यदि “निजीकरण का ज्ञान” देने वाले लोग सरकारी सेवा को त्याग करके निजीकरण जॉइन कर ले…. तो “यूपीपीसीएल मीडिया” कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है आपके साथ

अध्यक्ष पावर कॉरपोरेशन आशीष गोयल महोदय ने इतना लक्ष्यदार बढ़िया बात बताते हुए प्राइवेटाइजेशन संबंधित अच्छी ज्ञान देते हुए लाभांश बताते नहीं थकते … तो इस संदर्भ में बताना चाहूंगा कि यह वही लाभांश है कि जिसके मुताबिक ओल्ड पेंशन से अच्छा न्यू पेंशन है… बताते हुए न्यू पेंशन के लाभांश बता रहे थे वही लोग जो लोग ओल्ड पेंशन का लाभ ले रहे हैं…. वही बात इससे भी लागू होती है कि निजीकरण का लाभ बताने वाले लोग सरकारी सेवाओं का लाभ ले रहे हैं….

यदि राज्य में सरकारी स्कूल नहीं रहा होता गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक, लखनऊ गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक स्कूल नहीं रहे होते तो शायद आज हाँ, यह सच्चाई है और मैं मानता भी हूँ कि इस सरकारी सेवा होने के कारण… बिजली सरकारी व्यवस्था होने के कारण घाटे में हैं, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सरकारी बिजली सेवा होने के कारण… आज बहुत ऐसे परिवार हैं… जिनके बच्चे उसके पिता के पास पैसा न होने के बावजूद भी… दो बल्ब जलाकर पढ़ाई करता है…. यदि कल को बिजली प्राइवेट हो जाएगा और उसी परिवार का बिल दो हज़ार रुपए का बिल आएगा तो उसके बच्चे नहीं पढ़ पाएंगे….

आज उत्तर प्रदेश में बहुत ऐसे उपभोक्ता है..जो खाना खाने की स्थिती में नहीं है और उनके ऊपर हजारों/लाखों रुपए का बिल बकाया है… आप ही बताएं कि वह बेचारा खाना खाये कि बिल जमा करे…. चुकि बिजली के बगैर कोई परिवार नहीं रह सकता… ऐसे में उक्त उपभोक्ताओं के यहां हम डिस्कनेक्शन कर भी दे, तो वह जोड़ लेगा, वो उसमें धारा 138 बी का मुकदमा कैसे करे? दिल गवाही नहीं देती है और हमारे पास कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है कि हम उसके बिल को जीरो कर पाए… तो ये सब प्रैक्टिकल चीज़े हैं… यह सब तथ्य निजीकरण के वकालत करने वाले बंद एयर कंडीशन कमरे में बैठ कर नहीं सोचते हैं… ना कभी वह सोच पाएंगे…

“निजीकरण का ज्ञान” देने वाले लोग सरकारी सेवा को त्याग करके “निजीकरण जॉइन” कर ले? उसके बाद ही “निजीकरण” की बात करे… आप ही बताइए भाई…दोनों चीज़े कैसे संभव हो जाएगी, खुद तो मिठाई खाएंगे और दूसरों को मना करेंगे कि मिठाई मत खाओ बेटा… शुगर होता है… कहने का तात्पर्य यह है कि तुम सारी सरकारी सेवाओं को बंद करके जा रहे हो….

हमारे देश में बिजली पानी को मौलिक अधिकार में शामिल किया गया है… तो इस संदर्भ में निजीकरण क़ी वकालत करने वालों से “यूपीपीसीएल मीडिया“ सबसे अहम सवाल कि क्या देश की पूरी सुख सुविधा किसी एक आदमी के हाथ में कैसे दे सकते हैं..? एक तरफ अपने अधीनस्थ अधिकारियों/ कर्मचारियों को अपनी लच्छेदार बातों से गिरते हुए आप प्राइवेट नौकरी करने के लिए मजबूर कर रहे हैं? खुद तो सरकारी सेवा का लाभ उठा रहे हैं… यह बात हजम नहीं हुई… की दाल में कुछ काला है बल्कि यह कहें कि पूरी दाल ही काली है…

इस लोकतांत्रिक देश में सरकार की जिम्मेदारी है कि सभी को बिजली पानी इत्यादि की सुविधा उपलब्ध कराये… निजीकरण के नाम पर सरकार अपनी जिम्मेदारियां से कैसे मुंह मोड़ सकती है?

उत्तर प्रदेश में एक निर्वाचित सरकार है… जिसे हम सभी लोगों ने मिलकर वोट देकर..चुना है… हमारे वोट पर चुनी गई सरकार को इतने महत्वपूर्ण निर्णय पर पहुंचने के पहले… निजीकरण के मुद्दे पर एक आम चुनाव करा ले… बहुमत मिलने पर निजीकरण जैसे फैसले पर अपनी मोहर लगाएं… यदि सरकार को अपने फैसले पर पूरा भरोसा है..तो, लेकिन सरकार यह नहीं करेगी की उत्तर प्रदेश के बिजली उपभोक्ता इसको नकार देंगे… क्योंकि उसको पता है कि जब हम नोटबंदी एवं कोरोना कॉल के बाद किस तरह हम अपने परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं… किस तरह बच्चों को पढ़ा रहे हैं… घर का खर्च चल रहे हैं… राशन पानी खरीद रहे हैं… और इन सब के बीच बड़ी मुश्किल से बिजली का बिल भी जमा कर रहे हैं… कई ऐसे परिवार हैं वह समय पर बिल भी नहीं जमा कर पाते हैं और हो सकता है कई माह भी ना जमा कर पाते हो… सरकार इन सब की दर्द को देखते हुए ओटीएस योजना लागू करती है ताकि बिल में लगा सरचार्ज को माफ कर सके… निजीकरण के वकालत करने वाले… आप ही बताइए कि ऐसी कोई योजना प्राइवेट कंपनियां लायेगी… अभी तक जहां-जहां भी प्राइवेट कंपनियां बिजली आपूर्ति कर रही हैं वहां पर अंतिम बार कब ओटीएस योजना लाई थी… आपको जवाब न मिलेगा।

यह सर्वविदित है कि जब कोई संपत्ति हम खरीदते हैं अथवा बेचते हैं… तो उसे संपत्ति से संबंधित किसी भी प्रकार का लेनदेन चाहे वह हाउस टैक्स हो… बिजली का बिल हो अथवा पानी का बिल हो… जमा करके बकाया न होने के संदर्भ में प्रमाण पत्र लेते हैं… ताकि खेलने वाले को कोई दिक्कत ना हो… तो इसी प्रकार निजीकरण के वकालत करने वाले को चाहिए कि निजीकरण के पूर्व सभी सरकारी विभागों में बकाया बिजली का बिल जमा करवा दे… और इसमें सरकार को कोई दिक्कत होनी भी नहीं चाहिए क्योंकि उनका कंट्रोल सरकार के पास है… उसके बाद आकलन करना चाहिए… कि कहां से घाटे पर हैं… ताकि प्राइवेट कंपनी वह गलती ना करें… क्योंकि निजीकरण के उपरांत आपके कथनानुसार (किसी की नौकरी नहीं जाएगी सबकी नौकरी सुरक्षित) रहेगी… कार्य करने वाले चाहे वह अधिकारीगण हो, कर्मचारी गण हो अथवा संविदा कर्मी… सब कुछ वही रहेंगे… कार्य करने का तरीका वही रहेगा… आम उपभोक्ताओं को बिजली इस तरह मिलती रहेगी बल्कि हो सकता है उसे अच्छी मिले… सात/आठ रूपए यूनिट से बढ़कर 15 से 20 रुपए यूनिट का भुगतान करना होगा… निजीकरण उपरांत प्राइवेट कंपनियां ऐसी कौन सी जादू की छड़ी घुमाएंगे कि आपके ही व्यवस्था… आपके ही कार्यालय… आपके ही पावर हाउस…. आपके ही इंजीनियरों….आपके ही कर्मचारी… और तो और आपके ही संविदा कर्मियों का प्रयोग कर दर्शाया गया घाटे को छूमंतर बोलते हुए फर्श से अर्श पर पहुंचा देगी…. और आईएएसो से सुसज्जित पावर कॉरपोरेशन सहित सभी डिस्कॉम यह कारनामा नहीं कर पाई…. और निजीकरण उपरांत प्राइवेट कंपनियां उक्त डिस्कॉमो को फर्श से अर्श पर पहुंचा देती है तो सब जाहिर है कमी आपके अधिकारियों/ कर्मचारियों व संविदा कर्मी में नहीं है बल्कि आप सभी आईएएसो में हैं।

“यूपीपीसीएल मीडिया” का मानना है कि जिस आर्टिकल का मेमोरेंडम के तहत पावर कारपोरेशन सहित सभी डिस्कॉम काम कर रही है…. यदि उसको देखा जाए तो आर्टिकल का मेमोरेंडम में कहीं भी शीर्ष पदों पर आईएएस नेतृत्व को नहीं दर्शाया गया है… बल्कि उनके स्थान पर इंजीनियर को ही दर्शाया गया है… ऐसे में किसी भी आईएएस का बैठना आर्टिकल का मेमोरेंडम खुला उल्लंघन है…. ऐसे पद जो इंजीनियर के लिए हो, उस पद पर एक आईएएस को बैठ कर इंजीनियरों को उनके विवेक पर ना काम करने देना… दिनभर वर्चुअल कॉन्फ्रेंसिंग के नाम पर डिजिटल अरेस्ट कर रखना… यह कैसे प्रमाणित करता है कि 77 करोड़ के घाटे को आज 110000000.00 के घाटे में पहुंचने में इंजीनियरों की भूमिका है।

यही नहीं सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल जनहित याचिका संख्या 79 / 1997 के संदर्भ में दिनांक 24 फरवरी 2005 के आदेशानुसार किसी भी स्थानांतरण/ पोस्टिंग हेतु सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में एक जांच कमेटी के समक्ष अनुमोदन लेना होता है… निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों के स्थानांतरण/तैनाती सभी प्रस्तावों को अंतिम रूप देने से पहले स्वतंत्र समिति के समक्ष रखा जाना चाहिए, जो अधिकारियों की स्थानांतरण के दिशानिर्देशों के आलोक में और गुण-दोष के आधार पर/तैनाती की जांच करेगी और उसे अनुमोदित करेगी। यहीं नहीं उक्त समिति द्वारा अस्वीकृत कोई भी स्थानांतरण/तैनाती उपरोक्त आठ निगमों में से किसी के निदेशक मंडल द्वारा नहीं की जाएगी। इस स्वतंत्र समिति के अध्यक्ष को प्रति बैठक 3,000/रुपये पारिश्रमिक तथा प्रत्येक सदस्य को प्रति बैठक 2,500/- रुपये पारिश्रमिक दिया जाने का आदेश है। यहीं नहीं उक्त समिति के अध्यक्ष एवं सदस्यों को देय पारिश्रमिक तथा समिति द्वारा अपने कार्यों के निर्वहन में किया गया व्यय उपरोक्त आठ निगमों एवं उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा समान अनुपात में देने का आदेश है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड प्रथमतः उक्त समिति के व्ययों का वहन करने तथा प्रति बैठक निर्धारित पारिश्रमिक का भुगतान करने तथा अन्य निगमों एवं उत्तर प्रदेश राज्य से आनुपातिक अंश वसूल करन का हकदार होने की बात कहीं गई है… इस सन्दर्भ में 2017 के बाद आज तक किसी भी स्थानांतरण मामले में कोई अप्रूवल जांच कमेटी से नहीं लिया गया… यदि जांच कमेटी से स्थानांतरण अप्रूवल नहीं लेना है… तो उसका जिक्र स्थानांतरण संबंधी कार्यालय ज्ञाप में क्यों किया जाता है?

उपरोक्त निर्णय के अनुसार राज्य सरकार पास विद्युत अधिनियम के तहत नीति निर्देशों की प्रकृति में निर्देश करने की शक्ति है, लेकिन बोर्ड के अध्यक्ष और शीर्ष कार्यकारी मुखों के राजनीतिक आकाओं से भरे होने के कारण, राज्य सरकार बोर्ड के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में हस्तक्षेप करने की बेलगाम का प्रयोग कर रही है। राजनीतिक संरक्षण के साथ स्थानांतरण और नियुक्ति में इस हस्तक्षेप ने विद्युत बोर्ड की स्वायत्त प्रकृति को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है, जिसे विद्युत बोर्ड के कामकाज को प्रभावित करने वाली एक बीमारी के रूप में पहचाना गया है। शायद इसी कारण सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण आदेश में साफ-साफ लिखा हुआ है कि किसी भी स्थानांतरण संबंधी प्रकरण में ऊर्जा मंत्री दखल नहीं दे सकते तो फिर क्यों उनके आदेश पर स्थानांतरण किया जाता है?

बताते चले कि राज्य विद्युत बोर्ड अब यू.पी. पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (वितरण और के लिए) में विभाजित हो गया है, जिसमें पाँच सहायक वितरण कंपनियाँ हैं, अर्थात् कानपुर इलेक्ट्रिक सप्लाई कंपनी लिमिटेड (केस्को), पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, वाराणसी, विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, लखनऊ, पश्चिमांचल वितरण निगम लिमिटेड, मेरठ और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम , आगरा। ताप विद्युत उत्पादन का काम यू.पी. राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को और जल विद्युत उत्पादन का काम यू.पी. जल विद्युत लिमिटेड को सौंपा गया है। ये सभी कंपनियाँ सरकारी कंपनियाँ, हालाँकि विद्युत अधिनियम के प्रावधानों के तहत, फिर भी स्वतंत्र निकाय हैं…जो केवल राज्य सरकार के निर्देशों के अधीन कार्य करती हैं।

अभी निजीकरण संबंधित निकाला नहीं गया है… लेकिन सभी को पूर्वानुमान है कि उक्त बिजली कंपनियां अदानी अथवा अंबानी परिवार को दिया जाएगा कुछ टोरंट को भी दिया जाएगा।

चलिए जो हुआ सो हुआ… सौ बात की एक बात…..यदि हमारे पावर कॉरपोरेशन अध्यक्ष महोदय अपने ज्ञानवर्धक एवं लच्छेदार बातों से प्रबंध निदेशक महोदय के साथ-साथ सभी डिस्कॉम के प्रबंध निदेशक महोदय/ महोदया को सरकारी सेवा को त्याग करके “निजीकरण” जॉइन कराने के लिए तैयार कर ले… तो आपके इस महत्वाकांक्षी योजना “निजीकरण” “यूपीपीसीएल मीडिया सहित अन्य सहयोगी मीडियाआपके साथ खड़ी है… आपकी हर निर्णय को उत्तर प्रदेश के उपभोक्ताओं को अपने अपने बैनर के माध्यम से अवगत कराएगी।

  • संजीव श्रीवास्तव
    संपादक- यूपीपीसीएल मीडिया
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  • UPPCL Media

    UPPCL Media

    सर्वप्रथम आप का यूपीपीसीएल मीडिया में स्वागत है.... बहुत बार बिजली उपभोक्ताओं को कई परेशानियां आती है. ऐसे में बार-बार बोलने एवं निवेदन करने के बाद भी उस समस्या का निराकरण नहीं किया जाता है, ऐसे स्थिति में हम बिजली विभाग की शिकायत कर सकते है. जैसे-बिजली बिल संबंधी शिकायत, नई कनेक्शन संबंधी शिकायत, कनेक्शन परिवर्तन संबंधी शिकायत या मीटर संबंधी शिकायत, आपको इलेक्ट्रिसिटी से सम्बंधित कोई भी परेशानी आ रही और उसका निराकरण बिजली विभाग नहीं कर रहा हो तब उसकी शिकायत आप कर सकते है. बिजली उपभोक्ताओं को अगर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई, बिल या इससे संबंधित किसी भी तरह की समस्या आती है और आवेदन करने के बाद भी निराकरण नहीं किया जाता है या सर्विस खराब है तब आप उसकी शिकायत कर सकते है. इसके लिए आपको हमारे हेल्पलाइन नंबर 8400041490 पर आपको शिकायत करने की सुविधा दी गई है.... जय हिन्द! जय भारत!!

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