ऊर्जा निगमों के निजीकरण के विरोध में बाहरी लोगों का वितरण कम्पनियों के समक्ष डेरा डालना, कहीं 1.1 लाख करोड़ के घाटे पर पर्दा डालने के बदले एवं निजी कम्पनियों से अपनी हिस्सेदारी वसूलना तो नहीं…

मित्रों नमस्कार! बेबाक निजीकरण का समर्थन नहीं करता। परन्तु सुनियोजित लूट का भी समर्थन नहीं करता। जिसके ही कारण ऊर्जा निगमों का घाटा 1.1 लाख करोड़ से भी ऊपर पहुंच चुका है। प्रश्न उठता है कि वो क्या कारण है कि घाटा 1.1 लाख करोड़ का, परन्तु न तो कोई कारण स्पष्ट हैं और न ही कोई कारण जानना चाहता है? न कोई ED और न ही कोई CBI की जांच, सीधे निजीकरण का फैसला? यक्ष प्रश्न उठता है कि निजी कम्पनियों के पास ऐसा कौन सा अलादीन का चिराग है, जो देश के योग्य/प्रतिष्ठित प्रशासनिक अधिकारी भी लगातार पिछले लगभग 24 वर्षों से, सभी प्रयोग करके भी सफल नहीं हो पाये? जब यह था तथा कि अलादीन के चिराग के माध्यम से ही ऊर्जा निगम लाभ में चल सकते हैं, तो पहले ही उक्त चिराग की तलाश कर लेनी चाहिये थी। नाहक ही प्रयेग के नाम पर जनता के 1.1 लाख करोड़ की बर्बादी की गई।

क्या जनहित में इस बात का खुलासा आवश्यक नहीं है कि आये दिन बाहरी लोगों का, ऊर्जा निगमों में आकर, बेखौफ होकर, उनके नियमित कार्मिकों के साथ-साथ उपभोक्ताओं को आन्दोलन के लिये उकसाने के पीछे क्या उद्देश्य है? क्या ये बाहरी लोग, प्रबंधन एवं निजी कम्पनियों के एजेंट हैं? आखिर वो क्या कारण हैं कि न तो सरकार और न ही ऊर्जा प्रबंधन, ऊर्जा निगमों के कार्य में, आये दिन आन्दोलन के नाम पर, हस्तक्षेप करने के लिये, उकसाने वाले इन बाहरी लोगों के विरुद्ध कोई कार्यवाही क्यों नहीं करते हैं। क्या उपरोक्त आन्दोलन से, ऊर्जा प्रबन्धन, निजी कम्पनियों एवं बाहरी लोगों के निहित स्वार्थ जुड़े हुये हैं?

क्या निजीकरण का उद्देश्य, ऊर्जा निगमों में कथित गठबन्धन के द्वारा की गई सुनियोजित 1.1 लाख करोड़ की लूट पर पर्दा डालना है तथा बाहरी लोगों के द्वारा नियमित कार्मिकों के साथ, संयोजित निजीकरण का विरोध, उपरोक्त लूट पर पर्दा डालने की कीमत वसूलना तो नहीं है?

वो क्या कारण है कि जनता का धन लुटता रहा और सब देखते रहे। आज भी कोई घाटे को दूर करने के लिये, अनिवार्य निष्ठा एवं ईमानदारी की बात नहीं करता। यह सुनकर बहुत ही विचित्र लगता है जब प्रशासनिक अधिकारी के साथ-साथ विभागीय मन्त्री जी भी निजीकरण के फायदे गिनवाते हैं। जबकि सीधे-सीधे लगभग 24 वर्षों के बाद प्रशासन प्रयोगों की ही नहीं बल्कि उनकी योग्यता की भी यह विफलता है।

बेबाक जनहित एवं राष्ट्रहित में माननीय मुख्यमन्त्री उ0प्र0 सरकार से यह सादर मांग करता है कि जनहित एवं राष्ट्रहित में 1.1 लाख करोड़ का घाटा पहुंचाने वालों का खुलासा कराया जाये तथा यह देखा जाये कि यह कौन सा षडयन्त्र है कि जिस कार्य में योग्य एवं प्रतिष्ठित प्रशासनिक अधिकारी विफल रहे, उसे निजी कम्पनियां करने के लिये आतुर क्यों हैं। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द! बी0के0 शर्मा महासचिव PPEWA.

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