⚡ 2000 मेगावाट बिजली खरीद पर रोक — यूपी में ‘पावर गेम’ का बड़ा पर्दाफाश! ⚡

निजी कंपनियों से 2000 मेगावाट बिजली खरीद पर रोक — आयोग ने UPPCL से मांगा जवाब

21,000 मेगावाट के करारों पर उठे सवाल, निजीकरण और बिजली खरीदी की नीति संदेह के घेरे में

👉 निजी कंपनियों को फायदा या उपभोक्ताओं पर बोझ? सवालों के घेरे में UPPCL के 21,000 MW के करार!

जब 42 जिलों का निजीकरण होने जा रहा है, तो कॉर्पोरेशन को इतनी बिजली खरीदने की क्या जल्दी है? क्या ये निजी घरानों को मोटा फायदा पहुंचाने की साजिश नहीं?

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बिजली खरीद के नाम पर बड़ा खेल बेनकाब! राज्य विद्युत नियामक आयोग ने 2000 मेगावाट बिजली खरीद पर रोक लगाई और यूपी पावर कॉर्पोरेशन से जवाब तलब किया — आखिर इतनी बिजली की जरूरत कहां से आ गई?

अब सवाल यह —

🔍 निजीकरण की तैयारी, फिर इतनी खरीद क्यों?

सूत्रों के मुताबिक, UPPCL ने दो साल में 21,000 मेगावाट के पावर परचेज एग्रीमेंट (PPA) पर हस्ताक्षर किए हैं — वो भी पूरे 25 साल के लिए!  राज्य सरकार 42 जिलों की बिजली वितरण व्यवस्था को निजी कंपनियों के हवाले करने की तैयारी में है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जब बिजली वितरण निजी हाथों में जा रहा है, तो इतनी बड़ी मात्रा में बिजली खरीदने की क्या मजबूरी है? क्या यह निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने की रणनीति है या भविष्य की जरूरतों का बहाना?

आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार ने पावर कॉर्पोरेशन से पूछा है कि जब मौजूदा आपूर्ति क्षमता पर्याप्त है, तो अतिरिक्त 2000 मेगावाट खरीदने की क्या तात्कालिक जरूरत थी?

💡 नियामक आयोग ने जताई गंभीर आपत्ति

आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार ने पावर कॉर्पोरेशन से पूछा है कि जब राज्य में निजीकरण की प्रक्रिया शुरू है, तो इस स्तर पर इतनी बड़ी बिजली खरीद की क्या जरूरत है? आयोग ने न केवल 2000 मेगावाट प्रस्ताव पर रोक लगाई है, बल्कि अब तक के सभी बिजली खरीद प्रस्तावों की जरूरत, प्रक्रिया और औचित्य पर जवाब भी मांगा है।

🔍 42 जिलों के निजीकरण के बीच 21,000 MW का करार — आखिर क्यों?

यूपी में 42 जिलों की बिजली व्यवस्था निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी है। ऐसे में सवाल उठ रहा है —

“जब वितरण निजी हाथों में देने की तैयारी है, तो फिर सरकार और कॉर्पोरेशन 25 साल के लिए बिजली क्यों खरीद रहे हैं?”

CEA (केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण) की रिपोर्ट के मुताबिक इतनी दीर्घकालिक बिजली खरीद से उपभोक्ताओं पर भारी आर्थिक बोझ पड़ सकता है।

⚙️ 25 साल के लिए 21,000 MW बिजली खरीद की लाइनअप

  • 2,000 MW — सोलर

  • 2,000 MW — पंप स्टोरेज प्लांट

  • 1,600 MW — DBFO (डिजाइन, बिल्ड, फाइनेंस, ऑपरेट)

  • 375 + 250 MW — बैटरी स्टोरेज

  • 4,000 MW — DBFO

  • 3,000 MW — पंप स्टोरेज प्लांट

  • 4,000 MW — हाइड्रो

  • 1,000 MW — मीडियम पीक समर

  • 2,000 MW — लॉन्ग टर्म पीक समर

⚠️ “PPA गले की हड्डी बन जाएंगे” — उपभोक्ता परिषद का बयान

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा —

“पहले सरकारें महंगी बिजली के करारों का रोना रोती थीं, अब ये PPA सस्ते हैं या महंगे, इसका खुलासा होना चाहिए।
एक तरफ 42 जिलों का निजीकरण और दूसरी तरफ 25 साल के करार — यह उपभोक्ताओं पर बोझ डालने की साजिश है।”

उन्होंने कहा कि यह पूरा मामला “निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की बड़ी रणनीति” हो सकता है। सरकार को चाहिए कि या तो इसकी उच्च स्तरीय जांच कराए, या CBI को सौंप दे

📊 यूपी की आर्थिक स्थिति बाकी राज्यों से मजबूत, फिर निजीकरण क्यों?

राज्य कुल लोन (करोड़ ₹) न चुकाने वाला लोन (करोड़ ₹) अनुपात (%)
आंध्र प्रदेश 65,710 50,851 77%
मध्य प्रदेश 50,844 35,211 69%
महाराष्ट्र 84,170 39,605 47%
राजस्थान 92,225 58,514 63%
तमिलनाडु 1,73,520 1,37,979 79%
उत्तर प्रदेश 67,936 29,212 43%

💡 यूपी की हालत बाकी राज्यों से बेहतर, फिर निजीकरण की जल्दबाजी क्यों?

📊 कुल लोन ₹67,936 करोड़, नॉन-रिपेयेबल लोन सिर्फ ₹29,212 करोड़ —
अनुपात मात्र 43%, बाकी सभी राज्यों से बेहतर!
फिर प्राइवेटाइजेशन की पटकथा क्यों लिखी जा रही है?

⚠️ UPPCL में ‘पावर’ का खेल शुरू — आम जनता बनेगी शिकार!

बिजली खरीदी और निजीकरण की डील —
जनहित के नाम पर कॉर्पोरेट हित का बड़ा तंत्र!
आयोग की रोक के बाद अब पूरा खेल बेनकाब होने की कगार पर है।

  • UPPCL MEDIA

    "यूपीपीसीएल मीडिया" ऊर्जा से संबंधित एक समाचार मंच है, जो विद्युत तंत्र और बिजली आपूर्ति से जुड़ी खबरों, शिकायतों और मुद्दों को खबरों का रूप देकर बिजली अधिकारीयों तक तक पहुंचाने का काम करता है। यह मंच मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में बिजली निगमों की गतिविधियों, नीतियों, और उपभोक्ताओं की समस्याओं पर केंद्रित है।यह आवाज प्लस द्वारा संचालित एक स्वतंत्र मंच है और यूपीपीसीएल का आधिकारिक हिस्सा नहीं है।

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