
दो दिन पूर्व मेरठ में क्षतिग्रस्त पॉवर परिवर्तक को मात्र 12-घण्टे विलम्ब से बदलने के कारण सम्बन्धित अभियन्ताओं को निलम्बित कर दिया गया था, उससे पूर्व केबिल की गुणवत्ता को लेकर निरीक्षणकर्ता एवं भण्डार के अभियन्ताओं का निलम्बन किया गया था। जोकि इस बात का अहसास कराता है कि वितरण कम्पनियों के लिये कार्य की गुणवत्ता, दक्षता एवं समय सीमा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की जा रही है। परन्तु जब कार्यवाही का उद्देश्य कौआ मारकर टांगना अर्थात मात्र दहशत पैदा करना होता है, तो उससे कार्य की गुणवत्ता में तो कोई सुधार नहीं होता है, परन्तु उच्चाधिकारियों के साथ सेटिंग का बाजार जरुर गर्म हो जाता है।
प्रायः यह देखा गया है कि किसी अधिकारी से, उच्चाधिकारी किसी भी प्रकार की चिढ़/नाराजगी, (जोकि प्रायः आर्थिक होती है) होने पर उसको हटाने के लिये अन्ततः निलम्बन की कार्यवाही करते/कराते हैं। निलम्बन के बाद, यदि वह तत्काल नतमस्तक हो जाता है, तो बहुत जल्द, जांच लम्बित रहते हुये, उसे बहाल कर, अन्य स्थान का कार्यभार दिला दिया जाता है और यदि वह न्यायालय की तरफ गया तो उसे कानून का पढ़ाने और दण्डित करने के लिये, चक्कर पर चक्कर कटाये जाते हैं। निलम्बन को दण्ड नहीं माना गया है, परन्तु निलम्बन एवं स्थानान्तरण की आड़ में यथासम्भव दण्ड देने का खेल, उर्जा निगमों में भरपूर खेला जाता है।
प्रत्येक स्थानान्तरण आदेश के बिन्दु सं0 2 पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका सं0 79/1997 पर दिये गये निर्णय एवं निर्देशों के अनुरुप लिखकर भी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जाता है तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय की बार-बार अवमानना की जाती है।
मेरठ क्षेत्र में योजनाबद्ध तरीके से कार्य न करने के कारण, पॉवर परिवर्तक बदलने में मात्र 12 घण्टे का विलम्ब होने पर अभियन्ताओं का निलम्बन, स्वतः ही प्रबन्धन की कार्यशैली पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है…. क्योंकि योजना तो अधीक्षण अभियन्ता बनाते हैं तथा 2 लाख तक के कार्य एवं सामग्री के टेण्डर आमन्त्रित करने का अधिकार उन्हीं के पास है। वहीं मेरठ क्षेत्र में ही अनाधिकृत रुप से 6 माह पूर्व एक पॉवर परिवर्तक की मरम्मत के नाम पर, प्लिन्थ से उठवाकर, समाचार पत्रों में चर्चा होने पर दबाव में ही बदला गया। जबकि यह एक अत्याधिक गम्भीर मामला था। क्योंकि पॉवर परिवर्तक के क्षतिग्रस्त होने पर उसकी मरम्मत कराने का एकाधिकार सिर्फ प्रबन्ध निदेशक कार्यालय के पास है, न कि अधीक्षण अभियन्ता वितरण के पास।
ऐसा कोई भी नियम नहीं है कि कोई भी पॉवर परिवर्तक, मरम्मत के नाम पर प्लिन्थ से कम्पनी को उठवा दिया जाये और कम्पनी उसे 6-माह बाद बदले। परन्तु आश्चर्यजनक रुप से आरोपियों के विरुद्ध कार्यवाही शून्य रही। इसी प्रकार सामग्री निरीक्षण के नाम पर निरीक्षणकर्ता एवं भण्डार में नियुक्त अभियन्ता एवं कर्मचारियों का निलम्बन तो ठीक है। परन्तु उन अधिकारियों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई, जोकि मुख्यालय में बैठकर निरीक्षणकर्ताओं को कहते हैं कि वो उनसे मिलने नहीं आये। जिसके कारण उन्हें अगले निरीक्षण कार्य नहीं दिये जायेंगे।
जनप्रिय सरकार, जीरों टालरेंस की बात करती है, परन्तु विभाग में मुख्यालय में बैठकर, लोग प्राप्त लिफाफों के वजन के आधार पर कार्य करते हैं। जिसके बंटवारे को विस्तृत करना उचित न होगा। परन्तु यह सत्य है कि क्वालिटी सेल में नियुक्त, अधिकांश अधिकारी विद्युत सामग्री की गुणवत्ता के लिये नहीं, बल्कि प्रबन्धन की विशेष कृपा से, जिस प्रकार अदालतों में मजिस्ट्रेट के नीचे बैठकर, पेशकार तारीख देने का कार्य करते हैं, ठीक उसी प्रकार से डिस्काम कार्यालय में नियुक्त अधिकारी, सामग्री निर्माणकताओर्ं/आपूर्तिकताओर्ं की मार्केटिंग करते हुये, निरीक्षणकर्ता को कुल सामग्री की कीमत के आधार पर निरीक्षण की तारीख देते हैं। इस कार्य की संवेदनशीलता इतनी है कि मुख्यालयों पर बहुत सारे काबिल उच्चाधिकारियों के उपलब्ध होने के बावजूद, उच्चाधिकारियों के कृपा पात्र, एक ही अधिकारी को अपने पद के साथ-साथ, उच्च अधिकारी के पद का भी कार्य आबंटित कर दिया जाता है। अर्थात एक ही अधिकारी, एक ही कागज पर दो-दो बार हस्ताक्षर करता है।
हास्यापद है कि किसी भी अधिकारी को अतिरिक्त कार्य का, अतिरिक्त वेतन तो नहीं दिया जाता, परन्तु खाली बैठे सम्बद्ध अधिकारियों को पूर्ण वेतन दिया जाता है। क्वालिटी सेल की विशेषता यह है कि यदि किसी अधिकारी द्वारा साहस कर एक सामग्री को गुणवत्ताहीन करार दिया गया हो, तो लिफाफे के आधार पर, उस सामग्री का अगली बार पुनः निरीक्षण कराकर, उक्त सामग्री को गुणवत्तापरक घोषित करा दिया जाता है। यदि निरीक्षण के लिये बाहरी एवं विभागीय निरीक्षणकर्ताओं की नियुक्ति और सामग्री की कीमत का साधारण सा भी विश्लेषण किया जाये, तो करने के लिये सिर्फ इतना बचेगा कि क्षेत्र में सामग्री की सैम्पिंलंग और अन्ततः आईपीसी की धारा 120ठ, 406 एवं 420 का मुकदमा। एक तरफ चिलचिलाती धूप में लाईन पर भुटटे की तरह भुन रहे संविदाकर्मी तो वहीं वातानुकूलित कक्ष में पिछले 10 वर्षों से भी अधिक समय से कार्यरत संविदाकर्मी निरीक्षण कार्य आबंटन के लिये सम्बन्धित अधिकारी के निर्देश पर दलाली कर रहे हैं। बदतर स्थिति तो उन ईमानदार निरीक्षणकर्ता इन्जीनियरों की है जिनके निरीक्षण पर जाने पर उनके नियन्त्रक अधिकारी खूब नाक-भौं सिकोड़ते हैं। जिससे कि क्वालिटी सेल अपने अन्य पसंदीदा निरीक्षणकर्ता से निरीक्षण करा सके। कई जगह तो यह देखा गया है कि अधीक्षण अभियन्ता एवं उनके नियन्त्राधीन नियुक्त एकमात्र अधिशासी अभियन्ता एक साथ निरीक्षण कार्य के लिये शहर/प्रदेश से बाहर जाते हैं, अर्थात कार्यालय बन्द।
जानकारी में है कि निरीक्षण के लिये बार-बार नियमावली प्रस्तावित होती है, परन्तु सामग्री निर्माणकर्ता/आपूर्तिकर्ताओं के दबाव एवं निहित स्वार्थ में, उचित नियमावली को जारी नहीं किया जाता है। जानकारी में ऐसे भी अधिकारी हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल का सामग्री निरीक्षण का पूरा का पूरा रिकार्ड कार्यालय से हटाकर अपने पास रखा और इसी प्रकार की कार्यशैली के कारण, आज वे प्रबन्धन के सर्वथा प्रिय हैं। गत् दिनों उ.प्र.पा.का.लि. के अध्यक्ष महोदय का परिवर्तकों की क्षतिग्रस्तता को लेकर एक भ्रामक बयान आया था कि भण्डार केन्द्र में पॉवर एनालाईजर खराब होने के कारण परिवर्तकों की जांच नहीं हो पा रही थी। जबकि सत्यता यह है कि विभागीय कार्यशाला स्वयं ही क्षतिग्रस्त परिवर्तकों को बदलने का कार्य करती हैं तथा मरम्मतशुदा परिवर्तक, भण्डार केन्द्र जाते ही नहीं हैं।
यह कहना कदापि अनुचित न होगा कि क्वालिटी सेल का मुख्य कार्य ही गुणवत्ताहीन सामग्री को किसी भी तरह से गुणवत्तापरक घोषित करना है। जिसका दुष्परिणाम है कि प्रतिदिन अनगिनत ब्रेकडाउन, प्रतिदिन लगभग एक हजार परिवर्तकों का क्षतिग्रस्त होना एवं नित्य लगभग 3 संविदाकर्मियों की हृदयविदारक मौत। यह देखना रोचक होगा कि कार्यवाही, सिर्फ व्यक्तिगत् कारणें से चुनिंदा लोगों तक ही सीमित रहेगी अथवा निर्दोषों के प्राणों की रक्षा के लिये भी धरातल पर कुछ किया जायेगा।
जय हिन्द!
बेवाक रिपोर्ट – बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.