
ऊर्जा प्रबन्धन का आचरण कुछ इस प्रकार का है कि जैसे उसने निजीकरण के ठेके का बयाना ले लिया हो। जिसके ही कारण आज वह बात-बात पर निलम्बन की कार्यवाही करने में लगा ही नहीं हुआ, बल्कि उसने निलम्बन के लक्ष्य निर्धारित कर दिये हैं। उसकी कार्यशैली कुछ इस प्रकार की है कि आज वह Ferrari Racing Car के Driver से Truck और Truck Driver से Ferrari चलवाने की जिद पर अड़ा हुआ है और असफल होने पर निलम्बन की गारण्टी। ये दूसरी बात है कि इन ड्राइवरों की सूची अलग है।
मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता। आज व्यापार एवं उसमें लाभ बढ़ाने हेतु, निलम्बन की अनिवार्यता पर देश के श्रेष्ठ नौकरशाह कहे जाने वाले अधिकारी, आज ऊर्जा निगमों में सुधार के नाम पर एक नई इबादत लिख रहे हैं। जिसमें ऐसे चापलूस अधिकारियों का प्रयोग किया जा रहा है, जोकि किसी न किसी कदाचरण के आरोपी होने के कारण धारित पद पर पदोन्नति के योग्य ही नहीं हैं। ऐसे ही अयोग्य अधिकारियों को, नियमित उपलब्ध उच्च अधिकारियों के ऊपर अवैध रुप से वरीयता प्रदान करते हुये, उच्च स्वतंत्र पद का अतिरिक्त कार्यभार देकर, सरकार की जीरो टालरेंस की नीति के विरुद्ध, कथित सुधार कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जो स्वयं पदोन्नत्ति प्राप्त नहीं कर सकते, वे दूसरों की उपयोगिता, निर्धारित कर रहे हैं।
उदाहरण के लिये पश्चिमांचल वितरण निगम में सहारपुर क्षेत्र के मुख्य अभियन्ता जोकि मूल रुप से अधीक्षण अभियन्ता हैं। जिनकी पदोन्नत्ति पर इस लिये विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि कतिपय कदाचरण के विरुद्ध उन्हें दी गई निंदा प्रविष्टियों के कारण, उनकी मुख्य अभियन्ता पद पर नियमित पदोन्नत्ति नहीं हो सकती। परन्तु आज वे अपनी कथित राजनीतिक अथवा धन-बल की पहुंच के आधार पर मुख्य अभियन्ता सहारनपुर वितरण क्षेत्र के महत्चवपूर्ण एवं संवेदनशील पद पर नियुक्त हैं। जिनके द्वारा अयोग्यता के बावजूद, प्राप्त पद पर किस प्रकार से सुधार के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। उसका जीता जागता प्रमाण है, कि जिस प्रकार से वे अयोग्य होते हुये भी उच्च पद पर आसीन हैं। ठीक उसी प्रकार से अन्य अयोग्य अधिकारी, जोकि अतिरिक्त कार्यभार प्राप्त किए हुये हैं, को निविदा पास करने वाली समिति का सदस्य बनाया हुआ था।
सर्वविदित है कि इस प्रकार की समितियां किस आधार पर कार्य करती हैं। ऐसे अयोग्य मुख्य अभियन्ता के यहां पर कार्य के नाम पर, इतने बड़े पैमाने पर निलम्बन अर्थात निहित स्वार्थ का मार्ग प्रशस्त करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। परन्तु ऊर्जा निगमों में सुधार के नाम पर नियुक्त, देश के सर्वश्रेष्ठ नौकरशाह, आये दिन अपने ही अधिकारियों और कर्मचारियों को ताश के पत्तों की तरह फेंटते हुये, उन्हें कभी स्थान्तरित तो कभी निलम्बित करके, कार्यकुशलता एवं दक्षता बढ़ाने की नई तकनीक का ईजाद करने में लगे हुये हैं। दुनिया में शायद ही ऐसा कोई उदाहरण हो, जहां Ferrari Racing Car के Driver को Truck पर और Truck Driver को Ferrari का Driver बनाकर, Racing Car एवं Truck की स्पर्धा जीतने का दावा किया जाता हो। पारेषण से वितरण, वितरण से पारेषण, अयोग्य अधिकारियों को योग्य अधिकारियों पर वरीयता, इलेक्ट्रीकल की जगह अन्य इन्जीनियर को नियुक्त करके, बिना कोई उचित प्रशिक्षण दिये, अतिरिक्त ऊर्जा एवं दक्षता के साथ परिणाम पाने का भ्रम, दुनिया में सिर्फ ऊर्जा निगमों में नियुक्त कतिपय नौकरशाह ही कर सकते हैं।
विदित हो कि कोई भी व्यापारी अपना व्यापार बढ़ाने के लिये प्रलोभन देकर, पुचकार कर, वेतन बढ़ाकर अथवा आवश्यकतानुसार, अतिरिक्त कर्मचारियों को नियुक्त कर, अपना व्यापार एवं लाभ बढ़ाने का हर-सम्भव प्रयास करता रहता है तथा सदैव ही अपने नियमित, अनुभवी एवं भरोसेमंद कर्मचारी को अपने साथ जोड़े रखना चाहता है। भारतीय संविधान के रक्षक एवं न्याय के सर्वोच्च एवं अन्तिम प्रतीक माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार ”स्थानान्तरण एवं निलम्बन, दण्ड नहीं है“। जिसकी आड़ में अंग्रेजों को भी कहीं बहुत पीछे छोड़कर, बात-बात पर, नाक पर मक्खी बैठने के समान, कारणों पर ही ”स्थानान्तरण एवं निलम्बन“ करने का जैसे प्रचलन सा बन चुका है। निलम्बन अर्थात निष्पक्ष एवं बिना किसी व्यवधान के जांच हेतु, जीवन निर्वाह भत्ते के साथ कार्य से विरक्त करना। निलम्बित सिर्फ उसी स्थिति में किया जाना होता है, जब आरोपों की गम्भीरता एवं प्रकृति इस प्रकार की हो, कि उनके सत्यापित/सिद्ध होने पर वृहद दण्ड सम्भावित हो। निलम्बन से पूर्व स्पष्टीकरण प्रप्त करना, कारण बताओ नोटिस जारी करना, चेतावनी देना, आदि प्रमुख कार्यवाहियां करना अनिवार्य होता है। राजस्व वसूली एवं OTS आदि में कम पंजीकरण के नाम पर निलम्बन जैसी कार्यवाही अदुरदर्शिता एवं अपरिपक्वता के अतिरिक्त यदि कुछ भी है तो वह नाक पर मक्खी बैठने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्योंकि उपभोक्ता द्वारा निर्धारित धन जमाकर पंजीकरण कराने से इंकार करने अथवा असमर्थता जताने पर, क्षेत्र में नियुक्त कार्मिक के पास ऐसा कोई अधिकार अथवा अस्त्र नहीं है कि जिसका प्रयोग कर, वह पंजीकरण एवं राजस्व वसूली में वृद्धि कर सके। यह व्यापार करने का तरीका नहीं है कि एक तरफ पिछले लगभग एक माह से OTS के प्रचार-प्रसार पर जनता का धन लुटाया जा रहा है और अब उसकी वसूली में लगे कार्मिकों को ही निलम्बित कर OTS योजना को विफल बनाने का हर-सम्भव प्रयास किया जा रहा है।
यह भी एक नया उदाहरण है कि जिसमें सभी सैनिकों का कोर्ट मार्शल करके युद्ध जीतने का दावा किया जा रहा है। अध्यक्ष पा0का0लि0 एवं प्रबन्ध निदेशक प0वि0वि0नि0लि0 की सोशल मीडिया पर वायरल वीडिओ, जिसमें निलम्बन के पदानुसार लक्ष्य निर्धारित कर दिये गये हैं। जिसका तात्पर्य कार्य से नहीं, बल्कि कहीं न कहीं मार्ग में आने वाले कांटों को चिन्हित करके, उन्हें मार्ग से हटाना ही है। जो निजी कम्पनियों द्वारा Sponsored Management की सुधार की नीति को स्पष्ट करती है। जिसमें सिर्फ और सिर्फ निहित स्वार्थ के अतिरिक्त कुछ भी नजर नहीं आता है। जिसका परिचय पा0का0लि0 के अध्यक्ष महोदय पहले ही निजी कम्पनियों की तारीफ में कसीदे पढ़कर दे चुके हैं।
यक्ष प्रश्न उठता है कि उपभोक्ताओं के द्वारा OTS योजना में रुचि न लेने के कारण निलम्बित कार्मिकों की किस प्रकार से सेवायें समाप्त होने की सम्भावना है। इससे भी बड़ी बात यह है कि अभी सप्ताह-दो सप्ताह के भीतर ही, बिना कोई जांच किये, इन निलम्बित कार्मिकों को लम्बित जांच के विरुद्ध बहाल कर दिया जायेगा। जैसा कि गत् माह बुलन्दशहर में निलम्बित किये गये अधीक्षण अभियन्ता को इस माह बहाल कर और अब सहारनपुर में रिक्त स्थान पर नियुक्त कर दिया गया है। प्रश्न उठता है कि क्या यह एक सुनियोजित नियुक्ति है, जिसमें जो समझौता पिछले अधीक्षण अभियन्ता नहीं कर सके, वह इनको करना है।
क्रमशः राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
- बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA.