मित्रों नमस्कार! आजकल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ”चोरी की बिजली में राम कथा“ मीडिया एवं विद्युत अधिकारियों के बीच एक चर्चा का विषय बना हुआ है। भगवान राम जिन्हें हम सभी ”मर्यादा पुरुषोत्तम राम“ के नाम से पूजते हैं। जिन भगवान राम की रोशनी में हम सभी गुजर-बसर करते हुये ”राम नाम सत्य“ के साथ इस धरा से विदा लेते हैं, उन्हीं की कथा में चोरी की बिजली से रोशनी, एक घोर पाप के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। कहते हैं कि बिना राई के पर्वत भी नहीं बनता अर्थात कहीं न कहीं तो राई है। राई का रुप तो पक्ष-विपक्ष के अतिरिक्त सिर्फ ईश्वर ही जानते हैं।
इस लीला के पीछे ईश्वर का क्या आशय है, वह सिर्फ ईश्वर ही जानते हैं। यह सम्भावित है कि उक्त आयोजन में विद्युत चोरी का प्रयोग हो रहा हो। जिसके पीछे सिर्फ एक ही कारण है ”अपने ही इच्छित स्थान पर अपनी ही शर्तों पर कार्य करने का संकल्प“। क्योंकि प्रायः सरकारी सेवक अपना पूरा का पूरा सेवाकाल अपने इच्छित स्थान पर पूर्ण करने के लिये, न जाने कौन कौन से यत्न करता है। जिसमें ईश्वर के स्थान पर मत्था टेकने से लेकर राजनीतिज्ञों तक की चरण वंदना करने से पीछे नहीं हटता। यह सत्य है कि एक सरकारी सेवक अपने परिवार के पालन पोषण करने के लिये सरकारी सेवा में आता है, परन्तु वहां पर आने से पूर्व और आने के बाद प्रायः उसका मूल उद्देश्य अतिरिक्त धन उपार्जन बन जाता है। जिसमें उसकी इच्छा को बलवति एवं पूर्ण करने हेतु उसके उच्चाधिकारी एवं अधीनस्थ जोकि इस कार्य में पहले से ही लिप्त रहते हैं, उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। अपने ही ”इच्छित स्थान“ पर बने रहने के लिये एक सरकारी सेवक के लिये सबसे महत्वपूर्ण होता है कि वह क्षेत्र के राजनीतिज्ञों को किसी भी बात पर नाराज़ न करे। राजनीति अर्थात राज की नीति, जहां पर कुर्सी ही प्रमुख होती है जिसके लिये, वक्त के अनुसार, जनहित के नाम पर कोई भी नीति, अख्तियार करने से राजनीतिज्ञ पीछे नहीं हटते। अतः राजनीतिज्ञों का आश्रय अर्थात उनके आदेशों का पालन करने के लिये तत्पर रहना। प्रायः राजनेताओं के पास वही लोग जाते हैं जिनका कार्य नियम से हटकर थोड़ा या पूरा का पूरा जटिल होता है और सरकारी सेवक अपने ”इच्छित स्थान“ पर बने रहने के नाम पर, उन सभी जटिल कार्यों को बिना विचारे करते हुये राजनेता की ख्याति को बढ़ाने का कार्य करता है।
प्रायः यह देखा गया है कि धार्मिक आयोजनों हेतु अस्थाई विद्युत संयोजन, क्षेत्र के प्रभावशाली नेतागणों के प्रभाव अथवा अन्य जोड़-तोड़ के कारण लिया ही नहीं जाता। दुखद यह है कि धार्मिक आयोजन हेतु न तो कटिया की सुविधा लेने वाले और न ही सुविधा देने वालों के मन मस्तिष्क में यह विचार कभी नहीं आता, कि जहां ईश्वर का आहवाहन किया जाना है, वहां पर अमर्यादित आचरण अर्थात ईश्वर के नाम पर चोरी करना, ईश्वर को ही अनियमितताओं में सम्मिलित करना, महा पाप के समान नहीं है। क्या अधर्म के आधार पर धर्म की स्थापना मिथ्या नहीं है। UPPCL MEDIA के पत्रकार महोदय का यह कथन कि ”चोरी की बिजली में राम कथा“ हो रही थी और उसके प्रत्युत्तर में क्षेत्र के अधिकारियों के द्वारा उक्त पत्रकार पर, उक्त खबर के कारण, वितरण निगम की छवि धूमिल करने का आरोप लगाते हुये सम्बन्धित पुलिस थाने में मुकदमा पंजीकृत करने हेतु तहरीर देना, निश्चित ही दुखद है। स्पष्ट है कि यहां किसी भी पक्ष को भगवान की मर्यादा से कुछ भी लेना देना नहीं है। सबकी अपनी-अपनी नाक है, जबकि ईश्वर सबकुछ देखते हुये मन्द-मन्द मुस्करा रहा है, कि उसकी कथा का आयोजन करने वाले, किस तरह से विवादों के बीच उसका आहवाहन कर रहे हैं। चूंकि प्रायः यह प्रचलन सा बन गया है कि धर्म के नाम पर हम नियम-कायदे ताक पर रख देते हैं।
अतः इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता, कि उक्त आयोजन में चोरी की बिजली का प्रयोग हो रहा हो। विद्युत अधिकारियों के लिये ईश्वर से भी ज्यादा, राजनीतिक दबाव एवं कुर्सी का लालच महत्वपूर्ण है। ऐसी विषम परिस्थिति में यह आवश्यक था कि क्षेत्र के विद्युत अधिकारी आपस में चन्दा एकत्र कर, उक्त आयोजन हेतु, विद्युत संयोजन अपने निजि खर्चे पर ईश्वर को अर्पित कर देते। जहां तक वितरण निगम की छवि की बात है, तो उसकी तनिक भी चिन्ता, किसी को भी नहीं है। विद्युत खम्भों की अर्थिंग नहीं है, मुख्य मार्गों पर स्थित विद्युत खम्भों पर प्लास्टिक की पन्नियां बांधकर, हम अपने भ्रष्टाचार का स्वयं प्रदर्शन करने में लगे हुये हैं। ईश्वर ही जानता है कि ये पन्नियां किस प्रकार से विद्युत वितरण निगमों की छवि को उज्ज्वल बना रही हैं। अधिकांश विद्युत कार्यों में मानकों का कोई अता-पता ही नहीं है। आये दिन निर्दोष विद्युत कार्मिक ही नहीं निर्दोष आम राहगीर तक घातक एवं हृदय विदारक घातक विद्युत दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। जरा सा पत्ता हवा में हिला नहीं कि क्षेत्र की बिजली इस भय के साथ बन्द कर दी जाती है कि कहीं तार न टूट जाये। जोकि हमारे कार्य एवं हमारी सामग्री की गुणवत्ता का जीता जागता प्रमाण है। शासन द्वारा बार-बार शिडयूल के अनुसार विद्युत आपूर्ति करने के आदेश दिये जाते हैं परन्तु कभी परिवर्तक फुंक जाता है, तो कभी तार टूट जाता है, तो कभी वी0सी0बी में खराबी आ जाती है, आदि विभिन्न प्रकार के कारण उत्पन्न हो जाते हैं। जो कार्य सर्दी के समय कराने चाहिये थे, उन्हें इस उमस भरी, असहनीय गर्मी में लम्बे-लम्बे शटडाउन लेकर कराया जा रहा है।
इस प्रकार के कार्यों से किस प्रकार से उर्जा निगमों की छवि उज्ज्वल हो रही है, यह कोई नहीं बता सकता। चूंकि उपरोक्त धार्मिक आयोजन, हम सभी के धर्म से जुड़ा हुआ है, उस पर क्षेत्रीय अधिकारियों का सन्देहास्पद आचरण, निश्चित ही एक पाप के समान है। ईश्वर के यज्ञ/हवन में यदि झूठ की आहुति डाली जा रही है, तो परिणाम भी निश्चित ही सार्थक नहीं होंगे। UPPCL MEDIA द्वारा बिजली चोरी का मुकदमा दर्ज करने की मांग को पूरा कर पाना, विद्युत अधिकारियों के लिये सम्भव नहीं है। क्योंकि विद्युत चोरी का मुकदमा पंजीकृत कराने के लिये, आरोपी के परिसर में की गई जांच की रिपोर्ट उपलब्ध होना अनिवार्य है। जोकि आज की तारीख में सम्भव ही नहीं है। परन्तु विभाग द्वारा एक पत्रकार, जिसके द्वारा उक्त मामले को उजागर करने का प्रयास किया गया, उसी के विरुद्ध, आनन-फानन में विभाग की छवि के नाम पर मुकदमा पंजीकृत कराने हेतु थाने में तहरीर देना, दाल में काले की ओर संकेत करने के साथ-साथ, आग में घी डालने के समान है। अब यह देखना रोचक होगा कि तहरीर देने से विभाग की छवि किस प्रकार से उज्ज्वल होगी तथा ईश्वर के हवन में सच या झूठ की आहुति किसको आशीर्वाद प्रदान करेगी और किस पर भारी पड़ेगी। जानकारी में आया है कि निगम स्तर से जांच समिति गठित कर दी गई है।
देखना रोचक रहेगा कि जांच अधिकारी को प्रथमदृष्टया आरोपी कौन दिखाई देता है अथवा वो किस चीज से प्रभावित होकर, अपना दृष्टिकोण निर्धारित कर, जांच कार्य को पूर्ण करते हैं। बेबाक का यह मानना है कि इस प्रकरण की रोचकता सिर्फ इतनी ही होगी, कि छूरी खरबूजे पर गिरेगी या खरबूजा छूरी पर गिरेगा। चूंकि इस प्रकरण में मर्यादा पुरुषोत्तम राम का नाम है, अतः उच्चाधिकारी भी इस मामले में अपने आपको असहनीय स्थिति में नहीं लाना चाहेंगे। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA.