
मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता ….यह मांग कि उ0प्र0 की विद्युत वितरण कम्पनियों अर्थात सार्वजनिक उद्योगों का निजीकरण नहीं होना चाहिये, के सम्बन्ध में अब तक आपने पढ़ा कि…..
- निजीकरण क्यों नहीं होना चाहिये?
- निजीकरण का लाभ किसको प्राप्त होने वाला है?
- प्रबन्धन की कार्यशैली
उपरोक्त के अनुक्रम में प्रस्तुत है बिन्दु…
सेवा संघों का आचरण एवं निजीकरण रोकेगा कौन ….
विदित हो कि किसी भी उद्योग के लिये प्रबन्धन एवं कार्मिक संगठन दोनों ही अतिमहत्वपूर्ण होते हैं। जहां एक ओर प्रबन्धन का मूल उद्देश्य सेवा एवं अपने उत्पाद की गुणवत्ता के स्तर को उच्च रखते हुये, अपने उद्योग को लाभ में चलाना होता है, तो वहीं सेवा संगठनों का कार्य अपने कार्मिकों के हितों की रक्षा करते हुये, उद्योग की भी रक्षा करना होता है। यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब उद्योग निजी न होकर सार्वजनिक हो, अर्थात नियोक्ता भी एक सेवक हो। उधोग की सफलता के लिए प्रबन्धन एवं कार्मिकों के बीच आपसी समन्वय बहुत महत्वपूर्ण है। जिसके अभाव में उद्योग अपने उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर सकता। विदित हो कि लगभग 25 वर्ष पूर्व एक ऐतिहासिक कार्मिक आन्दोलन के बाद तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 के विघटन पर, गत् दिनों ऊर्जा क्षेत्र में ”बड़का बाबू“ एवं ”युद्ध अभी शेष है“ शब्दों के साथ, अपनी बात आक्रामक रुप से रखने वाले, एक विख्यात खोजी पत्रकार द्वारा प्रकाश डालते हुये, कार्मिक पदाधिकारियों के द्वारा झोलियां भरने एवं विदेश जाकर मसाज कराने का जिक्र किया गया था। अन्ततः यही झोलियां एवं मसाज ही, आज वितरण कम्पनियों के पतन का मूल कारण बन चुके हैं। जिसके ही कारण ऊर्जा निगमों एवं वितरण कम्पनियों के संचालन हेतु, शासन द्वारा जारी अति महत्वपूर्ण MoA का पालन आजतक भी नहीं हुआ।
अर्थात गठित वितरण कम्पनियों के द्वारा आजतक स्वतन्त्र रुप से कभी कार्य प्रारम्भ ही नहीं किया गया और लगभग 1.5 लाख करोड़ के घाटे में डूब भी गई। जोकि एक नीतिगत भ्रष्टाचार का जीता जागता प्रमाण है। जिसमें राजनीतिक प्रबन्धन के द्वारा मसाज के इच्छुक कार्मिक पदाधिकारियों को टुकड़ा डाल-डाल कर, निहित स्वार्थ के नशे में डुबोकर, कार्मिक हितों से दूर कर दिया है। जहां एक ओर प्रबन्धन मजबूत होता चला गया, तो वहीं कार्मिक संगठन डूबते चले गये। परिणामत: लगभग सभी कार्मिक संगठन कतिपय पदाधिकारियों की निजि जागीर की तरह सिमट कर, अपनी पहचान हेतु राजनीतिक प्रबन्धन के रहमो-करम पर निर्भर हो गये। अधिकांश संगठन, सेवा संघों को मान्यता प्रदान करने वाली नियमावली-1979 पर खरे नहीं उतरते। परन्तु समय-समय पर राजनीतिक प्रबन्धन की एक सोची समझी नीति के तहत प्रबन्धन एवं शासन के साथ वार्ता करते हुये, फोटो खिंचवाकर मात्र कागजों के शेर बनकर रह गये हैं। यही कारण है कि देश के जिन सर्वज्ञानी एवं योग्य प्रशासनिक अधिकारियों को, ऊर्जा उद्योग को सुधारने की लिये नियुक्त किया गया था, आज वे ही निगमों को घाटे में डुबोने के उपरान्त, खुले मंच से निजीकरण का गुणगान करते हुये, निजीकरण करने का एलान ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि आये दिन स्वदेशी की चर्चा करने वाले देश में, एक विदेशी ब्लैक लिस्टिड कम्पनी को निजीकरण जैसे अति महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील कार्य के लिये ट्रान्जेक्शन कन्सलटैन्ट के रुप में नियुक्त कर चुके हैं। जो स्वतः बहुत कुछ बयां कर रहा है।
परन्तु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि निगमों को गुणवत्ताहीन सामग्री एवं कार्यों से पाटने वाली जिन फर्मों को हमें ब्लैक लिस्टेड कराना अथवा करना चाहिये था। उनके हितों की हम बड़ी तन्मयता एवं लगन से लगातार रक्षा करते आ रहे हैं। यह दुर्भाग्य है प्रदेश का कि उपरोक्त घाटे के कारणों को लेकर नीचे से ऊपर तक कहीं भी कोई खुसर-पसर तक सुनाई नहीं देती। अतः यह कहना कदापि अनुचित न होगा कि ऊर्जा उद्योग के डूबने का मूल कारण ही राजनीतिक प्रबन्धन एवं सेवासंघों का दुर्भाग्यपूर्ण गठबन्धन रहा है। जहां स्थानान्तरण एवं नियुक्ति से लेकर, कार्मिकों के हितों, जैसे वरिष्ठता, पदोन्नत्ति एवं वेतनमान को भी कार्मिक संगठनों के कतिपय पदाधिकारियों के द्वारा अपने निहित स्वार्थ सिद्धि का साधन बना डाला है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विशेष अनुमति याचिका संख्या 79/1997 में भी यही कहा था, कि ऊर्जा विभाग राजनीतिक हस्तक्षेप से ग्रसित है। जिसके अनुपालन की औपचारिकता विभाग द्वारा जारी पदोन्नत्ति एवं स्थानान्तरण आदेशों में, मात्र उल्लेख कर, पूर्ण की जा रही है। हम सभी इस तथ्य से भलीभांति अवगत हैं कि निजीकरण का फैसला भारत सरकार का है, जिसे राज्य सरकार को लागू करवाना है। जहां अध्यक्ष उ0प0पा0का0लि0 सिर्फ एक सरकारी प्यादे के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं।
अतः बार-बार निजीकरण के लिये अध्यक्ष उ0प0पा0का0लि0 पर आरोप लगाना, ऊर्जा निगमों के नियमित कार्मिकों को गुमराह करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। स्मरण रहे कि आरोप लगाने एवं विगत 7 माह से भी अधिक समय से निजीकरण के विरुद्ध, नित्य आन्दोलन की औपचारिकतायें निभाने वाले ये वही लोग हैं, जो कथित झोलियां भरने एवं मसाज के नाम पर, तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 का सफलता पूर्वक विघटन कराने एवं तत्पश्चात आगरा एवं नोएडा में निजीकरण कराने के विशेषज्ञ के रुप में जाने जाते हैं। चतुर प्रबन्धन द्वारा उपरोक्त विशेषज्ञों को, जो आज पेन्सनर हैं, को सम्भवतः एक सोची समझी नीति के तहत लोकतान्त्रिक रुप से निजीकरण कराने की औपचारिकता निभाने हेतु अनुबन्धित किया हुआ है। जिससे कि सेवानिवृत्त एवं नियमित कार्मिकों के बीच विचार एवं उद्देश्य के आपसी नैसर्गिक द्वंद्व के कारण, आपस में कोई समन्वय स्थापित न हो सके। इसमें कोई दो राय नहीं कि कथित राजनीतिक प्रबन्धन द्वारा, प्रायोजित आन्दोलन के इन्हीं वृद्ध नेताओं के कन्धों पर बन्दूक रखकर, विगत लगभग 7 माह से जारी प्रायोजित आन्दोलन के खेल में, आन्दोलन/हड़ताल की घोषणा इस शर्त के साथ करते हुये कि किसी उपभोक्ता को कोई असुविधा न हो, जिसका तात्पर्य सीधा सा है कि राजनीतिक प्रबन्धन को कोई असुविधा न हो। आये दिन अति उत्साहित नियमित कार्मिकों का शिकार करते हुये, उनके मनोबल को कुचला जा रहा है।
सम्भवतः प्रायोजित आन्दोलन का मूल उद्देश्य ही यही है, कि जब तक की आखिरी नियमित कार्मिक, निजीकरण स्वीकार नहीं कर लेता, आन्दोलन जारी रहेगा। आन्दोलन की आड़ में नियमित कार्मिकों में उत्पन्न होने वाले जागरुकता के किटाणुओं को नष्ट करना ही नहीं, अपितु उनकी उत्पत्ति को भी समाप्त करना है। चूंकि आन्दोलन का आहवाहन करने वाले अधिकांश पदाधिकारियों के हित, उनके सेवानिवृत्त एवं बाहरी होने के कारण प्रभावित नहीं होते। अतः कथित मोर्चा समय-समय पर लिटमस टेस्ट हेतु अभियान चलाता रहता है। जिसके तहत कुछ दिनों पूर्व, अघ्यक्ष उ0प्र0पा0लि0 की VC के बहिष्कार का आहवाहन कर, विरोध के अति उत्साहित किटाणुओं की पहचान कराकर, सभी को आरोप पत्र जारी करा दिये गये थे। अब विरोध हेतु जारी जन सम्पर्क अभियान के माध्यम से, बची-खुची ऊर्जा की पहचान कराने का कार्य प्रगति में है। यही कारण है कि आज लोकतन्त्र में एक सरकारी सेवक एक तानाशाह के समान, एक कदम आगे बढ़कर, नियमित कार्मिकों की जेल जाने की ईच्छा पूर्ण करने की बात कहने से भी नहीं हिचक रहा है। यह कहना कदापि अनुचित न होगा कि कुछ वरिष्ठ एवं युवा बुड्ढों ने कथित राजनीतिक प्रबन्धन के साथ मिलकर ऐसे हालात उत्पन्न कर दिये हैं कि अब निजीकरण ईश्वर के अतिरिक्त कोई रोक नहीं सकता। ईश्वर सबकी मदद करे! राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द! बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.