
मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता। दि0 09.01.25 को जनपद बरेली के कुछ अखबारों में प्रकाशित एक खबर, जोकि वितरण कम्पनियों में कार्य करने की प्रचलित कार्यशैली का एक जीता-जागता उदाहरण है। उक्त खबर के अनुसार बरेली क्षेत्र के मुख्य अभियन्ता द्वारा ठेकेदारों के साथ बैठक में उनके कार्यों की समीक्षा के दौरान, ठेकेदारों के द्वारा कार्य में शिथिलता का मूल कारण भण्डार केन्द्र में सामान का उपलब्ध न होना, उनके द्वारा कराये गये कार्यों का भुगतान न होना एवं उनसे भुगतान के एवज में कमीशन मांगा जाना बताया गया। जहां सम्बन्धित अधिशासी अभियन्ता द्वारा भण्डार केन्द्र में सामान का उपलब्ध न होना तो माना, परन्तु उनके द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया कि गुणवत्ताहीन कार्य होने के कारण सम्बन्धित ठेकेदार का बिल काटा गया है। जिसमें विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ कि लगाये गये, विद्युत खम्भों की मानकों के अनुसार ग्राउटिंग ठेकेदार द्वारा नहीं कराई गई है।
स्मरण रहे कि एक बार खम्भा, मिटटी में खड़ा हो गया तो बिना खम्भे को निकाले, उसी स्थिति में लगे हुये खम्भे की Cement Concrete से Grouting लगभग नामुमकिन है। जिस ठेकेदार ने खम्भे की Grouting नहीं की, तो यह पूर्णतः स्पष्ट है कि न तो उसने Stay Rod की Grouting की होगी और न ही Stone Pad का ही प्रयोग किया होगा और न ही उचित प्रकार से Pole Earthing की होगी। इसी के साथ-साथ लाईन खींचते हेतु Conductor Drum से Conductor उतारने के लिये सम्भवतः Wire Drum Stand तक का प्रयोग नहीं किया होगा। जिसके कारण तार में जगह-जगह Twist आ जाते हैं और Twist के स्थान से तार Electrically as well as Mechanically कमजोर पड़ जाता है। परिणाम, लोड पर चलती लाईन के तार के टूटने का खतरा बढ़ जाता है। जिसके कारण, कब और किस अभागे के साथ कोई दुर्घटना घट जाये, यह सिर्फ ईश्वर ही जानता है।
अधिशासी अभियन्ता के उपरोक्त स्पष्टीकरण पर मुख्य अभियन्ता महोदय द्वारा जांच के आदेश तो दिये गये हैं, जोकि आये दिन दिये जाने वाले, औपचारिक आदेशों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं। क्योंकि उनके द्वारा इतने गम्भीर प्रकरण में अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुये, तत्काल कोई उच्च जांच समिति गठित नहीं की गई है। जोकि ठेकेदार पर धोखाधड़ी एवं अमानत में खयानत करने जैसे गम्भीर मामले की वास्तविक जांच कर अपनी रिपोर्ट प्रेषित करती। अर्थात ठेकेदार को बचाने का प्रयास किया गया है। अगर यहीं सम्बन्धित अधिशासी अभियन्ता की कोई छोटी सी गलती भी पकड़ में आ जाती, तो उसके विरुद्ध कठोर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की संस्तुति करने में मुख्य अभियन्ता, तनिक भी देर नहीं लगाते। बस यही है विभाग की न्यायिक एवं कार्य प्रणाली।
कारण स्पष्ट है कि किसी भी ठेकेदार के साथ अनुबन्ध से लेकर उसके भुगतान तक, प्रत्येक चरण पर नीचे से ऊपर तक, ठेकेदार द्वारा मुंह मांगी मिठाई से, मुंह जो मीठा कराया जाता है। अब जमाना बदल गया है, जहां नमक का नहीं, बल्कि मीठे का कर्ज उतारना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। मुख्य अभियन्ता द्वारा जिस प्रकार से मामले को भण्डार केन्द्र में सामग्री न होने एवं जांच के नाम पर टाला गया, वह सीधे-सीधे मीठे का कर्ज उतारने के ही समान दिखलाई देता है। बेबाक दावे से यह कह सकता है कि यदि ईमानदारी से इन कथित ठेकेदारों के कार्य एवं आपूर्तित सामग्री की जांच की जाये, तो अनियमितताओं के नाम और संख्या लिखते-लिखते कागज कम पड़ जायेंगे। परन्तु अनियमिततायें एवं उनमें संलिप्ततायें कम नहीं पड़ेंगी। और एक बार फिर उचित चढ़ावे एवं चरणवंदना के आधार पर लोग जांच अधिकारियों/जांच समितियों से मुक्ति हेतु गुहार लगाते नजर आयेंगे। क्योंकि यहां पर यह देखना रोचक होगा कि ठेकेदार द्वारा प्रेषित कथित फर्जी बिल का संज्ञान, अधिशासी अभियन्ता द्वारा किस आधार पर लिया गया। क्या सम्बन्धित अधीक्षण अभियन्ता एवं मुख्य अभियन्ता द्वारा क्षेत्र में कराये जा रहे कार्यों की गुणवत्ता की जांच, मौके पर जाकर अपने अनुभव के आधार पर करने का कभी कोई प्रयास किया गया, अथवा खाये गये मीठे की गुणवत्ता के आधार पर ही, कार्यालय में बैठे-बैठे ही, कार्य गुणवत्ता परक महसूस हो जाता है।
यह दुर्भाग्य है वितरण कम्पनियों का, कि जहां पर विभाग के ठेकेदार बने अधिकारी, बाहरी ठेकेदारों के साथ मिलकर, जो इनकी मिठाई एवं सोने के लिये रजाई-बिस्तर तक की व्यवस्था करते हैं, वितरण कम्पनियों के जहाज को लगातार डुबो रहे हैं, तो वहीं इनके कर्मों की सजा, राह से गुजरता निर्दोष प्राणी अपने प्राणों तक की आहुति देकर भुगत रहा है। पता नहीं ऊपर वाले का यह कैसा न्याय है कि मीठा खाने वाले तो मन्दिरों में जाकर VIP दर्शन एवं मां गंगा में VIP डुबकी लगाकर आते हैं। जबकि इनके फैलाये गुणवत्ताहीन बिजली के जाल में फंसकर अपनी जान गंवाने वाले, एक पोटली में शमशान के कहीं कोने में पड़े अथवा पेड़ की किसी डाल पर टंगे, गंगा जल की कुछ बून्दों का अनन्तकाल तक इन्तजार करते ही रह जाते हैं। इसी प्रकार से अनुरक्षण के नाम पर मुख्य अभियन्ता एवं अधीक्षण अभियन्ता कार्यालय से अनुबन्धित कार्यों की जांच कराई जाये, तो शायद कार्य का सत्यापन ही एक बहुत बड़ी चुनौती बन जायेगा।
बस ऐसा ही है मेरा UPPCL. अनुशासनात्मक कार्यवाही के कैप्सूल निर्माता के गीत कि ”तू न चलेगा, तो चल देंगी राहें“ की तर्ज पर एक गीत पेश है कि ”तू जहां जहां चलेगा, मेरा साया, साथ होगा“ अर्थात तू जहां जहां चलेगा, भ्रष्टाचार का साया, तेरे साथ होगा। क्योंकि ऊर्जा निगमों में ईमानदारी एवं बेईमानी का रिश्ता कुछ इस प्रकार का है, कि ”तू डाल-डाल, तो मैं पात-पात“। अतः क्या फर्क पड़ता है, बेबाक लिखे या अखबार, बस थोड़ा सा चढ़ावा ही तो बढ़ जाता है। बाकी सब सामान्य।
राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.