
मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता। वितरण कम्पनियों के निजीकरण की चर्चा ही नहीं बल्कि उस पर कार्यवाही लगभग पिछले 6 माह से अपनी गति से चल रही है। जिसके विरोध के नाम पर दोपहर लंच के समय जब मुख्यालयों पर कुछ निठल्ले बुजुर्ग सेवानिवृत्त कार्मिक पहुंचकर तालियां पीटते हैं, तब कुछ खुसर-पुसर सुनाई देती है। जिसे देखकर मन व्यथित हो जाता है। क्योंकि कभी ऊर्जा निगमों में कार्मिकों की एकता एवं उनके जोश का तोड़ सरकार के पास भी नहीं होता था। परन्तु आज एक नियन्त्रक अधिकारी से आगे जाने का साहस भी समाप्त हो चुका है। मुख्यालय के द्वार पर निजीकरण के विरोध की औपचारिकता निभाते बुजुर्ग सेवानिवृत्त कार्मिक पदाधिकारियों उन गरिमामयी पलों के जीते जागते गवाह हैं। कभी कार्मिक संगठनों की वह आवाज थी जोकि सरकार के गलियारों तक गूंजती थी। परन्तु उन पलों के अहंकार में, जिस प्रकार से कुछ कार्मिक पदाधिकारियों ने अपने आपको अजर-अमर समझकर युवाओं को कभी आगे बढ़ने ही नहीं दिया, उसका परिणाम है कि आज वे ही पदाधिकारी अपनी वृद्धावस्था में अपनी धपली अकेले ही बजाने के लिए विवश हैं। इनमें से अधिकांश पदाधिकारी वे हैं जिन्होंने पिछले दरवाजे से प्रबन्धन के साथ हाथ मिलाया हुआ है। जिसके अनेक परिस्थिति जन्य प्रमाण हैं। जैसे एक सफल आन्दोलन के बाद भी कुछ संगठनों द्वारा भीतरघात के कारण, मात्र 77 करोड़ के घाटे पर तत्कालीन उ0प्र0रा0वि0प0 का विघटन तथा नोएडा एवं आगरा में निजीकरण, आदि।
इन विघटनों एवं निजीकरण के कथित विशेषज्ञ चर्चित चेहरे, आज भी कथित आन्दोलन के कागजों पर हस्ताक्षर के रुप में देखे जा सकते हैं। स्मरण रहे कि विगत आन्दोलन, कतिपय कार्मिक पदाधिकारियों के द्वारा अपनी व्यक्तिगत कुण्ठा को सन्तुष्ट करने हेतु एक ईमानदार अध्यक्ष को हटाने के लिये किया गया था। जिसका मूल उद्देश्य ही स्थानांतरण एवं नियुक्ति उधोग में अपनी हिस्सेदारी एवं भ्रष्टाचार के उखड़ते तमाम खम्भों को बचाना था। जिसके कारण बेरोजगार हो चुके कार्मिक पदाधिकारी, उन लोगों के हाथों की कठपुतली बन गये थे, जिनके खुद के हित ईमानदारी के आगे बिखर रहे थे।
विभाग एवं कार्मिक हितों में बेबाक द्वारा तत्कालीन अध्यक्ष को विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा कर सहमति बनाने के लिये सहमत कर लिया था। परन्तु नियमित कार्मिक पदाधिकारियों ने अपने बुजुर्ग सेवानिवृत्त कार्मिक पदाधिकारियों के सहमत न होने पर अपनी असहमति प्रकट कर दी थी। क्योंकि उक्त आन्दोलन कतिपय प्रभावशाली लोगों के द्वारा प्रयोजित एवं पोषित था। जिनका विरोध करने का साहस उनमें से किसी में भी नहीं था। स्पष्ट है किवह आन्दोलन कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना से प्रेरित था। अन्ततः एक मानवाधिकार के मामले में उन अध्यक्ष महोदय को जाना पड़ा और ऊर्जा निगमों में मिठाई और नाच गानों के बीच एक अभूतपूर्व जश्न मनाया गया। लोगों को लगा कि अब वही होगा जो वो चाहेंगे। आन्दोलन के प्रायोजकों का एक सूत्रीय उद्देश्य पूरा हो चुका था। परन्तु प्रबन्धन के बदले जाने के बाद भी निलंबित पदाधिकारियों को बहाल होते-होते दो वर्ष लग गये।
कार्मिक पदाधिकारियों के द्वारा निलम्बन के बावजूद संगठन के पदों पर लगातार बने रहने के कारण, संगठन शून्य की ओर चले गये। सदस्यों के मन में यह विश्वास घर कर गया, कि जब उनका सर्वोच्च पदाधिकारी 2 साल तक अपना निलम्बन वापस नहीं करा सके, तो उनका क्या होगा। परिणामतः आज अधिकांश नियमित कार्मिक आन्दोलन के नाम से ही काफी डरा और सहमा हुआ है। परन्तु इसी के साथ-साथ अपने धन्धे पानी से कोई भी समझौता करने के लिये तैयार नहीं है। आज पुनः स्थानान्तरण एवं नियुक्ति के उद्योग-धन्धे अपने उफान पर हैं। अतिरिक्त कार्यभार लेकर, दोनों हाथों से कारोबार चल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि जहां कतिपय सेवानिवृत्त पदाधिकारियों के मोर्चे ने शासन एवं प्रशासन से निजीकरण कराने की सुपारी ले रखी है, तो वहीं डरे-सहमे नियमित कार्मिकों से भी निजीकरण न होने देने की सुपारी ले रखी है। जिसकी समयबद्ध प्रक्रिया अपनी गति से चल रही है। तदानुसार निजीकरण के विरोध के नाम पर मुख्यालयों के द्वार पर बुजुर्ग सेवानिवृत्त कार्मिकों के द्वारा प्रबन्धन के साथ मिलकर सुगमतापूर्वक निजीकरण कराने हेतु पूर्व-निर्धारित पटकथा के अनुसार, तालियां पीटी जा रही हैं। जिसका प्रमाण है, देखते-देखते एक ब्लैक लिस्टेड कम्पनी का सलाहकार के रुप में नियुक्त होकर कार्य करना। वहीं दूसरी ओर, आये दिन कार्मिक कार्य के नाम पर दण्डित किये जा रहे हैं।
वितरण कम्पनियों में नियुक्त निदेशकों में अधिकांश विभागीय इन्जीनियर होने के बावजूद, आज कथित वायसराय की हां में हां मिला रहे हैं। हम सभी को यह अच्छी तरह से ज्ञात है कि निजीकरण की योजना उ0प्र0 सरकार की न होकर भारत सरकार की है। जिसमें अध्यक्ष उ0प्र0पा0का0लि0 मात्र एक सरकारी अधिकारी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है तथा उसके भी कुछ निहित हित हैं। अतः वह प्रदेश सरकार एवं केन्द्र सरकार द्वारा दिये गये निर्देशों की अवहेलना करने का साहस नहीं कर सकता। अतः बार-बार शक्ति भवन पर प्रदर्शन और अध्यक्ष उ0प्र0पा0का0लि0 से निजीकरण रद्द करने की मांग करना, पूर्णतः पूर्व नियोजित पटकथा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। जिसका मूल उद्देश्य निहित स्वार्थ में ऊर्जा निगमों के नियमित कार्मिकों को गुमराह करते हुए, निजीकरण के जहाज को सुगमता से किनारे लगाना है। अब वर्तमान अध्यक्ष उ0प्र0पा0का0लि0 को हटाने की मांग उठ रही है। जिनको लाने के लिये तमाम कार्मिकों की बलि प्रदान की गई थी।
निजीकरण की लड़ाई में एक बार फिर संविदा कर्मियों को बलि का बकरा बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। इस निजीकरण की प्रक्रिया का सबसे विचित्र दृश्य यह है कि निजीकरण होने न होने से जिन लोगों के हित, तनिक भी प्रभावित नहीं होते हैं, वे अकेले निजीकरण का विरोध करते हुये इन्कलाब लाने का उदघोष करते नजर आ रहे हैं। एक बार फिर बेबाक का यह कहना है कि किसी बहकावे में न आयें। विरोध प्रदर्शन का कार्य समर्पित युवाओं का होता है न कि बुजुर्गों का। स्मरण रहे कि निजीकरण की सुनियोजित प्रक्रिया अपनी गति से निर्बाध चल रही है। कहीं ऐसा न हो कि विरोध करने के नाम पर कुछ लोग कवर देते हुए निजीकरण का जहाज बन्दरगाह तक पहुंचा दें और आप देखते रह जायें। जिसकी प्रबल संभावना है। वैसे भी निजीकरण की प्रक्रिया का स्विच लखनऊ में नहीं, दिल्ली में है। यदि दिल्ली तक अपनी आवाज पहुंचानी है तो युवाओं को एक संकल्प के साथ आगे आना ही होगा। अन्यथा आप सभी यह लड़ाई लगभग हार चुके हैं।
राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
0बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.