बेबाक: कहां हैं इन्जीनियर? (Part 01)

मित्रों नमस्कार! आज पूरा भारत वर्ष “Engineers Day” मना रहा है और सुबह से, सभी एक दूसरे को “Engineers Day” की बधाईयां दे रहे हैं। परन्तु जैसे ही इन्जीनियर होने का विचार दिमाग में आता है, तो कहीं न कहीं गौरान्वित महसूस करने के स्थान पर, मन कसैला सा हो जाता है। क्योंकि चाहे ऊर्जा निगमों की बात करें या अन्य किसी संस्थान की, आज लगभग सभी जगह इन्जीनियरिंग कलंकित हो रही है। बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं, परन्तु धरातल पर आते ही सब फुस हो जाते हैं। चाहे वह सड़कें हों, पुल हों, भवन निर्माण कार्य हों या बिजली की लाईनें और उपकरण हों, सभी के सभी स्थापित होने एवं पूर्ण होने से पहले ही बरसात में सीले पटाखे ही साबित हो रहे हैं। G-20 के लिये मीटिंग हाल में पानी भरा हो या नये संसद भवन की छत से चूता पानी। आये दिन बारिस में जगह-जगह सड़कें टूटती नजर आ रही हैं, लगातार पुल धराशायी हो रहे हैं अथवा बाढ़ में बह रहे हैं। एक विकास अंग्रेजों ने किया था ओर एक हम कर रहे हैं। अंग्रेजों के समय खड़े किये गये विद्युत खम्भे एवं बिजलीघर आज भी मजबूती से खड़ें होकर हमें चिढ़ा रहे हैं। जबकि आज हमारे द्वारा उन्नत तकनीक के माध्यम से खड़े किये गये खम्भें सुबह से शाम तक में ही टेढ़े हो जाते हैं। एक हल्की सी हवा में लाईन की लाईन ही धराशायी हो जाती है। 50-50 वर्ष पुराने टान्सफार्मर आज भी पूरी क्षमता से चल रहे हैं। जबकि आज अधिकांश पॉवर परिवर्तक गारण्टी अवधि ही पूरी नहीं कर पाते और आये दिन कहीं न कहीं धू-धू कर जलते दिखाई दे रहे हैं। आये दिन विद्युत दुर्घटना में विद्युत कर्मी मर रहे हैं। जिनमें इन्जीनियरिंग के नाम पर, कार्य एवं सामग्री की गुणवत्ता का दूर-दूर तक कोई अता पता नहीं होता।

प्रश्न उठता है कि कहां है इन्जीनियरिंग? ऐसा नहीं है कि हम विद्युत दुर्घटनायें रोक नहीं सकते या विद्युत उपकरणों को क्षतिग्रस्त हाने से बचा नहीं सकते। परन्तु उसके लिये त्याग एवं संघर्ष की आवश्यकता पड़ती है। जो हम कदापि कर ही नहीं सकते, बल्कि हमारा तो मूल उद्देश्य ही यही है कि यदि कहीं कोई ईमानदार अथवा सैद्धान्तिक कार्मिक मार्ग में आ जाये, तो उसे किसी भी तरह से मार्ग से हटाना है। हमारे लिये निहित स्वार्थ सर्वोपरि है जिसके लिये हम किसी भी स्तर तक गिर भी सकते हैं। जिसकी आये दिन बहुत सारी चर्चायें सुनी जा सकती हैं। पॉवर कारपोरेशन लखनऊ द्वारा निम्न कार्योंः- 1. बिजनेस प्लान के कार्यों का निरीक्षण, 2. राजस्व वसूली, 3. AMISP Metering, 4. भण्डार केन्द्रों का निरीक्षण और 5. परिवर्तक कार्यशालाओं के निरीक्षण हेतु मुख्यालय से अधिकारियों को पूरे प्रदेश में भेजा गया है तथा प्रगति आख्या दि0 18.09.2024 तक प्रेषित की जानी है। उपरोक्त निरीक्षण के बिन्दुओ को यदि ध्यान से देखा जाये, तो उसमें इन्जीनियरिंग कहीं दूर-दूर तक दिखलाई नहीं देती है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे पहले RDSS एवं Business Plan के कार्यों का निरीक्षण कराया गया था और ठेकेदारों का भुगतान कर दिया गया था। ठीक कुछ इसी प्रकार से इस बार के निरीक्षण का उद्देश्य, सामग्री क्रय करने का आधार बनाना है। इससे पूर्व भी प्रदेश के बाहर के कई डिस्कामों में टीमें भेजकर उनके कार्य करने के तरीके का सर्वे कराया गया था, जिसका भी मूल उद्देश्य सामग्री क्रय करना ही था। ऊर्जा निगमों में यदि भण्डार केन्द्रों के पिछले कुछ वर्षों के Stock Register की सिर्फ सरसरी तौर पर ही जांच कर ली जाये, तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि बहुत सी सामग्री अनावश्यक रुप से क्रय की गई थी। जिसकी उपयोगिता सिद्ध करना असम्भव हो जायेगा। यदि परिवर्तक कार्यशालाओं में सामग्री प्रयोग करने के आंकड़ों की जांच की जाये, तो एक ही तरह एवं एक ही क्षमता के परिवर्तकों में सामग्री के प्रयोग के अनुपात में बहुत अन्तर है। सच्चाई यह है कि सामग्री का प्रयोग तो लगभग एक सा है परन्तु कागजों में अलग-अलग हैं। जो सामग्री खपाने का एक जीता जागता उदाहरण है। जिसका प्रयोग हम दैनिक कार्यों से लेकर माघ मेला एवं कुम्भ मेले तक भरपूर करते हैं।

स्पष्ट है कि आज का इन्जीनियर, इन्जीनियर न होकर सरकारी नौकरी में बाह्य कार्यदायी संस्थाओं का मार्केटिंग एजेन्ट के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। जिसका मूल कार्य सिर्फ और सिर्फ दलाली करना है। यही कारण है कि बहुत सारे इन्जीनियर, जोकि पदोन्नति हेतु मूल योग्यता नहीं रखते, परन्तु वे योग्य इन्जीनियरों के स्थान पर, योग्यता को नेस्तनाबूद करने के लिये, मेज के नीचे की विशेष योग्यता के बल पर, उच्च पदों पर, अतिरिक्त कार्यभार लेकर आसीन हैं। पूरे प्रदेश में ऐसे बहुत सारे उदाहरण मिल जायेंगे, जहां चोर को ही कोतवाल का कार्यभार देकर नियमों का पालन कराया जा रहा है। सबसे दुखद है कि आज के इन्जीनियर ने निहित स्वार्थ में अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों की परिभाषा ही बदल डाली है। अब उसके लिये इन्जीनियरिंग से भी ज्यादा महत्वपूर्ण ऊपर वालों के निर्देश हैं, जिसके लिये वो बिना निर्माण एवं बिना सामग्री के ही, बेहिचक कार्य का सत्यापन करने के लिये सदैव ही तत्पर दिखाई देता है। वास्तविकता यही है कि आज के अधिकांश इन्जीनियर, कालेज से निकलने के साथ ही, अपना इन्जीनियरिंग ज्ञान, वहीं कालेज में ही छोड़ आते हैं और अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति हेतु चाहे कोई राजनीतिक व्यक्ति हो या कोई अधिकारी हो या ठेकेदार हो, के हाथों की कठपुतली बनकर इन्जीनियरिंग की आड़ में कार्य एवं सामग्री की गुणवत्ता के साथ समझौता करने के विशेषज्ञ बन जाते हैं। क्योंकि वे यह अच्छी तरह से जानते हैं कि आज वो ही सफल है, जिसे Yes Boss बोलना ही नहीं, बल्कि अक्षरश Boss के ईशारे तक का पालन करना आता हो। जिसमें चाहे कोई मरे या जिये, उन्हें तो वो ही करना है जो Boss ने चाहा है। आज हर किसी को पदोन्नत्ति चाहिये सिर्फ अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये न कि देश हित में कुछ करने के लिये। यदि कहीं गलती से कोई इन्जीनियर मिल भी जाये तो, कड़वी सच्चाई यह है कि उसे निगेटिव व्यक्ति कहकर कहीं दूर-दराज कोने में फेंक दिया जाता है। प्रश्न उठता है कि आये दिन निलम्बन पर निलम्बन के पीछे क्या इन्जीनियरों को उसके कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों का बोध कराना है अथवा प्रचलित गुणवत्ता से समझौता करने का विशेषज्ञ बनाना है। क्योंकि एक से बढ़कर एक महारथी दोनों हाथों में लडडू खा रहे हैं। जिनके विरुद्ध सामान्यतः कोई कार्यवाही नहीं की जाती। रंगे हाथों रिश्वत लेने एवं जेल से छूटकर, कार्यभार ग्रहण करने के बाद, कितने लोग सन्यासी बने, क्या किसी विभाग के पास, ऐसा कोई रिकार्ड हैं?

यक्ष प्रश्न उठता है कि हम इन्जीनियरिंग का ऐसा कौन सा कार्य करते हैं? जिसके लिये हम इन्जीनियर कहलाते हैं? क्योंकि जब भी इन्जीनियरिंग की बात आती है तो बाहरी लोगों से ही सलाह ली जाती है। अतः कहां हैं इन्जीनियर? किस बात का Engineers Day? क्या हम में महान भारत रत्न विश्वेश्वरैया जी अथवा देश के मेट्रो मैन इ0 श्रीधरन के किसी एक गुण की भी छाया है। सच्चाई यह है कि हमें इन्जीनियर कहलाने तक का कोई हक नहीं है। आये दिन कलंकित होती इन्जीनियरिंग जिसका जीता जागता प्रमाण है।
राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!

-बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA.

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