
विभागीय नियमों की अनदेखी कर बाराबंकी प्रथम डिविजन द्वारा दूसरे डिविजन क्षेत्र के उपभोक्ता को 150 किलोवाट कनेक्शन दिए जाने का प्रकरण को लीपापोती करने करने के लिए मुख्य अभियन्ता द्वारा तैयार कराया जा रहा है नया फाइल … क्योंकि दस्तावेंजो के अनुसार अवर अभियन्ता के टीएफआर रिपोर्ट को नकार कर दिया गया संयोजन प्रकरण में सभी कमेटी बनी द्वारा अधिशासी अभियंता को दोषी करार दिया गया था, इसके उपरान्त भी कोई कारवाई नहीं की गई… लेकिन मामला मीडिया में तूल पकड़ने के उपरान्त मुख्य अभियन्ता द्वारा नया फाइल तैयार कराया जा रहा है… इन सबसे के बीच एक अहम सवाल कि नया दस्तावेंज कराने में मुख्य अभियन्ता का क्या है फायदा?
अधिशाषी अभियंता बाराबंकी प्रथम सुभाष मौर्य द्वारा विभाग में अपने पद का दायित्व निभाने के साथ-साथ ठेकेदारी करने एवं विभागीय नियमों की अनदेखी करते हुए मनमाना काम करने के सम्बन्धित बहुत प्रकरण है, लेकिन एक प्रकरण जोकि न सिर्फ आजकल चर्चाओं में है, बल्कि विभाग का सिर शर्म से झुक गया है। बाराबंकी जिला में यह प्रकरण डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद एजुकेशन सोसायटी द्वारा मानत श्रीवास्तव पत्नी विजय कुमार श्रीवास्तव पता खा0स0 2339 ग्राम लक्ष्बार बजहा, परगना प्रतापगंज, अयोध्या रोड, तहसील नवाब गंज, बाराबंकी निवेश मित्र की आवेदन संख्या-1010109278, संयोजन संख्या 153420 पर एच वी 1 विद्या में स्वीकृत 150 के0वी0ए0 विद्युत भार के के सम्बन्धित है… दूसरे डिविजन क्षेत्र में जाकर लॉ कालेज को 150 केवीए कनेक्शन को ऊर्जाकृत करने प्रकरण सम्बन्धित सभी कमेटी बनी द्वारा अधिशासी अभियंता को दोषी करार देने के बाद भी अभी तक कार्यवाही क्यों नहीं? इस सन्दर्भ में कुछ अहम सवाल….
1. संयोजन को ऊर्जीकृत करने के पहले भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (MHAI) से परमिशन नहीं ली गई है। बिना परमिशन के अंडरग्राउंड केबिल डाल दी गई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जल्द ही भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (MHAI) द्वारा अभियोग पंजीकृत कराई जाएगी।
2. मध्यांचल मुख्यालय के क्वॉलिटी सेल द्वारा अंडरग्राउंड केबिल को वेव ऑफ करने का अप्रूवल नहीं दिया गया… बल्कि निर्देशित किया गया कि केबल की जांच करा ली जाए उसके उपरान्त ही संयोजन चालू किया जाए… लेकिन अधिशासी अभियंता ने मुख्य अभियंता एवं अधीक्षण अभियंता को गुमराह करते हुए अपने स्पष्टीकरण में लिखा हैं कि केबिल की लागत 2 लाख से कम हैं… इसलिए केबिल की जांच कराया जाना आवश्यक नहीं है, जबकि प्रबन्ध निदेशक मध्यांचल का आदेश है कि प्राक्कलन में जिस सामान की लागत 2 लाख से अधिक हैं, उसकी जांच होना अति आवश्यक है।
3. अधिशासी अभियंता द्वारा अपने स्पष्टीकरण में लिखा गया है कि अवर अभियन्ता के द्वारा अपने टीएफआर में नहीं लिखा गया है कि उक्त परिसर पर कोई संयोजन रामसनेही घाट डिवीजन से चल रहा है जबकि अवर अभियन्ता एवं द्वारा संयुक्त रूप से अधीक्षण अभियंता महोदया को लिखित रूप से बताया गया है एवं उनके टीएफआर में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि उसी परिसर पर एक अन्य संयोजन राम सनेही घाट डिवीजन से चल रहा है, जिससे स्पष्ट होता है कि अधिशासी अभियंता द्वारा फर्जी तथ्यों के आधार पर उच्चाधिकारियों को गुमराह कर संयोजन निर्गत किया गया है और अपना बचाव किया जा रहा है।
4. अधिशाषी अभियंता द्वारा स्पष्टीकरण में बताया गया हैं कि प्रबन्ध निदेशक – मध्यांचल द्वारा जोन से गठित जांच समिति द्वारा सुपरविजन के कार्यों में लगने वाले सामान की जांच की जाएगी पर बिना किसी जांच समिति के गठन के साइट पर सामान लगा दिया गया।
5. अधिशासी अभियंता द्वारा अपने पत्र में लिखा गया है कि परिसर अलग है जबकि उसी परिसर में पास की बिल्डिंग से संयोजन चल रहा है। अगर परिसर अलग है तो फिर दूसरे परिसर से बिजली प्रयोग करना बिजली चोरी के अंतर्गत आता है फिर अधिशासी अभियंता द्वारा उपभोक्ता के ऊपर मेहरबानी दिखाते हुए कार्पोरेशन को लाखों रुपए की राजस्व की हानि क्यों पहुंचाई एवं उपभोक्ता के विरूद्ध अभियोग क्यों नहीं कराई गई।
जितनी भी कमेटी बनी है सभी ने अधिशासी अभियंता को दोषी करार दिया है तो अब तक इनके विरूद्ध अभी तक कार्यवाही क्यू नहीं हुई, अगर अधीक्षण अभियंता महोदया को लगता है कि सभी निर्दोष है तो इसका मतलब उनके द्वारा, मुख्य अभियंता द्वारा एवं मध्यांचल द्वारा गठित जांच कमेटी के सभी लोग दोषी है तो फिर इन लोगों पर अभी तक क्यों नहीं कार्यवाही हुई।
आईए जानते हैं क्या है बाराबंकी प्रथम के अंतर्गत 150 किलोवाट कनेक्शन दिए जाने का प्रकरण………
राजेंद्र प्रसाद एजुकेशनल सोसाइटी जो कि लखनऊ अयोध्या हाईवे पर लक्षबर गांव स्थित है में वर्तमान में एक कनेक्शन 70 किलो वाट का रामसनेहीघाट डिविजन से ग्रामीण आपूर्ति 18 घंटे सप्लाई पर संचालित है …सोसाइटी एक इंस्टिट्यूट है जिसमें ला और मेडिकल संबंधी शिक्षाएं दी जाती हैं परिसर मलिक काफी दिनों से चाहता था कि उसकी 24 घंटे की सप्लाई मिल जाए उसने रामसनेहीघाट डिवीजन में प्रयास किया लेकिन ग्रामीण फीडर होने के चलते ही संभव नहीं था।
परिसर से करीब 300 मीटर की दूरी पर एक अन्य 24 घंटे सप्लाई वाला फीडर जो कि बाराबंकी खंड प्रथम के अंतर्गत पलहरी उपकेंद्र से है जो कि इंडस्ट्रियल फीडर है एवं उस पर 24 घंटे की आपूर्ति की जाती हैं। उपभोक्ता कई वर्षों से इस फिराक में था कि उसको 24 घंटे की आपूर्ति मिल जाए एवं उसके लिए उसने बाराबंकी खंड प्रथम में अधिशासी अभियन्ता से संपर्क किया। संपर्क करने पर उसको सलाह दी गई कि आप हमारे यहां से कनेक्शन अप्लाई कर दीजिए और हम आपको 24 घंटे की सप्लाई से संयोजन दे देंगे।
बड़ी अड़चन यह थी कि जिस पॉइंट से कनेक्शन जुड़ना था वह लाइन पीछे करीब दो किलोमीटर सिंगल केबल पर एक फैक्ट्री के लिए आई थी फैक्ट्री वाले को जब यह बात पता चली कि मेरी लाइन से जोड़कर आगे कनेक्शन दिया जा रहा है तो उसने आपत्ति की… क्योंकि उसके द्वारा उसे लाइन को बनवाने में करीब 40 लाख खर्च किए गए थे उसने नए उपभोक्ता से कास्ट शेयर करने की बात कही व 20 लाख की मांग की जो कि उपभोक्ता देने को तैयार नहीं था। मुख्य अभियन्ता ने लाइन जुड़वाने का जिम्मा लेते हुए उपभोक्ता को नया कनेक्शन बाराबंकी खंड प्रथम से लेने हेतु 150 किलोवाट भार का आवेदन निवेश मित्र के माध्यम से करा दिया वह पहले से चल रहे हैं 70 किलो वाट के कनेक्शन को पीडी करा देने का सुझाव दिया गया।
अधिशासी अभियंता बाराबंकी प्रथम द्वारा संयोजन निर्गत करने व लाइन जुड़वाने का जिम्मा 25 लाख में ले लिया गया और अवर अभियन्ता व उपखण्ड अधिकारी को सर्वे कर एस्टीमेट निर्मित करने हेतु निर्देशित किया गया। अवर अभियन्ता व उपखण्ड अधिकारी द्वारा अपनी तकनीकी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से अंकित किया कि परिसर में पूर्व से एक संयोजन रामसनेहीघाट डिवीजन से निर्गत है चल रहा है। मुख्य अभियन्ता ने जानकारी में आने के बावजूद भी नया कनेक्शन हेतु भार स्वयं स्वीकृत कर प्राक्कलन बनाने हेतु निर्देशित कर दिया गया।
मुख्य अभियन्ता द्वारा आवेदक को सुपरविजन के तहत लाइन निर्माण कराने की सलाह दी गई व सुपरविजन की धनराशि जमा करवाते हुए अपने पूर्व चहेते ठेकेदार जिससे वो वृंदावन डिवीजन में भी कार्य कर रहे थे को बुलाकर कार्य सौंप दिया गया। स्थल पर विद्युत तंत्र का निर्माण प्राक्कलन अनुरूप नहीं किया गया। चूंकि ठेकेदारी स्वयं बड़े साहब कर रहे थे जिनका मूल उद्देश्य धनराशि बचाना था। जिसके लिए एस्टीमेट में ली गई हाईवे क्रॉसिंग हेतु एचडीपीई पाइप नहीं डाली डाली गई व नियमानुसार एनएचएआई से परमिशन की धनराशि भी नहीं जमा कराई गई व परमिशन भी नहीं ली गई । लाइन टैपिंग पॉइंट पर डबल पोल नहीं बनाया गया। स्वयं ही केबल खरीद कर बिना तकनीकी औपचारिकताएं पूर्ण किए ही केबल जमीन में डाल दी गई। खराब काम करने का उद्देश्य केवल लागत कम करना था।
सुपरविजन के तहत बनाए गए विद्युत तंत्र की जांच हेतु मुख्य अभियंता द्वारा दो सदस्यीय कमेटी बनाई गई। कमेटी द्वारा तंत्र की जांच की गई और उसमें कमियां पाई गई। जांच कमेटी ने कमियां इंगित करते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। चुकि काम करने का जिम्मा बड़े साहब ने खुद लिया था ठेकेदार भी उन्हीं का था इसलिए जांच कमेटी द्वारा बताई गई कमियों को दूर करने हेतु उपभोक्ता को सूचित करने के बजाय मीटर लगाने हेतु एक्सीयन टेस्ट को इंडेंट जारी कर दिया गया।
चूंकि जांच कमेटी में एक्शियन टेस्ट स्वयं सदस्य थे इसलिए उनके द्वारा कनेक्शन चालू करने हेतु मीटर लगाए जाने से मना कर दिया गया एवं अधीक्षण अभियंता को पत्र लिखते हुए सूचित कर दिया गया। साइट पर लाइन जोड़ने गए अवर अभियन्ता व उपखण्ड अधिकारी को पूर्व उपभोक्ता जिसकी लाइन से आगे लाइन जोड़ी जानी थी श, ने लाइन जोड़ने से मना कर दिया जिस पर बड़े साहब ने जबरन बिना पुराने उपभोक्ता की सहमति लिए ही लाइन जुड़वा दी। पुराना उपभोक्ता लाइन जोड़ने के एवज में स्वयं के द्वारा खर्च किए गए धनराशि का 50 प्रतिशत नए उपभोक्ता से मांग रहा था।
अधिशासी अभियन्ता ने अपने स्पष्टीकरण में लिखा है कि अवर अभियन्ता एवं उपखण्ड अधिकारी ने अपने टीएफआर में यह नहीं लिखा है कि उक्त परिसर पर एक अलग कनेक्शन राम सनेही घाट से चल रहा है जबकि अवर अभियन्ता एवं उपखण्ड अधिकारी ने अधीक्षण अभियंता को भेजे गए अपने स्पष्टीकरण में लिख के दिया है किन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा है कि उक्त परिसर पर रामसनेहीघाट डिवीजन से एक संयोजन ऊर्जीकृत है ।जिससे स्पष्ट है कि अधिशाषी अभियंता मौर्या द्वारा झूठे तथ्य देकर अधीक्षण अभियंता को गुमराह किया है। दूसरे मध्यांचल द्वारा केबिल को प्रीडिस्पैच/इंस्पेक्शन की जांच कराने के लिए निर्देशित किया गया था जिसे बिना जांच के ही केबिल चालू कर संयोजन चालू कर दिया गया।
अधीक्षण अभियंता ने कमेटी द्वारा लगाई गई आपत्तियां की जांच हेतु पुनः एक कमेटी गठित कर जांच कराई गई। दुबारा गठित की गई कमेटी ने भी पूर्व में लगाई गई आपत्तियों को सही दर्शाते हुए संयोजन निर्गत किया जाना संभव नहीं है की रिपोर्ट प्रस्तुत की। दो दो कमेटियों द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट में पाई गई कमियों के संबंध में बड़े साहब से स्पष्टीकरण मांगा गया। स्पष्टीकरण में बड़े साहब ने सभी कमियों का ठीकरा जे ई और एसडीओ पर फोड़ दिया गया व कहां गया कि अवर अभियन्ता एवं उपखण्ड अधिकारी ने परिसर में पूर्व से संयोजन होने के संबंध में कोई सूचना नहीं दी थी। अवर अभियन्ता एवं उपखण्ड अधिकारी से पूर्व से संयोजन होने की बात छिपाने हेतु स्पष्टीकरण मांगा गया जिस पर उपखण्ड अधिकारी ने पूर्व में दी गई टीएफआर की प्रति लगाते हुए अपना जवाब दिया गया एवं लगायें गये आरोप को निराधार बताया।
अपने आप को फसता हुआ पाते हुए कमेटी द्वारा लगाई गई आपत्तियों को दूर करने हेतु आनंन फानंन में मुख्य अभियंता से केबल का प्रीडिस्पैच निरीक्षण से छूठ हेतु प्रस्ताव भ्रामक सूचना सहित मध्यांचल को भिजवा दिया ।जबकि लाइन पूर्व में ही बन चुकी थी। बड़े साहब ने कनेक्शन संबंधी पत्रावली अपने कब्जे में ले ली व उसमें से अपने को फसाने वाले साक्ष्य संबंधित दस्तावेज गायब कर दिए। मध्यांचल के संज्ञान में आने पर प्री डिस्पैच से छूठ के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया गया व मुख्य अभियंता महोदय को निर्देशित किया गया कि भ्रामक सूचना दिए जाने हेतु संबंधित अधिशासी अभियंता के खिलाफ कार्रवाई करें।
फिर अपने आप को फसता हुआ पाते हुए मुख्य अभियंता को अपने गलत कामों को छिपाने के एवज में एक मोटी धनराशि देकर सौदा तय किया। मुख्य अभियंता ने मध्यांचल के निर्देश को दरकिनार कर पैसा पाते ही तत्काल संयोजन चालू करने का आदेश दे दिया जबकि जांच कमेटी ने लाइन निर्माण में अनेकों कमियां पाई गई थी। प्रकरण अखबार की सुर्खियों में आने पर अध्यक्ष यूपीपीसीएल ने प्रकरण की जांच हेतु मुख्य अभियंता को निर्देशित किया परंतु वह तो खुद ही इस खेल में शामिल हैं। अब देखना यह है कि मुख्य अभियंता क्या रिपोर्ट सबमिट करते हैं चेयरमैन साहब को। जांच में सही तथ्यों को उजागर कर दोशी ठहराया जाएगा या लीपापोती कर दोष मुक्त किया जाएगा
फिर भी मुख्य अभियंता अशोक कुमार चौरसिया के द्वारा इस प्रकरण में मीटर लगने के लिए 11/12/24 को आदेशित किया गया है, जबकि विभिन्न स्तरों पर हुए जांच से पूर्णतः स्पष्ट है कि अधिशाषी अभियंता सुभाष मौर्य पूर्णतः दोषी हैण्ण्ण् फिर भी किस प्रभाव में आ कर मुख्य अभियंता के द्वारा मीटर लगने के लिए आदेशित किया गया है… यह समझ के परे है।
यहां कुछ प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है जो की पवार कारपोरेशन के ऊपर उठता है….
👉 क्या मुख्य अभियंता ऐसे कनेक्शन पर मीटर लगने के लिए आदेशित कर सकते है जो कि 15प्रतिशत प्रतिशत सुपरविजन पर हुआ है परंतु कार्य पूर्ण होने में कई अनियमितता किया गया है और सम्बन्धित अधिशाषी अभियंता सुभाष मौर्या के द्वारा मीटर लगने का दबाव मीटर सेक्शन पर बनाया जा रहा था जिस पर अधिशाषी अभियंता टेस्ट के द्वारा लिखित कमियों को बताते हुए मीटर नहीं लगाया गया और अब जो काम अधिशाषी अभियंता सुभाष मौर्य के द्वारा आनन फानन में मीटर लगने के लिए पत्र लिखा गया वैसा ही पत्र मुख्य अभियंता के द्वारा लिखा गया जिस पर अधिशाषी अभियंता टेस्ट के द्वारा वर्तमान में मीटर लगा दिया गया। (पवार कारपोरेशन के नियम से क्या ये ठेकेदार अधिशाषी अभियंता सुभाष मौर्य एवं मुख्य अभियंता के लिए नहीं बने है?)
👉 क्या अधिशाषी अभियंता एवं मुख्य अभियंता पवार कारपोरेशन के नियमों से भी बड़े हो गए है एवं इस दौरान अधीक्षण अभियंता द्वारा क्या सार्थक प्रयास किया गया । सूत्रों के अनुसार अधीक्षण अभियंता द्वारा जान बूझकर जांच के नाम पर देरी किया जा रहा है।
👉 किस अन्य रिपोर्ट के आधार पर मुख्य अभियंता के द्वारा संयोजन को चालू करने के लिए आदेशित किया गया था । जबकि पूर्व में 15प्रतिशत सुपरविजन चार्ज योजना के आधार पर बनी टीम के द्वारा क्या बताई गई कमियों को दूर कर दिया गया था? अथवा सुभाष मौर्य के सामने सभी अधिकारी नतमस्तक अथवा पैसे के आगे सब झुक जाते है।
हैरानी का विषय यह कि इस प्रकरण में पवार कारपोरेशन की छवि सभी अधिकारियों ने मिल कर खराब किया है… फिर भी एक महा भ्रष्ट अधिकारी को बचाने के लिए सब एक हो गए है।
उपरोक्त प्रकरण से सम्बन्धित यूपीपीसीएल मीडिया का सम्बन्धित संयोजन सम्बन्धित सभी उच्च अधिकारीयों से अहम सवाल
👉 अगर जिस पर कनेक्शन दिया जा रहा है वह अलग परिसर मान भी लिया जाए तो उपभोक्ता के विरूद्ध उसी कैंपस के दूसरे बिल्डिंग से बिजली प्रयोग करने पर विद्युत अधिनियम की धारा 135 वन ई के तहत अभियोग कराई जाएगी और लाखों रूपये का असेसमेंट पेनाल्टी के रूप में जमा करना पड़ेगा उपभोक्ता को।
👉 जिस परिसर पर अधिशासी अभियंता बाराबंकी प्रथम द्वारा संयोजन दिया जा रहा है उसमें पहले से ही 70 केवी का संयोजन रामसनेही घाट डिवीजन से चल रहा है विगत कई वर्षों से… अधिशासी अभियंता बाराबंकी प्रथम द्वारा उक्त बिल्डिंग को अलग मानकर संयोजन दिया भी जा रहा है तो फिर बीते दिनांक 11 दिसंबर को मुख्य अभियन्ता द्वारा स्थलीय निरीक्षण आख्या में परिसर में कई वर्षों के संयोजन चलते हुए पाए जाने पर बिजली चोरी की कार्यवाही भी नहीं की गई बल्कि अधिशासी अभियंता को बचाने के लिए चीफ द्वारा मुख्य अभियन्ता संयोजन निर्गत करने के आदेश किस आधार पर दे दिए गए है।
👉 परिसर के लिए जो लाइन बनाई जा रही है उसमें एनएचएआई का बिना परमिशन के केबिल हाइवे के आरपार डाल दी गई है।
👉 मध्यांचल से केबिल के बिना जांच कराए नई लाइन सुपरविजन पर बना दी गई है।
👉 वर्तमान में सिटी लॉ कॉलेज ग्राम पंचायत क्षेत्र में आता है, जिसे शासन के निर्देशानुसार 18 घंटे से अधिक की सप्लाई नहीं दी जा सकती बिना प्रबन्ध निदेशक के अप्रूवल के…. फिर भी बिना प्रबन्ध निदेशक के अप्रूवल के 24 घंटे के फीडर से सप्लाई जोड़ने के लिए अधिशासी अभियंता ने संयोजन निर्गत कर दिया है।
👉 जांच कमेटी द्वारा विभागीय जांच में विद्युत वितरण खंड के अधिशासी अभियंता सुभाष मौर्या द्वारा 150 केवी एचवी वन के संयोजन देने में बिना प्री डिस्पैच ,बिना जीटीपी अप्रूवल के लाइन चालू करने,विभाग को आर्थिक क्षति पहुंचाने के लिए दोषी पाया गया है।
निजीकरण के अफवाह के बीच मुख्य अभियन्ता, अघिशासी अभियन्ता, प्रबन्ध निदेशक – मध्यांचल की त्रिकंशु जोड़ी ने अवर अभियन्ता के टीएफआर रिपोर्ट को नकारते हुए इस गलत संयोजन को ऊर्जाकृत कर देना एवं अध्यक्ष -पावर कारपोरेशन को गुमराह जॉच रिपोर्ट प्रेषित करना यह साबित करता है कि इस प्रकरण में सब एक ही थाली के सब चट्टे बट्टे है।
उपरोक्त प्रकरण से सम्बन्धित महत्वपूर्ण दस्तावेज… जो इस काले कारनामों को ऊजागर करती है…..