
अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि 43454 करोड़ खर्च कर बिजली कंपनियों की स्थिति को सुधारकर उनका निजीकरण करना भ्रष्टाचार है। उपभोक्ता परिषद इस पूरे मामले को केंद्र और राष्ट्रपति को अवगत कराएगा।
केन्द्र सरकार की रिवैम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (आरडीएसएस) योजना के तहत बिजली कंपनियों की माली हालत सुधारने के लिए उन्हें वित्तीय सहायता दी जाती है। योजना के तहत यूपी की बिजली कंपनियों पर लगभग 43454 करोड़ रुपये खर्च हो रहा है। इसके बावजूद पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किए जाने का उपभोक्ता परिषद ने कड़ा विरोध किया है। परिषद का कहना है करोड़ों रुपये खर्च करके सरकारी क्षेत्र में बिजली कंपनियों का सुधारकर उसका फायदा निजी घरानों को देने की तैयारी की जा रही है।
प्रदेश को आरडीएसएस से 43454 करोड़ की सहायता
परिषद के अनुसार, केन्द्र सरकार ने 20 जुलाई 2021 को कैबिनेट की अनुशंसा के बाद राष्ट्रपति की अनुमति से देश में 303758 करोड़ की आरडीएसएस योजना लागू की। इसके जरिए विद्युत आपूर्ति की गुणवत्ता सुधारने सहित बिजली कंपनियों को आत्मनिर्भर बनाना है। साथ ही एटीएंडसी हानियां 12 से 15 प्रतिशत लाकर बिजली कंपनियों के घाटे को समाप्त करना है। योजना में प्रदेश की बिजली कंपनियों को 43454 करोड़ मिलने हैं।
राष्ट्रपति की मंजूरी वाली योजना का उल्लंघन…
आरडीएसएस योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए केंद्रीय ऊर्जा सचिव की अध्यक्षता में एक मॉनिटरिंग कमेटी बनाई गई है। जो प्रदेश में योजना की सफलता और वित्तीय रिपोर्ट पर निगरानी रखेगी। लेकिन इसी बीच उत्तर प्रदेश में 42 जनपदों के निजीकरण का फैसला किया गया है। जो पूरी तरह से राष्ट्रपति की मंजूरी से लागू इस योजना का उल्लंघन है। परिषद ने काह कि करोड़ों रुपये खर्च निजी कंपनियों को निजी हाथों में देना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना है। इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।
43454 करोड़ खर्च के बाद भी निजीकरण
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि यूपी समेत देश के सभी बिजली कंपनियों को मजबूत आधार देने के लिए यह योजना लागू की गई। योजना का 15 प्रतिशत (43454 करोड़) रुपये खर्च करके बिजली कंपनियों को घाटे से उबारा जा रहा है। ऐसे में इन कंपनियों को निजी घरानों के हवाले करना बड़ा भ्रष्टाचार है। उपभोक्ता परिषद जल्द केन्द्र सरकार और राष्ट्रपति को पूरे मामले से अवगत कराएगा।