
🔌 ⚡ प्रश्नों के घेरे में मध्यांचल डिस्कॉम की नियोजन नीति! “प्रेमलता सिंह ही क्यों?” — क्या अनुभव और योग्यता अब कोई मायने नहीं रखते? अहम सवाल…. मध्यांचल डिस्कॉम में “अनुभव” का अभाव या साज़िश का दबाव? 🔌🎙️ “गोमती नगर — लाखों उपभोक्ताओं की नब्ज़… और वहाँ की बागडोर एक ऐसी अधिकारी को, जिसने आज तक वितरण का फील्ड देखा तक नहीं!” गोमती नगर सर्किल की जिम्मेदारी मिली एक अनुभवहीन अधीक्षण अभियंता को, क्या यह मजबूरी थी या विभागीय मनमानी?
लखनऊ | मध्यांचल विद्युत वितरण निगम में हाल ही में लिया गया एक फैसला सुर्खियों में है। इंदिरा नगर सर्किल में तैनात एक अधीक्षण अभियंता, जो अब तक डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर में अनुभवहीन रही हैं, उन्हें गोमती नगर जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण सर्किल का अतिरिक्त चार्ज सौंप दिया गया है।
मध्यांचल विद्युत वितरण निगम में गोमती नगर सर्किल जैसी अत्यंत संवेदनशील, तकनीकी और उपभोक्ता-गहन ज़िम्मेदारी वाले क्षेत्र की कमान उस अधिकारी को थमा दी गई है, जिसने आज तक वितरण (Distribution) के फील्ड में एक दिन भी काम नहीं किया।
जी हाँ — हम बात कर रहे हैं इंदिरा नगर सर्किल की अधीक्षण अभियंता प्रेमलता की, जिन्हें अब गोमती नगर सर्किल का भी अतिरिक्त चार्ज सौंप दिया गया है।
📌 जानकारी के लिए बता दें कि श्रीमती प्रेमलता सिंह अधिशासी अभियंता (Executive Engineer) के रूप में पश्चिमांचल डिस्कॉम में अधीक्षण अभियंता (तकनीकी) पद पर कार्यरत थीं।
इसके बाद 25 मई 2021 को उन्हें सामग्री प्रबंधन (प्रथम) की जिम्मेदारी दी गई।
अधिशासी अभियंता से अधीक्षण अभियंता (Superintending Engineer) पद पर प्रोन्नत होने के उपरांत, उनकी पहली फील्ड पोस्टिंग इंदिरा नगर सर्कल के रूप में की गई थी।
प्रश्न यह उठता है कि –
👉 क्या मध्यांचल डिस्कॉम में अधीक्षण अभियंताओं की इतनी कमी हो गई है?
👉 क्या अनुभव की कोई कीमत नहीं रही?
👉 या फिर यह किसी विभागीय खेल का हिस्सा है?
गोमती नगर सर्किल , जहाँ की विद्युत आपूर्ति व्यवस्था, तकनीकी प्रबंधन और उपभोक्ता संतुष्टि सर्वोच्च प्राथमिकता पर होते हैं, वहाँ एक ऐसे अधिकारी को नियुक्त करना जिन्होंने फील्ड डिस्ट्रीब्यूशन का कभी अनुभव ही न लिया हो – यह निर्णय आम जनता और विभागीय कर्मचारियों दोनों के बीच आश्चर्य का विषय बना हुआ है।
तो फिर सवाल उठता है- प्रेमलता सिंह ही क्यों?..क्या विभाग में अन्य अनुभवी, दक्ष अभियंता नहीं बचे थे?
🔹 क्या यह चयन योग्यता के आधार पर हुआ है या सिफारिश, लॉबी और पसंद-नापसंद??
🔹 क्या यह प्रशासनिक मजबूरी है या किसी अधिकारी विशेष को उपकृत करने की चतुर चाल?
🔹 और अगर यह एक “प्रयोग” है, तो क्या उपभोक्ता इससे प्रभावित नहीं होंगे?
मध्यांचल डिस्कॉम के इस कदम ने फिर से प्रशासनिक पारदर्शिता और नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह कोई साधारण नियुक्ति नहीं है, यह एक सर्कल की नब्ज थामने का जिम्मा है… और यहां गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती।
⚠️ क्या यह योग्यता की हत्या नहीं है?
गोमती नगर — जहाँ रोज़ाना हजारों उपभोक्ताओं की बिजली आपूर्ति, फॉल्ट, मेंटेनेंस और शिकायतों से जुड़ी चुनौतीपूर्ण ड्यूटी होती है — वहाँ एक प्रशासनिक पृष्ठभूमि वाली, अनुभवविहीन अधिकारी को अतिरिक्त दायित्व देना क्या उपभोक्ताओं के साथ अन्याय नहीं है?
मामला यहीं नहीं रुकता…
विभाग में यह पहला मौका नहीं है जब ऐसा प्रयोग हुआ हो….. इंजीनियर राजेश कुमार और इंजीनियर वाई एन राम के साथ भी ऐसा ही “प्रशासनिक प्रयोग” हो चुका है — बिना कारण, बिना पारदर्शिता के, और बिना क्षेत्रीय जरूरतों का मूल्यांकन किए। अनुभवी अधिकारियों को दरकिनार कर “मनपसंद पोस्टिंग” का यह सिलसिला आखिर किसकी शह पर चल रहा है?
❓अहम तथ्य – क्या “प्रेमलता सिंह ” कोई “ख़ास” नाम है?
जब वितरण अनुभव रखने वाले वरिष्ठ अभियंता फील्ड में मौजूद हैं, तब एक अनुभवहीन अधिकारी को दो-दो सर्किल की कमान देना — यह सिर्फ़ एक फैसला नहीं, मध्यांचल डिस्कॉम के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह है।
🔥 UPPCL मीडिया पूछता है:
📌 “प्रेमलता सिंह ही क्यों?” — क्या अनुभव की अब कोई कीमत नहीं बची?
📌 क्या अब अनुभव नहीं, “पहचान” ही नियुक्ति की कसौटी है?
📌 मध्यांचल में मनमानी की बिजली — प्रेमलता को दो-दो सर्किल क्यों?
📌 क्या यह विभागीय विवेक है या सत्ता-संकट की सौदेबाज़ी?
🛑 यह कोई साधारण पोस्टिंग नहीं — यह लाखों उपभोक्ताओं की बुनियादी ज़रूरतों से जुड़ा फैसला है। और अगर ऐसे फैसले गणना, गुट और गुप्त संवाद से होने लगें, तो फिर आम जनता के साथ यह अन्याय नहीं, विद्युत-शोषण है।
✒️ UPPCL MEDIA | लखनऊ
सच बोलेगा, सवाल करेगा — विभागीय चुप्पी अब स्वीकार नहीं।