
मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता। पिछले अंक 45/29.12.2024 (Part-2) में आपने पढ़ा कि ऊर्जा निगमों में किस प्रकार से सुधार के नाम पर, निलम्बन की 3-Tier व्यवस्था ऊर्जा मन्त्रालय के अधीन चल रही है। जहां बाहरी प्रबन्धन एवं उनके द्वारा नियुक्त अयोग्य अधिकारी, वितरण कम्पनियों में छुट्टा बैल (हरे-भरे खेत को खाना अथवा पैरों तले कुचलना) की तरह घूमते हुये, लगभग रु० 500 करोड़ प्रतिमाह की दर से घाटे में डुबोने में लगे हुये हैं। जिसके लिये उनका कोई उत्तरदायित्व नहीं है। परन्तु यदि कोई मुंह खोलने का प्रयास करे, तो उसका मुंह बन्द करने के लिये, अंग्रेजों के द्वारा स्थापित सुधारों का प्रयोग करने में, कोई संकोच अथवा विलम्ब तक नहीं किया जाता।
बकाये विद्युत बिलों में छूट पाने हेतु, एकमुश्त समाधान योजना (OTS) बाध्यकारी नहीं, बल्कि एक स्वैच्छिक योजना है। परन्तु इसके बावजूद इसे लगातार बाध्यकारी बनाने का प्रयास किया जा रहा है। जिसके विरुद्ध सीधे निलम्बन की कार्यवाहियां की गई हैं। जबकि OTS के तहत, बकायेदार उपभोक्ता, चाहे तो विद्युत बिल में जुड़े अधिभार (Surcharge) में छूट पाने हेतु, स्वेच्छा से, सशर्त पंजीकरण कराकर छूट का लाभ प्राप्त कर सकता है। विभागीय कर्मचारी/ अधिकारीगण सिर्फ बकायेदारों से सम्पर्क कर, उन्हें उनको प्राप्त होने वाले लाभ से अवगत् कराते हुये, उनका संयोजन विच्छेदन करने के अतिरिक्त, कुछ भी नहीं कर सकते। बकाये का भुगतान करने हेतु इस चेतावनी के साथ पहले Section-3 और फिर बाद में संयोजन विच्छेदन कर बकाया वसूली हेतु Section-5 का नोटिस जारी कर Revenue Collection (RC) हेतु जिलाधिकारी के अधीन राजस्व संग्रह कार्यालय को प्रेषित करते हैं। जिस पर बकाये के साथ-साथ, बकाये का 10% अतिरिक्त संग्रह शुल्क, जोकि अनिवार्य है, जिला प्रशासन द्वारा वसूला जाता है तथा भुगतान न करने पर कारावास तक प्रावधान है। यदि Section-5 के द्वारा जारी RC की बात करें, तो आश्चर्यचकित आंकड़े सामने आयेंगे।
जिलाधिकारी के अधीन राजस्व संग्रह कार्यालय द्वारा होने वाली वसूली पर 10% की सीधे सरकार को होने वाली आमदनी की बात करें, तो वहां पर भी प्रशासनिक अधिकारी ही नियुक्त हैं जो वहां पर न तो किसी का स्थानान्तरण करते हैं और न ही निलम्बन। मार-पीट एवं गाली-गलौच के बीच बकाये की वसूली, वितरण निगम के कर्मचारी करते हैं और बकायेदार उपभोक्ता, बकाये पर सरकार की हिस्सेदारी, (बिना राजस्व संग्रहकर्ता के प्रयास के) बकाये का 10% अमीन के यहां जमा कराकर, उसकी रसीद विभाग में प्रस्तुत करता है। तभी वह RC वापस होती है। स्वतन्त्र भारत में, संविधान के विरुद्ध, तानाशाही पूर्ण तरीके से कार्य करने की अनुमति किसी भी अधिकारी अथवा राजनेता को नहीं है। कोई भी कर्मचारी अथवा अधिकारी बकायेदार को पद का भय दिखलाते हुये, डराने-धमकाने का प्रयास नहीं कर सकता। अन्यथा उसके विरिद्ध संविधान सम्मत विधिक कार्यवाही का प्राविधान है। स्वयं अध्यक्ष, प्रबन्ध निदेशक अथवा मन्त्री जी भी, क्षेत्र में दौरे के दौरान, उपभोक्ताओं से सभ्य आचरण के माध्यम से ही बकाया जमा करने का अनुरोध करते हैं। जगह-जगह से OTS के नाम पर उगाही की सूचनायें आ रही हैं।
विदित हो कि शुरु से ही OTS के नाम पर बिल एवं उस पर Surcharge का खेल खेला जाता रहा है। जोकि आज भी बदस्तूर जारी है। जिसमें अधिकारियों की पत्ती के नाम पर खण्ड एवं उपखण्ड कार्यालय में नियुक्त लेखाकार एवं लिपिक ही सबसे बड़े अधिकारी हैं। यही कारण है कि इच्छुक उपभोक्ता, बार-बार कार्यालय के चक्कर काटने के स्थान पर, थक-हार कर घर बैठ जाता है। यदि गलती से कोई अधिकारी ईमानदारी अथवा मेहनत से कार्य करने का प्रयास करे, तो उसके उच्च अधिकारी उससे इस कदर चिढ़ जाते हैं कि उसका भविष्य ही खराब करने पर उतारु हो जाते हैं। प0वि0वि0नि0लि0 में सहारनपुर क्षेत्र बिलिंग घोटाले में अव्वल है। जहां एक नहीं दो नहीं, बल्कि हजारों ऐसे उदाहरण हैं। जहां बिना भुगतान किये अथवा मात्र पंजीकरण कराने के बाद, बिना कोई भुगतान हुये ही, करोड़ों रुपये के बिल, बिलिंग लेजर से साफ कर दिये गये। क्या फर्जी रसीद और क्या फर्जी संयोजन यहां तक की विद्युत चोरी के मामलों में भी फर्जी भुगतान दर्शाकर मुकदमें वापिस हुये हैं, जिसमें कर्मचारी, लेखाकार और अधिकारियों की संलिप्तता स्पष्ट एवं सिद्ध हुई है, जिन्होंने बकायेदारों से बिल धनराशि तो वसूली, परन्तु विभागीय खाते में जमा नहीं की और फर्जी रसीद से भुगतान जमा दर्शाकर छूट प्रदान कर दी गई। जब तक Online भुगतान की व्यवस्था नहीं थी, सैकड़ों संयोजन ऐसे थे, जोकि विभाग द्वारा दिये ही नहीं गये, परन्तु उन पर उपभोक्ता द्वारा बिल जमा किया जा रहा था। आज भी लोगों के पास पुरानी रसीदें हैं। जिनके आधार पर पुराना भुगतान जमा दर्शाकर पिछला बकाया उड़ा दिया जाता है। विभाग की बदकिस्मती है कि अब ऐसे जानकार लोग या तो विभाग के पास बचे नहीं और यदि बचे भी हैं तो अपनी निष्ठाओं के कारण अर्जी-फर्जी जांच में फंसे हुए, उससे पीछा छुड़वाने में लगे हुये VRS लेने की लाईन में खड़े हुये हैं।
विदित हो कि कभी सहारनपुर में ही, एक अधिकारी द्वारा, ऐसे ही मामलों को उजागर करने का दुस्साहस किया था, लगभग 4.5 करोड़ का विविध अग्रिम तक आरोपियों पर डाला गया था। पुलिस में गबन की रिपोर्ट तक दर्ज हुई थी। परन्तु प्रबन्धन द्वारा उक्त अधिकारी को ईनाम के तौर पर काला-पानी की सजा सुनाई गई थी और उनके स्थान पर भ्रष्टाचार के विशेषज्ञों को नियुक्त कर, प्रबन्धन के हितों के लिये समर्पित आरोपियों के विरुद्ध मामले को रफा-दफा करा दिया गया था। जिससे कि वह आग एक खण्ड से बाहर वितरण मण्डल एवं क्षेत्र के साथ कम्पनी में न फैल जाये। उक्त निष्ठावान अधिकारी के भविष्य को प्रबन्धन द्वारा खराब करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई, जो आज न्याय की आस छोड़कर, अपनी ईमानदारी को सीने से लगाए, एक किनारे, बिना किसी पदोन्नत्ति के, चुपचाप समय काट रहा है। क्योंकि उसकी निष्ठा, सिर्फ एक भूल थी। प्रबन्धन/अभियन्ता प्रबन्धन यह कदापि नहीं चाहता कि उनके अतिरिक्त, किसी अन्य की निष्ठा, अन्य के लिये प्रेरणादायक बने और उनका सिर दर्द बढ़े। जिसमें प्रबन्धन के साथ-साथ कार्मिक संगठनों का भी यही प्रयास रहता है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध कहीं भी कोई मामला न उठे। क्योंकि भ्रष्टाचार मिटाने का सबसे बढ़िया तरीका ही यही है कि ईमानदारी की बात करने वाले को, काला पानी भेजकर मामले को रफा-दफा कर दो। जबकि उस वक्त मलाई खाने वाले नियुक्त अन्य अधिकारी, निदेशक पद तक पर आसीन हुये। जिसकी देखा-देखी अन्य भी आज तक सिर्फ और सिर्फ मलाई खाने में लगे हुये हैं।
गत् दिनों सहारनपुर में हुई निलम्बन की कार्यवाही भी, मलाई के रास्ते से बाधा हटाने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं थी। जिसमें बड़ों-बड़ों के हाथ होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। विगत सप्ताह कथित विद्युत कार्मिकों की एक पंचायत में, प्रबन्धन के घोटालों को उजागर करने की बात कही गई थी, तो वहीं आज एक समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार, भ्रष्टाचार पर सीधे बर्खास्तगी के प्रस्ताव की बात कही गई है। जो “कहने और करने की” आम कहावत से एक शब्द भी इतर नहीं है। क्योंकि सत्य, सभी बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। जोकि अब नववर्ष 2025 की पहली सबसे आश्चर्यजनक खबर है। देखना रोचक होगा कि उपरोक्त कथनी और करनी में कितनी समानता दिखलाई देती है अथवा समय की हवा में राजनेताओं की तरह कहे शब्द, कहीं लुप्त हो जायेंगे।
राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
- बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA.