपने स्थानान्तरण एवं नियुक्ति की सिफारिश कराने के लिये आये दिन आते-जाते रहते हैं।

वितरण कम्पनियों के प्रबन्ध निदेशकों के पदों पर आसीन नौकरशाह, जोकि देश को चलाने की योग्यता रखते हैं, क्या उन्होंने कभी अपने क्षेत्र में जन प्रतिनिधियों के यहां स्थापित विद्युत संयोजन से जुड़े भार एवं उनकी खपत की समीक्षा की है? क्योंकि उपरोक्त छापे (Raid) में स्वीकृत भार मात्र 2 KW ही पाया गया था। यदि इसका तनिक गहराई से विश्लेषण किया जाये, तो अधिकांश तथाकथित राजनेताओं को, विद्युत संयोजन देने हेतु अलग से स्वतन्त्र ट्रान्सफार्मर स्थापित हैं। परन्तु उस पर जुड़े भार की गणना करने का साहस, कोई नहीं कर सकता। क्योंकि उन राजनेताओं के यहां पर, आये दिन जिले के बड़े-बड़े अधिकारी दौरा करते हैं। जिनके यहां पर किसी भी अधिकारी की शिकायत हो जाने पर, सम्बन्धित अधिकारी का भविष्य तक खराब होना सम्भावित है। जबकि नियामक आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, बिना पूर्ण जमा-योजना के अलग से परिवर्तक स्थापित करना एवं लाईन बनाना किसी भी परिस्थिति में अनुमन्य नहीं है।

प्रश्न उठता है कि आखिर राजनेताओं के यहां किस आधार पर लाईनें बनाई गई और किस आधार पर अलग से परिवर्तक लगाये गये? आईने की तरह स्पष्ट है कि इन राजनेताओं के यहां पर उनके चाटुकार अधिकारियों के द्वारा मलाईदार पदों पर बने रहने के उद्देश्य से अपने ठेकेदारों के माध्यम से, किसी अन्य का हक उनके यहां पर स्थानान्तरित किया गया है। इस प्रकार के कार्य करने में, जिसमें विभाग को वित्तीय हानि होती है, अपने निहित स्वार्थ सिद्धि हेतु ”अपने ही इच्छित स्थान पर अपनी ही शर्तों पर कार्य करने वाले कार्मिक“ तथा जो अपने वर्तमान पद के भी योग्य न होते हुये भी, उच्च पद का अतिरिक्त कार्यभार प्राप्त कर, संवेदनशील पदों पर नियुक्त होते हैं, सदा अव्वल रहते हैं। जब ऊर्जा प्रबन्धन द्वारा राजनीतिक Welfare हेतु, क्षेत्र के अधिकारियों को, विभागीय योजनाओं के बारे में अवगत कराने एवं उनके सुझावों को प्राप्त करने के लिये क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के घर पर भेजा जाता है, तो यह समझना कठिन न होगा, कि वहां पर जनहित के नाम पर तथाकथित प्रचलन के अनुसार, सम्भवतः गिले-शिकवों को दूर करने का प्रयास किया जाता है तथा गिले-शिकवे दूर न होने पर, सम्बन्धित अधिकारी के विरुद्ध काला-पानी भेजे जाने तक की कार्यवाही ऊर्जा निगम के मुखिया द्वारा की जानी सम्भावित होती है। अब तो प्रदेश सरकार ने यह आदेश ही जारी कर दिया है, कि किसी भी सरकारी कार्यालय में जनप्रतिनिधि द्वारा दौरा करने पर, उसे नियुक्त अधिकारी द्वारा अपने समकक्ष तौलिया युक्त कुर्सी बैठने के लिये उपलब्ध करायी जायेगी। अर्थात किसी भी स्थिति में आगुन्तक जनप्रतिनिधि का स्तर उक्त कार्यालय में नियुक्त अधिकारी से कम नहीं होगा।

प्रश्न उठता है कि जब आगुन्तक का स्तर कम नहीं होगा तो आगुन्तक के जायज और नाजायज कार्य करने से वह अधिकारी किस प्रकार से इन्कार कर पायेगा। प्रायः यह देखा गया है कि कई राजनेता एवं उनके कार्यकर्ता ठेकेदारी का कार्य करते हैं और प्रायः सरकारी कार्यालय में आकर अधिकारियों एवं कर्मचारियों को डरा-धमका कर, आधे-अधूरे अथवा गलत-सलत कार्यों का सत्यापन कर, भुगतान करने हेतु दबाव बनाते हैं। अन्यथा फर्जी FIR दर्ज कराने की धमकी देने से भी पीछे नहीं हटते। वैसे भी आजकल बात-बात पर FIR दर्ज कराने की धमकी देने का प्रचलन सा हो गया है, जिसमें कभी बाहरी, तो कभी सरकारी कार्मिक FIR दर्ज कराने की धमकी देता रहता है। जिस प्रकार से उपरोक्त चोरी पकड़ने में, प्रशासन एवं पुलिस बल का प्रयोग किया गया, वह ”स्वतः“ यह स्पष्ट करने के लिये पर्याप्त है कि राजनीति से जुड़े लोगों के यहां, बकाये की वसूली तो दूर, विद्युत चोरी की जांच तक करना एक जोखिम-पूर्ण दुष्कर कार्य है। जिसके दो ही सम्भावित परिणाम हैं या तो मारपीट अथवा रातों-रात स्थानान्तरण/निलम्बन। स्मरण कीजिये कि यदि किसी सामान्य उपभोक्ता के यहां विद्युत चोरी पकड़ी जाती है, तो बिना सम्मन शुल्क की वसूली के

बेबाक का स्पष्ट रूप से यह मानना है कि यदि प्रदेश में कथित माननीयों एवं उनके कार्यकर्ताओं के यहां सामान्य उपभोक्ता के रूप में विधुत अनियमितताओं की जांच की जाये, तो आम उपभोक्ताओं के यहां बिजली चोरी की जांच हेतु कड़कती ठंड में मध्य रात्रि एवं अलसुबह जांच करने का जोखिम उठाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। High Loss Feeder स्वत: सामान्य हो जायेंगे।आज वितरण कम्पनियों के कार्मिकों की स्थिति ऐसी हो गई है कि उनके लिये राजनीतिक एवं उच्चाधिकारियों के हितों की सन्तुष्टि, तत्पश्चात जनहित की औपचारिकता पूर्ण करना ही दिनचर्या बनकर रह गया है। उपरोक्त में से किसी एक की भी नाराजगी अर्थात निलम्बन अथवा काला-पानी की सजा। रही बात कार्मिक संगठनों की, तो आजादी के बाद जिनकी प्रमुख जिम्मेदारी थी, अपने संस्थानों एवं कार्मिकों के हितों की रक्षा करने की, वे प्रबन्धन एवं कार्मिकों के बीच आपसी सदभावना एवं औद्योगिक वातावरण को बनाये रखने के लिये, कभी बने पुल की पवित्रता को कायम न रख पाये और फिर उसी पुल के माध्यम से अशर्फियों की तिजारत में, ऐसे मशरुफ हुये कि कभी लौट ही न पाये। आज भी अशर्फियों की तिजारत में, ऐसे ही लोग जगह-जगह खोखे लगाये बैठे हैं।
राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!

-बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA.

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